Book Title: Ahimsa Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 373
________________ ३५६ दर्श वे खेती का काम करने वाले लोग, जब प्रातःकाल हल ले कर चल पड़ते हैं, उस समय कौन-सी भावना उनके हृदय में काम करती है ? क्या वे इस दृष्टि से चलते हैं कि खेत में जीव बहुत इकट्ठे हो गए हैं, अत: चल कर शीघ्र ही उनको समाप्त किया जाए ? नहीं, वहाँ तो उद्योग की दृष्टि होती है । यदि दृष्टि में विवेक और विचार है तो वह कृषक आरंभ में भी अंशत: अनारंभ की दशा प्राप्त कर लेता है । कहने का आशय यह है कि कृषक आरंभ का संकल्प ले कर नहीं चलता है । अस्तु, जब वह काम करता है, तब उसकी यह वृत्ति नहीं होती है कि इन जीवों को मार डालूं । हिंसा करने का उसका संकल्प कदापि नहीं है, हिंसा करने के लिए वह प्रवृत्ति भी नहीं करता है । उसका एकमात्र संकल्प 'धन्धा' करना है, जीवन निर्वाह करना है और यदि उसमें विवेक है तो वह वहाँ भी जीवों को इधर-उधर बचा देता है । विवेकशील बहनें घरों में झाडू लगाती हैं । ऐसा करने में हिंसा अवश्य होती है, किन्तु उनकी दृष्टि मूल में हिंसा करने की, अर्थात् जीवों को मारने की कभी नहीं होती । प्रायः मकान को साफ-सुथरा रखने की ही भावना होती है, जिससे कि जीवजन्तु पैदा न होने पाएं | जहाँ तक विचार काम देते हैं - 'यावद्बुद्धि - बलोदयम्' ऐसा प्रयत्न करना चाहिए, जिससे कि जीव-जन्तु किसी न किसी प्रकार से बच जाएँ। ऐसा विवेक हो तो आरंभ ११ में भी अंश -विशेष के रूप में कुछ न कुछ अनारंभ की भूमिका बन ही जाती है । जिस प्रकार विचारक और अविचारक की कलम के चलने में अन्तर होता है, वैसे ही हल के चलने में भी अन्तर होता है । 'कलम - कसाई' शब्द भी प्रचलित है । भला, बेचारी कलम कैसे कसाई हो गई ? नहीं, वह तो कसाई नहीं होती । किन्तु किसी की गर्दन काटने के विचार से जो कलम चलाता है, वह अवश्य 'कलम - कसाई' हो जाता है । यदि कोई ईमानदारी के साथ हिसाब लिखता है, तो वह 'कलम - कसाई' नहीं कहलाता । यही बात सब जगह है । इस प्रकार यदि अपने दिमाग को साफ रख कर सोचा जाए तो प्रतीत होगा कि श्रावक को 'उद्योगी हिंसा' होती है, 'संकल्पी हिंसा' नहीं । जो श्रावक सालभर चोटी से एड़ी तक पसीना बहा कर दो-चार सौ रुपये पैदा करता है, उसी को यदि यह कह दिया जाए कि यह एक कीड़ा जा रहा है, इसे मार दो, मैं तुम्हें हजार रुपये दूंगा । तो क्या वह कृषक श्रावक उसे मार देगा ? नहीं, वह स्पष्ट इन्कार कर देगा । जब कि खेती करने में असंख्य जीव मर जाते हैं, रात-दिन कठिन परिश्रम करना पड़ता है और फिर भी दो-चार सौ की ही कमाई होती है और इधर सिर्फ एक कीड़ा मारने ११ जैन दर्शन में हिंसा के लिए 'आरम्भ' और अहिंसा के लिए 'अनारम्भ' शब्द का प्रयोग भी होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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