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अहिंसा-वर्शन
कौन प्रयत्न करता ? और पवित्रता के लिए पुरुषार्थ करने की आवश्यकता ही क्यों अनुभव की जानी चाहिए ? इस सम्बन्ध में हमारे यहाँ कहा गया है कि यदि गाँव के बाहर खड़े हुए अकौवा (आकड़े) के पौधे की टहनियों पर ही शहद का छत्ता मिल जाए तो नदी-नालों को कौन लांघे ? पर्वतों पर जा कर कौन टक्करें खाए ?१ क्योंकि पुराने जमाने में शहद के लिए पर्वत पर टक्करें खानी पड़ती थीं और बहुत कठिनाई से शहद प्राप्त किया जाता था।
मनुष्य का स्वभाव है कि पुरुषार्थ के बिना ही यदि इच्छित वस्तु मिल सकती हो तो फिर कोई पुरुषार्थ क्यों करेगा? यह एक लोक-स्वभाव के सिद्धान्त की बात है। हम साधु भी जब अनजान गाँवों में गोचरी के लिए जाते हैं, तब यदि सीधे रूप में अनायास ही कुछ घरों से गोचरी मिल जाए और गोचरी के लिए कदम बढ़ाते ही 'पधारिये महाराज' कहने वाले खड़े मिल जाएं तो व्यर्थ ही दूर-दूर के गली-कूचों में चक्कर क्यों लगाते फिरेंगे ? जगह-जगह भटक कर अलख क्यों जगायेंगे ? कथन का अभिप्राय यही है कि जब सहजरूप से, गम्भीर पुरुषार्थ किए बिना ही साधु-मर्यादा में इच्छित वस्तु मिल जाती है तो व्यर्थ ही दूर नहीं जाने वाले हैं। जिस वस्तु को प्राप्त करने के लिए इतना पुरुषार्थ करना पड़े कि सारा जीवन ही उसके लिए खर्च कर देना आवश्यक हो, किन्तु वही चीज जब बिना पुरुषार्थ के ही प्राप्त हो जाए तो किसे पागल कुत्ते ने काटा है जो उसके लिए दूर-दूर भटकता फिरे, कठिनाइयाँ झेलता रहे और साधना की मुसीबतें उठाए ?
इस मानव-स्वभाव के अनुसार जब से हमने पवित्रता का सम्बन्ध जन्म के साथ जोड़ दिया, तभी से मानवीय सद्गुणों की ऊँचाई प्राप्त करने के सभी प्रयत्नों में शिथिलता आ गई। वहीं से जनता का नैतिक पतन आरम्भ हुआ। तभी से मनुष्य इतना गिरा कि ऊँचा उठ ही नहीं सका । गणिका
वैदिक धर्म में एक कहानी आती है। एक वेश्या थी, जिसकी कोई जाति-पाँत नहीं होती। वह संसार की उलझनों में उलझी हुई थी। उसने एक तोता खरीद लिया और उसे 'राम-राम' रटाना शुरू किया। केवल इसलिए कि आने वालों का मनोरंजन हो । इस सम्बन्ध में पुराणकार कहते हैं-जब वह वेश्या मरी तो यम के दूत भी उसे लेने आए और विष्णु के दूत भी। यम के दूत तो नरक का यह परवाना ले कर आए थे कि इसने दुनियाभर के पाप किए हैं और अपनी तथा दूसरों की तरुणाई को नरक की नाली में डाला है, इस कारण इसे नरक में ले जाना है। . परन्तु विष्णु के दूत उसे स्वर्ग में ले जाने का परवाना ले कर आये थे। वे उसे
१ “अर्के चेन्मधु विन्देत, किमर्थं पर्वतं व्रजेत् ?'
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