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अनेकान्त 60/1-2
अनुसार चूँकि चन्द्रगुप्त जैन धर्मानुयायी हो गया था इसी कारण जैनेतरों द्वारा वह अगली दस सहस्राब्दियों तक इतिहास में नितान्त उपेक्षणीय रहा। इतिहासकार टामस इस सम्राट को जैन समाज का महापुरुष मानते हैं। सुप्रसिद्ध विद्वान रैप्सनने इस सम्राट को इतिहास का लंगर (The Sheet anchor of Indian chronology) कहा है।
यूनानी दूत मैगिस्थिनीज भी यही लिखते हैं कि चन्द्रगुप्त ने ब्राह्मणों के सिद्धांत के विरोध में श्रमणों (जैनों) के उपदेश को स्वीकार किया था।' यूनानी ग्रीक इतिहासकारों ने इसे सैण्ड्रोकोट्टस माना है जिसकी पुष्टि सर विलियम जोन्स भी करते हैं।'
उपरोक्त अनेक विद्वानों व पुराणकारों के अध्ययन से पता चलता है कि मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त भारतीय इतिहास का अद्वितीय अमिट और अविस्मरणीय प्रकाश स्तम्भ है। ऐसे प्रतिभाशाली उदार और सौम्यदृष्टि सम्राट ने हारकर भागते हुए नन्द नरेश राजा धननन्द की पुत्री सुप्रभा के आग्रह पर राजकुमारी सुप्रभा के साथ विवाह कर उसे मगध राज्य की सम्राज्ञी बनाया। राज्य आरोहण के पश्चात् चन्द्रगुप्त ने भारतीय पश्चिमी सीमा को यूनानी परतन्त्रता से मुक्त कराकर अपनी शक्ति और समृद्धि को उत्तरोत्तर वृद्धिंगत किया। विशाल वाहिनी के बल पर उसने सम्पूर्ण आर्यावर्त (उत्तरी भारत) पर अपनी विजय पताका फहराई। मालवा गुजरात और सौराष्ट्र देश पर विजय प्राप्त कर उसने नर्मदा तक साम्राज्य का विस्तार किया। यूनानी शासक सिकन्दर के पश्चात् उसका सेनापति सिल्यूकस मध्य एशिया के प्रान्तों का शासक बना और वह भी सिकन्दर के समान भारत विजय करने आया परन्तु दुर्भाग्यवश उसे सम्राट चन्द्रगुप्त से अपमानजनक हार कर मुँह की खानी पड़ी। चन्द्रगुप्त ने उसके प्रयासों को विफल कर दिया। विवश होकर सिल्यूकस को सन्धि करनी पड़ी तथा पंजाब, सिंध अफगानिस्तान, सिंधू नदी के पश्चिम में एरियाना (हेरात, आफगानिस्तान का प्रान्तीय नगर)", पेरापेनीसड़ाई एरिया (काबुल घाटी), (प्राचीन कुंभा अथवा काबुल नदी