Book Title: Ahimsa Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 400
________________ जीवन के चौराहे पर ३८३ को बराबर बनाए रखा ; यही उसकी बहुत बड़ी बुद्धिमानी थी । उसने ठीक ही सोचा - यदि पूँजी में बढ़ोतरी नहीं होती है तो अब चल देना चाहिए । घर पहुँचने पर यद्यपि उसका बड़े भाई की भाँति स्वागत नहीं हुआ, किन्तु अनादर भी नहीं हुआ । पिता ने उससे कहा --- "बेटा, खेद की कोई बात नहीं । तुम जैसे गए थे, वैसे ही लौट आए। कुछ खो कर तो नहीं आए, यह भी तो एक कमाई है । कुछ न खोना भी तो कमाने के ही बराबर है ।" सेठ का तीसरा लड़का लक्ष्मी की गर्मी में और धन के नशे में पागल हो गया, फलतः वह दुराचार में फँस गया । उसने सारी पूँजी भोग-विलास और ऐश-आराम में उड़ा दी । जब सर्वस्व लुट चुका तो खाने को भी मुहाल हो गया । अन्त में उसने भी घर लौटने की सोची, किन्तु शोभनीय पोशाक की जगह चीथड़े पहने हुए था, प्रसन्नता की जगह आँसू बहा रहा था और स्वादिष्ट भोजन के नाम पर भीख माँगता आया था । जब उसने गाँव में प्रवेश किया, तो कोई सूचना नहीं भेजी और बीच बाजार से न हो कर अन्धेरी गली में से ही घर की ओर भागा। उसने मुँह पर कपड़ा ढँक लिया था, जिससे कोई पहचान न सके। आखिर घर में आ कर वह रो पड़ा । घर वालों ने कहा – “अरे मूर्ख ! तू तो मूल पूंजी को मी गँवा आया ?" मूल पूँजी ; यह संसार जीवन-व्यापार का एक बाजार है । हम मानवगति रूपी गाँव में पहुँच गए हैं और व्यापार करने के लिए यहाँ बाजार में एक स्थान मिल गया है । जो पहले नम्बर का व्यापारी होगा, वह यहाँ और वहाँ अर्थात् - लोक और परलोक दोनों जगह आनन्द पाएगा। जब लौटेगा तो पहले से उसके स्वागत की तैयारियाँ होंगी । जब यहाँ रहेगा, तब यहाँ भी जीवन का महत्त्वपूर्ण सन्देश देगा और जहाँ कहीं अन्यत्र भी जाएगा, वहीं सुखद सन्देश सुनाता रहेगा । उसके लिए सर्वत्र आनन्द - मंगल और जय-जयकार होंगे । वह स्वर्गीय जीवन का अधिकारी है । जो मूल पूँजी ले कर आया है, अर्थात् - जिसने इंसान की यह जिन्दगी पाई है और जो आगे भी इंसान की जिन्दगी पाएगा, उसके लिए कह सकते हैं कि उसने कुछ नया कमाया नहीं, तो कुछ अपनी गाँठ का गँवाया भी नहीं । परन्तु जो आता है इंसान बन कर और वापिस लौटता है कूकर-सूकर बन कर वह फिर क्या हुआ ? यदि यहाँ पचास, या सौ वर्ष रहा, और लौटा तो कीड़ा-मकोड़ा बना, गधा घोड़ा बना, या नरक का मेहमान हुआ तो वह हारा हुआ व्यापारी है । वस्तुत: वह ऐसा व्यापारी है, जिसने अपने जीवन के लक्ष्य का अच्छी तरह निर्णय नहीं किया है । भारतीय चिन्तन की गूढ़ भाषा में भावार्थ यह है कि इन्सान को जिन्दगी श्रेष्ठतम जिन्दगी है | अतः जो करना है और जो करने योग्य है, वह सब यहाँ ही कर लेना चाहिए । यदि ऐसा नहीं किया गया, तब फिर कहाँ करेंगे ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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