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अहिंसा-दर्शन
मान लीजिए, चण्डप्रद्योत के इस आक्रमण काल में भगवान् वहाँ नहीं गये होते, तो क्या उन्हें कोई दोष लगता था ? क्यों वे साधु के लिए निषिद्ध युद्ध-क्षेत्र में उग्र विहार करते हुए पहुंचते हैं और समाधान का पथ प्रशस्त करते हैं।
प्रश्न दोष का नहीं है । प्रश्न है-मानवहृदय की सामाजिक चेतना का । जब हृदय में समाज के हित की बलवती प्रेरणा उठती है, उसके कल्याण की उदात्त भावना जगती है, तब अपने व्यक्तिगत दुःख या सुख का प्रश्न वहाँ नहीं अटकता । यह तो एक सहज मानवीय भाव है, जो मनुष्य की आत्मा के साथ जुड़ा हुआ है । मानव आत्मा जितनी ही ऊँचाई पर पहुँचता है, यह मानवीय भाव उतना ही उच्चतम होता जाता है । भगवान् महावीर की आत्मा जीवन की समस्त ऊँचाइयों को पार कर चुकी थी, इसलिए यह मानवीय भाव भी वहाँ उच्चतम और परिपूर्णरूप में विकसित हो चुका था । अस्तु, यह कौशाम्बी का प्रसंग इस बात का साक्षी है कि भगवान महावीर की प्रबुद्ध करुणा और सामाजिक भावना कितनी महान् थी और कितनी सक्रिय ! संदेह का निराकरण
भगवान् के निवृत्तिप्रधान जीवन में भी हम लोककल्याण की प्रवृत्ति और सामाजिक चेतना की बहुत बड़ी निर्मल झलक पाते हैं। एक ओर इतने बड़े धर्मसंघ का नेतृत्व, उसकी जिम्मेदारियाँ और साथ ही दूसरी ओर समाज के प्रत्येक अंग का निरीक्षण, उसकी उलझनों का समाधान, शंका और बहम का निराकरण, भूलों का शोधन और पारस्परिक विग्रह एवं द्वन्द्वों का उपशमन ! विश्वजनहिताय प्रवृत्ति की हजारों हजार तरंगें उनके जीवन-महासागर में एक साथ लहराती दिखाई दे रही हैं ।
___समाज की उलझनों और समस्याओं का कितनी दूर तक उन्होंने स्पर्श किया था, इनका एक उदाहरण जैनकथाओं में मिलता है । एक बार सम्राट श्रेणिक के मन में अपनी पत्नी चेलना रानी के प्रति संदेह हो गया कि वह सती नहीं है। किसी अन्य पुरुष के प्रति आकर्षण है, उसके मन में । बस, सम्राट् समग्र नारीजाति के प्रति ही अपवित्रता के बहम के शिकार हो गये, और आदेश दे दिया कि चेलना और अन्य सब रानियों को जला कर भस्म कर दिया जाए।
एक निराधार बहम के कारण कितनी भयंकर दुर्घटना होने जा रही थी। समूचे अन्तःपुर को अग्नि की दहकती ज्वालाओं में भस्मसात् करने का कितना भयंकर हत्याकांड हो रहा था ! किन्तु भगवान् महावीर ने भटकते सम्राट को सम्बोधित किया-“राजन् ! तुम भ्रान्ति में हो, व्यर्थ ही संदेहों के भँवर में फंस गये हो । महाराज चेटक की सातों ही पुत्रियाँ सती हैं। रानी चेलना का जीवन पवित्र और निर्मल है । बहम अज्ञान के कारण होता है । सत्य को जानोगे तो बहम को दूर होते
५ “संडिभं कलहं जुद्धं दूरओ परिवज्जए"
-दशवैकालिक
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