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अहिंसा - दर्शन
वैशाली के उपर्युक्त युद्ध की एक बात विचारणीय यह है कि चेटक और कूणिक दोनों युद्ध करते हैं । दोनों ओर से हिंसा होती है, भयङ्कर नरसंहार होता है, लेकिन राजा चेटक भयंकर युद्ध में वीरगति प्राप्त करता है और मर कर स्वर्ग में जाता है । और राजा कूणिक विजेता होने के बावजूद भी जब मरता है, तो कहाँ जाता है ? नरक में | क्या है कि एक ही चीज के दो विभिन्न परिणाम होते हैं ? एक ही युद्ध लड़ा गया, लेकिन दो परस्पर विरोधी नतीजे कैसे आए ? दोनों ने भरपूर हिस्सा लिया युद्ध में दोनों बराबर के साझीदार हैं युद्ध के । और जब दोनों साझीदार हैं युद्ध के, तो फिर परिणाम भिन्न-भिन्न कैसे आ गए ? नतीजे अलग-अलग कैसे आए ? तो स्पष्ट है कि ये जो भिन्न-भिन्न नतीजे आये हैं, ये आये हैं हिंसा और अहिंसा के विश्लेषण के आधार पर । अभिप्राय यह है कि शरणागत की रक्षा करना धर्म है, क्योंकि वह भय से त्रस्त होता है, अन्याय से आक्रान्त होता है, मौत उसके सिर पर बुरी तरह मँडरा रही होती है । वह किसी के पास रक्षा पाने के लिए आता है । अब बात यह है कि उसकी रक्षा करना क्या है ? एक आदर्श की रक्षा करना है, एक नैतिक पक्ष का समर्थन करना है । जो पीड़ित है, भय से त्रस्त है, दुःखित है, निरपराध है, बेचारे ने कोई दोष किया नहीं है, उसको आश्रय देना आवश्यक है । हमारी भारतीय परम्परा का यह आदर्श है बहुत बड़ा । और भारतीय परम्परा ही क्यों, सारी मानवता का आदर्श है यह । आप जिसे मानवता कहते हैं, जिसे इन्सानियत कहते हैं, यह उसका आदर्श है। तो, राजा चेटक ने इस आदर्श की रक्षा की, इसलिए वह स्वर्ग में गया । और कूणिक जो लड़ा, वह किसके लिए ? अपने स्वार्थ के लिए अपने अहंकार के लिए और अन्याय-अत्याचार के द्वारा अपने भाई का हक छीन कर उसे बर्बाद करने के लिए, एक सर्वथा निकृष्ट आधार पर लड़ा है । अतः वह जैनशास्त्रानुसार नरक में जाता है । प्रश्न है – दोनों में से धर्मयुद्ध किसने लड़ा ? राजा चेटक ने धर्मयुद्ध लड़ा । इसलिए वह स्वर्ग में गया है । और कूणिक ने भी युद्ध तो लड़ा, लेकिन वह अधर्मयुद्ध लड़ने के कारण नरक में गया है। यह बात यदि आपके ध्यान में स्पष्ट हो जाती है, तो विचार कीजिए कि हिंसा और अहिंसा के प्रश्न केवल बाहर में नहीं सुलझाए जाते हैं, वे सुलझाये जाते हैं अन्दर में, अन्दर के चिन्तन में । प्रवृत्ति का मूल वृत्ति में है, अतः वृत्ति में ही हिंसा अहिंसा का विश्लेषण होना चाहिए ।
शरणागतरक्षा : आज के सन्दर्भ में
जैसा कि आपने ऊपर राजा चेटक की शरणागतवत्सलता की बात देखी है, आज भी वह बात ज्यों की त्यों है आपके समक्ष । और तब तो केवल एक शरणागत का सवाल था, लेकिन अब तो एक करोड़ के लगभग प्रताड़ित, अतएव विस्थापित बंगाली शरणार्थियों का सवाल है । विचार कीजिए, इन शरणार्थियों में माताएँ भी हैं, बहनें भी हैं, बुड्ढे भी हैं, बच्चे भी हैं, बच्चियाँ भी हैं, नौजवान भी हैं । क्रूर पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा भयंकर मौत उन सबके सिर पर मँडरा रही है, और सिर्फ मौत ही नहीं
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