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अहिंसा-दर्शन
वालों के ही ये हथकंडे हैं। क्रूरता और नृशंसता का यह खूनी इतिहास जब भी कभी लिखा गया है, घृणा और विद्वेष की कलम से ही लिखा गया है। संसार को बर्बाद करने वाला, उसका सर्वनाश करने वाला यदि कोई जहर है, तो वह यही घृणा का जहर है । यह घृणा और विद्वेष का जहर मानव-जाति को पीढ़ी-दर-पीढ़ी मारता चला आ रहा है, हजारों-लाखों वर्षों तक मानव-जाति को आग की भयंकर लपटों में झुलसाता आ रहा है। समग्र समाज में व्याप्त इस हिंसा से मुक्त हों
जीवन में जब तक परिवारों, समाजों, जातियों, सम्प्रदायों, वर्गों या प्रान्तों में पारस्परिक घृणा, द्वेष, वैरविरोध, तिरस्कार आदि कषायभाव नहीं मिटेंगे, तब तक यह मावहिंसा (सामाजिक हिंसा) नहीं जाएगी। इस भावहिंसा से मुक्त हुए बिना अहिंसा की वास्तविक आराधना नहीं हो सकेगी और न ही तब तक शान्ति और स्नेह की सरिता समाज में बह सकेगी। अतः व्यापक सामाजिक जीवन में प्रेम, सौहार्द और शान्ति के लिए आवश्यक है कि हम इस जहर को अपने हृदय से मुक्त करें । हम घृणा और वैर के व्यापारी नहीं, अपितु शान्ति और प्रेम के देवदूत बन कर रहें।
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