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किरण १]
अहार-क्षेत्रके प्राचीन मूर्ति-लेख
(नं ४२)
बैल्लि (1) रतनश्री । सं० १२१६ माघसुदी १३ शुक्र जैसमृत्तिका शिर तथा दायाँ हाथ नहीं है। बाकी बालान्वये साहु बाहद भार्या श्रीदेवि पुत्री सावित्री एताः हिस्सा उपलब्ध है । लेखका प्रारम्भिक कुछ हिस्सा प्रणम
प्रणमन्ति। टूट गया है। २१० बचा है। अतः नीचे लेखमें सं० भावार्थ:-सिद्धान्ति श्रीसागरसेन आर्यिका जयश्री ५२१० अनुमानसे लिखा गया है । चिन्ह बैलका है। उनके पासमें रहनेवाली रतनश्री और जैसवाल करीब ।। फुट ऊंची पद्मासन है। पाषाण काला है। वंशमें पैदा होनेवाले साहु वाहड़ उनकी पत्नी श्री पालिश चमकदार है।
देवि तथा पुत्री सावित्रीने सम्वत् १२१६ के माघ लेख–सम्वत् २१० (१२१०) पौरपाटान्वये साहुश्री
सुदी १३ शुक्रवारको बिम्बप्रतिष्ठा कराई। गपधर भार्या गांग सुत सोद-माहव एते सर्वे श्रेयसे प्रण
(नं०४५) मन्ति नित्यम् । वैशाख सुदी १३ बुधदिने ।
मूत्तिके दोनों हाथोंकी हथेलियों तथा आसनके ___ भावार्थः-सम्बत् १२१० (?) के वैशाख सुदी १३ अतिरिक्त बाकी हिस्सा नहीं है । चिन्ह हिरणका बुधवारको पौरपाटवंशमें पैदा होनेवाले साह श्री है । करीब १।। फुट ऊंची पद्मासन है। पालिश चमगपधर उनकी भार्या गांग उनके पुत्र सोढू-माहव कदार है। इन्होंने मोक्ष प्राप्त करनेके लिये बिम्बप्रतिष्ठा कराई। लेख-सम्बत् १२०३ साहु सान्तन तस्य पुत्र लढू (नं० ४३)
तस्य भार्या मलगा प्रणमन्ति नित्यम् । मूर्तिके आसन और हाथके अतिरिक्त बाकी हिस्सा भावार्थः-- सम्वत् १२०३ में साहु शान्तन उनके नहीं है। चिन्ह हाथीका है । करीब २॥ फुट ऊंची पुत्र लढू उनकी पत्नी मलगाने बिम्बप्रतिष्ठा कराई । पद्मासन है । पाषाण काला तथा चमकदार है।
(नं०४६) ख-सम्बत १२१० वैशाख सदी १३ जैसवालान्वये मूर्तिकी हथेली और शिरके अतिरिक्त बाकी हिस्सा साहु दल्हण भार्या पाल्ही तत्सुत पंडित राल्ह भार्या कोहणी उपलब्ध है । चिन्ह चन्द्रका है। करीब २ फुट ऊंची तरसुत बद्ध मान-श्रामदेव एते श्रेयसे प्रणमन्ति नित्यम्। पद्मासन है। पाषाण काला है । पालिश चमकदार है।
भावार्थः-जैसवाल वंशमें पैदा होनेवाले साहु लेख-सम्वत् १२०७ माघ बदी ८ गृहपत्यन्वये देल्हण उनकी पत्नी पाल्ही उनके पुत्र पंडित राल्ह माहु मोने तस्य भार्या होवा तत्सुत दिवचन्द्र अष्टकर्मउनकी धर्मपत्नी कोहणी उसके पुत्र वर्द्धमान-श्राम- क्षयाय कारापितेयं प्रतिमा । देवने मोक्ष प्राप्त करनेके लिये सम्बत् १२१० वैशाख ___भावार्थ-गृहपतिवंशमें पैदा होनेवाले साहु सुदी १० को बिम्बप्रतिष्ठा कराई।
सोने उनकी धर्मपत्नी होवा उनके पुत्र दिवचन्द्रने (नं०४४)
सम्बत् १२०७ के माघ बदी ८ को अष्टकर्मक्षयके मूर्तिके आसनके अतिरिक्त बाकी हिस्सा नहीं
लिये प्रतिमा प्रतिष्ठित कराई। है। चिन्ह बन्दरका मालूम होता है। करीब १५॥
(नं०४७) फुट ऊची पद्मासन है। पाषाण काला है। पालिश
मूर्तिका शिर और बाएं हाथके अतिरिक्त बाकी चमकदार है।
हिस्सा अखण्डित है। आसनका नीचेका हिस्सा लेख-सिद्धान्तिश्रीसागरसेन प्रार्यिका जयश्री तस्य कुछ छिल गया है, अतः कुछ लेख और चिन्ह नहीं