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अनेकान्त 60/1-2
आदान-प्रदान हमारी अनुकरणात्मक प्रवृत्ति के द्योतक हैं और ये अनुकरण विविध क्षेत्रों में प्राचीन काल से चले आ रहे हैं। धार्मिक, समाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक आदि क्षेत्रों में आदान-प्रदान पर्याप्त मात्रा में हुआ है। .
आज जो शोध-खोज हो रही है उसमें इस बात पर विशेष ध्यान दिया जाता है कि इसका मूलस्रोत क्या है? अर्थात् विविध कलाएँ तत् क्षेत्रों में अपने मूलरूप किंवा प्रारम्भिक रूप प्रारम्भ हुई और जैसे ही उनका कार्यक्षेत्र बढ़ा। प्रसिद्धि बढ़ी और लोगों को यदि वह कला पसंद आ गई तो उसको आत्मसात् कर लिया और इस ढंग से किया कि गुरु गुड़ रह गये और चेला चीनी हो गये। इसमें परवर्ती की कलाबाजी और प्रोपेगण्डा भी हो सकता है जो मूलस्रोत को भुलाकर स्वयं मूलस्रोत के रूप में प्रतिष्ठित हो जाता है।
साहित्य के क्षेत्र में आदान-प्रदान की कला का आचार्य राजशेखर ने बहुत अच्छा उल्लेख किया है। उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि पूर्व कवियों के तथ्यों को किंवा काव्यों में किञ्चित् परिवर्तन करके अथवा भावों में किञ्चित् परिवर्तन करके उसे अपना बना लिया जाता है। इस विषय में उन्होंने अनेक उदाहरण भी प्रस्तुत किये हैं। ___मैं समझता हूँ कि वैदिक परम्परा अथवा श्रमण परम्परा में परस्पर में विविध क्षेत्रों में बहुत कुछ आदान-प्रदान हुआ है, जो हमारे सांस्कृतिक, धार्मिक एवं सामाजिक सम्बन्धों को गहरी मजबूती प्रदान करते हैं और वे इस बात के साक्षी हैं कि हमारा परस्पर आदान-प्रदान का व्यवहार प्राचीन ही नहीं, अपितु प्राचीनतम है तथा परस्पर में निश्चय में कोई बैर-विरोध नहीं है। विविधता हमारी संस्कृति है। अच्छी बातों को ग्रहण करना और बुराइयों का त्याग करना यह प्रत्येक भारतीय के लिये गौरव की बात है। फिर चाहे वह वैदिक परम्परा से सम्बद्ध हो अथवा श्रमण परम्परा से अथवा अन्य किसी भी परम्परा से सम्बद्ध हो।