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अहिंसा-दर्शन
कहीं ऐसा प्रसंग आ जाता है और बहुधा आता ही रहता है कि भाव-हिंसा हो, किन्तु द्रव्य-हिंसा न हो । जैसा कि अभी कहा गया है, अन्दर हिंसा की भावना जगी, हिंसा का विचार पैदा हो गया और अपने जीवन के दुर्गुणों और वासनाओं के द्वारा अपने सद्गुणों को बर्बाद कर दिया, तो भाव-हिंसा हो गई। किन्तु दूसरे का कुछ बिगाड़ नहीं हो सका, तो द्रव्य-हिंसा न होने पाई। भाव-हिंसा : तन्दुलमच्छ का उदाहरण
प्रथम भंग जिसमें भाव-हिंसा तो होती है, पर द्रव्यहिंसा नहीं होती; उसे इस प्रकार समझा जा सकता है । महासागर में हजार-हजार योजन के विशालकाय मच्छ रहते हैं और मुंह खोले पड़े रहते हैं । जब वे सांस लेते हैं तब हजारों मछलियाँ उनके पेट में श्वास के साथ खिंची चली आती है और जब सांस छोड़ते है तो बाहर निकल जाती हैं । इस तरह प्रत्येक श्वास के साथ हजारों मछलियाँ अन्दर आती और बाहर जाती है । ऐसे किसी मच्छ की भौंह पर या किन्हीं आचार्यों के मतानुसार कान पर, तन्दुलमच्छ रहता है । वह कहीं भी रहता हो, उसकी आकृति चावल के बराबर होती है । वह सिर, आँखें, कान, नाक आदि सभी इन्द्रियों से सम्पन्न होता है । उसके शरीर है और मन भी है। वह उस विशालकाय महामत्स्य की भौंह या कान पर बैठा-बैठा देखता है कि इस महामत्स्य की श्वास के साथ हजारों मछलियाँ भीतर जाती हैं और फिर बाहर निकल आती हैं, और वह सोचता है-"ओह ! इतना बड़ा शरीर पाया है, इस भीमकाय मच्छ ने, किन्तु कितना मूर्ख और आलसी है ! इसे होश नहीं है कि हजारों मछलियाँ आई और यों ही निकल गई ! क्या करूँ, मुझे ऐसा शरीर नहीं मिला ! यदि मिला होता तो क्या मैं एक को भी वापस निकल जाने देता ?" किन्तु जब मछलियों का प्रवाह आता है तो वह दुबक जाता है, डर जाता है कि कहीं मैं झपट में न आ जाऊँ ! मर न जाऊँ ! वह कर कुछ भी नहीं पाता, किन्तु इस व्यर्थ की दुर्भावना से ही उसकी हजारों जिन्दगियाँ बर्बाद हो जाती हैं ।
तन्दुल-मत्स्य मछलियों को निकलती देख कर हताश हो जाता है और सोचता है कि हाय, एक भी नहीं मरी ! वह इन्हीं दुःसंकल्पों में उलझा रहता है और रक्त की एक बूंद भी नहीं बहा पाता । यहाँ तक कि वह किसी को एक चुटकी भी तो नहीं भर पाता । अन्तर्मुहुर्तभर की उसकी नन्ही-सी जिन्दगी है और इस छोटी-सी जिन्दगी में ही वह. सातवें नरक की तैयारी भी कर लेता है । डाक्टर और मरीज का उदाहरण
भाव-हिंसा को सुगमता से समझने के लिए एक उदाहरण और प्रस्तुत है--
किसी डाक्टर के पास एक बीमार आया। इससे पहले वह अपनी चिकित्सा कराने के लिए जगह-जगह भटक चुका है और अपने जीवन की आशा भी लगभग छोड़ चुका है । डाक्टर के साथ उसका पूर्व-परिचय नहीं है। उसने डाक्टर से कहा"मैं बीमार रहता हूँ । कृपा करके मेरा इलाज कीजिए । मेरा होश-हवास भी ठीक नहीं
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