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द्रव्यहिंसा-भावहिंसा
रहता है । इसलिए मेरी इस चार-पाँच हजार की पूंजी को आप अपने पास सुरक्षित रहने दें। रोग-मुक्त हो कर यदि जिन्दा रह गया तो मैं इसे ले लूंगा । यह बात किसी तीसरे को मालूम भी नहीं होनी चाहिए।"
___डाक्टर ने इलाज शुरू कर दिया । एक दिन अचानक डाक्टर के मन में लोभ जाग उठा। वह सोचने लगा-यह रोगी यदि मेरे इलाज से नीरोग और स्वस्थ हो जायगा, तो अपनी पूंजी ले कर चलता बनेगा।
जब मन में दुर्विचारों का शैतान जाग उठता है, तो कभी-कभी उसे शान्त करना कठिन हो जाता है। यह वह भूत है कि जिसे एक बार जगा दिया तो फिर उसे सुलाने का मन्त्र मिलना जरा मुश्किल हो जाता है।
डाक्टर के मन में पाप जगा और उसने रोगी से कहा-'लो, यह बड़ी बढ़िया और कारगर दवा है । आशा है इसके सेवन से तुम्हारी सारी बीमारी सदैव के लिए दूर हो जायगी।' यह कहते हुए उसने जहर का गिलास रोगी के सामने कर दिया । अर्थात्, धन के लोभ ने डाक्टर के मन को विषाक्त बनाया और फलत: रोगी को जहर दे दिया गया ।
रोगी का रोग विष-प्रयोग से ही ठीक होने वाला था। इस सम्बन्ध में आयुर्वेदाचार्य भी कहते हैं-'विषस्य विषमौषधम्' अर्थात् जहर की दवा जहर है। रोगी के शरीर में जो जहर फैल गया था, वह जहर से ही दूर हो सकता था। अस्तु, डाक्टर ने जो जहर दिया, उससे शरीर का जहर नष्ट हो गया और रोगी नीरोग हो गया।
वह रोगी अब डाक्टर के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करता हुआ कहता है-- "डाक्टर साहब ! आप तो साक्षात् ईश्वर हैं ! आप जैसा दयालु और बुद्धिमान् दूसरा कौन होगा ? मैं भटकते-भटकते परेशान हो गया था, जीवन से भी निराश हो चुका था। निस्सन्देह आपने तो मुझे नया जीवन दिया है ! आपके इस उपकार के बदले में मेरी वह पूंजी बिल्कुल नगण्य है । अब उसे आप अपने ही पास रहने दीजिए।" इस प्रकार वह रोगी अपनी सबकी सब पूंजी डाक्टर को ही अर्पित कर देता है और जहाँ कहीं जाता है, डाक्टर की योग्यता का विज्ञापन करता है और उसका गुणगान गाता है।
यहाँ प्रश्न उपस्थित होता है कि डाक्टर को क्या हुआ ? डाक्टर ने तो बीमार को मार डालने के विचार से ही जहर दिया था। परन्तु उसे उलटा आराम हो गया। डाक्टर को चार-पांच हजार रुपये मिले, रोगी के द्वारा प्रशंसा मिली, जनता में भी उसने कल्पनातीत प्रसिद्धि प्राप्त की और लोगों ने कहा कि---डाक्टर ने बीमार को नया जीवन दिया। परन्तु इस सम्बन्ध में शास्त्र क्या कहते हैं ? शास्त्रों के अनुसार डाक्टर ने रोगी को जीवन दिया या मृत्यु ? रोगी के नीरोग होने पर वह जीवन देने
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