________________
अहिंसा के संदर्भ में धर्मयुद्ध का आदर्श
१७३
लेकिन एक धर्मयुद्ध माना जाता है और एक अधर्मयुद्ध माना जाता है। ऐसा क्यों माना जाता है ? ऐसा इसलिए माना जाता है कि राम के मन में एक उदात्त नैतिक आदर्श है । उनका युद्ध किसी अनैतिक धरातल पर नहीं है, किसी भोग-वासना की पूर्ति के लिए या राज्यलिप्सा के लिए नहीं है, बल्कि वह सतीत्व की रक्षा के लिए
और अन्याय-अत्याचार की परम्परा को, जोकि जन-जीवन में बढ़ती जा रही है, रोकने के लिए है । इसी दृष्टि से विचार करने पर हम देखते हैं कि यह जो वर्तमान में पाकिस्तान और हिन्दुस्तान का युद्ध चल रहा है, उसका भी यथोचित विश्लेषण किया जाना चाहिए । विश्लेषण के अभाव में हमारे यहाँ कभी-कभी काफी मयंकर भूलें हुई हैं । और उनके दुष्परिणाम भारत को हजारों वर्षों तक भोगने पड़े हैं । अहिंसा-सम्बन्धी गलत धारणाएँ
हमारे समक्ष हिन्दूसम्राट पृथ्वीराज का ज्वलंत उदाहरण है । कहा जाता है कि जब मोहम्मद गौरी भारत पर आक्रमण करने आया, उस समय भारत की शक्ति इतनी सुदृढ़ थी कि वह हार कर चला गया। वह फिर आया और फिर पराजित हो कर लौट गया, फिर आया और फिर पराजित हुआ। इस प्रकार वह कई बार आया और पराजित हुआ। उस समय भारत की रणशक्ति बहुत बढ़ी-चढ़ी थी। बड़े-बड़े रणबांकुरे वीर थे यहाँ । अतः बारबार उसे यहाँ आ कर पराजित हो जाना पड़ा। किन्तु एक बार उसे पता लग गया कि ये जो हिन्दू हैं, गाय पर आक्रमण नहीं करते । अतः उस धूत ने क्या काम किया कि अपने नये आक्रमण में सेना के आगे गायों को रखा । आगे-आगे गायें चल रही थीं और पीछे-पीछे उसकी सेनाएँ युद्ध के लिए बढ़ रही थीं। अब यहाँ के वीर राजपूत धर्माधर्म की विचित्र उलझन में पड़ गये । हालांकि उनमें अद्भुत शक्ति थी लड़ने की; कई बार गौरी को हराया भी था । लेकिन इस बार वे गड़बड़ा गये कि भाई, युद्ध तो कर रहे हैं, लेकिन यदि किसी गाय को वाण लग गया और गाय मर गई तो गोहत्या का पाप लग जायेगा और यह बहुत बड़ा भयंकर पाप होगा। बस, इधर वीर राजपूत गायों को बचाने के विचार में उलझ गए और उधर शत्रु को तो कोई मतलब था नहीं इन बातों से । लड़ाई होती रही। गायों को बचाने के लिये राजपूत पीछे हटते रहे, निर्णायक प्रत्याक्रमण नहीं कर सके । परिणाम यह हुआ कि आखिर राजपूत सेना, जो विजय प्राप्त कर सकती थी, जिसमें भरपूर ताकत थी लड़ने की और विजय प्राप्त करने की, वह पराजित हो गई और देश गुलाम हो गया।
यहाँ यदि आप विश्लेषण करेंगे ठीक तरह से, तो विचार करना पड़ेगा कि यह जो गो-हत्या के सम्बन्ध में चिन्तन था, वह कितनी गलत दिशा में था। वीर राजपूतों ने यह तो देखा कि वर्तमान में हमारे वाणों से सम्भव है, कुछ गायें मर जाएँ, किन्तु उन्होंने भविष्य को नहीं देखा कि क्या होने वाला है ? आने वाले आक्रमणकारियों के लिए तो गाय-भैंस जैसा कुछ भी विचारणीय न था । यह सब तो उनके भक्ष्य ही थे । उन थोड़ी-सी गायों को मारने या बचाने के पाप-पुण्य का अथवा हिंसा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org