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अहिंसा-दर्शन
सारांश में यही कथन पर्याप्त समझा जा सकता है कि कोई भी अहिंसावादी महापुरुष किसी भी परिस्थिति में महारंभ के कार्य की शिक्षा नहीं दे सकता । एक महापुरुष कहलाने वाला व्यक्ति यदि ऐसे कार्य की शिक्षा देता है तो अपने अनुयायियों के साथ वह भी नरक का राही बनता है, क्योंकि हजारों-लाखों व्यक्ति उसके अनुकरण में तदनुरूप काम करते रहते हैं ।
अस्तु, स्पष्टरूप से ऐसा कहा जा सकता है कि व्यर्थ से कदाग्रह में पड़ कर भगवान् ऋषभदेव के उज्ज्वल चरित्र और महान् जीवन पर प्रकारान्तर से कीचड़ नहीं उछालना चाहिए। उन्हें महारंभ का शिक्षक कहना, उनकी महानतम आशातना करना है । तीर्थंकर की आशातना करने से बढ़कर दूसरा पाप कर्म और क्या हो सकता है ?
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