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अनेकान्त 60/1-2
जो भावपूर्वक अरहंत भगवान को नमस्कार करता है, वह शीघ्र ही सर्व दुःखों से छूट जाता है। आगे और भी लिखा है
भतीए जिणवराणां खीयदि जं पुव्वसंजियं कम्मं ।। गाथा 78 जिनेन्द्र की भक्ति रूप शुभ भाव से पूर्वसञ्चित कर्मों को क्षय हो जाता है। भावपाहुड़ में लिखा हैजिणवर वरणंबुरुहं पणमंति जे परमभत्तिरायेण ।
ते जम्मवेल्लिमूलं हणति वरभाव सत्येण।।153 ।। जो भव्य जीव उत्तम भक्ति और अनुराग से जिनेन्द्र भगवान के चरण कमलों में नमस्कार करते हैं वे उस भक्तिमय शुभ शास्त्र के द्वारा संसार रूपी बेल को जड़ से उखाड़ डालते हैं। धवला में लिखा है
दर्शनेन जिनेन्द्राणां, पापसंघातकुंजरं।
शतधा भेदमायाति गिरिवज्रहतो यथा।।6,428 जिस प्रकार बज्र के आघात से पर्वत के सौ टुकड़े हो जाते हैं उसी प्रकार जिनेन्द्र भगवान के दर्शन से पापसंघात रूपी कुंजर के सौ टुकड़े हो जाते हैं। और भी लिखा है
जिनबिम्बदसणेण णित्ति णिकाचिदस्सवि।
मिच्छत्तादि कम्म कलाबस्स रवयं दसणादो।।6,427 जिनबिम्ब के दर्शन से निधत्ति और निकाचित रूप भी मिथ्यात्वादि कर्मकलाप (समूह) का क्षय देखा जाता है।
'आवश्यक नियुक्ति' में भक्ति के फल की चर्चा करते हुए कहा गया है कि जिन-भक्ति से पूर्व संचित कर्म क्षीण होते है और आचार्य के नमस्कार से विद्या और मंत्र सिद्ध होते हैं। पुनः जिनेन्द्र की भक्ति से राग द्वेष समाप्त होकर आरोग्य, बोधि और समाधि लाभ होता है!2