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शोषण : सामाजिक हिंसा का स्रोत
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अभिप्राय यही है कि अन्यान्य व्यापार-धन्धों की तरह ब्याज का धन्धा भी जब तक न्याय और नीति की मर्यादा में रहता है, तब तक श्रावक के लिए दूषण नहीं कहा जा सकता । परन्तु नीति-मर्यादा को लाँघ कर जब वह शोषण का रूप धारण कर लेता है, तब वह एक प्रकार से अत्याचार एवं लूट कहलाता है, और नीतिशील श्रावक के लिए वह अनैतिक दूषण बन जाता है । रायचन्दभाई
आपने रायचन्दभाई के जीवन की एक घटना बहुत ही प्रसिद्ध है । वे एक बड़े दार्शनिक और योगी पुरुष हो गए हैं । गाँधीजी ने कहा है कि मैंने किसी को अपना गुरु नहीं बनाया, किन्तु मुझे यदि कोई गुरु मिले हैं, तो वे रायचन्दभाई हैं। रायचन्द भाई पहले बम्बई में जवाहरात का व्यापार करते थे। उन्होंने एक व्यापारी से सौदा किया कि इतना जवाहरात, अमुक भाव में, अमुक तिथि पर देना होगा। इसके लिए जो पेशगी रकम देनी पड़ती है, वह भी दे दी गई । परन्तु किसी कारणवश जवाहरात का भाव चढ़ने लगा और इतना चढ़ गया कि बाजार में उथल-पुथल मच गई । नियत तिथि पर व्यापारी से यदि वह नियत जवाहरात ले लिया जाता तो उसका घर तक नीलाम हो जाता । प्रायः दूसरी चीजों में तेजी-मंदी कम होती है, परन्तु जवाहरात में तो वह लम्बी छलाँगें मारने लगती है। बाजार की इस हालत को देख कर व्यापारी सकपका जाता है, और उसके होश-हवाश उड़ते दिखलाई देते हैं।
जब बाजार के चढ़ते भावों के समाचार रायचन्दभाई के पास गये और तदनुसार व्यापारी की स्थिति का चित्र सामने आया तो वे उस व्यापारी की दुकान पर पहुँचे । उन्हे आता देख कर व्यापारी सहम गया। उसने सोचा-जवाहरात लेने आ गये हैं। उसने रायचन्द भाई से कहा-“मैं आपके धन का प्रबन्ध कर रहा हूँ। मुझे खुद को चिन्ता है और चाहे कुछ भी हो, आपका रुपया जरूर चुकाऊँगा। भले ही मेरा सर्वस्व चला जाए, पर आपका रुपया हजम नहीं करूंगा। आप किंचित् भी चिन्ता न करें।"
रायचन्दभाई बोले-'मैं चिन्ता क्यों न करूं? मुझे तुमसे अधिक चिन्ता लग गई है । तुम्हारी और मेरी चिन्ता का मुख्य कारण तो यह लिखा-पढ़ी ही है न ? फिर क्यों न इसे खत्म कर दिया जाए ! और व्यर्थ की चिन्ता से मुक्ति पाई जाए।'
व्यापारी दयाभिलाषी भाव से बोला-'आप ऐसा क्यों करेंगे ? मैं कल-परसों तक अवश्य अदा कर दूंगा।'
उसका इतना कहना समाप्त भी नहीं हुआ था कि रायचन्दभाई ने उस इकरारनामे के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और वे फिर दृढ़ उदारभाव से बोले
"रायचन्द दूध पी सकता है, खून नहीं । मैं भलीभाँति समझता हूँ कि तुम वायदे से बँध गए हो । पर अब परिस्थितियाँ बदल गई हैं और तुम पर मेरे चालीसपचास हजार रुपये लेने हो गये हैं। परन्तु मैं यह रुपये लूंगा, तो भविष्य में तुम्हारी
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