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शोषण : सामाजिक हिंसा का स्रोत
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के साथ उनके व्यवहार के तरीके कैसे थे ? यही सौन्दर्य-भरी सुवास आदर्श जीवन की परिचायिका हैं और इन्हीं के लिए शास्त्र में उनकी गौरव-पूर्ण जीवन-कथा का उल्लेख अनिवार्य समझा गया। इसीलिए आज भी उनके पुनीत जीवन की स्वर्णवेदी पर, अपार श्रद्धाभक्ति के साथ, वाणी के पुष्प चढ़ाए जाते हैं ।
___ इस विशाल भू-खंड पर अतीत काल में न जाने कितने चक्रवर्ती, अर्धचक्रवर्ती, राजा-महाराजा और सेठ-साहूकार आए हैं, जिन्होंने अपने पराक्रम और वैभव से जमीन को कम्पित किया है, जिन्होंने झोंपड़ियों के स्थान पर गगनचुम्बी प्रसाद खड़े किए हैं और हजारों-लाखों को अपने चरणों में आजीवन झुकाए रखा है । किन्तु, यह सब वैभव होते हुए भी यदि उन्होंने व्यावहारिक जीवन में सत्कर्म नहीं किए और प्रजा-हित की ओर ध्यान नहीं दिया तो उनका कोई उल्लेख नहीं मिलता, इतिहास उनके लिए मूक है। हाँ ! उन्होंने अपने जीवन में जो गलतियां की थीं, उनका चित्रण अवश्य मिलता हैं । उपमें यह दिखाने का प्रयत्न किया गया है कि इतने समृद्धिशाली होते हुए भी
और इतनी अनुकूलताएँ प्राप्त करके भी उन्होंने अपनी समृद्धि और अनुकूलताओं का अच्छे ढंग से उपयोग नहीं किया; जिसके कारण वे नीचे गिर गए । राम और रावण
रामायण, जैन और वैष्णव-दोनों धर्मों में पढ़ी जाती है। इसमें दो प्रबल शक्तियों के वर्णन मिलते हैं । एक 'राम' के रूप में, और दूसरी 'रावण' के रूप में। एक ओर रावण दुनिया के एक सिरे से दूसरे सिरे को थर्राता हुआ-कंपित करता हुआ आता है; और दूसरी ओर उधर राम भी एक सुगठित शक्ति के साथ खड़े हो जाते हैं । जिस प्रकार रावण राजा बन कर सामने आता है, वैसे ही राम भी राजा के रूप में सामने आते हैं । दोनों ने तीन खण्ड तक अपना साम्राज्य स्थापित किया था। दोनों में इतनी भौतिक समानताएँ होते हुए भी राम के चरणों में ही श्रद्धा के पुष्प चढ़ाए जाते हैं, और रावण का अपमान किया जाता है । आखिर इसका रहस्य क्या है ?
रावण ने इतनी बड़ी शक्ति संगठित की और अपरिमित वैभव पाया, किन्तु वह उसका प्रयोग सदाचार के रूप में नहीं कर सका; वह दुनिया के कल्याण का कोई काम नहीं कर सका । क्षुद्र वासनाओं की पूर्ति में ही वह आजीवन लगा रहा । यह ठीक है कि इन्सान जब तक इन्सान है, उसकी आकांक्षाएँ और वासनाएँ प्रायः मरती नहीं हैं । भूख लगने पर भोजन करना ही पड़ता है और प्यास लगने पर पानी भी पीना पड़ता है। परन्तु रावण की वासनाओं की कोई मर्यादा नहीं थी और यही कारण है कि सोलह हजार रानियाँ होने पर भी वह सीता को बलात्कार उठा ले भागने को विवश हुआ।
उधर राम ने युद्ध अवश्य किया, पर किसी गरीब को सताने के लिए नहीं किया । वहाँ तलवार भी चमकती रही, किन्तु उसकी चमक का उद्देश्य दीन-दुखियों
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