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अहिंसा-दर्शन
कायम किये गए थे, उसी प्रकार यह वर्ग भी समाज की सुविधा के लिए ही बनाया गया था । सही मान्यता
प्राचीन साहित्य में ब्राह्मणों को 'मुख' कहा है। आमतौर पर यह उक्ति प्रचलित है कि-ब्राह्मण की उत्पत्ति ब्रह्मा के मुख से, क्षत्रिय की उत्पत्ति ब्रह्मा की भुजाओं से, वैश्य की उत्पत्ति ब्रह्मा के उरु या पेट से, और शूद्र ब्रह्मा के पैरों से उत्पन्न हुए।
आज ब्राह्मण-समाज इस बात को तो बड़े गौरव के साथ दोहराता है कि हम ब्रह्माजी के मुख से पैदा हुए हैं, किन्तु इसके वास्तविक रहस्य को समझने का वह स्वप्न में भी प्रयत्न नहीं करता । ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न होने का मूल अर्थ इतना ही है कि आप जो चिन्तन और मनन करते हैं, उसका उपयोग मुख द्वारा कीजिए । आप अपने ज्ञान को पवित्र वाणी के द्वारा प्रकाशित करके मानव-समाज की सेवा कीजिए ! इस भ्रम में कदापि न रहिए कि ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से बाहर निकल पड़े हैं। जिस तरीके से अन्य लोग पैदा होते हैं, उसी तरीके से ब्राह्मण भी पैदा होते हैं । भला यह कौन नहीं जानता ? मुख से पैदा होने की बात तो केवल रूपक है और उसका आशय इतना ही है कि ब्राह्मणों का मुख्य कर्तव्य शिक्षा-ज्ञान के द्वारा समाज की सेवा करना है । वह अलंकार जीवन की पवित्रता का सन्देश ले कर आया था।
क्षत्रिय ब्रह्मा की भुजाओं से उत्पन्न हए, यह भी आलंकारिक भाषा है । इसका अर्थ केवल इतना ही है कि क्षत्रिय-वर्ग अपनी भुजाओं के बल से निर्बलों की रक्षा करे, जो कि सबलों द्वारा सताये जाते हैं और जो अन्याय एवं अत्याचार के शिकार बन रहे हैं । जहाँ शोषकों के कर हाथों से अन्याय-अत्याचार बरस रहे हों, वहाँ क्षत्रिय का हाथ चोट पहुंचाने के लिए नहीं; अपितु उन दुर्बलों को अपनी छाया प्रदान करने के लिए पहुंचना चाहिए।
हम लोग जो भोजन करते हैं, वह पेट में जमा हो जाता है । किन्तु पेट में जमा हुआ भोजन रस के रूप में सारे शरीर में पहुंचता है। ऐसा कदापि नहीं होता कि पेट में पहुँचा हुआ भोजन पेट में ही रह जाए और अकेला पेट ही उसे हजम कर जाए और किसी दूसरे अवयव को अणुमात्र भी न मिलने पाए। हमारे शरीर का प्रत्येक अवयव क्रिया कर रहा है, वह पेट में पहुँचे भोजन की बदौलत ही तो है ! यदि पेट सम्पूर्ण शरीर को शक्ति न दे, तो हमारे शरीर का अस्तित्व टिक ही नहीं सकता । फिर जब शरीर ही नष्ट हो जाएगा तो क्या अकेला पेट टिक सकेगा? पेट की बदौलत यदि सम्पूर्ण शरीर टिका हुआ है तो सारे शरीर की बदौलत पेट भी टिका हुआ है।
४ ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद् बाहू राजन्यः कृतः,
उरू वयस्यासीद् वैश्यः पद्भ्यां शूद्र अजायत ।
___-यजुर्वेद, पुरुषसूक्त
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