Book Title: Ahimsa Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 364
________________ श्रावक और स्फोटकर्म हिंसा और अहिंसा का प्रश्न इतना जटिल है कि जब तक गहराई में पहुँच कर, हम इस पर विचार नहीं कर लेते, तब तक उसकी वास्तविक रूप-रेखा हमारे सामने नहीं आ सकती । प्रायः देखा जाता है कि लोग शब्दों को पकड़ कर चल पड़ते हैं, फलत: उनके हाथ में किसी तत्त्व का केवल एक खोखा मात्र ही रह जाता है और उसका रस प्राय: निचुड़ जाता है । जिस फल का रस निचुड़ जाता है और केवल ऊपरी खोखा ही रह जाता है, उसका कोई मूल्य नहीं होता । वह तो केवल भार है । हिंसा और अहिंसा के सम्बन्ध में भी आजकल यही दृश्य देखा जाता है । प्रायः लोग हिंसा-अहिंसा के शब्दों को ऊपर-ऊपर से पकड़ कर बैठ गए हैं, इस कारण उक्त शब्दों के भीतर का मर्म उनकी समझ में नहीं आ सका । २६ हिंसा और अहिंसा के वास्तविक मर्म को समझने-समझाने के लिए सामूहिक प्रवचन एवं व्यक्तिगत चर्चाओं के रूप में बहुत से प्रयत्न किए जाते हैं । किंतु इन प्रयत्नों का उपयोग केवल मनोरंजन के रूप में ही नहीं होना चाहिए। बल्कि अहिंसा की स्पष्ट रूप रेखा जनता के सामने प्रस्तुत की जानी चाहिए और जब तक वही सही रूप में नहीं आ जाती है, तब तक कोई व्यक्ति, धर्म या समाज या राष्ट्र किसी के प्रति भी प्रामाणिक नहीं हो सकता । अतएव बारीकी से सोचने और समझने की कोशिश करनी चाहिए कि हिंसा और अहिंसा का वास्तविक रूप क्या है ? पूर्व संकल्प यह एक लम्बी चर्चा है । प्रायः जब लोग इस प्रश्न पर विचार करने के लिए शास्त्रों के पन्नो पलटते हैं । और जब इस तरह चलते हैं तो उनका संकल्प एक ओर टकराता है और शास्त्रों की आवाज दूसरी ओर सुनाई पड़ती है । ऐसी स्थिति में प्रायः संकल्प की आवाज तो सुन ली जाती है और शास्त्रों की आवाज के स्वर दूर जा पड़ते हैं । परन्तु इससे सचाई हाथ नहीं आती, वास्तविकता का पता नहीं चलता; सिर्फ आत्म-संतोष एवं थोड़े-से कल्पित विश्वास को पोषण मिल जाता है । अतएव यह आवश्यक है कि किसी भी तत्त्व पर विचार करते समय बुद्धि निष्पक्ष हो, क्योंकि तटस्थबुद्धि के द्वारा ही सच्चा निर्णय प्राप्त हो सकता है । एक न्यायाधीश है । वादी और प्रतिवादी उसके न्यायालय में उपस्थित है । किंतु न्यायाधीश यदि किसी के पक्ष में पहले से ही बुद्धि को स्थिर कर लेता है तो वह न्याय के सिंहासन का उत्तरदायित्त्व पूरी तरह नहीं निभा सकता । इतना ही नहीं, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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