Book Title: Ahimsa Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 367
________________ अहिंसा दर्शन किसी व्यक्ति का अध्ययन कितना ही अल्प क्यों न हो, यदि सत्य को ही उसने अपना लक्ष्य बना लिया है और सहजभाव से उसे ग्रहण करने के लिए वह तैयार है। तो अवश्य ही वह सत्य के निकट पहुँच सकता है । इसके विपरीत बड़े-बड़े विद्वान् भी अहंकार और पाण्डित्य के प्रसाद को साथ ले कर सत्य के द्वार तक नहीं पहुंच सकते । इस सम्बन्ध में हमारे आचार्यों ने श्रेष्ठ-से श्रेष्ठतर बातें कह दी हैं, वे अधिक ऊँचाई पर हैं, परन्तु हमारे विचारों के हाथ इतने छोटे हैं कि हम ऊँचाई को छू नहीं सकते । ३५० लेकिन सत्य के महत्त्व के सामने बड़े से बड़ा व्यक्तित्व भी हीन है । व्यक्ति को महत्त्व तो दे दिया जाता है, किन्तु विचार करने से विदित होता है कि उसे वह महत्त्व सत्य के द्वारा ही मिलता है। अपने आप में व्यक्ति का क्या महत्त्व है ? वह तो हड्डी और माँस का स्थूल ढाँचा है । परन्तु जब वह सत्य की पूजा के लिए सन्मार्ग पर चल पड़ता है, सत्य की ही परिधि में रहता है और सत्य के साम्राज्य में ही विचरण करता है; तब उसकी पूजा की जाती है, उसका स्वागत और सम्मान किया जाता है । वह पूजा, वह आदर और वह सम्मान, उसकी सुन्दर मानव आकृति का नहीं; अपितु उसकी सत्य-निष्ठा का है । सत्य की ऊंचाई यदि एक लम्बा आदमी सीधा दण्डायमान खड़ा होता है और उसका सिर मकान की छत से छू जाता है तो उसकी हड्डियों की ऊँचाई, देखने वालों के लिए तमाशा जरूर बन सकती है, पर वह हमारी श्रद्धा एवं भक्ति का पात्र नहीं हो सकता । कारण, जीवन की सार्थकता के लिए विचारों की और सत्य की जो ऊँचाई है, वही आदर एवं सम्मान की उपादेय वस्तु बनती है । यह ऊँचाई तमाशे की वस्तु नहीं, अपितु चरणों में झुकने, समर्पित होने तथा श्रद्धा रखने की वस्तु है । इसीलिए आचार्यों ने यह कहा है कि- - आप व्यक्ति को क्यों महत्त्व देते हैं ? हमारे गुरु ने ऐसा कहा या वैसा कहा, इस प्रकार कह कर आप एक ओर तो लाठियाँ चलाते हैं और दूसरी ओर सत्य, जो तटस्थ भाव से सन्मार्ग का निर्देशन कर रहा है, उसकी पुकार तक नहीं सुनते ! इस शोचनीय स्थिति को देख कर दुःख होता है कि यह कैसी गड़बड़ी चल रही है । अतएव भलीभांति समझ लेना चाहिए कि सत्य का महत्त्व सर्वोपरि है और उसकी तुलना में व्यक्ति का जो महत्त्व है, वह केवल सत्य की ही बदौलत है । सम्प्रदाय या समाज या व्यक्ति का महत्व एकमात्र सत्य के ही पीछे है । सत्य का बड़प्पन ही व्यक्ति को बड़प्पन देता है । बिरादरी के नहीं इस सम्बन्ध में जैनाचार्य हरिभद्र बहुत बड़ी बात कह गए हैं। आचार्य हरिभद्र बड़े ही बहुत विद्वान हो चुके हैं, जिनकी विद्वत्ता को महाकाल की काली छाया भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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