Book Title: Ahimsa Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 396
________________ जीवन के चौराहे पर ३७६ संसार से विदा होता है तो लाचार और बेबस हो कर जाता है। वैसे ही जब एक धनी या सम्राट विदा होते हैं, तो वे भी लाचार और बेबस हो कर ही विदा होते हैं। एक ही राह बिना वर्ग-भेद के सभी के लिए यदि एक राह नहीं होती तो दुनिया का फैसला होना मुश्किल हो जाता । यही राह गरीब और अमीर को एक करने वाली है, यह झोंपड़ियों तथा महलों तक का एक जैसा फैसला कर देती है। दुनिया में और कितनी ही राह क्यों न हों, पर श्मशान की राह तो एक ही है, जिस पर सबको चलना पड़ता है और जहाँ भिखारी से ले कर सम्राट तक जल कर मिट्टी में मिल जाते हैं । यहाँ दो राह नहीं बन सकतीं, मंजिल दो नहीं हो सकती ! सब के लिए एक ही राह है, एक ही मंजिल है और उसी में से सब को गुजरना है। यह देखा गया है कि इन्सान की जिन्दगी में अभिमान, प्रतिष्ठा, आदि जो भौतिक अलंकरण हैं, वे सब यहीं समाप्त हो जाते हैं। मनुष्य, आगे कुछ भी नहीं ले जा सकता ? महल, सोना-चाँदी, जेवर वगैरह सब यहीं रह जाते हैं। कुटुम्ब-कबीला, समाज और राष्ट्र सभी यहीं छूट जाते हैं । मानव-जीवन की सबसे बड़ी जो विशेषता है, वह यही है कि मनुष्य सोच सकता है कि उसे यहाँ से क्या ले जाना है, क्या नहीं ले जाना है ? खाली हाथ दरिद्र हो कर लौटना है, या सम्राट की तरह ऐश्वर्य की विराट् साज-सज्जा के साथ वापस होना है । अन्तिम प्रवचन भगवान् महावीर ने अपने अन्तिम प्रवचन में एक सुन्दर उदाहरण दिया है, और उसके सहारे बहुत बड़ा सत्य प्रकाशित किया है। दूसरे शब्दों में यह कहना चाहिए कि एक लघुकाय शब्द-सूत्र के सहारे करोड़ों मन सत्य का भार उतार दिया है । वह एक छोटा-सा दृष्टान्त अवश्य है, किन्तु उसके पीछे एक बहुत बड़ी सच्चाई, जीवन का महत्त्वपूर्ण अध्याय छिपा पड़ा है। उत्तराध्ययन सूत्र में आता है।' __भगवान् महावीर ने व्यापार करने वाले बनियों का उदाहरण दिया है जो इस प्रकार है एक सेठ के तीन पुत्र थे । तीनों बुद्धिमान और विचारशील थे, पर वे घर में ही पड़े रहते थे, अतः उनकी बुद्धि को परखने का प्रसंग नहीं मिलता था। उनके १ जहा य तिन्नि वणिया, मूलं घेत्तूण निग्गया। एगोऽत्थ लहई लाहं, एगो मूलेण आगओ ।। एगो मूल वि हारित्ता, आगओ तत्थ वाणिओ। ववहारे उवमा एसा, एवं धम्मे वियाणह ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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