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अनेकान्त 60/1-2
स्थापित हैं। मूल गंधकुटी में सुपार्श्वनाथ स्वामी की पद्मासन प्रतिमा है। ये सभी एक चौकोर बरामदे में स्थापित है। इसी बरामदे में तीन वेदियाँ गर्भ गृह में हैं इसमें प्रथम वेदी में 3 पाषाण प्रतिमाएँ, द्वितीय में बाहुबली की 5 फीट की खड्गासन प्रतिमा है। जो कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं। तीसरी और अन्तिम वेदी में आठ जैन-प्रतिमाएँ है। इसी गर्भगृह के दाँयी ओर एक गुप्त मार्ग बना हुआ है जो मुख्य गर्भगृह को जाता है इसे 'तल-प्रकोष्ठ' कहा जाता है। यह प्रकोष्ठ ऊपर से 25 फीट नीचे भू-गर्भ में है। इस गर्भगृह में उतरने पर बॉयी ओर की दीवार में चतुर्मुखी चक्रेश्वरी देवी की सुन्दर प्रतिमा है, जबकि सामने की दीवार पर चतुर्भुजी अंबिका की प्रतिमा है। गर्भ गृह के बाँयी ओर एक अन्य जैन खड्गासन प्रतिमा है। गर्भ-गृह के बाँयी ओर के निकट एक फलक में 55 जैन प्रतिमाएँ दोनों ओर ध्यानासनों में प्रतिष्ठित हैं। इसी के मध्य मूल रूप तीर्थकर महावीर स्वामी की अत्यन्त कलापूर्ण एवम् मनोज्ञ-प्रतिमा प्रतिष्ठित है।
मुख्य गर्भगृह में एक विशाल वेदी पर मूल नायक भगवान आदिनाथ (ऋषभदेव) की लाल पाषाण की पद्मासनावस्था तथा पदमांजलि मुद्रा की प्रतिमा प्रतिष्ठित है। इसी अनुपम प्रतिमा के अधखुले नेत्रों एवं धनुषाकार भौहों का अंकन अत्यन्त मन-मोहक है। प्रतिमा के वक्ष पर 'श्रीवत्स' है एवं हाथ-पैरों में पद्म बने हुए हैं। इसके दक्षिण पाद पर एकलेख भी उत्कीर्ण है। जिस पर विक्रम संवत् 1746 वर्षे माघ सुदी 6 सोमवार को मूलसंघ भट्टारक स्वामी जगतकीर्ति द्वारा (खींचीवाड़ा में) चाँदखेड़ी के नेतृत्व में महाराव किशोर सिंह के राज्य में बघेरवाल वंशी भूपति संघवी किशनदास बघेरवाल द्वारा बिम्ब प्रतिष्ठा कराई जाना अंकित है। यह प्रतिमा 6.25 फीट ऊँची एवं 5 फीट चौड़ी है। इसके दर्शन करते ही मन में अपूर्व वीतरागता और भक्ति शान्ति के भाव उत्पन्न होते हैं। प्रतिमा का निर्माण काल अंकित नहीं है। मन्दिर के वाम स्थल पर एक अंकन लेख व प्रतिमा पर संवत् 512 अंकित है,