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अहिंसा-दर्शन
कितनी भयावह स्थिति होती है ! समर्थ होते हुए भी आपने उसके लिए कुछ किया नहीं, उलटा उसे धक्का दे दिया, तो यह एक प्रकार का विश्वासघात ही तो हुआ ! और विश्वासघात बहुत बड़ा पाप है । किसी को अभय देना, एक महान् धर्म है और अभय देने से किसी भयाक्रान्त को इन्कार कर देना, बहुत बड़ा अधर्म है। बंगलादेश के एक करोड़ के लगभग पीडित विस्थापितों को अमय दे कर भारत ने वह महान् सत्कर्म किया है, जो विश्व-इतिहास में अजर-अमर रहेगा।
यह बहुत बड़ी देवी कृपा हुई कि बंगलादेश के पीड़ितों ने आपके ऊपर भरोसा किया। और, यह जानी हई बात है कि भरोसा किसी साधारण व्यक्ति पर नहीं किया जाता । पास में अन्य देश भी थे, लेकिन वहाँ पर कोई नहीं गया, सभी भारत में ही आए। क्यों आए ? इसका तात्पर्य यह है कि इसका गौरव उन्होंने एकमात्र आपको दिया। उनको भरोसा था कि यहाँ भारत में उनकी ठीक-ठीक रक्षा होगी। और इतना बड़ा विश्वास ले कर कोई जनता आए और फिर उसे आप ठुकरा दें, धक्का दे दें, तो यह कितना बड़ा पाप है ? आप भाग्यशाली थे कि आपसे यह पाप न हुआ । भारत की सांस्कृतिक परम्परा का उज्ज्वल गौरव आपके हाथों सुरक्षित रहा । आप वैयक्तिक तुच्छ स्वार्थों के अन्धकार में नहीं भटके । बहुत बड़ा दायित्व अपने ऊपर लिया और उसे प्रसन्नता से निभाया ।
अभिप्राय यह है कि ऐसा समय इतिहास में कभी-कभी ही आता है। जैसा कि मैंने बताया, चेटक ने तो एक शरणागत की रक्षा के लिए इतना बड़ा भयंकर युद्ध किया, हिंसा हुई, फिर भी भगवान् महावीर कहते हैं कि वह स्वर्ग में गया और आपने तो लाखों-करोड़ों इन्सानों की रक्षा की है, और इसी कारण आपको यह युद्ध भी करना पड़ा है, अन्यथा आपके सामने तो युद्ध का कोई सवाल ही नहीं था। भारत की प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरागान्धी, समूची राष्ट्रशक्ति को साथ लिए आज जो जझ रही हैं, उसके मूल में उन्हीं पावन भारतीय आदर्शों की रक्षा का प्रश्न है। कहना तो यों चाहिये कि ढाई हजार वर्ष बाद इतिहास ने अपने आपको दुहराया है। यानी भगवान् महावीर के युग की वह घटना आज फिर से दुहराई जा रही है और यदि महावीर आज धरती पर होते तो क्या निर्णय देते इस सम्बन्ध में ? प्रभु महावीर आज धरती पर निर्णय देने को नहीं हैं, तो क्या बात है ? उनका जो निर्णय है, वह हमारे सामने है। आज जो फैसला लेना है, उनके द्वारा, वह फैसला पहले ही दिया जा चुका है । इसका अर्थ यह है कि वर्तमान के नये जजों के फैसले में अतीत के पुराने जजों के फैसले निर्णायक होते हैं । अभिप्राय यह है कि भगवान् महावीर ने जो फैसला दिया था कि राजा चेटक स्वर्ग में गया और कूणिक नरक में-बिलकुल स्पष्ट है कि यदि आज के इस संघर्ष को ले कर इंदिराजी के सम्बन्ध में पूछे तो प्रभु महावीर का वही उत्तर है, जो वे ढाई हजार वर्ष पहले ही दे चुके हैं। तात्पर्य यह है कि यह युद्ध शरणागतों की रक्षा का युद्ध है, अतः भारतीय चिन्तन की भाषा में धर्मयुद्ध है और
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