________________
शोषण : सामाजिक हिंसा का स्रोत
२६५
हमारे जीवन की जो पृष्ठ-भूमि है, वह तो इतनी ऊँची और विराट् है, किन्तु उसकी तुलना में आज हम इतने नीचे आ गये हैं कि उसको अच्छी तरह छू भी नहीं सकते हैं। आचरणहीनता के कारण हमारा कद छोटा हो गया है, जबकि सिद्धान्त का कद बहुत ऊँचा है। जैसे बौना आदमी किसी लम्बे कद वाले के पास खड़ा हो और वह उसके कंधे को नहीं छू पाता हो, उसी प्रकार हम आज अहिंसा और सत्य को छू नहीं पा रहे हैं। इस कथन का आशय यह है कि आपके आचरण का जो कद बौना हो गया है, उसे उत्तम विचारों के द्वारा ऊँचा बनाने की आवश्यकता है । शरीर का कद छोटा है या बड़ा, इससे कोई प्रयोजन नहीं है। किसको मुक्ति ?
एक बार भगवान् महावीर से पूछा गया कि किस कद वाले को मुक्ति प्राप्त होती है ? तो उन्होंने कहा---पाँच-सौ धनुष का कद वाला भी मोक्ष पा सकता है और एक बौना भी। अर्थात् भगवान् ने शरीर के कद को कोई महत्त्व नहीं दिया है, किन्तु विचारों के कद को महत्त्वपूर्ण और अनिवार्य माना है। यदि कोई साधक शरीर से बौना है, किन्तु उसके विचारों का कद ऊँचा हो गया है, ऊँचा उठते-उठते तेरहवें और फिर चौदहवें गुणस्थान तक पहुंच गया है, तो वह अवश्य मुक्त हो जाएगा। इसके विपरीत पाँच-सौ धनुष का शरीर का कद होने पर भी यदि किसी व्यक्ति के विचारों का कद छोटा है तो उसे मोक्ष नहीं मिल सकता।
जब हम इस विषय पर विचार करते हैं तो ज्ञात होता है कि शास्त्रों की जो अहिंसा और दया है, उसका कद तो बहुत ऊँचा है। किन्तु आजकल की हमारी अहिंसा और दया का; अर्थात्-जिस रूप में आज हम अहिंसा या दया का व्यवहार कर रहे हैं और जिस रूप में उसे समझ रहे हैं, उसका कद बहुत छोटा है । किन्तु जब समाज और राष्ट्र के विचारों का कद शास्त्रीय अहिंसा के कद की ऊँचाई पर पहुंचेगा, तभी वे अपना उत्कर्ष साध सकेंगे।
आज सारे संसार में वर्ग-संघर्ष चल रहा है। यदि अकेला इन्सान है तो उसका मन भी अस्तव्यस्त है और यदि परिवार में दस-बीस आदमी हैं तो वे भी सब बेचैन हैं । सारे समाज में, देश में और छोटी या बड़ी प्रजा में चारों ओर संघर्ष है। प्रत्येक व्यक्ति के मन में अशान्ति की आग सुलग रही है । मानो, हम सब बीमार बन गए हैं। प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक समाज और प्रत्येक राष्ट्र आज इसी बीमारी का अनुभव कर रहा है। बीमारी की जड़
अस्तु, प्रश्न यह है कि इस आग और बीमारी का मूल कारण क्या है ? इन्सान के ऊपर जो दुःख और संकट आ पड़ा है, वह कहाँ से आया है ? और किस मार्ग से आया है ? जैन-धर्म अपने विश्लेषण के द्वारा यह निर्णय करता है कि प्रकृति की ओर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org