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अहिंसा-दर्शन
लोम । जब कभी हिंसारूप दुष्ट प्रवृत्ति की जाती है तो उसके भाव-क्रोध से, मान से, माया से, अथवा लोभ से उत्पन्न होते हैं। इन्हीं को चार प्रकार के कषाय कहते हैं । इन चारों कषायों के कारण ही संरम्भ-रूप हिंसा होती है, इन्हीं से समारम्भ-रूप हिंसा होती है और इन्हीं से अन्तिम आरम्भ-रूप हिंसा हुआ करती है। अतएव इन चारों के साथ संरम्भ आदि तीन का गुणन करने से हिंसा के बारह भेद बन जाते हैं। कषायों का रंग जितना अधिक गहरा होगा, उतनी ही अधिक हिंसा होगी और जितना रंग कम होगा, हिंसा भी उतनी ही कम होगी। अतः स्पष्ट है कि हिंसा की पृष्ठभूमि 'कषाय' है, जिसे सदैव ध्यान में रखना चाहिए। हिंसा के भेद-प्रभेद
___ जीव प्रायः कषाय से प्रेरित होकर ही हिंसा करता है । परन्तु हिंसा के मुख्य औजार हैं-तीन योग अर्थात्-मन, वचन और काय । यही तीन शक्तियाँ मनुष्य के पास हैं । जब मन पर, वचन पर और काय पर हरकत आती है, तभी हिंसा होती है। अतएव ऊपर कहे बारह भेदों का तीन से गुणन कर देने पर हिंसा के छत्तीस भेद हो जाते हैं।
__ मन, वचन और काय के भी तीन भेद हैं-स्वयं करना, दूसरों से करवाना और अनुमोदना करना । इन तीनों योगों के द्वारा हिंसा करने के तीन तरीके हैं, जिन्हें 'करण' कहते हैं। इनके साथ पूर्वोक्त छत्तीस भेदों को गुणित कर देने पर हिंसा के १०८ भेद निष्पन्न हो जाते हैं।
_ हिंसा की इन १०८ प्रकार की निवृत्तियों के उद्देश्य से ही आप १०८ दानों वाली माला जपते हैं।
यह पहले बतलाया जा चुका है कि सामान्यतः हिंसा से निवृत्ति पा लेना ही अहिंसा है। इसका तात्पर्य यह है कि मनुष्य ज्यों-ज्यों हिंसा के इन भेदों से निवृत्त होता जाता है त्यों-त्यों वह अहिंसा के भेदों की साधना करता जाता है । इससे यह बात भी स्पष्ट हो जाती है कि जितने भेद हिंसा के हैं उतने ही अहिंसा के भी हैं, और जितने भेद अहिंसा के हो सकते हैं, उतने ही हिंसा के भी समझने चाहिए ।
इस प्रकार जब आप हिंसा और अहिंसा के निरूपण पर ध्यान देंगे तो ज्ञात होगा कि जैन-धर्म बड़ी सूक्ष्मता तक पहुँचता है, अन्तरतम की गहराई में चला जाता है । और उस गहराई को समझने के लिए साधक को अपनी बुद्धि तथा अपने विवेक को सतत साथ रखने की जरूरत है। अन्यथा वास्तविकता समझ में नहीं आ सकती। हिंसा का अर्थ
उपर्युक्त प्रस्तावना से भलीभांति समझा जा सकता है कि हिंसा का अर्थ केवल मारना ही नहीं है, किन्तु हिंसा का संकल्पमात्र भी हिंसा है। किसी जीव को ले कर इधर से उधर कर देना, उसे टकरा देना या एक जीव के ऊपर दूसरे जीव को
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