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चाँदखेड़ी का विचित्र “जैन-मन्दिर"
- ललित शर्मा औरंगजेब का नाम आते ही व्यक्ति के मानस पटल पर एक ऐसे शासक की तस्वीर उभर आती है जिसने भारत के कई देवालयों को क्रूरता से ध्वंस करवाया। लेकिन इसे आश्चर्य कहें या कुछ और कि राजस्थान में एक स्थान ऐसा भी है जहाँ मूर्ति भंजक औरंगजेब के समय में एक पूरे ही मन्दिर का निर्माण हुआ और वह स्थान हैदक्षिण-पूर्वी राजस्थान में कोटा जंक्शन (कोटा) से 85 कि.मी. दक्षिण में स्थित झालावाड़ जिले के खानपुर कस्बे के निकट चाँदखेड़ी में। चाँदखेड़ी नामक यह स्थल व यहां का यह जैन मन्दिर मुख्यालय झालवाड़ से 35 कि.मी. दूर पूर्व में बस मार्ग से सीधा जुड़ा हुआ है। जो रूपली नदी के किनारे स्थित है।
इस मन्दिर के मूल गर्भगृह में एक विशाल तल-प्रकोष्ठ है जिसमें भगवान आदिनाथ (ऋषभदेव) की लाल पाषाण की पद्मासनावस्था की प्रतिमा प्रतिष्ठित है। यह प्रतिमा इतनी अधिक मनोज्ञ है- मानो मॅह बोलती है। श्रवणबेलगोला के बाहुबली की प्रतिमा के उपरान्त भारत की यह दूसरी मनोज्ञ प्रतिमा है। दरअसल यह मुख्य प्रतिमा इस क्षेत्र से 6 मील दूर बारहा पाटी पर्वतमाला के एक हिस्से में बरसों से दबी हुई थी। सांगोद निवासी किशनदास मड़िया बघेरवाल (तत्कालीन दीवान कोटा राज्य) को एक रात स्वप्न में बारहापाटी से प्रतिमा निकालने का संकेत मिला। तदनुरूप प्रतिमा बैलगाड़ी में रखकर सांगोद लाई जा रही थी कि मार्ग में रूपली नदी पर हाथ-मुँह धोने के लिये गाड़ी रुकी। कुछ समय बाद बैल जोतकर गाड़ी चलाने का उपक्रम किया गया तो गाड़ी एक इंच भी न सरक कर वहीं स्थिर हो गई। गाड़ी को खींचने के लिये कई बैलों का बल प्रयोग किया गया परन्तु वह