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अहिंसा-दर्शन
है । इस प्रकार प्रतिलेखन के पश्चात् की जाने वाली आलोचना भी प्रतिलेखन की नहीं, अपितु ठीक तरह प्रतिलेखन करने की ही समझी जानी चाहिए।
जब इन बारीकियों पर ध्यानपूर्वक विचार किया जाएगा तो स्वतः स्पष्ट हो जाएगा कि जैनधर्म ने जो कुछ भी कहा है उसे हमने विवेक-बुद्धि से नहीं समझा और न ही उसे व्यवहार में लाने की आवश्यकता अनुभव की । कुछ ऐसे भी लोग मिलते हैं जो बुहारी न देने के नियम बनाना चाहते हैं । यदि वे बना लें तो उसका परिणाम क्या होगा ? सुबह से शाम तक घर और द्वार में गन्दगी फैली रहेगी । उस गन्दगी से कितने ही प्राणी उत्पन्न होंगे और कितने ही इधर-उधर से आ कर जमा भी हो जायेंगे । यदि आगे भी ऐसा ही होता रहेगा तो या तो घर को कीड़ों-मकोड़ों के लिए ही छोड़ देना पड़ेगा, या चार दिन बाद बुहारी लगा कर बहुसंख्यक जीवों की हिंसा का भाजन बनना पड़ेगा।
इस सम्बन्ध में जैन-धर्म की स्पष्ट घोषणा है कि साधु अपने निवास स्थान एवं उपकरणों का प्रतिदिन प्रतिलेखन तथा प्रमार्जन करे, और यह निर्देशन केवल साधुओं तक ही सीमित नहीं, गृहस्थों के लिए भी है। यदि नियमित प्रतिलेखन और प्रमार्जन नहीं किया जाएगा, तो उससे होने वाले दो उपवासस्वरूप तप का लाभ भी नहीं होगा और घर की स्वच्छता भी नहीं रहेगी। यह नहीं समझना चाहिए कि धर्मस्थान के प्रमार्जन से तो बेले के तप का लाभ होता है और अपने खुद के मकान का प्रमार्जन करने से बेले का लाभ प्राप्त न हो कर उल्टा पाप ही होता है ! जैन-धर्म किसी स्थान-विशेष में धर्म नहीं मानता है, उसका धर्म तो कर्ता की भावना पर ही आश्रित है। दृष्टि-परिवर्तन
जैन-धर्म दृष्टि-परिवर्तन की बात कहता है। वह कहता है कि यदि आप मकान की सफाई कर रहे हैं तो दृष्टि बदल कर कीजिए । सफाई करने में एक दृष्टि तो यही हो सकती है कि मकान साफ-सुन्दर दिखाई देगा, साफ-सुथरा मकान देख कर लोग आपकी प्रशंसा करेंगे। इस दृष्टि में शृङ्गार की भावना है। दूसरी दृष्टि यह है कि सफाई रखने से जीवों की उत्पत्ति नहीं होने पाएगी; फलतः जीवों की व्यर्थ की हिंसा से स्वतः बचाव हो जाएगा। साथ ही प्रमार्जन करते समय विवेक रखा जाए, अंधाधुन्धी न मचाई जाए, प्रमार्जन और सफाई के साधन भी कोमल रखे जाएँ, इतने कठोर न हों, जिससे उनकी चपेट में आकर जीव मारे जाएँ । यदि कोई जीव झाड़न में आ जाए तो उसे सावधानी के साथ अलग रख दिया जाए। इस प्रकार घर की सफाई करते समय यदि वर्तमान में भी विवेक-बुद्धि का प्रयोग किया जाए और भविष्य की अहिंसा का भी विचार किया जाए तो वहाँ धर्म होगा, पाप-कर्म की निर्जरा होगी।
एक बहन भोजन-पान आदि की समस्त सामग्री को खुला रख छोड़ती है । कहीं घी ढुल रहा है, तो कहीं तेल फैल रहा है, कहीं पानी में मक्खियाँ गिर रही हैं, तो
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