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बंगलादेश के सन्दर्भ में
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अहिंसा का युगसापेक्ष महत्त्व
अहिंसा मानव का सर्वोत्तम भूषण है । यह आंतरिक समता-भावना पर आधारित तत्त्व है। इसका अतिक्रमण करने वाला व्यक्ति वस्तुतः मानव कहलाने का अधि. कारी नहीं। विश्व के समस्त प्राणी दुःख एवं पीड़ाओं से मुक्ति चाहते हैं । चाहे वे छोटे हों या बड़े, मानव हों अथवा पशु-सभी जीना चाहते हैं, मरना कोई भी नहीं चाहता। सबको सुख प्रिय है, दु:ख अप्रिय । सबको अपना जीवन प्यारा है ।२ जिस हिंसक-व्यवहार को एक अपने लिए पसन्द नहीं करता, दूसरा उसे क्योंकर चाहेगा ? यही जिन शासन के कथनों का सार है, जो एक तरह से सभी धर्मों का सार है। आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व भगवान् महावीर ने जिस महाकरुणा (अहिंसा) का सन्देश विश्व को दिया था, आज भी उसकी महत्ता यथावत् अक्षुण्ण है, बल्कि यों कहना चाहिए, कि उसका महत्त्व आज के प्रजातांत्रिक विश्व-शासनयुग में और अधिक बढ़ गया है।
____ अहिंसा सिर्फ हिंसा नहीं करने का नामभर ही नहीं है, अपितु यह मंत्री, करुणा और सेवा की महान् साधना का अपर नाम है । हिसा नहीं करना--यह तो अहिंसा का एक पक्ष है, समाज की दृष्टि से यह अधूरी साधना है । सम्पूर्ण अहिंसा की साधना के लिए प्राणिमात्र के साथ मैत्रीभाव रखना, उसकी सेवा करना, उसे कष्ट से मुक्त करना आदि विधेयात्मक पक्ष पर भी समुचित मनन करना होगा । जैन आगमों में जहाँ अहिंसा के साठ एकार्थक नाम दिए गये हैं, वहाँ वह दया, रक्षा, अभय आदि के नाम से भी अभिहित की गई है।
१ सव्वे जीवावि इच्छंति, जीविउं न मरिज्जिउं ।
-दशवैकालिक सूत्र, ६।११ २ सव्वे पाणा पिआउया सुहसाया दुहपडिकूला ।
--आचारांग सूत्र, १।२।३ ३ जं इच्छसि अप्पणतो, जं च न इच्छसि अप्पणतो। - तं इच्छ परस्स वि, एत्तियग्गं जिणसासणयं ॥
-बृहत्कल्पभाष्य ४५८४ ४ दया, बोही, खंती, रक्खा, जयणं, अभओ, जण्णं, समिई आदि
-प्रश्नव्याकरण, प्रथम संवरद्वार
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