Book Title: Ahimsa Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 353
________________ ३३६ अहिंसा-दर्शन अन्याय, अत्याचार अथवा भयानक हत्याकाण्ड नहीं करना पड़ता है। किन्तु अब समस्या उठ खड़ी होती है कि कौन-सा मार्ग आर्य-मार्ग है और कौन-सा अनार्यमार्ग है ? उपयोगिता के नाते कान सुनने के लिए हैं। उनसे गंदी गाली भी सुनी जा सकती है; संसार के बुरे संगीत भी सुने जा सकते हैं, जिनसे मन और मस्तिष्क में विकार उत्पन्न होते हैं; पारस्परिक निन्दा की असंगत बातें भी सुनी जा सकती हैं और उन्हीं से वह आध्यात्मिक संगीत भी सुना जा सकता है, जो विकार वासनाओं में एक जलती चिनगारी सी लगा देता है, उन्हें भस्म कर देता है। मुंह का उपयोग किया जाता है, एक ओर किसी दीन-दुखिया को ढाढस बँधाने के लिए, प्रेम की मधुर वाणी बोलने के लिए और दूसरी तरफ कठोर गाली देने के लिए और दूसरों का तिरस्कार व निन्दा करने के लिए भी । यद्यपि मुंह बोलने के लिए मिला है, उससे क्या शब्द बोलने चाहिए, और किस अवसर पर बोलने चाहिए ? इसका निर्णय तो करना ही पड़ता है । संसार में रहते हुए कानों से सुना भी जाएगा, मुँह से बोला भी जाएगा, और इसी प्रकार खाया-पिया भी जाएगा। परन्तु धर्मशास्त्र का उपयोग तो केवल इसीलिए है कि उसके सहारे हम यह विवेक प्राप्त करें कि हमें क्या सुनना चाहिए, क्या बोलना चाहिए और क्या खाना-पीना चाहिए । स्वर्ग में भी यही प्रश्न : क्या दिया ? क्या खाया ? स्वर्ग में जब कोई जीव देवरूप में उत्पन्न होता है, तो सैकड़ों-हजारों देवी-देवता उसके अभिनन्दन हेतु खड़े हो जाते हैं । वहाँ चारों ओर से एक ही प्रश्न सुनाई पड़ता है, और उस प्रश्न का उत्तर उस नए देवता को देना पड़ता है । वह प्रश्न है : 'तुम क्या दे कर आए हो, और क्या खा कर आए हो ?'१ स्वर्ग में उत्पन्न होते ही यह प्रश्न पूछा जाता है 'क्या खा कर आए हो' ? तब इस सम्बन्ध में विचारपूर्वक उत्तर देते हुए कोई कह सकता है कि 'मैं न्याय-नीति के अनुसार अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करके आया हूँ। मैंने महा-हिंसा के द्वारा रोटी नहीं पाई है। एक विवेकशील गृहस्थ के रूप में, श्रावक के योग्य जो भी खाया और खिलाया है, वह महारम्भ के द्वारा नहीं; किंतु अल्पारम्भ के द्वारा खाया और दूसरों को खिलाया है।' यही उपयुक्त उत्तर हो सकता है। ___ मोक्ष और स्वर्ग की जों चर्चा होती है, वास्तव में वह मोक्ष और स्वर्ग की चर्चा नहीं, अपितु जीवन-निर्माण की और सुनिश्चित मार्ग को ढूंढ़ने की चर्चा है । वह चर्चा है जीवन में अमृत का मार्ग खोजने की । खेती-बाड़ी के रूप में जो धन्धे हैं, वे किस रूप में हैं और किस प्रकार के हैं ? १ "किं वा दच्चा, किं वा भुच्चा ?" . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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