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अहिंसा और कृषि
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दुनिया को अनार्य बनाया जाए ? यह कौन-सा जीतकल्प है, या तीर्थंकर कल्प है कि उस भूखी जनता को महारंभ के कुमार्ग पर और महापाप के गाढ़ अंधकार में धकेल दिया जाए ?
नहीं, अनन्त करुणा के सागर तीर्थंकर ऐसा तो कदापि नहीं कर सकते थे । उन्होंने तो पथभ्रष्ट जनता को ठीक राह बतलाई है । वस्तुतः वे तो माँसाहार के कुमार्ग की ओर जाती हुई जनता को शाकाहार की ओर ही लाए । इस सिद्धान्त को ठीक तरह न समझने के कारण ही हमारी दृष्टि विपरीत दिशा की तरफ जाती है ।
दूसरा प्रश्न यह भी है कि साधुओं को इस सम्बन्ध में कहने या विवेचना करने की क्या आवश्यकता है ?
शिक्षा
पुत्र को माता-पिता की सेवा का उपदेश देना, दान का या कर्त्तव्य का उपदेश देना, पति-पत्नी और अध्यापक के कर्त्तव्य का निर्देशन करना; यदि ये सब सांसारिक कार्य हैं, तो फिर इन सब बातों से भी साधु को क्या मतलब है ? फिर तो आप किसी साधु को ही दान दिया करें। भले ही माता-पिता भूखे मरते रहें और सड़ते रहें । साधु को संसार से क्या लेना है और क्या देना है ? जब संसार से कोई सम्बन्ध ही नहीं है, तो साधु इस रूप में उपदेश क्यों देता है ? माता-पिता, भाई-बहन आदि की सेवा और स्वधर्मी की वत्सलता के सम्बन्ध में क्यों कहता है ? परन्तु बात ऐसी नहीं है । साधु की एक मर्यादा है और वह सुनिश्चित है । वह विवेक की शिक्षा देता है कि अमुक कार्य क्या है, कैसा है ? कर्त्तव्य है या अकर्त्तव्य है ? साधु किसी व्यावहारिक काम को करने की साक्षात् प्रेरणा नहीं देता, परन्तु उस काम को करने का सुफल एवं कुफल बताता है, क्योंकि यह उसका कर्त्तव्य है ।
साधु के सामने प्रश्न रखा जा सकता है कि मांस खाना नैतिक है, अथवा फलाहार से गुजारा करना नैतिक है ? दोनों में से किसमें ज्यादा, और किसमें कम पाप है ? यह प्रश्न उपस्थित होने पर क्या साधु को चुप्पी साध कर बैठ जाना चाहिए। कोई पूछता है- -छना पानी पीने में ज्यादा पाप है, या अनछना पानी पीने में ? साधु उक्त प्रश्न का क्या उत्तर दे ? क्या वह मौन रहे ? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता । जिज्ञासु का स्पष्टतः सही समाधान करना ही होगा । कम या अधिक पाप
विवेक की व्यापकता को और जैन धर्म की वास्तविकता को तो बताना ही पड़ेगा कि अमुक कार्य में ज्यादा पाप है अमुक में कम । पाप में जितनी - जितनी कमी आएगी, उतना उतना ही धर्म का अंश बढ़ता जाएगा । प्रश्न होने पर साधु को यह भी बतलाना होगा कि मांसाहार में ज्यादा पाप है और फलाहार में कम । यह जो पाप की न्यूनता है, इस अर्थ में वह क्या है- पाप या धर्म ?
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