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अहिंसा-दर्शन
अहिंसा का कोई मूल्य नहीं था, उनकी दृष्टि में । अतः वे पूरी शक्ति से लड़े और जीते । इस युद्ध के सम्बन्ध में आप विचार करके देखेंगे तो आपको मालूम होगा कि उन थोड़ीबहुत गायों को बचाने का क्या अर्थ रहा ? कुछ गायों की रक्षा के काम में वे पराजित हो गए, देश गुलाम हो गया । इतिहास पर नजर डालिए, इसके बाद कितनी गो-हत्याएँ हुईं, कितनी मानव-हिंसाएँ हुई और कितने अनाचार-दुराचार और कितने पापाचार हुए हैं ? देश मिट्टी में मिलता चला गया और भारत की भव्य संस्कृति, सभ्यता, कल्चर (Culture) सब कुछ समाप्त होती चली गई। धर्म-परम्पराओं को कितनी क्षति पहुँची? धर्म-परम्पराओं को इस तरह से बर्बाद किया गया कि उनका निर्मल रूप ही विकृत हो गया। केवल गायों का ही सवाल नहीं रहा । हजारों माताओं और बहनों की बेइज्जतियाँ भी हुईं। यह हिन्दू-मुसलमान का सवाल नहीं है। इस प्रकार के सवालों में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है और न अपने आप में ये कोई अच्छे सवाल ही हैं । सवाल तो सिर्फ इतना है कि समय पर अन्याय का उचित प्रतिकार न करने से भविष्य में क्या होता है ? हिन्दू हो या मुसलमान, कोई भी हो, अन्याय का प्रतिकार होना चाहिए, केवल वर्तमान की हिंसा या अहिंसा को न देख कर, उसके भविष्यकालीन दूरगामी परिणामों को देखना चाहिए । वर्तमान की सीमित दृष्टि कभी-कभी सर्वनाश कर डालती है। राजा चेटक का धर्मयुद्ध
- इस बड़ी और छोटी हिंसा के विश्लेषण को और अधिक स्पष्ट करने के लिए मैं एक उदाहरण आपके समक्ष रख रहा हूँ-वह है कूणिक और चेड़ा राजा (राजा चेटक) के युद्ध का। भगवान् महावीर के समय का यह बहुत बड़ा भयानक युद्ध था, जिसका उल्लेख तत्कालीन धर्म-परम्पराओं के साहित्य में है। सुप्रसिद्ध वैशाली-गणतन्त्र के मान्य अध्यक्ष राजा चेटक एक महान् बारह व्रतधारी श्रावक थे। दूसरी ओर मगध सम्राट् कूणिक था, जिसने कि वैशाली पर आक्रमण किया था । उक्त युद्ध के मूल में एक शरणागत का प्रश्न था । प्रसंग यह है कि कूणिक अपने छोटे भाई के हक को छीन रहा था, उसकी स्वतन्त्रता और सम्पत्ति को हड़प रहा था। राजकुमार हल्लविहल्ल पर मय छा गया । वह अपने बचाव के लिए चेटक राजा के पास पहुँच गया, शरणागत के रूप में। कूणिक को जब यह मालूम हआ कि वह वैशाली में चेटक-राजा के पास पहँच गया है, तो उसने चेटक-राजा को यह कहलवाया कि-"तुम उसको यों का यों वापस लौटाओ, अन्यथा, इसके लिए तुम्हें युद्ध का परिणाम भोगना पड़ेगा।" राजा-चेटक ने शरणागत की रक्षा में युद्ध का वरण किया। भयंकर युद्ध हुआ, लाखों ही वीर काल के गाल में पहुँच गए। स्वयं चेटक-नरेश भी वीरगति को प्राप्त हुए । वहाँ प्रश्न था---एक शरणागत की रक्षा का । अगर राजा चेटक उस एक शरणागत को लौटा देता, भले ही उसके साथ कुछ भी करता क्रुद्ध कूणिक, तो लाखों ही लोगों के प्राणों की रक्षा हो जाती। यदि राजा चेटक हिंसा-अहिंसा का वैसा विश्लेषण करता, जैसा कि आजकल कुछ लोग
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