________________
98
अनेकान्त 60/1-2
वाक्य अथवा नैयायिकों का “वस्तु नित्य है" यह वाक्य प्रमाण कोटि में आ जायेगा, जो कि अयुक्त है; कारण कि जैनमान्यता के अनुसार वस्तु न तो केवल नित्य है और न केवल अनित्य ही है बल्कि उभयात्मक है। यही सबब है कि जैन मान्यता के अनुसार वस्तु के एक एक अंश का प्रतिपादन करने वाले ये दोनों वाक्य नय-वाक्य माने गये हैं।
समाधान- जब नय को प्रमाण का अंश माना गया है। तो वचन रूप परार्थ प्रमाण का भी अंश ही नय को मानना होगा, वचनरूप परार्थ प्रमाण वाक्य और महावाक्य ही हो सकता है यह पहिले बतलाया जा चुका है, इसलिये पूर्वोक्त प्रकार वाक्य और महावाक्य के अंशभूत पद, वाक्य और महावाक्य को ही नय मानना ठीक है। लोक-व्यवहार में इसकी उपयोगिता स्पष्ट है क्योंकि पदार्थज्ञान ही से हम वाक्यार्थज्ञान कर सकते हैं और वाक्यार्थज्ञान हमें महावाक्य के अर्थज्ञान में सहायक होता है। 'वस्तु क्षणिक है' “वस्तु नित्य है" इन वाक्यों को परार्थप्रमाण मानने पर जो आपत्ति उपस्थित की गयी है वह ठीक नहीं है; क्योंकि जब वक्ता के विवक्षित अर्थ को प्रगट करने वाला वचन प्रमाण और वक्ता के विवक्षित अर्थ के एक अंश को प्रगट करने वाला वचन नय मान लिया गया है तो इन वाक्यों का प्रयोग करने वाले बौद्ध और नैयायिक के विवक्षित अर्थ को पूर्णरूप से प्रतिपादन करने वाले से वाक्य प्रमाण ही माने जायेंगे; नय नहीं माने जा सकते हैं; कारण बौद्ध और नैयायिक वस्तु को क्रम से क्षणिक और नित्य ही मानते हैं। बौद्धों की दृष्टि में वस्तु के स्वरूप में नित्यत्व और नैयायिकों की दृष्टि में वस्तु के स्वरूप में क्षणिकत्व शामिल नहीं है। इसलिये 'वस्तु क्षणिक है' इस वाक्य से प्रतिपादित क्षणिकत्व बौद्धों का विवक्षित अर्थ ही है, विवक्षित अर्थ का एक अंश नहीं, यही बात नैयायिकों के विषय में समझना चाहिये। इन वाक्यों को नयाभास भी नहीं कहा जा सकता है; क्योंकि कि 'जो वस्तु का अंश नहीं हो सकता है उसको वस्तु का अंश मानना' ही नयाभास है; लेकिन नयाभास का यह लक्षण यहां घटित नहीं होता