Book Title: Ahimsa Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 383
________________ सांस्कृतिक क्षेत्र में अहिंसा की दृष्टि अमृतमय सन्देश : अहिंसा अहिंसा के अग्रगण्य सन्देशवाहक भगवान् महावीर हैं । आज दिन तक उन्हीं के अमर सन्देशों का गौरवगान गाया जा रहा है। आपको मालूम है कि आज से ढाई हजार वर्ष पहले का समय भारतीय संस्कृति के इतिहास में एक महान् अन्धकारपूर्ण युग माना जाता है । देवी-देवताओं के आगे पशुबलि के नाम पर रक्त की नदियाँ बहाई जाती थीं, मांसाहार और सुरापान का दौर चलता था । अस्पृश्यता के नाम पर करोड़ों की संख्या में मनुष्य अत्याचार की चक्की में पिस रहे थे। स्त्रियों को भी मनुष्योचित अधिकारों से वंचित कर दिया गया था। एक क्या, अनेक रूपों में सब ओर हिंसा का घातक साम्राज्य छाया हुआ था । भगवान् महावीर ने उस समय अहिंसा का अमृतमय सन्देश दिया, जिससे भारत की कायापलट हो गई। सांस्कृतिक क्षेत्र में और भी कई प्रश्न हैं । जिन पर हमें अहिंसा की दृष्टि से सोचना और उनका उचित हल ढंढ़ना चाहिए । कुछ प्रश्नों पर हम यहाँ विचार कर रहे हैं । होली के सांस्कृतिक पर्व के पीछे अहिंसा जब जन-जीवन अनेक विघ्नबाधाओं से निकल कर प्रशस्त पथ पर आगे बढ़ता है, तब उसमें एक आनन्द और उल्लास छा जाता है। वही आनन्द और उल्लास होलिकापर्व के रूप में हमारे सामने आया। प्रतिवर्ष वह हमारी सामाजिक क्रान्ति और संस्कृति का अंग बन कर आता है। इस शुभ अवसर पर हम एक-दूसरे से मिलजुल कर सामाजिक आनन्द का उपभोग करते हैं। होलिकापर्व ब्राह्मण, क्षत्रिय वैश्य और शूद्र सभी परस्पर मिल कर आनन्द और उल्लास मनाते हैं । होलीपर्व पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं रहता । हमारी मूल अहिंसात्मक संस्कृति का यह पावन प्रतीक है । यह पर्व हर इन्सान को प्रेम का पाठ पढ़ा कर मानव समाज में परिकल्पित ऊँचनीच के भाव को मिटाता है । वर्तमान समय में इसमें कुछ विकृतियाँ अवश्य आ गई हैं । गन्दी गालियाँ देना, घूल-कीचड़ उछालना, गन्दा मजाक करना तथा अन्य गन्दी हरकतें करना ये बातें आजकल इस पर्व के साथ जुड़ गई हैं ; जो हमारी मूल संस्कृति और परम्परा के विरुद्ध हैं। ऐसी गन्दी हरकतें करके हम पर्व की मूल आत्मा और उसके पीछे निहित भावना को भुला बैठे हैं । केवल उसके शरीर की आराधना करते हैं। आवश्यकता इस बात की हैं कि हम इस पर्व के शरीर को नहीं, मूल आत्मा को पकड़ने का प्रयत्न करे । तभी जन-जीवन में अहिंसा और प्रेम की भावना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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