Book Title: Ahimsa Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 340
________________ मानव-जीवन और कृषि-उद्योग ३२३ भील बन गए हैं, इसका क्या कारण है ? जैन सिद्धान्त के अनुसार परमात्मा ने आपको उच्च और उन्हें नीच नहीं बनाया है ; बल्कि जिनको जीविका के साधन अच्छे मिल गये, वे 'आर्य' बन गए और श्रेष्ठ कहलाने लगे ; किन्तु जिन्हें अच्छे साधन नहीं मिले, वे म्लेच्छ बन गए । कर्म-भूमि से पहले अकर्म-भूमि पर निवास करने वाले जुगलियों में 'आर्य' और 'म्लेच्छ' का मूलतः कोई वर्ग-भेद नहीं था । भगवान् ऋषभदेव ने तत्कालीन अभावग्रस्त योगलिक जनता को 'महारंभ' से 'अल्पारम्भ' की ओर मोड़ा, 'महा-संघर्ष' से 'अल्प-संघर्ष' की दिशा दी, और उनके दिलों में दया की पावनगंगा प्रवाहित की। मांसाहार के बाद शाकाहार का प्रारम्भ अहिंसा के लिए जैन-शास्त्रों में प्रस्तुत पंचम काल के बाद आगे आने वाले आंशिक प्रलयरूप छठे आरक का वर्णन है कि उसके आरम्भ में सब वनस्पति एवं वृक्ष आदि समाप्त हो जाएँगे । उस समय के मनुष्य भाग कर गुफाओं में चले जाएंगे और वहाँ अतिदयनीय स्थिति में जीवनयापन करेंगे। भोजन के लिए कन्द, मूल, पत्र, पुष्प, फल, अन्न कुछ भी प्राप्त न होगा ; अतः मत्स्यमांस के आहार पर ही जीवन-निर्वाह करना होगा। धर्माचरण के रूप में कुछ भी शेष न रहेगा । एक प्रकार से वन्यपशुओं की भांति मानव-जाति की स्थिति हो जाएगी। वर्तमान काल-चक्र के अनन्तर जब उत्सर्पिणी काल का भी पहला आरक इसी दुःखपूर्ण अवस्था में गुजर जाएगा और दूसरे आरक का आरम्भ होगा तब मेघ बरसेंगे, निरन्तर जल-वृष्टि होगी। लोहे के उत्तप्त गोले के समान गरम होने वाली पृथ्वी शान्त हो जाएगी और फिर सारी वसुन्धरा वनस्पतिजगत् से हरी-भरी हो जाएगी उस समय गुफाओं में रहने वाले मानव बाहर निकलेंगे। मांसाहार के कारण जिनके शरीर में कुष्ट और खुजली आदि अनेक बीमारियाँ हो चुकी होंगी, वे जब बाहर निकल कर स्वच्छ एवं शीतल हवा में विचरण करेंगे, वनस्पति का शुद्ध आहार करेंगे और इससे जब उनके शरीर में ताजगी आएगी तो सारी बीमारियाँ स्वतः दूर हो जायेंगी। तब वे सब लोग जैसा कि भगवान् महावीर का कथन है, जनसमुदाय को एकत्र करेंगे और यह कहेंगे कि-'देखो, हमारे लिए प्रकृति की महती कृपा हो गयी है और अत्यन्त सुन्दर एवं रुचिकर फल, फूल तथा वनस्पतियाँ पैदा हो गई हैं । आज से हम सब प्रण करें कि कभी कोई मांस नहीं खायेंगे और यदि कोई मांस खाएगा तो हम अपने पर उसकी अपवित्र छाया का कभी स्पर्श नहीं होने देंगे। अब समझा जा सकता है कि वनस्पति के अभाव में क्या हुआ। महारम्भ ने क्यों जन्म लिया ? उन वृक्षों, फलों, वनस्पतियों और खेती-वाड़ी के रूप में जो सात्विक पदार्थ प्रकट हुए उनसे क्या हुआ ? स्पष्ट है कि उनसे एक आदर्श कार्य का प्रतिपादन हुआ कि जो मांसाहार जनता में चल रहा था, वह बन्द हो गया। यह प्रसंग जैन ८ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-दूसरा वक्षस्कार , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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