________________
मानव-जीवन और कृषि-उद्योग
३२१
पर नहीं ले जाया गया, तो वह महारम्भ के रास्ते पर चली जाएगी और माँसाहार के पथ पर चल कर और हिंसक हो जाएगी। एक बार यदि वह महा-हिंसा के पथ पर चल पड़ी तो फिर उसे मोड़ना मुश्किल हो जाएगा । अतएव उन्होंने भूख के कारण महारम्भ की ओर जाती हुई भोली-भाली जनता को अल्प-हिंसा की ओर लाने का प्रयत्न किया । परिणाम यह हुआ कि भगवान् का सन्देश जहाँ-जहाँ पहुँचा और जिन व्यक्तियों ने उसे अपनाया, वे आर्य बन गए और जहाँ वह सन्देश नहीं पहुंचा या जिन्होंने उस सन्देश को स्वीकार नहीं किया, वे म्लेच्छ हो गए । अकर्मभूमि से आर्यभूमि
एक दिन सारी भारत-भूमि में अकर्म-भूमि की परम्परा थी और उस परम्परा के लोगों में वैर-भाव नहीं था, घृणा नहीं थी, द्वेष नहीं था । वहाँ के पशु भी ऐसे थे कि किसी को बाधा और पीड़ा नहीं पहुंचाते थे । जहाँ के पशु भी ऐसे सात्विक वृत्ति वाले हों, तो फिर वहाँ के आदमी पशुओं को मार कर क्यों खाने लगे ? भगवान् ऋषभदेव ने उसी वृत्ति को कृषि आदि के रूप में कायम रखा और मांसाहार का प्रचलन नहीं होने दिया।
अभिप्राय यह है कि जहाँ-जहाँ कृषि की परम्परा चली और अन्न का उत्पादन हुआ, वहाँ-वहाँ आर्यत्व बना रहा और महारम्भ न हो कर अल्पारम्भ का प्रचलन हुआ। परन्तु जहाँ कृषि की परम्परा नहीं चली वहाँ के भूखे मरते लोग क्या करते ? तब आपस में वैर जगा, और क्षुधाजन्य क्रूरता के कारण पशुओं को मार कर खाने की प्रवृत्ति चालू हो गई । तात्पर्य यही है कि-'कृषि' अहिंसा का उज्ज्वल प्रतीक है। जहाँ भी कृषि अग्रसर हुई है, वहाँ के जन-जीवन में उसने अहिंसा के बीज डाले हैं । और जहाँ कृषि है, वहाँ पशुओं की जरूरत भी अनिवार्यतः रहती है, फलतः उनका पालन भी स्वाभाविक है। इस प्रकार कृषि अहिंसा के पथ का विकास करती रही है । कृषि के द्वारा प्रवाहित होने वाली अहिंसा की धारा मनुष्यों के अतिरिक्त पशुओं की ओर भी बही है। इस प्रकार जहाँ-जहाँ खेती गई, वहाँ वह अहिंसा के सिद्धान्त को ले कर गई । जहाँ कृषि नहीं गई, वहाँ अहिंसा का सिद्धान्त भी नहीं पहुंचा। खाएँ क्या ?
मेक्सिको के निवासी मछली आदि के शिकार के सिवाय कोई दूसरा काम-धन्धा नहीं कर पाते हैं । कल्पना कीजिए-यदि कोई जैन सज्जन वहाँ पहुँच जाए, तो देखेगा कि लोगों के हाथ रात-दिन खून से किस तरह रंगे रहते हैं, क्योंकि जानवरों का मांस, चमड़ा, चर्बी आदि का उपयोग किए बिना उनके लिए कोई दूसरा साधन ही नहीं है। ऐसी स्थिति में यदि वह जैन उन्हें जैन-धर्म का कुछ सन्देश देना चाहे, उस हिंसा को रोकना चाहे और यह कहे कि-मछली, हिरन, सुअर वगैरह किसी जीव को मत मारो, तो वे लोग क्या कहेंगे ? तब वे उससे पूछेगे कि-फिर हम खाएँ क्या ? और जब यह प्रश्न सामने आएगा, तो वह क्या उत्तर देगा? यदि वह उन्हें अहिंसक बनाना चाहता
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org