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अनेकान्त 60/1-2 तत्वों की मन में भावना करता हुआ मैं मिथ्यात्व रूपी अन्धकार के पटल को दूर करने वाले, स्वर्ग और मोक्ष नगर का मार्ग बतलाने वाले तथा तीनों लोकों के लिए मंगलकारक जैन आगम को सदा नमस्कार करता
_____3. चारित्र भक्ति :- जिसके बिना अभागे मनुष्य के शरीर में पहनाये गये भूषणों की तरह ज्ञान खेद का ही कारण होता है, तथा सम्यक्त्व रत्नरूपी वृक्ष ज्ञान रूपी फल की शोभा को ठीक रीति से धारण नहीं करता और जिसके न होने से बड़े-बड़े तपस्वी भ्रष्ट हो गये। हे देव! संयम, इन्द्रिय निग्रह और ध्यान आदि के आवास उस तुम्हारे चारित्र को मैं नमस्कार करता हूं। जो इच्छित वस्तुओं को देने के लिए चिन्तामणि है, सौन्दर्य और सौभाग्य का घर है, मोक्ष रूपी लक्ष्मी के पाणिग्रहण के लिए कंकण-बंधन है और कुल, बल और आरोग्य का संगम स्थान है अर्थात तीनों के होने पर ही चारित्र धारण करना संभव होता है, और पूर्वकालीन योगियों ने मोक्ष के लिए जिसे धारण किया था, स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति के लिए उस पांच प्रकार के चारित्र को मैं नमस्कार करता है।
संवर का सातवां साधन चारित्र है। जिसके द्वारा हित का प्राप्ति और अहित का निवारण होता है उसे चारित्र कहते हैं। एक परिभाषा के अनुसार आत्मिक शुद्ध दशा में स्थिर होने का प्रयत्न करना चारित्र है। विशुद्धि की तारतम्यता की अपेक्षा, चारित्र पांच प्रकार का कहा गया है- सामायिक, छेदोस्थापना, परिहाविशुद्धि, सूक्ष्म-साम्पराय और यथारव्यात।
1. सामायिक :- साम्यभाव में स्थित रहने के लिए समस्त पाप-प्रवृत्तियों का त्याग करना ‘सामायिक' चारित्र है।
2. छेदोपस्थापना - गृहीत चारित्र में दोष लगने पर, उनका परिहार कर, मूल रूप में स्थापित होना ‘छेदोपस्थापना' चारित्र है।