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अहिंसा-दर्शन
जिस प्रकार राग से वस्तु का अधिक उपयोग किया जाता है उसी प्रकार राग से प्राप्त वस्तु का उपयोग नहीं भी किया जाता है। उपयोग में लाएंगे तो वस्तु खराब हो जाएगी, अतः उसको सँभाल कर, सहेज कर रखने की भावना भी राग से ही सम्बद्ध रहती है। इस प्रसंग में मुझे स्व० श्रीगणेशप्रसादजी वर्णी का एक संस्मरण याद आ रहा है। श्रीवर्णीजी जैनसमाज के. एक अच्छे गम्भीर चिन्तक रहे हैं । उनसे मेरा निकट का सम्पर्क रहा है, बड़े ही सरल उदार एवं भव्य प्रकृति के मानव थे वे । उन्होंने अपनी एक बात सुनाई थी कि एक बार अपनी माँ के साथ चाँदी के बर्तनों की दुकान पर चले गये। चाँदी के वर्तन देखे तो लेने के लिए मन चंचल हो उठा । माँ ने समझाया कि भोजन करने के लिए तो काँसे और पीतल के साधारण बर्तन ही चलते हैं, और वे ही काम में आते हैं, चाँदी के बर्तनों का क्या उपयोग है ? पर नहीं माने, आखिर ले ही आए । ला कर चाँदी के बर्तनों को सन्दूक में बन्द करके रख दिया।। माँ ने कहा-'बेटा, लाओ न, काम में लाएँ चाँदी के बर्तन । जब लाए हो तो उनका उपयोग करो, पड़े-पड़े क्या काम आएंगे ?" तो बोले-"माँ, अभी जो चमक है चाँदी की ; वह काम में लेने से खराब हो जाएगी। इसलिए काम में लेने का मन नहीं हो रहा है।''
माँ ने कहा-"पहले तो अनावश्यक बर्तन लेने नहीं चाहिए थे और जब ले लिए तो उनका उपयोग करना चाहिए। संदूक में बन्द करके किसलिए रखे हैं ? तुम नहीं लाते हो तो मैं निकाल कर ले आती हूँ ! वह खाना खाने के लिए ही तो हैं, पूजा करने के लिए तो नहीं ?"
मन की यह विचित्र स्थिति है। राग में प्रयोग किया भी जाता है और नहीं भी । अच्छी और सुन्दर चीज को काम में न ला कर सँभाल-सहेज कर रखने की जितनी प्रवृत्ति है, वह सब राग के ही कारण है। राग से वस्तु पर ममत्व का आवरण छा जाता है और मनुष्य वस्तु को शरीर से भी अधिक प्रिय मान बैठता है । जिस प्रकार राग से भोग भी होता है और त्याग भी, उसी प्रकार द्वेष से भी यदि त्याग होता है तो भोग भी होता है । राग और द्वेष की भावना से ग्रस्त हो कर किया गया भोग जिस प्रकार संतापकारी है, उसी प्रकार त्याग भी संक्लेश और कष्ट का कारण बन जाता है। ये विष-बीज किसने बोए ?
___ जब तक दर्शन की इस धुरी को नहीं समझ लिया जाता कि घृणा से त्याग करना त्याग नहीं है, जब तक तटस्थवृत्ति का उदय नहीं होता, तब तक धर्म और दर्शन की चर्चाएँ करके भी, त्याग और क्रियाकाण्ड की गहराइयों में डूब कर भी उसमें सूखे ही रहेंगे।
___ मुझे यह देखकर बड़ा आश्चर्य होता है कि हमारे सामने धर्म और दर्शन
१ धर्ममाता थी, सगी माता नहीं।
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