Book Title: Ahimsa Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 380
________________ गोरक्षा का प्रश्न और अहिंसा अहिंसा की दृष्टि मूलतः चैतन्य की दृष्टि है। वह किसी देह-विशेष की पवित्रता या अपवित्रता के विकल्प में नहीं उलझती, चैतन्य चैतन्य के बीच वह किसी प्रकार की सीमा या भेदरेखा नहीं खींचती। प्रत्येक देह में वह समान चैतन्यदेव की सत्ता को स्वीकार करती है। इसके अतिरिक्त और कोई देवी-देवता किसी देह में रहते हैं, यह अहिंसा के दर्शन को किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं है। इसलिए उसका पहला उद्घोष यह होगा कि प्रत्येक प्राणी की रक्षा की जाए । उसकी दृष्टि में गौ हत्या ही क्यों, पशुहत्या ही समूल बन्द होनी चाहिए। कहीं भी किसी भी, पशु या प्राणी का उत्पीड़न एवं वध आदि न हो । चाहे वह गाय हो, भैस हो या बकरी हो, अथवा शूकर आदि अन्य प्राणी हो । देश में आज जो पशुवध के लिए बड़े-बड़े कत्लखाने खोले जा रहे हैं; चर्म और माँस के उत्पादन के लिये अनेक प्रकार के आयोजन हो रहे हैं; वे सब समाप्त होने चाहिए। यह ठीक है कि यह एक बहुत बड़े आदर्श की बात है। आज यथार्थ की भूमिका पर विचार करना है । यथार्थ के विचार से आज हम इस स्थिति में नहीं हैं कि प्रत्येक प्राणी की हिंसा को रोक सकें। इसलिए मजबूरन थह विकल्प हमारे सामने आता है कि कम से कम जो गाय जो हमारे सबसे निकट का प्राणी है और जिसके साथ हमारी कुछ प्राचीन सांस्कृतिक भावनाएँ जुड़ी हैं, परस्पर के उपकार से जो हमसे अधिक संलग्न हैं, उसकी हत्या तो रोकें। इस दृष्टि से आज सबसे पहले गाय की रक्षा का प्रश्न हमारे सामने है और वह इस दृष्टि से हल होना चाहिए। अभी और किसी को नहीं, गाय को ही बचा सके तो हमारे लिये यह भी महत्त्वपूर्ण है । जो बच सके उसी का अभिनन्दन ! किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि अन्य प्राणियों की रक्षा न की जाए, उनकी उपेक्षा की जाए, उन्हें मरने दिया जाए। गौ-रक्षा के साथ उनकी रक्षा के लिए भी हमें निरन्तर प्रयत्न करना है। हिंसा से हिंसा नहीं मिटती गौ-रक्षा के लिये जिस प्रकार आज हड़ताल, आमरण अनशन राष्ट्र की सम्पत्ति का विनाश आदि के रूप में उत्तेजक आन्दोलन चलाया जा रहा है, या चल पड़ा है, जनभावनाओं को उभाड़ कर शासन को विवश तथा बदनाम करने का प्रयत्न किया जा रहा है, वह अहिंसा की दृष्टि से उचित नहीं है। अहिंसा और दया की बात हिंसक तरीकों से प्रस्तुत करना मूलतः ही गलत है । हिंसक साधन अपना कर हिंसा को रोका नहीं जा सकता। धर्म और संस्कृति की रक्षा के नाम पर अतीत में अनेक नृशंस हत्याकाण्डों से इतिहास के पृष्ठ रंगे गए हैं, मनुष्य ने मनुष्य का रक्त बहाया है । आज उनकी स्मृतिमात्र से ही रोमांच हो उठता है और मन घृणा एवं ग्लानि से भर जाता है। गौरक्षा के नाम पर आज भी उस इतिहास की पुनरावृत्ति करने का प्रयत्न करना नितान्त मूर्खता होगी। गाय की रक्षा के नाम पर मनुष्य का खून बहे, यह बड़ी विचित्र बात है। ___ अहिंसा का दर्शन बलात्कार में विश्वास नहीं करता। किसी को विवश करके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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