Book Title: Ahimsa Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 360
________________ रोजी, रोटी और अहिंसा ३४३ लिए वहाँ जा पहुँची । रामचन्द्रजी ने सबसे क्षेम-कुशल पूछते समय एक ही प्रश्न किया "घर में सब ठीक है, धान्य की कमी तो नहीं है ?" कुछ लोग रामचन्द्रजी के प्रश्न का मर्म नहीं समझ सके। उन्होंने सोचा-- "मालूम होता है, महाराज भूखे आए हैं। तभी तो यह नहीं पूछा कि रत्न-भंडार तो भरे हैं ? और यह भी नहीं पूछा कि घर में कितना धन है ? वरन् यह पूछा कि घर में धान्य की कमी तो नहीं है। महाराज के अन्तर में आजकल रोटी ही समाई अस्तु, उपस्थित लोगों ने हँसते हुए कहा-"महाराज, आपकी कृपा है । अन्न की कुछ कमी नहीं है । अन्न के भंडार इतनी विशाल मात्रा में भरे पड़े हैं कि वर्षों खाएँ, तब भी खाली नहीं हों।" उक्त कथन में स्पष्ट ही परिहास की ध्वनि सुनाई दे रही थी। ___ लोगों की इस भ्रान्त धारणा को समझने में रामचन्द्रजी को देर नहीं लगी। उन्होंने सोचा--'जिनके पेट भरे हुए हैं, उनकी निगाह अन्न से हट कर अन्यत्र भटक गई है। इसीलिए ये सब लोग मेरे प्रश्न के महत्त्व को नहीं समझ सके और मुस्कराने लगे हैं। स्वागत-अभिनन्दन के बाद रामचन्द्रजी अयोध्या में आ गए । एक दिन राज्यभर में यह सन्देश प्रसारित किया गया कि महाराज रामचन्द्रजी वनवास की अवधि पूरी करके सकुशल लौट आए हैं, अतः नगर-निवासियों को प्रीतिभोज देना चाहते हैं। सारी प्रजा को निमंत्रण दे दिया गया । अमुक समय निश्चित कर दिया गया और तदनुसार सब प्रजाजन आ पहुँचे । निमंत्रण सभी को प्रिय होता है। साधारण घर का मिले तो भी लोगों को वह बड़ी चीज मालूम होती है, फिर कहीं सम्राट् के घर का मिल जाए, तब तो कहना ही क्या है ? आज जवाहरलाल नेहरू के यहाँ यदि किसी को एक गिलास सादा पानी ही क्यों न मिल जाए; फिर देखिए, वह अभिमान की तीरकमान से कैसी तीरंदाजी दिखाता है ! नियत समय पर सब लोग भोजन के लिए आ गये और पंगत बैठ गई। रामचन्द्रजी ने कहा-"भैया, हम अपने हाथों से परोसेंगे !" हीरे और मोतियों की भरी हुई डलियाँ आईं । राम ने एक-एक मुट्ठी सब की थाली में परोस दिए । हमारी भारतीय परम्परा यह है कि भोजन कराने वाले की आज्ञा मिलने पर ही भोजन आरम्भ किया जाता है। लोगों ने सोचा कि हीरे आदि तो पहले-पहल भेंटस्वरूप परोसे गए हैं, भोजन तो अब आएगा। परन्तु रामचन्द्रजी ने हाथ जोड़ कर विनम्र निवेदन किया--"भोजन आरम्भ कीजिए।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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