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अनेकान्त 60/1-2
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संस्कृत भाषा में लिखा है। 14-15वीं शताब्दी में रचित इस काव्य में कथा का प्रारंभ वायुभूति के जीवन के प्रारम्भ से होता है। वायुभूति का जीव ही अनेक जन्मों में की गई साधना के द्वारा पार्श्वनाथ तीर्थकर होकर निर्वाण प्राप्त करता है।
इस प्रकार 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के अलावा अन्य तीर्थकर पर भी संस्कृत भाषा में अजितनाथ पुराण, शांतिनाथ चरित, मल्लिनाथ चरित, नेमिनाथ महाकाव्य, वर्द्धमान चरित, महावीर चरित लिखे गये।
पारसणाहचरियं - देवप्रभ सूरि द्वारा रचित प्राकृत भाषा में लिखित गद्य पद्यात्मक ग्रंथ है। इसमें गोवर्द्धन कृष्ण के वंशज वीर श्रेष्ठी की प्रेरणा से इस चरित ग्रंथ की रचना 11वीं शताब्दी में की थी। यह कथावस्तु 5 प्रस्तावों में विभक्त है। प्रथम प्रस्ताव में पार्श्वनाथ के पूर्वभवों में से दो भवों का वर्णन मिलता है। प्रथम भव में पार्श्वनाथ मंत्री मरुभूति थे। उनका भाई कमठ था। इस प्रकार पांच प्रस्तावों में सर्प, भील, सिंह, मेघमाली देवों के रूप में प्रतिशोध लेता है तथा पार्श्वनाथ केवलज्ञान प्राप्त कर निर्वाण प्राप्त करते हैं। इस चरित काव्य में विवाहोत्सव का सजीव वर्णन है। पद्य की अपेक्षा गद्यांश अत्यंत श्लिष्ठ है। विभत्स एवं शांत रस का सुन्दर निरूपण है। पंचम प्रस्ताव में चण्ड सिंह एवं भागुरायण का संवाद अत्यंत सुन्दर है।' पार्श्वनाथ के अलावा महावीर चरियं, सुपासनाहचरियं आदि प्राकृत चरित साहित्य लिखे गये। स्वतंत्र चरित साहित्य के अलावा अन्य कथा ग्रन्थों में भी पार्श्वनाथ के संदर्भ स्तुति रूप में मिलते हैं। संस्कृत, प्राकृत भाषा के बाद अपभ्रंश भाषा में भी तीर्थकरों में पार्श्वनाथ चरित पर काव्य लिखा गया।
पारसणाह चरिउ - इसे पद्म कीर्ति ने 9वीं, 10वीं शताब्दी में लिखा है। इसमें 18 संधि, 310 कडवक है। इसमें में कवि ने परम्परागत कथानकों को ही अपनाया है। प्रथम संधि से 18 संधि में कमठ द्वारा मरुभूति पत्नी के साथ अनुचित व्यवहार, राजा के द्वारा कमठ का नगर