Book Title: Acharanga Stram Part 01
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
Catalog link: https://jainqq.org/explore/020008/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie DERCISISEDIESIREDICTISTICS ॥ श्रीजिनाय नमः। (श्रीसुधर्मास्वामीण रचेलु अने श्रीश्रुतकेवलीभद्रवाहुरचित नियुक्तिसहित) ॥ आचाराङ्गसूत्रम् ॥ भाग पहेलो (मूळ अने शीलाङ्काचार्य रचेली टीकाना भाषांतरसहित) जामनगरनिवासी स्व० पण्डित हंसराजभाइ शामजीना स्मरणार्थे छपावी प्रसिद्ध करनार-पण्डित हीरालाल हंसराज (जामनगरवाळा) संवत् १९८८ पडतर किंमत रु. २-८-० श्रीजैनभास्करोदय प्रिन्टिंग प्रेसमां छाप्यु जामनगर.. 00093030 पति २०० b el@@@@@@@@@@@@00aldo For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandir आचा० ॥श्रीजिनाय नमः॥ ॥ श्रीआचारांगसूत्रम् ॥ ( मूळ अने शीलांकाचायें रचेली टीकार्नु भाषान्तर ) (भाग पहेलो) छपावी प्रसिद्ध करनार-पण्डित श्रावक हीरालाल हंसराज (जामनगरवाळा) 12 जयति समस्त वस्तु पर्याय विचारा पास्त तीर्थिकं । विहिते कैक तीर्थ नय वाद समूह वशात्प्रतिष्ठितम्। बहुविधभङ्गिसिद्ध सिद्धान्त विधूनित मलमलीमसम् । तीर्थमनादि निधनगतमनुपममादिनतंजिनेश्वरैः१ जेणे वधी वस्तु तथा तेना पर्यायना विचार बतावना बढे बीनां तीर्थी (मन्तव्योने दर की छे अने एके एक तीर्थना नयवादना । समृहने लीधे प्रतिष्ठा पामेल भने बहु प्रकारे भंगी बतावया वडे सिद्ध करेला सिद्धान्तथी, जेणे कुमार्ग रुप मळनी काळाश घोड ॐॐॐ For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ २ ॥ नाखी छ, तभा अमादिनिधन (सर्वदापणाने) ने पामेल के अने अनुपम जिनेश्वरोप उपदेश भापता पहेलांज जेने नमस्कार आचाको छे ते तीर्थ जयवन्तु वो के. आचारशाम्वं सुविनिश्चितं था, जगाद वीरो जगते हिताययः । तथैव किश्चिद्गदतः स एवरे, पुनातु धीमान् विनयार्पिता गिरः॥ जेवीरीते श्रीवीर भगवाने जगतना हितने माटे सारीरी निश्रय करेला आनारशासने वर्णव्यु से पीनरीते ते श्रीवुद्धिपूर्ण वीर। भगवान पोते कइक चोलनार एवानी आ मारी विनयथी र्पण करेली वाणी सेने पवित्र करो. शत्रपरिज्ञा विवरण, मतिबहगहनं च गन्यहस्तिलम् । तस्मात्सुख बोधार्थ गृहाम्यह मजसा सारम् । गन्धहस्ति आचार्य करेलु 'शस्त्र परिज्ञानु" विवरण बहु गहेनत लीया छतां पण न पनी शकाय से होवाथी रोनो जलदी ने भोडी महेनते पोध भाग (मम जीशकाय) तेटला माटे तेनो सार मात्र ग्रहण करुई. 31 अहि निश्रये राग द्वेप मोह निगेरेथी हारेला सर्व मंगो जे." - पने मन संबन्धी अनेक अति कडवा दलोना सपा थी पीडाला छे, ते दूर करवाने माटे हे - मेळ तेपणे पस्न फावो जोहए, ते यत्न विशिष्ट विवेकविता -ग, अने ते श्रेष्ठ निवेक जे आप्न पुरु ( न्य ज्ञान विगेरे)नो समूह पास करेला होय, तेपना एले अने ते आत पुरुष र पोक्षय काँगी गाय, ते दोष रहित जिनेश्वरजछे For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10* सूत्रम आचा० 18 तेथी अमे अईन जिनेश्वरना वचननो अनुपोग (अर्थकथन) करीए छीए ते चार प्रकारे छे ते आप्रमाणे छे. १धर्मकथानुयोग, (२) गणितानुयोग (३) द्रव्यानुयोग अने (४) चरण करणानुयोग. तेमां धर्म कथानुयोग उत्तराध्ययन विगेरे ॥३॥ गणितानुयोग सूर्यप्राप्ति विगेरे द्रव्यानुयोग चौद पूर्व तथा संमति विगेरे न्यायना प्रन्यो, अने चरणकरणानुयोग ते आ आचारां-12 गादिमुथ छे ते चोथो अनुयोग पधामां मुख्य के कारण के पाकीना प्रणा लेनो अर्थ बतावेलोछे. कहेल छ के"चरण पडिवत्ति हेउं जेणियरे तिपिण अणुओग"त्ति (तथा) चरण पडिवत्ति हेऊ, धम्म कहा कालदिक्खमादीया। दविए दंसण सोहि, देसण सुद्धस्स चरणं तु ॥१॥ चारित्रना स्वीकारने माटे बाकीना बण अनुयोगो छे वळी चरणना स्वीकारनां कारणो धर्म कथा काळ अने दिक्षादिक छे. द्र व्यानुयोगथी दर्शन भूद्धि (साचा तत्वउपर आस्था) अने तेनाथी चारित्र ग्रहण थाय छे. गणधरोए पण तेथीन तेनुं प्रथम विवेचन कर्यु छे. तेथी ते प्रमाणे आचारांगनो पहेलो अनुयोग करीए छीए. हवे ते अनुयोग मोक्ष देनारो होबाथी तेमां विघ्न होबानो &ा संभव छे कहेल छे के श्रेयांसि बहु विघ्नानि, भवन्ति महतामपि । अश्रेयसि प्रवृत्ताना, क्वापि यान्ति विनयकाः ॥ १ ॥ जेटलां सारा कार्यो छे तेमा मोटामीने विघ्नो पण आवे छे पण अकल्याणमा प्रवर्तनाराओने कोइएण जगोए विघ्न भावतुं 22 For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नथी एटले तेओ गमे तेम वर्ते हे तेने कोइ अटकावतु' नथी, तो सई विघ्ननो नाश या माटे मंगळ मनोइये, दिसा आचा०18 मध्य अने अन्त एका प्रण भेदे हो, तेमान ' यमे आउ संतेणं भगत्रया एव मक्खाय' आ भगवान वचन होवाथी प्रथम मंगळ 15/ सूत्रम छे, अथवा श्रुत एटले श्रुतज्ञान ते नंदीमूत्रमा गणातुं होबाथी मंगळ छे, ए मंगळ विना विध्ने इच्छित शाखना अर्थने पार पहोंच| बानुं कारण छे, मध्य मंगळ लोकसार अध्ययनना पांचमा उद्देशानुं सूव छे. 'सेजदाके विहए परि पुण्णे चिटइ समंसि भोम्मे उवसंतरए सारक्खमाणे' अहीं हद (कुंड)ना गुणो वडे आचार्योना गुणोनु कीर्तन छे अने आचार्यों पांच परमेष्ठीमा होवाथी भगळ छे. आ भणेला इच्छितशास्त्रार्थने स्थिर करवा माटे छे. छेल्लु मंगळ नवमा अध्ययनमा छेल्लु मूत्र के अभि निबुडे अाई आवक हाए भगवं समियासी' अहिं अभिनित ग्रहण 'संसार महातरु कंद ' ने छेदीने खात्रीधी ध्यान करवान होवाथी मंगळ छ । ( दीक्षा पाळनारे एम चोकस मानवू के हवे मने संसार भ्रमण नहि थाय) आ छेक्दन मंगळ शिष्य अने मशिष्य तेनो परिवार | द कायम रहेवा माटे छे ( के जे सूत्रो भणीने स्वपरने मतिबोधे छे) अध्ययनमा मूत्रो मंगळपणे वतावादी अध्ययनोनु मंगळ पणुं जाणी ले तेथी विशेष कहेता नथी अथवा आ आखु शानुज ज्ञानरुप होवाथी मंगळ छे भने ज्ञानथी सकाम निर्जरा थापळे. | निर्जरामा तेनी चोकस खात्री छे. लख्युछे के जे अन्नाणी कम्मं, खवेइ बहुयाहि वास कोडीहि तनाणी तिहिं गुत्तो, खवेइ उस्सा समित्तेणं ॥१॥ कोदो वर्षे अमानी जे कर्म खपावे ते ज्ञानी अने प्रण गुप्तिनो धरनारो श्वासोश्वास मात्रमा खपावे छे, मंगळ शन्दनु निरुक्त दी SARACETRIA For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा० सूत्रम् ॥ ५॥ CAऊ (पदोने नोडीने अर्थ करवो ते) मा छे, मने भवथी दूर करे ते मंगळ अथवा मने, गळ एटले विघ्न न थाओ, अथवा गाल एटले त नाश, शास्त्रनो न याओ (मारु भणेलुं स्थिर अने उपयोगी थाओ) अहीं बाकी रहेल आक्षेप ( वादीनी शंका ) अने परिहार (स-1 माधान) विगेरे अन्य ग्रन्थोथी जाणवा. हवे आचारनो अनुयोग करे छे अर्थनुं कहे ते अनुयोग, अथवा सूत्रनी पळवाहे अर्थ 8 बतायचो ते एटले पहेलुं सूत्र भणावअने पछी तेनो अर्थ बताववो अथवा अणु ते नानुं सूत्र तेनो विशाळ अर्थ कहेवो ते, ते V आ पछीना कहेवाता द्वारो बडे जाणवु ते आ पमाणे छे. निक्खवेगट्टनिरुत्तिविहिपवित्ती य केण वा कस्स तदारभेयलक्खण, रादरिहपरिसा य सुत्तस्थो ॥१॥ (भा दशवैकालिकसूत्रनी नियुक्तिनी पांचमी गाथा छे) तेमा निक्षेपो नाम विगेरे सात प्रकारे छे. नाम अने स्थापना एचे नि. क्षेपा सुगम छे. द्रव्यथी अनुयोग वे मकारे छे आगमथी अने नो आगमयी तेमा आगमथी ज्ञाता होय पण तेमां उपयोग न राखे,8 त अने नोआगमी ज्ञशरीर, भव्य शरीर, अने तेनाथी जुदो अनेक प्रकारे छे. द्रव्य वडे एटले साटिका (खडी) विगेरेथी, अथवा द्रव्यनो एटले आत्मा परमाणु विमेरेनो अनुयोग अथवा द्रव्यमां एटले निषया विगेरेमा अनुयोग थाय, ते द्रव्यानुयोग, क्षेत्रानुयोगमा, क्षेत्रवडे, क्षेत्रनो, अथवा क्षेत्रमा अनुयोग ते आ प्रमाणे छे काळ बडे काळनो अथवा काळमां अनुयोग जाणवो, वचनानुयोग ते एक वचन विगेरेथी जाणवा. हवे भावानुयोगर्नु वर्णन करे छे ते चे प्रकारे आगमथी, अने नो आगमथी, आगमथी ज्ञाता अने उपयोग राखनार, नोआगमथी औपशमिक विगेरे भावो वडे तेओना अर्थनूं कहेचु, आ शिवाय बाकीर्नु आवश्यकमुत्रथी । For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० www.kobatirth.org जाणषु कारण के अहि तो अनुयोग मात्रनो विषय छे. आ अनुयोग आचार्यने आधीन होवाथी, कोणे कर्यो, ते द्वारा बताये छे, तेन उपक्रम विगेरे चार द्वार के ते घणा उपयोगी | होवाथी बनावे छे. कोणे कर्यु अने ते केवा जोइए से बतावे छे. अहीं आचार्यना छत्रीश गुणो बतावे छे. ॥ ६ ॥ | देश कुल जाइ रुवी संघयणी धिइजुओ अणासंसी, अविकत्थणो अमाई थिर परि वाडी गहिय वको। १ जिय परिसो जियनिदो मज्झत्थोदेसकाल भावन्नू, आसन्न लऊ पइभो णाणाविह देस भासण्णू |२| पंच विह आयारे जुत्तो सुत्तत्थ तदु भय विहिन्नू, आहरण हेउ कारण णय णिउणो गाहणा कुसलो |३| ससमय परसमय विऊ गम्भीरो दित्तिमं सिवोसोमो गुणसय कलिओजुत्तो पत्रयण सारं परिकहेउ | ४ | आर्य देशम उत्पन्न थयेल से बधाने सहेलाइयी बोध आपी शके छे पितानुं कुळ ते इक्ष्वाकु विगेरे तथा ज्ञातकुळ, ते श्रेष्ट दोवायी माथे आवेला बोजाने उपाडतां धाकता नथी ' मातानी जाति ' ते उत्तम होय तो विनयादिक गुणवाळो थाय छे, अने ज्यां सुन्दर आकृति त्यां गुणो रहे छे तेथी रुप लीधुं, संहनन अने धीरज आ बेथी युक्त होय तो उपदेश विगेरेमां खेद न पामे, अ| नाशंसी होवाथी सांभळनारा पासे वखादिक न मागे अविकत्थन होवाथी हितमित बोलनारो छे अमाथी ते कपटी न होवाथी सर्वत्र विश्वास करवा योग्य छे, स्थिर परिपाटी ते भणेका सूत्र तथा अर्थने न भूले, ग्राह्म वाक्य तेनी आज्ञा वधा माने, जीत पर्षद For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ ६ ॥ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा ॥७ ॥ राजा विगेरेनी मोटी सभाओमी हारे नहिं, जीत निद्र होचायी निद्रालु शिष्योने अप्रमादीपणे सहेलाइथी जगाडे, मध्यस्थ होबाथी बधा शिष्योने योग्यरीते राखे , देशकाळ भावनो जाणनार होनाधो मुखथी गुण मातिना देशोमा विचरे छे, आसन्न लम्ध | तिभा (हाजर जवाबी होवाथी) शीघ्र परवाहीमा उत्तर मापवामां समर्थ छे, पोते जुदी जुदी भाषानी विधि आणतो होय तो जुदा जुदा देशमा जन्मेला शिष्योने सहेलाइची समजावी शके छे, ज्ञानादि पांच आचारे युक्त होवाथी तेमनु वचन माननीय छे. सूत्र अर्थ बन्नेनी विधि जाणतो होवाथी जोइए तेवीरीते उत्सर्ग अपवादना प्रपंचने बतावे . हेतु उदाहरण, निमित्त, नय तेना वि. स्तारने जाणनारो, व्याकुल थया विना, हेतु विगेरे बराबर बत्ताचे छे. ग्राहणा कुशळ होवाथी घणी युक्तिमोथी शिष्योने समजावे ताछे, जेन अने वीजा मतोनो जाणीतो होबाथी दरेकनी स्थापना अने खंडन करे छे. गंभीर ते खेदने सहेनारो, अने दीप्तिमान ते परना तेजमा न अंजाय, शिरना हेतुथी शिव एटले ते ज्यां विचरे त्यां मरकी विगेरे रोगोनी शांति थाय, सौम्य होवाथी तेने देखीने लोकोनी आंखो आनंद पामे, सेंकडो गुणोथी युक्त ते प्रश्रय (भक्ति) विगेरेथी युक्त आ प्रमाणे मूरि (आचार्य) प्रवचनना कथनमां योग्य जाणवो. ( आवा गुणोराळा आचार्य सूत्र अर्थ भणावे) ए अनुयोगना मोटा नगरपां पेसवानी माफक (जैनसिद्धांतमा पेसवाने माटे चार अनुयोग द्वारो तेज व्याख्यान अंग छे) ते कहे छे. १ उपक्रम, २ निक्षेप, ३ अनुगम, ४ नय, तेमां | उपक्रम ते उपक्रमण अथवा जेना बडे उपक्रम करीए अथवा जेनो करीए अथवा जेमा करीए तेनो अर्थ आ थाय छे के कहेचाना शाखने पूरु' समजाववा माटे शिष्य ते तरफ लक्ष खेचते उपक्रम आ उपक्रम, वे प्रकारे छे (१) शास्त्र संबंधी तथा (२) लो-18 क संबन्धी शास्त्र संबंधी अनुपूर्वी नाम, प्रमाण, वक्तव्यता, अर्थाधिकार, अने समवतार, एम छ प्रकारे छे. CSCREECCESS For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie निक्षेपण ते निक्षेपो जेनावडे जेनाथीजेमा थाय ते निक्षेप छे. उपक्रमयां छावेला सांभळनार शिष्यने पासे लावीने कहेवाना शास्त्रनु । आचार नाम विगेरे वताव. ते त्रण प्रकारे छे. ओघनिष्पत्र, नामनिष्पन्न, मूत्रालापकनिष्पन्न, तेमां अंग अध्ययन विगेरेनु सामान्यनाम सूत्रम् ६ स्थाप ते भोयनिष्पन्न छे, अने आचार, शास्त्र, परिज्ञा, विगेरे विशेष अभिधान नाम स्थापनु अने सूत्रना आलाचानु नाम र विगेरे स्थापg, ते सूत्र आलापकनिष्पन्न जाणवू.: W८॥ हवे अनुगम कहे छे. जेनावडे अथवा जेनाथी अथवा जेनामा अनुगमन धाय ते अनुगम जाणत्रो एटले ते अर्थन कथन छे. था अनुगम नियुक्ति अनुगम, अने सूत्रानुगम, एम चे प्रकारे थे, पहेलो नियुक्ति अनुगम, त्रण प्रकारे छे. निक्षेप नियुक्ति, तथा उपोद्घात नियुक्ति, तथा सूत्र स्पर्शिक नियुक्ति अनुगम छे. तेमां पहेलो निक्षेप पोते छे तेमा सामान्य विशेष कद्देवावडे ओघ | निष्पन अने नाम निष्पन्न, ए चे निक्षेपावले कहेलो सूत्रनी अपेक्षाए के. तेनुं लक्षण हवे पछी कईशे, उपोदयात नीचे आपेली आ ये गाथाओथी जाणवो. । उद्देसे णिदेसे य, णिग्गमे खेत्तकालपुरिसे य, कारणपच्चयलक्खण णए समोयारणाऽणुमए ॥ १॥ किं कतिविहं कस्स कहिं केसु कहं केच्चिरं हवइ कालं। कइसं तरमविरहियं भवागरिस फासणणिरुत्ती। उद्देशो, निर्देश, निर्गम, क्षेत्र, काल, पुरुष, कारण, प्रत्यय, लक्षण, नयो, सपावतार, अनुमत, ॥॥ शृं, केटला प्रकारचें, कोर्नु, यां, कोनामा, केवीरीते, केटलो काळ छे, केटलु अंतरवालु, अंबर रहित, भावाकप स्पर्शना निरुक्ति जाणवू ॥२॥ For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ARC FARN सूत्रम् आचा. ६. एनो अवयवार्थ नियुक्तिकारज कहे छे. M आयारो आचालो आगाला आगारोय आसासो। आयारिसोअंगंति य आइण्णाऽजाइ आमोक्खा ७ ॥९॥ जे वर्तनमा मृकाय ते आचार जाणवो ए नाम विगेरे चार निक्षेपाये जाणवो, नामस्थापना सुगम छोडीने द्रव्य निक्षेपमा ज्ञE शरीर, भव्य शरीर तथा बेनाथी जुदो (व्यतिरिक्त) द्रव्याचार आ गाथा बडे जाणवो. 'णामणधोयणवामण सिक्खावण सुकरणाविरोहोणि। दवाणि जाणि लोए दवाया बियाणाहि । नावन, धावन, वासन, शिक्षण, मुकरण, जे अविरोधी द्रव्यो छे ते लोकोमा द्रव्याचार जाणवो दशवकालीकमूत्र वीजा अध्ययनमां जुओ (पेट भरवाने माटे आ लोकमां जे कला शिखाय छे ते द्रव्याचार जाणवो) भावाचार चे प्रकारे छे. १ लौकिक २ लोकोत्तर तेमां लौकिक ते जैन शिवायना धर्मकृत्यो छे जे अन्यदर्शनी ओ पंचरात्रि विमेरेनो करे छे ते जाणको अने लोकोत्तर Mते ज्ञानदर्शन विगेरेनो पांच प्रकारे जाणवो, मां ज्ञानाचार आठ प्रकारे छे. काले विणए बहुमाणे उवहाणे तहा अणिण्हवणे । वंजणअस्थतदुमये, अट्टविहो णाणमायारो।। काळमां, विनयथी, बहुमानपूर्वक, तपश्चर्यानी साथे, भणनार गुरुनो गुण न भूलता मूत्र अर्थ अने ते बन्ने शुद्ध भणे ते आठ दपकारनो ज्ञानभाचार छे, हवे दर्शनाचार आठ प्रकारनो छे ते बतावे छे. MCir AK CAREite For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥१ ॥ वर्तमान, एत्रण काळना सर्व क्षेत्रमा रहेनारा पटले पंदर फर्म भूमि विगेरे स्थानमा रहेला तेमने पण नमस्कार कर्यो अने सुत्रम् अनुयोग कहेनार सुधर्मस्वामि विगेरेथी लइने, भद्रबाहु जे नियुक्तिकार , ते पोतानाथी पूर्वना आचार्योंने नमस्कार करे छे. आ नमस्कारमा एप पण आम्नाय बतावचाथी, पोतानी स्वेच्छा दूर करी जाणवी अने पोते पण गुरु पासे जे जाण्यं ते कई कत्वा' आ अव्यय वडे पूर्व अने उत्तर क्रियानो संवन्ध छे ते बतावे छे एटले नमस्कार करीने यथार्थ नामवाळा आचार भगवत लिनी, नियुक्ति करशे. भगवत् शब्दथी आचारांग भणनारने अर्थ, धर्म प्रयत्न, मुणनी प्राप्ति थशे तेथी ते भगवत् विशेषण वापर्यु छे. । नियुक्ति एटले निश्चय अर्थ बतावनार युक्ति तेने कहीश एटले अंदर रहेली नियुक्तिने मत्यक्ष कहीश, ॥ १॥ हवे जेवी 4-2 तिज्ञा करी छे तेज कहेवाने निक्षेपाने योग्य पदोने मुहृद् बनीने आचार्य महाराज एकठा करोने कहे छे. आयार अंग सुयखंध, बंभ चरणे तहेव सरथे य । परिणाए संणाए निक्खेयो तह दिसाणं च ॥२॥ F आचार, अंग, श्रुत, स्कंध, ब्रह्म, चरण, शस्त्रपरिज्ञा, संज्ञा, दिशा ए शब्दोना निक्षेपा करवा जोइए, तेमा आचार, ब्रह्म, चरण, शवपरिता ए शब्दो मोम निक्षेपामा जणवा तथा अंग, श्रुतस्कंध, शन्दो ओध निष्पन्न निक्षेपामां अने संज्ञा, दिशा, ए शब्दो, | मुबालापकनिष्पन्न निक्षेपामा आणवा एठले. दरेकना केटला निक्षेपा थाय ते बतावे छे. चरणदिसावजाणं निक्खेको चउक्कओ य नायबो । चरणमि छबिहो खलु सत्तविहो होइउ दिसाणं ।। चरण अने दिशा छोड़ीने वाकीना बघा शब्दोना चार भकारना निक्षेप है. चरणनो छ प्रकारनो भने दिशानो सात प्रकारको %ekocks For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सूत्रम ॥ ११ ॥ www.kobatirth.org निक्षेप जाणवो, अहिं क्षेत्र: काळ, विगेरे ज्यां घटे त्यां योजनां ॥ ३॥ नाम स्थापना विगेरे चार प्रकारे बधामां ध्यायेछे, ते कहे छे. जत्थ य जं जाणिजा निक्खेवं निक्खेवे निरवसेसं । जत्थविय न जाणिजा चउक्कयं निक्खिवे तत्थ |४| एटले चरण, अने दिशा शब्दनी आदिमां जे निक्षेपो क्षेत्र काळ, विगेरे संबन्धी जाणे त्यां संपूर्ण करे ज्यां संपूर्ण न जाणे त्यां आचारांग विगेरेमां नाम स्थापना द्रव्यभाव, ए चार निक्षेप करे आ उपदेश के गाथार्थ प्रदेश अन्तरना प्रसिद्ध अर्थना लाधवने इच्छारा नियुक्तिकार गाया कहे आयारे अंगमि य पुदिट्टो चउक्कनिक्खेवो । नवरं पुण नाणतं भावायारंमि तं वोच्छं ॥ ५ ॥ दशकालिक बोजा अध्ययननी धुलिक आचार कथामां आचारनो पूर्वे कलो निक्षेप छे, अने अंगनो चतुरंग अध्ययनमां छे. आ उत्तराध्ययननुं त्रीजुं अध्ययन छे. अहीं जे विशेष छे ते कहीए टीए, भावाचारनो अहिंविषय छे ते क्या प्रमाणे बतावे छे. तस्से गट्ट पवत्तण, पढमंग गणी तहेव परिमाणे । समोयारे सारो य, सत्तहि दारेहि नाणतं ॥ ६ ॥ भावाचारना एक अर्थवाळा शब्दो कहेवा, तथा कये प्रकारे मवृत्ति धाय, ते आचारनुं प्रवर्तन धयुं ते कहेतुं तथा पहेलुं अंग छे से बताव तथा गणी (आचार्य) तेजु केटला मकारंतु आ स्थान छे, ते कहेनुं तथा परिमाण बताब के आटलं. छेत क्यों समाये छते बताव तथा सार कहे वो आ· बारोबडे, पहेला भाव भावारथी एनो भेद जाणवो आ समुदाय अर्थ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आपा० ॥ ११ ॥ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -.. - ॥१२॥ -- 0-- ड्राइव मूत्र स्पाशक नियुकिा अनुगम कदवा माट मूलाना अवयवना आक्षपन नया वह समाधान मानु छ त अ y याय छे. ते सूत्र मूत्रना अनुगमोमा छे. ते उच्चारणरूपे तथा पदच्छेद रूपे छे, अनंत धर्मयडे अध्यासन (युक्त) बस्तु छे. त एकन धर्मवडे दोरे के एटले विभाग पाडे चे. ते ज्ञान विशेष 'नयो' छे. ते नैगम विगेरे सात छे, हवे आचारांगना उपक्रम विगेरे । अनुयोग द्वारोनुं योग्यरीते थोडूं कहेवानी इच्छावाला वां विनो शान्त करवाने तथा मंगळ माटे, तथा विद्वानोनी प्रकृति माटे, & संबन्ध, अभिधेय, प्रयोजन, चतावनार नियुक्तिनी गाथाने नियुक्तिकार कहे . वंदित्त सबसिके जिणे अ अणुओगयाए सव्वे । आयारस्स भगवओ निज्जुर्ति कित्त इस्सामि ॥१॥ तेमा · सर्य सिद्धोने तथा जिनेश्वरोने चांदीने ' आ बोलबाथी मंगळ वचन छे. 'अनुयोग' दायकोने कहेवा वडे संवन्ध वचन । य' आचारांगमूत्रनुं ' ते अभिषेय पचन छे. 'नियुक्ति करीश.' ते पयोजन वताब्यु. आ ढुंकामा अर्थ छे. पण अवयवनो [४ को पद 'धातु नमस्कार अने स्तुति अर्थमा हे. तेमा नमस्कार फाया बढे थाय. अने स्तुति वाणी पडे थाय; आ सानो भाव मन वडे थाय, तेथी मन, वचन भने काया एत्रण बडे पण नमस्कार को जाणवो. हवे सिद्ध शब्दनो अर्थ कडे छे। जेने कर्मों वाली नाख्यां ते सिद्ध, एटले सर्वथा कर्मथी रहित जीव ते सिद्ध जाणवो, अने वधा शब्द साथे लेतां वधा सिद्ध जाणमा पटले पंदरभेदे सिद्ध थाय छे ते तीर्थ अतीर्थ, अनंतर, परंपर, विगेरे पण सिद्धोना भेद जाणवा ते पपा सिद्धोने म करीने ' आ संवन्ध छे. ते बधे जोडबो, राग द्वेपने जे जीते ते जीन जाणका तेज तीर्थकर छे, ते अतीत, अनागत, अने 4- * -SAष्ट्र 4 AR वार For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie सूत्रम् निस्संकियनिकंखिय निवितिगिच्छा अमुढदिहि य । उववूहथिरीकरणे वच्छल्लपभावणे अट्ट ॥२॥ आचा० शंका रहित, अन्यमतनी बांछा रहित, संदेह राख्या विना, अमृढ दृष्टिपणे, भाव चढावी, पडताने स्थिर करीने, वन्धुभाव रा15खी, तन, मन, धननो, सदुपयोग करी, जैनधर्मनो मभाव वधारवो ते ते दर्शनाचार आठ प्रकारको छे हवे चारिवाचार आठ प्र-18 कारनो छे ते बतावे छे. | तिन्नेव य गुत्तीओ पंच समिइओ अट्ट मिलियाओ ।पयवणमाईउ इमा तसु ठिओ चरण संपन्नो ॥३॥ P ण गुमि ते मन, वचन, कायाने, पाप ब्यापारमा के धर्मना सराग विषयमा न रोक ते गुप्ति छ. अने संभाळीने चालवू बो5 लवू, खावू वस्तु लेवी, मूकी, अने शरीर विगेरेनो मेल अयोग्य स्थाने न नाखवो ते पांच समिति छे. ते आठ प्रवचन माता कहेवाय छे. तेमा रहेलो चरणयुक्त रहेलो साधु कडेवाय छे. तप आचार चार पकारनो छे ते नीचे प्रमाणेअणसणमुणोयरिया वित्तोसंखेवणं रसच्चाओ। कायकिलेसो संलिणया य बज्झो तबो होई ॥४॥ पायच्छितं विणओ वेयावच्चं तहेच सज्झाओ । झागं उस्सग्गो विय अभितरओ सवो होई ॥५॥ . आहारत्याग, ओछुः भोजन, खावानी चीजोर्नु प्रमाण, स्वादिष्ट वस्तुनो त्याग, कायाने कष्ट, तथा अंगने संकोची राख, ए 08 प्रकारे बाप तप छे. For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ १४ ॥ www.kobatirth.org भने पापनुं प्रायश्रित लेवु ं गुणी ओनो विनय करवो, नेमने योग्य वस्तु पूरी पाडवी, धर्मज्ञान भणवु अशुभ ध्यान छोडीने निर्मळ ध्यान करवु तथा काउसरण करतो, ए छ प्रकारे अभ्यंतर तप के वीर्याचार अनेक प्रकारे है, अणिमूहियबल बिरिओ परक्कमइ जो जहूत्तमाउणे । जुंजइय जहाथामं नायब्वो वीरियायारो ॥ ६ ॥ धर्मना काममां परमार्थना काममां, पोतानुं बळ अने उत्साह यथायोग्यपणे उपयोगमां बापरे ए वीर्याचार जाणो. जेमा धर्मक्रियामां बेस उठवु नमस्कार करवो, जत्रु आवत्रु ए बधाय विधिपूर्वक उल्लासयी चित्त स्थिर राखीने निभलपणे करे, आ पांच प्रकारनो आधार बतावनार आ सूत्र भाव आचार के एम वधी जग्योर जाणवु हवे आचारनी पछी आचालनी व्याख्या करे छे. अतिगाढ (चीकणां) कर्म जेनावडे सर्वथा चलायमान थइ जाय ते आचाल छे तेनो निक्षेपो चार प्रकारे छे, नाम स्थापना छोडीने द्रव्यनिक्षेपामां शशरीर, भव्य शरीर छोडीने तेनाथी जुदो द्रव्य आचाल ते वायु छे, ( के ते वायु वधाने कंपावे छे) अने भाव आलम आ पांच प्रकारनो ज्ञानादि आचारज जाणवो, हवे आगल शब्दनो निक्षेपो लखे छे, आगालन तेज समय| देशमां रहे छे. तेना चार निक्षेपा थाय छे, नामस्थापना सुगम छे, द्रव्यमां ज्ञ शरीर, भव्य शरीर, शिवाय व्यतिरिक्तमां पाणी | विगेरेतु नियाणमां रहेवानुं छे. अने भाव आगाल ते ज्ञानादिक पांच आचार छे, ते आवारो रागादि रहित आत्मामां रहे छे. हवे आकर लखे छे, तेनी अंदर आवीने करे ते आकर, तेना चार मकारे निक्षेपा छे. द्रव्य व्यतिरिक्त निक्षेपामां चांदी विगेरे नी खाणो छे अने भाव आकारमां ज्ञानादि आचार छे, तेनुं प्रतिपादन करनार आन ग्रन्थ के निर्जरादि रत्नो जे आत्माना गुण For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥ १४ ॥ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ १५ ॥ www.kobatirth.org छे ते तेमांधी मळे छे, हवे आवास शब्द लखे छे, जेमां आवास लेवाय ते, तेना चार निक्षेपायां द्रव्य व्यतिरिक्तमां यानपात्र द्विपादि ( वहाण अने द्वीप डूबताने आधारभूत) भावश्वास ते ज्ञानादि छे, हवे आदर्श शब्द बतावे छे. जेम देखाय ते आदर्श, तेना नामादि चार निक्षेपाम, द्रव्यभ्यतिरिक्तमां, दर्पण, अने भावादर्शज्ञानादि पूर्वे फहेल ते छे, कारण तेनी अंदर कर्तव्यता दे खाय छे. हवे अंग बतावे छे. जेनामां प्रगट कराय ते अंग, तेमां द्रव्य निक्षेपायां व्यतिरिक्त शरीरमा अंग, माथु, भुजा, विगेरे लेवो. भाव अंग ते आ, आचारसूत्र छे. हवे आचीर्ग लखे छे. ते उपयोगमां लेवाना अर्थमा छे. ते आचीर्ण नामादि छपप्रकारे छे. द्रव्याचीर्ण व्यतिरिक्तमां, सिंहादिनु' पास खानानुं छोडीने मांस भक्षण छे, क्षेत्राचीर्णमां वाल्दिक देशमां सकतु (साधवो) खाय छे, अने कोकणमां पेक्षा खाय छे, हवे काला चीर्णमां जेमके उनायामां रसवाळो चंदननो लेप लगावे छे तथा । कापायिकी गंध रसवाळी लगावे छे तथा पाटल, सिरीश, अने मल्लिका, ए फुलो व्हालो लागे छे तेनी गाथा. सरसो चंदणपंको, अग्घइ सरसा य गन्धकासाई । पाइलिसिरीसमल्लिय पियाइँ काले निदाहमि ||१|| भावाचीर्णमां ज्ञानादि पंचक छे, तेनो प्रतिपादक आचार ग्रन्थ छे, हवे आ जाति लखे छे जेनामांधी संपूर्ण जन्म पामे, ते चार प्रकारे छे, द्रव्यनिक्षेपशमां व्यतिरिक्तमां मनुष्य विगेरे जाति लेवी अने भाव आ जातिमां ज्ञानादि आचारने जन्म आपनार आज ग्रन्थ छे. हवे आ मोक्ष शब्द कहे छे. जेमां सर्वथा मूकाय ते आमोक्षण छे, ते आमोक्षना चार निक्षेपा छे. तेमां द्रव्यव्यतिरिक्तमा, हेडमाथी पग छुटो करवानु ते, अने भात्र आमोक्षमां, आठ कर्मने जडमूळधी काढनार आ आचार प्रन्थ छे उपर ब For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥ १५ ॥ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तावेला आचार, आचाल, अगाल, आकर, आवास, आमर्श अंग, आचीर्ण, आ जाति, अने आ मोक्ष, ए दश शब्दो किंचित || आचा०विशेष बतावनारा अने घणे भागे मळता एक अर्थमा छे, जेमके इन्द्रना पर्यायवाचीशब्दो शक, पुरंदर विगेरे छे, अने एक अर्थ सूत्रम् कहेनारा, छन्द, चिति, बन्ध, अनुलोमी, विगेरे प्रतिपत्तिना अर्थ माटे बताया छे. कयुछे केबंधाणुलोमया खल्ल सत्थंमि य लाघवं असंमोहो । संतगुणदीवणाविय एगगुणा हवंतेए ॥२॥ ॥१६॥ बंध, अनुलोमता, लाघव, असंमोह, सदगुण दीपन ए शास्त्रमा निश्चय करीने एकार्थना गुणो छ [जुदा जुदा देशना रहेवासी | शिष्योने समजवामां आ पर्यायाथी अर्थनी दृढता सारी थाय छे अने बरोबर समजवाथी तेमा प्रवृत्ति होसथी धाय ॥ ७॥ वे प्रवर्तना द्वार कहे छे, भगवाने क्यारे आचार प्रथ कह्यो ते बतावे छे. सम्वेसि आयारो तित्थस्स पवत्तणे पढमयाए । सेसाई अंगाई एकारस आणुपुबीए ॥८॥ बधा तीर्थकरो तीर्थ स्थापे ते वखते प्रथम आचारनो अर्थ कहे तेम पूर्वमा अने वर्तमान अने भविष्यमा पण जाणवू त्यारपछी बीजां अग्यार अंगनो विषय कहे छे अर्थने सांभळीने शिष्योने हितार्थे गणधर भगवंतो एज अनुपूर्वीवढे सूत्रोनी रचना करे २. ॥ ८॥ आ पहेलो शा माटे कह्यो ते बतावे छे. आयारो अंगाणं पढम अंग दुवालसण्हपि । इत्थ य मोक्खोवाओ एस य सारो पवयणस्स ॥ ९॥ 4 % % For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ १७ ॥ * भा आचार ग्रन्थ बार अंगोमा पहेलु कहीने तेनुं कारण बतावे छे. अहीं मोक्षनो उपाय जे चरण करण छे ते वतावे हे. आ आचा०प्रवचननो सार छे कारण के ते मुरूप मोक्षनो हेतु छे; एम स्वीकार्यु छे. अने ए आचारमा रहेलो, बीजां अंगोनु अध्ययन क रवाने योग्य छे. तेथी तेने पहेलं बतायुं छे. ॥९॥ ॥१७॥ हचे गणिद्वार कहे छे. साधुवर्ग अथवा गुणोनो गण जेने होय ते गणी भने आचारने आधीन गणिपणुं छे ते बतावे छे.. आयारम्मि अहीए जं नाओ होइ समणधम्मो उ । तम्हा आयारधरो भण्णइ पढमं गणिहाणं ॥१०॥ जे आचार, अध्ययनथी दश भकारनो क्षान्त्यादि भयवा चरण करण आत्मा श्रमण धर्म नाणीतो थाय छे, तेथी बधा गणिपगाना कारणमा आचार घरपणु पहेलं अथवा मुख्य गणिस्थान छे ।। १०॥ (गणिपणुं कोण धरावे तेनो उत्तर ए मूवव्यो के बधा गुणोमा मुख्य गुण आचार छे माटे तेनो आचार सारो होवो जोइए ) इवे परिमाण बतावे छे. आ अध्ययनथी, पदथी, वे 8 प्रकारे बतावे छे. णवबंभचेरमइओ, अट्टारसपयसहस्सिओ वेओ। हवइ य संपचचूलो बहुबहुतरओ पयग्गेणं ॥ ११ ॥ H मा अध्ययनयी नन ब्रह्मचर्य नामथी अध्ययनरुप आ ग्रन्थ छे. अने पदथी अद्वार हजार पदरुप छे, वेद शब्दथी एम बतावेछे, के जेना वडे, होय, अने उपादेय, पदार्थोन स्वरूप जाणे ते वेद, आ क्षायोपशमिक भावमा वर्तनारो आ आचार ग्रन्थ के (आचारिने बदले मूळमां वेद शन चापों छे) तेनी साथे पांच चढामो छे. तेथी पांच चुडावाळी थाय छे कहेवामा जे बाकी खुलासो For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् SARKA4-0645 ASSE करवानो होय ते बतानार चुडा कडेवाय छे. तेमा पहेली सात अध्ययनबाली छे. ते आ प्रमाणेआचा० पिंडेसणसेजिरिया भासजाया य । पत्थयाएसा उग्गहपडिमत्ति ॥ 18 पिंडेषणा, शय्या, इर्या बिगेरे सात अध्ययनवाली छे, बीजी सत्त सत्तिकया, श्रीनी भावना, चोथी मुक्ति, अने पांचमी ते 8 निशोथाध्ययन 'बहुबहुरओ पदग्गेणं ति तेमां चार चुलिकारूप बीजो श्रुतस्कंध, उमेरवाथी बहु अने निशीथ नामनी पांचमी चु. लिका उमेरवाथी बहुतर, अने अनंत, गम, पर्यायरूपे बहुतम छे ते पद परिमाणवडे थाय छे [आन विवरण आगळ करशे ] ॥ ११ ॥ हवे उपक्रमनी अंदर समवतारनु द्वार छे, तेमां, आ चुडाओ नव ब्रह्मचर्य अध्ययनमा समाय छे ते बतावे छे. आयारम्गाणत्यो बम्भचेरेसुसो समोयरइ । सोऽवि य सत्थ परिपणा ऍ पिंडअत्थो समोयरह ॥ १२ ॥ सत्थपरिपणाअत्थो छस्सुवि कायेसु सो समोयरइ । छज्जीवणियाअत्थो पंचसुवि वएसु ओयरइ ॥१३॥ पंच य महावयाई समोयरन्ते य सबदव्वेसु । सवेसिं पजवाणं अणन्तभागम्मि ओयरइ ॥ १४ ॥ आचार अननो, अर्थ ब्रह्मचर्यमा अवतरे छे, अने ते पण शस्त्रपरिज्ञामां समुदाय अर्थ समाय छे ॥ १२ ॥ अने शत्रपरिज्ञानो अर्थ छे ते छ कायमा समाय छे, अने छ जीवणिआनो अर्थ पंच महावतमा समाय छे, ॥ १३ ॥ अने पांच महावत छे ते सर्व ६) द्रव्योमा समाय छे, अने सर्व पर्यायोना अनंत भागमा ए द्रव्य समाय छे. ॥ १४ ॥ NGERS. For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् १२। KA [टीकाकारे गाथाओ सहेली समजीने टीका करी नथी, माटे सादो अर्थ उपर लख्यो छे. पण आचार अन ते चुलिकाभो जाआचाणवी, एटले एम भूचव्यु के, चुलिकाओ ब्रह्मचर्यमा समाय छे, बाकी उपर जब छे, तेमां द्रन्यो ते धर्मास्तिकाय विगेरे छ लेवा [ | अने पर्यायमा अगुरु लघु विगेरे छ, तेभना अनंतमे भागे व्रतोनो अवतार थाय. ॥१२-१३-१४ ॥ शिष्योनो प्रश्न, महावतोनो वधा द्रव्यमां अवतार केवीरीते पाय अने सर्व पर्यायोमा केम न थाय ? तेनु समाधान करे छे. छज्जोवणिया पढमे बीए चरिमे य सव्वदव्वाई। सेसा महत्वया खलु तदेकदेसेण दवाणं ॥ १५ ॥ छ जीवणिकाय पहेला अने बीजामा छे, अने छेल्लामा सर्व द्रव्यो छे, अने वाकीना महाव्रतो द्रव्यना एक देशमा छे. हवे महा5 वतनो उपर पूछेलो प्रश्न समजावे छे. जे अभिप्रायवडे प्रेरणा करी ते बताये छे. णणु सब णभपएसाणंतगुणं पढमसंजमठाणं । छबिहपरिवुड्ढीए छठाणासंखया सेढी॥१॥ अन्ने के पज्जाया? जेणुवउत्ता चरित्तविसयम्मि । जे तत्तोऽणतगुणा जेसि तमणंतभागम्मि ॥२॥ अन्ने केवलगम्मति ते मई ते य के सदब्भहिया? । एवंपि होज तुल्ला णाणंतगुणत्तण जुत्तं ॥३॥ ॥चो०॥ सेढीसु णाणदंसणपज्जाया तेण तप्पमाणेसा। इहपुण चरित्त मेतोवओगिणो तेण ते थोवा ॥४॥ आ गाथाभोनो दुकामा अर्थ बतावे छे. ( ननुने असूयाना अर्थमा छे ) संगम स्थान असंख्यात छे. तेओमा जे जघन्य छे, ते For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ २० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जेओनो विभाग न थाय एवं नानुं आपणे कल्पिए ते पर्यायोवडे खंडिये तो, अनन्त, अविभाग, परिच्छेदरूप छे अने ते पर्याय संख्यावडे निर्दिष्ट करीए तो वधा आकाश प्रदेशनी संख्याथी अनन्त गणु छे, एटले आकाशना जेवला मदेशो छे तेनो वर्ग | करीए तेटल छे. तेथी बीजं विगेरे स्थानोवडे असंख्यात गच्छेम जवावडे अनन्त भाग आदिबुद्धिवडे छ स्थानमा रहेनारी असंरूयेय स्थान गत श्रेणी थाय छे. आ प्रमाणे एकवण स्थान सर्व पर्यायो युक्त होय ते गणतरीमां गंगी शकाय नहि त्यारे केवीरीते बधा गणी शकाय ? एटला माटे, हवे कथा बोजा पर्यायो ? छे जेओना अनन्त भागे बतो रहे छे. जे पर्यायो बुद्धिमां पहोंचे ते लेवा बाकीना केवळी गम्य छे तेनो भावार्थ आ छे के केवळी जाणे पण न कहेवाय तेवा पर्यायाने पण तेमां उमेरवाथी बहुप धाय एज प्रमाणे ज्ञान अने ज्ञेष ए बन्नेना तुल्यपणाथी बन्ने बरोबरज छे. तेथी अनन्त गुणा न पाप माटे शिष्यनी आशंकाने दूर करवा आचार्य कहे छे जे आ संयम स्थान श्रेणी कही ते वधा चारित्र पर्यायो तथा ज्ञानदर्शन पर्याय सहित लइए तो परिपूर्ण थाय, सर्व आकाश प्रदेशथी ते पर्यायो अनंत गुणा थाय. अहिंआ फक्त चारित्र मात्र उपयोगीपणाथी पर्यायोनो अनन्त भाग वृत्तिपशुं सूचव्यु तेथी तमारो बतावेलो दोष लागू पडतो नयी. हवे सारद्वार कहे छे. कोनो कयो सार ते बतावे छे. अंगाणं किं सारो ? आयारो तस्स हवइ किं सारो ? । अणुओगत्थो सारो तस्सवि य परूवणा सारो ॥ १६ ॥ अंगोनो शुं सार छे ? उ. आचार तेनो भुं सार? उ. अनुयोग अर्थ, अने तेनो सार प्ररूपणा छे. गाथानो अर्थ सरल होवाथी टीका नथी फक्त अनुयोग अर्थ एटले कवानो विषय अने तेनी मरुपणा पटले पोतानी पासे छें ते बीजाने समजाव वळी For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥ २० ॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie आँचा सूत्रम् ॥ २१ ॥ ॥२१ ॥ सारो परूवणाए चरणं तस्सविय होइ निवाणं । निवाणस्स उसारो अवाबाहं जिणा बिति ॥ १७ ॥ प्ररुपणानो सार चारित्र (सद्वर्तन) छे. अने तेना बडे मोक्ष छे. अने मोक्षनो सार अभ्याबाध मुख छे एवं जीनेश्वर देव कई छे. | हवे श्रुतस्कंध अने पदना नामादि निक्षेपा विगेरे पूर्व माफक कहेवा, अहिआ भाव निक्षेपार्नु काम ले. ते भाव श्रुतस्कंध ब्रह्मचर्य रूप छे. पथी ब्रह्मचरण ए वे शब्दोना निक्षेपा करवा ते करे छे. बंभम्मी य चउकं ठवणाए होइ बंभणुप्पत्ती । सत्तण्हं वपणाणं नवण्ह वण्णंतराणं च ॥१८॥ तेमां ब्रह्म तेना पार निक्षेपा छे. नाम ब्रह्म, ते कोइन नाम होय, असदभाष स्थापनामां अक्ष विगेरेमा कल्पना करवी, अने | सद्भावना स्थापनामां ब्राह्मणे जनोइ पहेरी होय तेची आकृति वाळी माटी विगेरे द्रव्य नी मूर्ति होय अथवा स्थापनामां कहेवाता सम्बधमां ब्राह्मणनी उत्पत्ति केवी थह ते बतावची से प्रसंगने लइने सात वर्ण अने नव वर्णान्तर उत्पत्ति बताधवी जोइए ते वतावेछे एका मणुस्सजाई रज्जुप्पत्तीइ दो कया उसमे । तिण्णेव सिप्पणिए सावग धम्मम्मि चत्तारि ॥१९॥ ज्यां मुधी ऋषभदेव भगवान् गादीए बेठा नहोता त्या मुधी मनुष्य जाती एकन हती. अने राज गाहीए वेठा पछी भगवंतने आश्रयीने जे रह्या ते क्षत्रियो कहेवाया भने बाकीना शोच करवाची अने रुदन करवाथी शूद्र कईचाया अने अग्निनी उत्पत्ति यता तेमाथी लोहार विगेरेना शिल्प तथा बेपारनी वृत्तिए गुजरान करवाथी वैश्यों कहेवाया अने भगवानने केवळहान थया पछी For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेमना पुत्र भरत महाराजाए काकणी रत्न वडे लांछन करवाथी ते श्रावको अने तेज ब्राह्मणो कदवाया ते संबंधां चुणिकारी आचा०13 नीचे मुजब कहे छे. जे राजाने आश्रयी रया ते क्षत्रिय कहेवाया अने बीमा गृहपति कहेवाया. ज्यारे अग्नि उत्पन्न थयो त्यारे सूत्रम् पाक (रांधयु) ने आश्रयी शिल्पीओ अने वेपारी थया, तेमनां शिल्प अने वेपार बढे वैश्यो उत्पन्न थया अने जिनेश्वरे दीक्षा लीधी, ॥ २२॥ अने राजगादी भरतने मळी. त्यारे जेओए श्रावकोनो धर्म स्वीकार्यो ते ओ ब्राह्मण कहेवाया. तेओर्नु कर्तव्य ए हां के लोकोने ॥२२॥ कहेता 'माहण, माहण,' अर्थात् कोइ अज्ञान दशाथी जीवोनु दुःख विसारीने तेने मारे तो तेओ धर्म मिय थइने रहेता के जीवने 31 |न मारो, दुःख न दो, आवी माणसोमां धर्म वृत्ति कराववाथी ते ओ माहणा, ब्राह्मणो, कहेवाया. अने जेओ शिल्प विनाना तथा| धर्म रहित हता ते अमे खल छीए एमानीने काम पडतां हिंसा, चोरी विगेरे करता दुःख आवतां शाचे रुए तेथी शुद्र कहेवाया. ए प्रमाणे त्रण जे शुद्ध जाविओ कही, ते अने बीजी जातिओ एकनोशमी गाथा बडे वतावशे. इवे वर्ण अने वर्णान्तरथी थयेल संख्या बतावे छे. | संजोगे सोलसगं सत्त य वण्णा उ नव य अंतरिणो । ए ए दोवि विगप्पा ठवणा बंभस्स णायवा ॥२०॥ संयोग बडे सोळ वर्ण थइ, तेमा सात वर्ण अने नव वर्णांतर जाणवी. आ वर्ग अने वर्णान्तर एवा बे भेद स्थापना ब्रह्म जाणवा. हवे पूर्व कहेली त्रण वर्णने अथवा पूर्वे कहेली सात वर्णने बतावे छे. 1४ पगई चउक्कगाणं तरे य ते टुति सत्त वण्णाउ । आणंतरेसु चरमो वपणो खल होइ णायवो ॥ २१ ॥ ICC: For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥२३ पार मूळ जाति ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, अने शूद्र छे. तेमांथी एक बीजाना संयोगथी त्रण त्रण उत्पन्न थइ. जेमके ब्राह्मणथी द्र आचा० क्षत्रिय स्त्री साथे जे पुत्र थाय ते पधाम क्षत्रिय अथवा संकर कहेवाय, ए प्रमाणे क्षत्रिय पुरुषथी वैश्य स्त्री साथे जाणवु तथा वैश्य IN पुरुष अने शुद्र स्त्री होय तो ते प्रमाणे दरेकमा प्रधान अने संकर कहेवा ए ममाणे सात वर्णी थाय छे. अनंतरे यया ते आनन्तरा 18 ते योगोमां चरम वर्णनो व्यपदेश थाय छे जेमके ब्राह्मण पुरुषथी क्षत्रियाणी स्त्रीथी क्षत्रिय थाय विगेरे अने ते स्वस्थानमा प्रधान दयाय छे. हवे नव वार्णान्तरनां नामो बतावे छे ॥२१ ।। अंबटुग्गनिसाया य अजोगवं मागहा य सूया य । खत्ता(य) विदेहाविय चंडाला नवमगा हुंति ॥ २२ ॥ अंबष्ट, उग्र, निशाद, अयोगव, मागध, मूत, क्षत्ता, विदेह, अने चांडाल ए केवी रीते, ते बतावे छे. ॥ २२ ॥ एगं अंतरिए इणमो अंबट्टो चेव होइ उग्गो य । बिइयंतरिअ निसाओ परासरं तंच पुण वेगे ॥ २३ ॥ पडिलोमे सुदाई अजोगवं मागहो य सूओ अ। एगंतरिए खत्ता वेदेहा चेव नायव्वा ॥ २४ ॥ बितियंतरे नियमा चंडालो सोवि होइ गायबो । अणुलोमे पडिलोमे एवं एए भवे भेया ॥ २५ ॥ आ गाथाओनो अर्थ नीचेना लखाण उपरथी जाणवो ते आ ममाणे छे For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ब्राह्मण पुरुष शु. का। वैश्य पुरुष · क्षत्रिय पुरुष । पुरुष शुद्र पुरुष श्यागीशुदा खी खी क्षत्रिया स्त्री महावीलम स्त्री ब्रह्म स्त्री अंबष्ट उ नि अ० असो व मागधा वैदेह चांडाल सूत्रम ॥२४॥ उपरना कोच्या ते ॥णे नव वर्षाचे वर्णातग्मा संयोगथी कोनी उत्पत्ति थइ ते कहे छे. उग्गेणं रोबागो विदेहे सुदी य बुक्कसो जो निसाएणं ॥ २६ ॥ सुरण कुक्करओशीवि होइ तो बीओ भेओ चउविहो होइ णायवो ॥ २७ ॥ पनो अर्थ ना कोष्टायी जाणवो ते ३. . क्षनासी भगा निषाद पुरुष शूद्र पुरुष अंगणीअथवा निषाद खी शुद्री स्त्री कुनकुरक For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ २५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्थापना ब्रह्मपुरी पो. वे द्रव्य ब्रह्म बतावे छे. दव्वं सरीरभविओ अन्नाणी वस्थिसंजमो चेव । भावे उ वत्थिसंजम णायवो संजमो चेव ॥ २८ ॥ ज्ञ शरीर, भव्यशरीर, शिवाय शाक्य, परिव्राजक विगेरे अन्य दर्शनीय साधुओना शरीर मात्र एटले स्त्री संग त्याग पण तत्व | बोध विनानुं ब्रह्मचर्य व्रत तथा विधवा अथवा परदेश गयेला पतित्राळी, अथवा पतिए दूर करेली जे स्त्री इच्छा बिना पण कूळनी मर्यादा ब्रह्मचर्य पाळे छतां कुशल सेवनारने सहायता करे तथा कुशील बीजा पांसे करावे ते द्रव्य ब्रह्म जाणवुं भाव ब्रह्म ते साधुओ सर्वथा अदार भेदे जे संयम पाळे अने इन्द्रिय निरोध करे ते. आ सत्तर भेदे जे संगम छे तेनाथी घणे अंशे मळतुं छे. उपर जे अढार भेद कला ते आ ममाणे. मन, वचन, कायावडे कर अने करावयुं अने अनुमोदनुं ए देवता संबंधी वैक्रिय शरीरथी अने मनुष्य तिर्थचीनुं औदारिक शरीर से संबंधी एटले श्रण करण त्रण योग अने बे शरीर ए त्रणेनो गुणाकार करतां अहार भेद | थाय ते देवीनी साथै काम रति सुख न भोगवे तेम मनुष्य तथा तीर्थच स्त्री साथै पण न भोंगवे ते त्रण करण सहित पाळे ते | ब्रह्मचर्य अढार भेदे भाव ब्रह्म जाण हवे चरणना निक्षेपा कहे छे. चरणंमि होइ छक्कं गइमाहारो गुणो व चरणं च । खित्तंमि जंमि खित्ते काले कालो जहिं जाओ (जो उ ॥२९॥ ते चरणना नाम विगेरे छ निक्षेपा छे. ते सुगम नाम स्थापना छोडीने ज्ञ शरीर, भव्य शरीर विना द्रव्य निक्षेपे चरण त्रण प्रकारे छे, गति, भक्षण अने गुण, तेमां गति चरण ते गमन जाणवु आहार घरण के लाइ विगेरे खावानु छे. For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥ २५ ॥ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasagarsuri Gyanmandir आवा गुण चरण के प्रकारे सेमा लोकिक ते द्र। माहाची गोडा विगेरेनी शिक्षा के अपना वैयकी विगेरे शीखववी अने लोको-12 साधुश्री उपयोग विना चाशिव पाले अथ' 'उगवा माटे उपरथी चारित्र पाले. जेम उदायी नृपने मारवा माटे विनय 8 सूत्रम् रल साधुए चार वर्ष चारित्र पाए. क्षेत्र न १ ति आहार बिगो भराग ( उपयोगमा छेवाय ) ते. अथवा जे क्षेत्रमा व्याख्यान कराण अने शब्दला सामान्य रीने वाली क्षेत्र विगेरेगां जाते क्षेत्र चरण छे. अने काल चरण - पण ते ॥२६॥ गाणे नाण. एट ले जे काळे व्या ध्यान नाले ते काळनरण जागा. हवे भाव चरण कई छे. भावे गइमाहारो गुणो गुणवओ पसरथमपसरथा । गुचिरणे पसत्येण बंभचेरा नव हवंति ॥ ३०॥ मात्र चरण पण गति लाहार अने गुण भेदे त्रण पकारनुछे. गति चरणयां साधु उपयोग पणे युग मात्र ( साडा त्रण हाथ ) गायिी देखीने नाले ने, भक्षण चरण पण शुद्ध विंड (ये गाठीश दोष रहित ) आहार गोचरी विगेरेमा वापरे, गुण चरण ते । आशी अने सम्यक दृष्टिभोनो कोइपण 7 ' अभिशाप (पाणु) करीने नारित्र पाळे ते. अने प्रशस्तमां नीना मोक्षने माटेज आठ कर्म ... ने पाटे - ना समूहवाळू जे चारित्र पाळवामां आवे ते. | गरिवयीन अधिकार हो । अने उतर गुण स्थापनारा छे ते निर्जराने 'अनुरुळ अर्थ बनाम . राज३ सम्म ५नंतर महापरिणाय For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा सूत्रम् ॥२७॥ A5% अहमए य विमोख्वोट उवहाणसुयं च नवमगं भणियं । इच्चेसो आयारो आयारग्गाणि सेसाणि ॥ ३२ ॥ आ गाथानो अर्थ स्पष्ट छे पण एम समजवू के आ नव अध्ययन रुप आचार छे अने बाकी जे बीजा श्रुतस्कंधनां अध्ययन छ । ते अग्राणि एटले आचारने सहायता करनारा छे. हवे उपक्रममा रहेलो अर्थ अधिकार के प्रकारे छे (१) अध्ययननो अर्थाधिकार, तथा उद्देशाना अर्थाधिकार छे तेमा पहेलानुं वर्णन करे छे. जिअसंजमो अलोगोजह बज्झइजह यतं पजहि यव्व।सुह दुक्ख तितिक्खाविय सम्मत्तं लोगसारोग्य निस्संगया य छठे मोह समुत्था परीसहवसग्गा । निजाणं अट्ठमए नवमे य जिणेण एवंति ॥ ३४॥ ते शस्त्र परिज्ञामां आ अर्थाधिकार छे. जीव संयम एटले जीवोने दुःख न देवू तथा हिंसा न करवी. ते वात जीवोनुं अस्तित्व लसमजाये छते थाय छे. तेथी जीवोन अस्तित्व तथा पापनी विरति बतावनारा अहीं अर्थ अधिकार छे. लोक विजयमां लोक जे बंधाय छे ते त्या एटले विजित भाव लोकवडे एटले संयममा रहिने साधुए अज्ञान लोक जेम कर्मथी बंधाय तेम तेणे बंधावू ते जाणवु. ते अहिं अर्थ अधिकार छे. श्रीजामां संयममा रहेल साधुए कसाय जीतबा बढे एटले अनुकूळ अथवा प्रतिकूळ उपसर्ग आवी पडतां सुख दुःखमां मध्यस्थ भाव राखचो, चोथामां पूर्वे कहेला अध्ययनना विषयने जाणनारा साधुए तापस विगेरेना कष्ट । अने तपश्चर्याना पतापे तेने आठ गुणवाळं अश्चर्य ( अष्टसिद्धि ) माप्त थाय तेने देखीने पण पोताना निर्मळ भावमां खलना न ! % For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ २८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यामत दृढ सम्यकत्वपणे रहे. अने पांचमामां चार अध्ययन वडे स्थिरता करीने असार परित्यागवा बडे एटले संसारनी सुंदर वस्तुओनो मोह छोडीने त्रण रत्नरुप ज्ञान, दर्शन, चारित्र जे लोकसार छे तेमां उद्यमवाळा थत्रु छट्टामां पूर्वे कला गुणवाळा साधु निःस्वार्थ वनीने अप्रतिबद्ध स्वरुषे यत्रु सातमामां संयमादि गुणयुक्त साधुने पूर्वना पापना उदयथी मोह उत्पन्न करनारा परिषद अथवा उपसर्ग थाय तो सम्यक् प्रकारे सहन करवा. आठमामां निर्याण छे. ते अंतक्रिया सर्व गुणयुक्त साधुए सारी रीते करवी. नवमा पूर्वे कट्टेला आठ अध्ययनमां जे जे अर्थ छे ते शासन नायक वर्द्धमान स्वामीए बरोबर पाळ्यो छे, अने ते बीजा साधुओ बरोबर उत्साहथी पाळे तेथी बताव्यो छे. ते कछे के तित्थयरो चरणाणी सुरमहिऔं सिज्झियवधु वंमि । अणिमूहियबल विरिओ सवत्थामेसु उज्जमइ ॥ १ ॥ किं पुण अवसेसे दुःखखयकारणा सुविहिएहिं । होंति न उज्जमियठवं सपञ्चवार्यमि माणुस्से ॥ २ ॥ तीर्थकर जे चार ज्ञाननो घरनार, देवताओथी पूजित, अने निश्रय करीने मोक्षमां जनार छे छतां पण शक्ति प्रमाणे वळ अने वीर्यने उपयोगमां लड़ने बधा बळधी उद्यम करे छे तो दुःखोना क्षय करवाने बाकीना सुविहित पुरुषोए खात्रीवाळा मोक्ष मार्ग माटे विवाळा मनुष्य जन्ममां उद्यम केम न करवो; ( आ वे गाथानों परमार्थ ए छे के तीर्थंकर ज्ञानथी जाणनारा अने देवोथी पूजित छतां मोने माटे उद्यम करे तो बीजा डाला पुरुषे मनुष्य जन्ममां सुखने बदले अनेक दुःख भवनाएं जाणीने शा माटे । For Private and Personal Use Only सूत्रम ॥ २८ ॥ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् मोक्ष आफ्नारा चारित्र धर्ममा पोतानी संपूर्ण शक्तिथी उद्यम न करवो ? ) हवे उदेशानो अर्थाधिकार शस्त्र परिज्ञानो आप्रमाणे छे. आचाजीवो छकायपरुवणाय तेसिं वहे य बंधोति । विरईए अहिगारो सस्थपरिणाएँ णायवो ॥ ३५॥ 3 तेमा पहेला उद्देशामा सामान्यपणे जीवनुं अस्तित्व सिद्ध करतु. अने बाकीना उद्देशामां विशेष प्रकारे पृथिवीकाय विगेरेनु अ-18 तस्तित्व बतावq. अने बधाओने छेडे जे कर्मनु बंधन छे तेनी विरति बतायवी. आ छेडे मूकेल होवाथी मत्येक उद्देशाना विषयमा जोहवं. पहेला उद्देशामा जीवनु वर्णन, तेना वधथी बंधन, अने तेनाथी पाछा हठ ते विरति छे. अहिं शस्त्र परिक्षा ए नाममा । बे पद छे. तेमां पहेला शस्त्र पदना निक्षेपा बतावे . दव्वं सत्थग्गिविसन्नेहंबिलखारलोणमाईयं । भावो य दुप्पउत्तो वायाकाओ अविरई या ॥ ३६ ।। KI शस्त्रना निक्षेपा नाम विगेरे चार प्रकारे छे. व्यतिरिक्त द्रव्य शस्त्र ते तलवार विगेरे अग्नि, विष, स्नेह, (धी तेल विगेरे) अम्ल क्षार, लवण, ( मीठं विगेरे ) छे. भावशस्त्र ते दुष्ट ध्यान छे एटले अंतःकरण तथा वचन अने कायामां जे अविरति छे. ते जी-| वोने घात करनारी होवाथी दुष्प वृत्ति छे से भावशस्त्र जाण हवे परिज्ञाना पण चार निक्षेपा कहे छे.) ४दव्वं जाणण पच्चक्खाणे दविए सरीर उवगरणे। भावपरिपणा जाणण पञ्चक्खाणं च भावेण ॥ ३७॥ द्रव्य परिक्षा चे प्रकारे छे. तेमांश परिक्षा भने प्रत्याख्यान परिज्ञा छे. ज्ञ परिज्ञाना बे भेद छे. आगमथी अने नो आगमथी. A आगमथी ज्ञाता पण तेनो उपयोग न होय, नो आगमथी प्रण प्रकारे छे. तेमांव शरीर अने भव्य शरीर शिवाय व्यतिरिक्त द्रव्य RECE-CA For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ३० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिज्ञा जे कंद द्रव्यने जाणे तेमां सचित्त आदिनु ज्ञान थाय तेथी ते परिच्छेय द्रव्यना मधानपणाथी द्रव्य परिज्ञा छे. तेज प्रमाणे प्रत्याख्यान परिज्ञा पण जाणवी. तेमां व्यतिरिक्त द्रव्य प्रत्याख्यान परिज्ञामां देह उपकरण विगेरेनुं ज्ञान धनुं अने उपकरण ते रजोहरण विगेरे लेवां. कारण के ते साधकतम पणे छे. अने भाव परिज्ञामां पण वे प्रकार छे. इ परिक्षा अने प्रत्याख्यान परिक्षा छे. तेमां आगमधी ज्ञाता अने उपयोग राखवावाळो जाणवो अने नो आगममां आज्ञान क्रियारुप अध्ययनज छे, नो शब्दनो अर्थ क्रिया अने ज्ञान ए मिश्रपशुं बोलनार अर्थ छे. तेज प्रमाणे मत्याख्यान भाव परिज्ञाने पण जाणवी. आगमथी पूर्व प्रमाणे छे. पण नो आगमथी प्राणातिपातनी निवृतिरूप जाणवी. ते मन वचन अने कायाए त्रण योग अने कृत. कारित अने अनुमति (कर कराव, अनुमोद) एम नव प्रकारे हिंसाथी अटका रूप जाणवु नाम निष्पन्न निक्षेपो पुरो थयो हवे आचार विगेरे आपनारना अने ते सहेलथी समजाय माटे द्रष्टांत बतावी विधि कहे छे. जेम को राजाए पोतानुं नवु नगर स्थापवानी इच्छाथी जमीनना भागो करीने सरखे भागे प्रधानाने आप्या. तेज प्रमाणे कचरो दूर करवा शल्य ( फांटा विगेरे ) दूर करवा तथा जमीन सरखी करवा पाकी इंटोना चोतरावाळो महल बनाववा तथा रत्न विगेरे ग्रहण करवा उपदेश आप्यो. तेथी ते मधानोए राजाना उपदेश प्रमाणे पोतानुं कार्य करीने राजानी महेरबानीथी इच्छित भोगोने भोगव्या. आ दृष्टांत छे. तेना उपरथी एम समजत्रु के राजा समान आचार्ये प्रधान समान शिष्य गणोने भूखंडरूप संयम | तेने बरोबर समजावीने मिध्यात्वादि कचरो दूर करी सर्व उपाधिथी शुद्धने दीक्षा आरोपीने सामायिक संगममां द्रढ करीने पाकी For Private and Personal Use Only सूत्रम ॥ ३० ॥ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ३१॥ | इटोना चोतरा समान व्रतोने आपवां तेना उपर महेल समान आचारने समजाववो. तेमा रहेलो मुमुच बघां शास्वरुष रत्नोने प्राप्त आचा०करे छे अने मोक्षनुं सुख मेळवे छे. हवे सूत्र अनुगममा अस्खलितादि गुण लक्षणवाल सूत्र उच्चारतुं तेनुं लक्षण आ छे, अप्पगंथ महत्थं बत्तीसा दोस विरहियं जं च । लक्खण जुत्तं सुत्तं अढहिय गुणेहिं उववेयं ॥१॥ थोडा बोलमां महान अर्थने अने वत्रीश दोष रहित लक्षणयुक्त आठ गुणे करीने युक्त बोलचु. ते आ प्रमाणे छे. 'सुयं मे आउसं तेणं भगवया एव मक्खाय-इहमेगेसि णो सण्णा भवई' (सू०१)। | सूत्रना गुणो बताच्या पछी पहेलु मूत्र उपर बताव्यु छ ' सुर्यमे' इत्यादि आ सूत्रनी संहितादि क्रमवडे व्याख्या करे छे. तेमा (१) संहिता ते आखू शुद्ध सूत्र उच्चार जोइए ते बतायु. हवे (२) पदच्छेद करे छे. श्रुतं, मया, आयुष्मन् ! तेन भगवता, एवं आख्यातम् , इह. एकेषां, नोसंज्ञा, भवति, आमा छेक्टर्नु पद क्रियापद छे. बाकीनां नाम, सर्वनाम, विशेषण, विगेरे छे. पदच्छेद मूत्र अनुगम कथा पछी हवे सूबना पदार्थ कहे छे. एटले मूळ ग्रंधकर्ता भगवान मुधर्मस्वामी पोताना मुख्य शिष्य जंबूखामीने आ प्रमाणे कहे छे. में भगवान महावीर पासे आ प्रमाणे सांभळयु छे ( तेम कहेवाथी ग्रंथकारे पोतानी बुद्धिवढे कद्देवानो निषेध को छे. पण सर्वज्ञ महावीरे जे कामु ते पोते कहे छे.) For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥३२॥ हे आयुष्मन् ! (जाति विगेरे उत्तम गुण होय छतां पण शिष्यनु आउखु जो लांबु होय तो पोते सारी रीते भणीने वीजाने आचारभणावी शके माटे आ शिष्यने आशिर्वादनु वचन छे) में सांभळयुछे पण परंपराए नहि. सूत्रम् अहिआं आचार सूत्र कहेवानी इच्छाथी तेनो अर्थ तीर्थकरे कह्यो होवाथी 'तेन' शब्दवडे आयुष्मन् विशेषण तीर्थकरने पण लागु पडे, अथवा 'भामृशता' शब्दवढे सुधर्मासामी पोते पण समजाय, एटले भगवानना चरणने स्पर्श करता एका में सांभळयु ॥३२॥ | तेथी गुरुनो विनय बताच्यो तथा 'आवसता' शब्दवडे गुरु पासे रही में सांभळयं तेम तमारे पण गुरुकुल वास सेवबो एम सूचव्यु.स ४ (आयुष्मन् शब्दना जुदा जुदा त्रण अर्थ बताव्या. पाचला चे अर्थ 'आमुसंतेण' तथा 'आवसंतेण' ए वे पाठान्तर छे तेने आ-8 श्रयी जाणवा भगवत् शब्द ऐश्वर्य आदि छ उत्तम गुणो युक्त भगवान छे एम सचव्यु. अने का विधिए कह्यं ते 'तेन' शब्द बडे। जाणवू. आख्यात शब्द वडे कृतक्त्व (कर्ता पणुं) दुर करवा वडे आगमर्नु अर्थथी नित्यपणुं कछु'. 'इह' शब्द बडे आ क्षेत्र, ४. प्रवचन, आचारमा, अथवा शव परिज्ञामां संबंध के अथवा आ संसारमा केटला जीवो जे ज्ञान आवरणीय आदि आठ कर्म युक्त छ तेमने संज्ञा (समृति) यती नथी. आ पदार्थ बताच्यो छे हवे पदविग्रहमा समास न होवाथी बतायो नथी. हवे चालना एटले शंका थाय ते कहे हे. 18 अकार विगेरे निषेध करनारा लघु शम्दनो संभव अहिं थाय छतां शा माटे नो शब्द निषेध माटे वापर्यो ! इवे प्रति अवस्था 6(समाधान ) करे छे. तमारु कहे ठीक के. पण अहि नो शब्द वापरवामां प्रेक्षापूर्वकारिता ( विशेष हेतु ) छे ते बतावे . जो For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥३३॥ अकार विगेरे लइए तो सर्व निषेध थाय जेम घट नहि ते अघट तेथी घटनो बिलकुल निषेध थयो पण तेव। अर्थ लेवो नथी कारआचाणके प्रज्ञापना सूत्रमा दश संज्ञा सर्व माणीओने बतावी छे ते वधानो अकार शब्दथी निषेध थाय हवे दश संज्ञा बतावे छे. 18 गौतम स्वामीना प्रश्नमा महावीर भगवान उत्तर आपे छे. दश संज्ञा छे. सांभळो-(१) आहार (२) भय (३) मैथुन (४) परिग्रह ॥३३॥ (५) क्रोध (६) मान (७) माया (८) लोभ (९) ओघ (१०) लोकसंज्ञा. आ दशे संज्ञानो सर्वथा निषेध धाय छे ते न धाय माटे 'नो' शब्द वापर्यो. 'नो' शब्दनो अर्थ सर्व निषेधवाची पण छे. तेम थोडो निषेध पण बतावनार छे. जेमके 'नो' घट बोलतां घटनो अभाव समजाय तेम प्रकरणादि सकतनुं विधान पण थाय ते विधीय मान करता प्रतिषेध्य अवयत्र ग्रीवादि निषेध करवाथी । बीजो समजाय अथवा घटने बदले पट विगेरेनी पतीति वाय. प्रतिषेधयति समस्तं प्रसक्तमर्थ च जगति नोशब्दः । स पुनस्तदवयवो वा तस्मादर्थान्तरं वा स्याद् ॥१॥ आ श्लोकनो भावार्थ उपर आवी गयो छे. अहिंआं पण सर्व संज्ञाना निषेध करको नयी पण जे विशिष्ट संज्ञा एटले जेनावडे | आत्मादि पदार्थनुं स्वरुप जेमा जीवोनु एक गतिमाथी यीनी गतिमां गमन केवी रीते थाय छे तेनी संज्ञा (ज्ञान) केटलाक जीवोने नथी एम 'नो' शब्दवडे बतानबुं छे. हवे नियुक्तिकार सूत्रना अवयवोना निक्षेपानो अर्थ बतावे छे. दव्वे सञ्चित्ताई भावेऽणु भवणजाणणा सण्णा । मति होइ जाणणा पुण अणुभवणा कम्मसंजुत्ता ॥ ३८ ॥ । संज्ञा शब्द नामादि भेदथी चार मकारे छे. नामस्थापना सुगम छे अने द्रव्यमा जसरीर भव्य शरीर छोडीने व्यतिरिक्तमा सचित्त 82 % *% For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4x अचित्त अने मिश्र एम त्रण भेद छे. सचित्त ते हाथ विगेरे द्रध्यथी पान भोजन विगैरेनी संझा कराय ते, अचित्त ते ध्वजादिथी, आचा०18 अने मिश्रथी ते दीवा विमेरेथी जे संज्ञानो चोध थाय ते जाणवी. भाव संज्ञामा अनुभव भने ज्ञान संज्ञा छे. तेमां थोड़ें कहेवार्नु होवाथी ज्ञान संज्ञा बतावे छे; मनन एटले मति ते अवबोध छे. ॥३४॥ मतिज्ञान विगेरे पांच भेदे छे. एटले ज्ञानना पांच भेदमां केवलज्ञान क्षायिक भावमा छे. अने पति, श्रुत, अवधि, अने मनपर्यय ॥३४॥ ए चार ज्ञान क्षय उपशम भावमा छे. ते क्षायिकी अने क्षोयउपसमिकी संज्ञाओ जाणवी अने अनुभव संज्ञामां पोताना करेला कर्तन्योथी तेनां फळ भोगवतां जीवोने जे बोध थाय छे ते अनुभव संज्ञा जाणवी. तेना सोळ भेद छे ते बतावे छे. आहार भय परिम्गह मेहुण सुख दुकख मोह वितिगिच्छा । कोह माण माय लोहे सोगे लोगे य धम्मोहे ॥३९॥ आहारनी इच्छा ते आहार संज्ञा, आ संज्ञा तेजस शरीर नामना कर्मना उदयथी अने असाता वेदनी यतां सर्वे संसारी जीवोने है। | ओछा वधता प्रमाणमां भुख लागे छे ते जाणवी, भय संज्ञा ते त्रासरुप जाणवी. परिग्रहसंज्ञा ते मू रुष जाणवी. मैथुन संज्ञा ते ६ स्त्री पुरुषने परस्पर प्रेम थाय ते पुरुष वेद विगेरे जाणवा. आ मोहनीय कर्मना उदयथी याय छे. सुख दुःख ए थे संज्ञाओ साता | अने असावारुपे अनुभवतां वेदनीय कर्मना उदयथी छे. मोह संज्ञा ते मिथ्या दर्शनरुप मोहना उदयधी छे विचिकित्सा संज्ञा ते चित्तनी विप्लुति ( भ्रमणा )थी मोहना उदयथी तथा ज्ञानावरणीयना उदयथी छे. क्रोध संज्ञा अभीविरुप, मान संज्ञा गर्धरुप, माया । | संझा वक्रतारुप, भने लोभ संज्ञा दिप छे. शोक संज्ञा विमलाप तथा वैमनस्यरुप छे. आधी मोहना उदयथी जाणवी. लोक SACARE For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ३५ ॥ www.kobatirth.org संज्ञा पोतानी इच्छाथी गये ते विकल्प करीने लोकोमां आचरण थाय छे ते, जेमके पुत्र विनाना प्राणीने लोक (स्वर्गनी प्राप्ति ) नथी. कुतरा छे ते यक्ष छे, विम देवो छे, कागडा दादाओ छे. मोरोना पीछाना वापरबाथी गर्भ रहे इत्यादि केटलीक वातो ज्ञान | आवरणना क्षय उपशमथी तथा स्वार्थरुप मोहना उदयधी संज्ञा थाय छे. धर्म संज्ञामा राखी विगेरे उत्तम छे ते मोहनीय कर्मना क्षय उपशमधी थाय छे, ए सामान्यपणे लेवाथी पंचेन्द्रिय सम्यकदृष्टि तथा मिध्यादृष्टिओने पण होय छे. पण ओघ संज्ञा ते अव्यक्त उपयोग रूप छे. ते वेळाना समूहनुं उपर चडवापणुं विगेरे चिन्ह रुप छे, ते ज्ञानावरणीय कर्मनु थोडं क्षय उपशम यत आ संज्ञा थाय छे तेम जाणवुं पण आपणे तो पहेलां कहेली ज्ञान संज्ञानी । | जरुर होवाथी तेनो अधिकार छे अने तेनो निषेध कर्यो जाणवो के केटलाक जीवांने गति आगतिनु ज्ञान नथी. हवे निषेध संज्ञानबोध थवा माटे सूत्र कहे छे -पुरिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, दाहिणाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, पञ्चतिथ माओ वा दिसाओ आओ अहमंसि, उत्तराओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उड्ढाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अहोदिसाओ वा आगओ अहमंसि, अण्णयरीओ वा दिसाओ अणुदिसाओ वा आओ अहमंसि, एवमेगेसिं णो णायं भवति ( सू० २ ) For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ ३५ ॥ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ३६ ॥ www.kobatirth.org हाथी लड्ने भवति सुधी सूत्र छे. तेमां पोताना प्रतिज्ञाताना अर्थनुं उदाहरण छे. अने पुरथिमा विगेरे प्राकृत शैली अने मगधदेशनी भाषाना अनुसारे अहिं पूर्वदिशा जाणवी तेमां पांचमी विभक्ति लेवी अने वा शब्दथी उत्तर पक्षनी अपेक्षाने आश्रयी विकल्प अर्थ जाणवो जेमके खातुं अथवा सूनुंए ममाणे पूर्वथी के दक्षिण दिशाथी हुं आव्यो हूं. अहिं जे देखाडे ते दिशा जाणत्री ए अति सहज एटले द्रव्य अथवा द्रव्यना भागनो व्यपदेश करे छे ( टीकाकारे सूत्र सुगम होवाथी सुलझे अर्थ को नथी पण एम जाणवुं के पूर्व दक्षिण पश्चिम उत्तर उर्ध्व तथा नीची अथवा बीजी कोइ दिशा के खुणामांथी हुं आग्यो छु ते केटलाक लोकांने जाणमां नथी.) हवे दिशा शब्दना निक्षेपा नियुक्तिकार कहे छे. नामं ठवणा दविए खित्ते तावे य पण्णवग भावे । एस दिसानिक्वेवो सत्तविहो होइ णायवो ॥ ४० ॥ नाम, स्थापना द्रव्य क्षेत्र, ताप, मज्ञापक, भाव, एम सात रुपे दिशानो निक्षेपो जाणवो, सचित्त आदि कोइ वस्तुनु' दिशा एवं नाम से नाम दिशा. चित्रमां लखेल जंबूद्वीप विगेरेना नकशामां दिशाना विभाग स्थापत्रा ते स्थापना दिशा छे. हवे द्रव्य दिशानो निक्षेपो कहे छे. तेरसपएसियं खलु तावइएसुं भवे पएसेसुं । जं दव्वं ओगाढं जहण्णयं तं दसदिसागं ॥ ४१ ॥ द्रव्यदिशा आगमथी अने नो आगमथी एम वे प्रकारे छे. आगमथी दिशानो जाणनारो पण उपयोग न राखे, अने नो आगमथी शशरीर भव्य शरीर छोडीने व्यतिरिक्त तेर प्रदेश बाळं द्रव्य तेने आश्रयी निचे आ प्रवर्ते छे ते, तेर प्रदेशमा रहेलुंज. ते द्रव्य दिशा For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् | ॥३६॥ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie 4-2 छे पण दश दिशावालु केटलाके कईलुं छे ते न छेबु.. आचा. मदेश एटले परमाणुं तेमना वढे उत्पन्न थयेल कार्य द्रव्य तेटला प्रदेशो एटले क्षेत्रना तेटला प्रदेशोमां रहेलु सोधी नानु द्रव्य सूत्रम् आश्रयाने दश दिशानो विभागनी परिकल्पनाथी द्रव्य दिशा जाणवी. तेनी स्थापना आ प्रमाणे छे. श्रण बाहुकबाळा नव प्रदेश ४ ॥३७॥ चित्रीने चारे दिशामा एक एक ग्रहनी वृद्धि करवी. हवे क्षेत्र दिशा कहे छे. ॥३७॥ अट्ट पएसो रुयगो तिरिय लोयस्स मज्झयारंमि । एस पभवो दिसाणं एसेव भवे अणुदिसाणं ॥४२॥ . तिर्यक् लोकना मध्य भागमा रत्नप्रभा पृथिवीना उपर बहुमध्य देशमा मेरु पर्वतना अंतरमा चे सौथी नाना प्रतर छे. एना उपर । ६ चार प्रदेश गायना स्तनना आकारे अने निचे पण तेवीज रीते चार एम आठ प्रदेशनो चोखुगो रुचक नामनो भाग छे. त्यांची दिशा अने अनुदिशाओनी प्रवृत्ति बइ ले तेनी स्थापना आ प्रमाणे छे. ते ओनां नामो कहे हे. इंदग्गेई जम्मा य नेरुती वारुणी य वायवा । सोमा ईसाणावि य विमला य तमा य बोद्धवा ॥ १३ ॥ एमां इंद्रना विजय द्वारने अनुसरीने पूर्व दिशा जाणवी. बाकीनी प्रदक्षिणाथी सात आणवी, उंची ते विपला अने नीची ते तमा ! ४ जाणवी. एमनुं स्वरूप बतावे छे.. दुपएसाइ दुरुत्तर एगपएसा अणुत्तरा चेव । चउरो चउरोय दिसा चउराइ अणुत्तरा दुण्णि ॥१४॥ चार यहा दिशा ते पचे प्रदेश भावि पचे प्रदेश उतरे बवेली अने चार विदिशा को एक प्रदेश रचनारुप एमां उत्तर वृद्धि नथी. For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा सूत्रम् अने उंची नीची दिशा जोडकुते अनुत्तर छे ते चार प्रदेश विगेरे रचनावाल्लं माणबुं वक्रीअंसो साईआओ बाहिरपासे अपजवसिआओ। सवाणंतपएसा सवा य भवंति कडजुम्मा ॥१५॥ एपी ए मध्यमां सादिक छे, कारण के रुचकने लीधे छे. अने बहारथी अलोकने आश्रयी रहेबाथी अपर्य बसित (अनन्त) छे, दशे पण दिशाओ अनन्त प्रदेशारिमका याय छे. अने बधी दिशाओमां जे प्रदेशो छे. ते चारे भागे भागतां चार चार शेरवाना वाय छे ते वषा प्रदेशरुप दिशाओ आगमनी संत्राए कड जुम्मा शब्दवडे बोलाय छे आगममां आ प्रमाणे छे. "कडणं भंते! जुम्मा पण्णत्ता? गोयमा! चत्तारि जुम्मा पपणत्ता तंजहा-कडजुम्मे तेउए दावरजुम्मे कलिओए से केणटेणं भंते! एवं उच्चइ? गोयमा! जे णं रासी चउक्कगावहारेणं अबहीरमाणे अवहीरमाणे चउपज्जवसिए सिया से गं कडजुम्मे एवं तिपज्जवसिए तेउए दुपजवसिए दावरजुम्मे एगपजवसिए कलिओए" ति. | गौतमस्वामी पूछे छे हे भगवन् ! केटला युग्म कह्या छ ? उत्तर-हे गौतम चार युग्म कह्या छे (१) कृत युग्म (२) व्योज (३) द्वापर युग्म (४) कल्योन युग्म. प्रश्न.शा माटे एम कहो छो ? उत्तर. हे गौतम-जे राशीमांथी चार चार लइए मां जेटला चार वापार शेष रहे ते कृत युग्म जाणवो, पण प्रदेश बधे तो योन, ये वधे दो द्वापर, अने एक वधे तो कल्योन, युग्म एम जाणवू. हवे | RSS SCUSSIES For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा तेओन संस्थान कहे , सगडुद्धीसंठिआओ महादिसाओ हवंति चत्तारि । मुत्तावली य चउरो दो चेव हवंति रुयगनिभा ॥४६॥ सूत्रम पूर्व विगेरे चार मोटी दिशाभो शकट उर्दी (गाडाना उंटडाना आकार) संस्थान वाळी छे. अने विदिशाओ मुक्तावळीना आ- ... कारे छे. अने उंची नीची बन्ने दिशाओ रुचक आकारे छे. हवे ताप दिशाओ बतावे छे. जस्स जओ आइच्चो उदेइ सा तस्स होइ पूवदिसा । जत्तो अ अस्थमेइ उ अवरदिसा सा उ णायवा ॥४७॥ दाहिणपासंमिय दाहिणा दिसा उत्तरा उ वामेणं । एया चत्तारि दिसा तावखिले उ अक्खाया ॥४८॥ इवे जे दिशामा सूर्य उदय थइने साप आपे तेने पूर्व दिशा अथवा ताप दिशा कहेवी. अने ज्या सूर्य आयमे ते पश्चिम दिशा. पूर्व तरफ मों फरीने उभा रहीए तो जमणी बाजुनी दक्षिण अने डाबी बाजुनी उत्तर दिशा जाणवी, आ वधा व्यपदेशो छे, कारण के एक पीजाने आश्रयी आपूर्व विगेरे दिशाओ छे. तेवा बीजा पण व्यपदेशो हे. ते प्रसंगने लीधे बतावे छे. जे मंदरस्स पुन्वेण मणुस्सा दाहिणेण अवरेण । जे आवि उत्तरेण सव्वेसिं उत्तरो मेरू ॥ १९ ॥ सव्वेसिं उत्तरेणं मेरू लवणो य होइ दाहिणी । पुवेणं उ?ई अवरेणं अत्थमइ सूरो ॥५०॥ मेरुपर्वसना पूर्वथी जे मनुष्यो क्षेत्र दिखाने भंगीकार करे छे. ते रुचकनी अपेक्षाए जाणधी. तेभोना उत्तरमा मेरु भने दक्षिणमा || For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० 1180 11 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लवण समुद्र जाणत्रो, आ प्रमाणे ताप दिशा स्वीकारी छे ( अहिं समजवानुं छे के आपणे जंबूद्वीपना दक्षिणयां भरतक्षेत्रम छइए एटले आपणी अपेक्षाए ऐस्तृत क्षेत्र उत्तरमा छे. पण एज मेरुनी अपेक्षा आपणे तेनी उत्तरमां छीए कारण के सूर्य गोळाकारे फरतां आपणी जे पश्चिम तेज तेमनी पूर्व दिशा थाय छे विगेरे गुरु गमथी जाणवुं ) हवे मज्ञापक दिशा कहे छे. जरथ य जो पण्णवओ कस्सवि साहइ दिसासु य णिमित्तं । जत्तोमुहो य ठाई सा पुवा पच्छओ अवरा ॥ ५१ ॥ प्रज्ञापक ( बोलनारी) कोइपण जगाए उभेलो होय ते दिशाओना बळधी कंपण निमित्त कहे ते जे दिशामां सम्मुख बेसे ते पूर्व अने पाछळती अपर (पश्चिम) जाणत्री निमित्तनो कहेनारो आ उपलक्षणथी अन्य पण कोइ बीजो व्याख्यान करे ते पण तेमां गणवो. इवे बीजी दिशाओ साधवाने कहे छे. 1 दाहिणपासंमि उ दाहिणा दिसा उत्तरा उ वामेणं । एयासिमन्तरेणं अण्णा चत्तारि विदिसाओ ॥ ५२॥ या चेव अट्टहमंतरा अट्ट हुंति अण्णाओ । सोलस सरीरउस्सय बाहल्ला सव्वतिरियदिसा ॥ ५३ ॥ हा पायताणं अहोदिसा सीसउवरिमा उड्ढा । एया अहारसवी पण्णवगदिसा मुणेयव्वा ॥५४॥ एवं कपिआणं दसह अट्ठारह चेव य दिसाणं । नामाई वुच्छामि जहक्कमं आणुपुवीए ॥५५॥ पूवाय पुग्वदक्खिणदक्खिण तह दक्खिणावरा चैत्र । अवराय अवरउत्तर उत्तर पुत्रवुत्तरा चैव ॥५६॥ For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥ ४० ॥ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie सामुत्थाणी कविला खेलिजा खलु तहेव आहिधम्मा। परियाधम्मा य तहासावित्ती पपणवित्ती य ॥५७॥ आचा० हेहा नेरइयाणं अहोदिसा उवरिमा उ देवाणं। एयाई नामाइं पण्णवगस्सा दिसाणं तु ॥ ५८ ॥ ६ सूत्रम् ॥४१॥ ए सात गाथाभो सरल छे छतां अर्थ बतावीए छीए (पण टीका करी नथी) पूर्व दिशा तरफ मोडुं करीने उभा रहीए तो जमणे । H॥४१॥ हाथे दक्षिण दिशा अने डावे हाथे उत्तर दिशा जाणवी. दरेक वे दिशानी वचमां चार विदिशा (खुणाओ) जाणवा ।। ५२ ।। ए आउनी वचमा बीजी आठ दिशाओ छे. ते मळीने सोळ जाणवी. शरीरनी उंचाइना प्रमाणमा सर्वे तिर्यक दिशाओ जाणवी. ५३. । लोक स्वरुप मनुष्याकारे छे. पग पहोळा करीने उभा रहेता बे पगनी वच्चेनो भाग ते अधों (नीची) दिशा जाणवी. अने माथाना 1 उपरनी उर्ध्व (उची) दिशा जाणवी तेनु बीजु नाम विमा छे. आ अढार दिशाओ प्रज्ञापना दिशाओ जाणवी. ५४. आमाणे कल्पित दश अने आठ मळी अढार दिशाओ छे. तेना नाम अनुक्रमे कहुं छ. ५५. पूर्व, पूर्व दक्षिण, दक्षिण पश्चिम, पश्चिम पश्चिमोKaर, उत्तर, उत्तरपूर्व, समुत्थाणी, कपिला, खेलिजा, अहिधर्मा, पर्याधर्मा, सावित्री, प्रज्ञावित्री, नरकनी हेठे अधोदिशा छे अने [. H देवलोकनी उपर उर्ध्व दिशा छेआ नाम प्रज्ञापना दिशानां छे ५६. ५७. ५८. हवे एमनां संस्थान (आकार बतावे छे) सोलस तिरियदिसाओ सगडुद्धीसंठिआ मुणेयवा । दो मल्लगमूलाओ उड्ढे अ अहेवि य दिसाओ॥५९॥ सोळे तिर्यक् दिशाभो शकट उदि (गाडाना उंटडा) ना आकारे जाणवी. एटले प्रज्ञापकना मदेशमा सांकडी अने बहार पहोळी छे, नारकी अने देवलोकनी नीचली अने उपली दिशाओ भारावला (चपणी भा)ना आकारे जाणवी. कारण के माधाना मूळमां अने. For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie SIR पगना मूळमां नानी होचाथी मलक अने युध्न, (तळीआ) ना आकारे जती विशाळ थाय . आ बधार्नु तात्पर्य यंत्रथी माण, IP आचा०18 (यंत्र मळ्यु नधी) हवे भाव दिशा बतावे छे. मणुया तिरिया काया तहऽग्गत्रीया चउकगा चउरो। देवा नेरइया वा अट्टरस होति भावदिसा ॥६॥ ॥४२॥ ॥४२॥ मनुष्पना चार भेद थाय छे (१) संमूळनन (पुरुषादिकना मळ मूत्रथी जन्मेला) (२) कर्म भूमिना गर्भन (३) अकर्मभूमिना पनी (४) अंतीपना गर्भज, ते प्रमाणे तिर्य चोमां चे इंद्रियवाळा, त्रण इ दिगवाळा, चार इद्रियबाळा भने पांच इंद्रिश्वाळा ए चार भेदे ४ छे. अने पृथिवी, पाणी, अग्नि, वायु, ए चार काया छे. तथा वनस्पतिकायमां, अग्र, मूल, कंध अने पर्व, ए चारमा ज्यां बीन 18 हाय ते गीज प्रमाणे चार भेद था. तेमां नारकीय अने देव ने उमेरता अहार भेदे जीवन। व्यपदेश कराय छे ( आ अद्वार भेदे || IPजीव बतायो) भाव दिशा ते प्रकारे अढार जाणवी अहिं सामान्य दिशानुं ग्रहण छता जे दिशामा जोबोने अचिगान (न अटक-| वा) पणे गति आगति स्पष्ट करी ते सर्वत्र संभव छे. ते दिशाबडे आपणे अधिकार छे तेथी तेनेज नियुक्तिकार साक्षात् बता के. कारण के भावदिशाथी अविनाभावी ( सायेज रहेनारी) प्रसंगना सामथ्र्ययी अधिकृतज छे तेथी तेने माटेज बीजी दिशाओ चितवीए छोए. पण्णवगदिसहारस भाव दिसाओऽवि तत्तिया चेव । इकिक विधेजा हवन्ति अहारसऽद्वारा ॥ ६१ ॥ पण्णवगदिसाए पुण अहिगारो एत्थ होइ णायवो। जीवाण पुग्गलाण य एयासु गया गई अस्थिा६२। For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ४३ ॥ www.kobatirth.org मापकी अपेक्षा अढार मेदे दिशा छे। अने अहिं भावदिशा पण तेज प्रमाणे प्रत्येक संभवे छे. एधी एकेक मज्ञापक दिशाने भावदिशाना अढार अंक बडे गुणवा. तेनी संख्या १८x१८-३२४ एम उपलक्षणथी तापदिशा विगेरेमां पण यथा संभव योजना करवी. क्षेत्र दिशामां पण चार महादिशाओनो संभव छे पण विदिशा विगेरेना संभव नथी कारणके तेओम फक्त एक म देशपणुं होवाथी तथा चार प्रदेशपशुं होवाथी संभव नथी. ॥ ६१-६२ ।। आदिशा संयोगनां समूह ते पूर्वे 'अण्ण यरिओ दिसाओ आगओ अहमंसि, ' कहेल वचनथी लीधो छे. सूत्रो अवयवार्थ आ प्रमाणे छे, अहिं दिशा शब्दथी प्रज्ञापकदिशा पूर्वादि चार अने उर्ध्व अधो मळीने छ ग्रहण करी छे अने भाव दिशा तो अहारे पण ले, अनुदिक ग्रहण करवायी मज्ञापकनी बार विदिशा जाणवी. ( उपरना चार खुणा तथा नीचली पूर्वे कहेली चार दिशा तथा खुगा मळीने वार जाणवा) तेमां असंज्ञीओने आवो बोध नथी तथा संज्ञीओने पण केटलाकने होय अने केटलाकने न होय, के, हुं अमुक दिशामांथी आव्यो छु (जन्म लीधो छे.) एव मेगेसि गोणायं भवइत्ति ' ए प्रमाणे प्रतिविशिष्ठ दिशा अने विदिशामांथी मारु आव थयुं एवं केटलाक जीवो नथी जाणता. आ कहेवानुं तात्पर्य वाक्य छे, ( उबवाइसूत्रनी दीकाने आधारे आ भीजा सूत्रनो अवतरण भाग छे. अने चुर्णिकाना अभिप्राय प्रमाणे ' भविस्सामि' शब्द वडे पर्यंत उपसंहार वाक्य छे, भवति साथे जहा एटलुं अधिक वाक्य छे. हवे निर्मुक्तिकार तेज कहे छे केसिंचि नाणसण्णा अस्थि केसिंचि नत्थि जीवाणं । कोऽहं परंमि लोए आसी कयरा दिसाओ वा ॥ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥ ४३ ॥ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ४४ ॥ www.kobatirth.org केटलाक जीवो जेमने ज्ञानावरणीय कर्मनो ( वधारे) क्षय उपशम होय तेपने ज्ञानसंज्ञा छे, केटलाकने ते आवरण वधारे होवाथी ज्ञान संज्ञा नथी जेवी संज्ञा नथी ते बतावे छे के हु परणोकमां एटले पूर्व जन्ममां मनुष्यादि कइ गतियां हतो ? एनावडे मादिशालीची, ''अथवा कइ दिशाथी हु' आव्यो ? एनावडे तो मज्ञापक दिशा लोधी, जेमके कोइ दारुना निसामां लोचन वेरायलो जेनुं मन अव्यक्त विज्ञानवालुं छे. ते भूलीने शेरीमां पडी गयेलो तेनी वासने लीधे आवेला कुतराधी ते मोदु चटाय ते समये तेने घेर कोई लावे तोपण नसामा शुं बन्यु ते नसो उत्तर्या पछी जाणतो नथी के दु' क्यांथी आग्यो छु तेत्रीरीते बीजी गतिमांथी आवेलो विशिष्ट ज्ञानरहित मनुष्य विगेरे पण जाणतो नथी हवे उपलीज संज्ञा नथी पण तेने बीजी संज्ञाओ पण नथी ते सूत्रकार बतावे छे. अस्थि मे आया उनवाइए, नत्थि मे आया उनवाइए, केहं आसी ? के वा इओ चुए इह पेच्चा भविस्सामि ? (सू० ३ ) अस्ति ' ते मारो आत्मा विद्यमान छे छठ्ठी विभक्ति मंते होवाथी 'मम' साथै शरीरनो सस्त्र बताव्यों के शरीरनो मालीक अंदर रहेलो आत्मा ते निरन्तर गतिमां प्रवृत थयेलो ते पोते जीत्र छे. दवे ते केत्रो छे? औपपातिक छे. फरी फरीने एक जन्म मांथी बोजा जन्ममां जनुं ते उपपति छे तेमां धनुं ते औपपातिक छे, आ मूलवडे संसारीनु स्वरूप बतावे छे. ते मारोआत्मा आ प्रकारे छे के नहि ते ज्ञान केटलाक अज्ञानी जीवोने नयी होतु अने हुं कोण छु पूर्व जन्ममां नारकीय, पशु, मनुष्यादि के देव For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् 1: 22 1 Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हितो, अने त्यांथी आ मनुष्य जन्मा आलो हु'. अने परण पछी फरी घखत हुंक्यां पेदा थइश ए प्रमाणे कोइ जातनु शान 5 आचा० नथी होतुं. जो के अहिं वधी जगोपर भाव दिशावडे अधिकार अने प्रज्ञापक दिशाबडे छे. तोपण पूर्व मुबमा साक्षात् भन्मापक दिशा । सूत्रम् सीधी छे भने अहि तो भाव दिशा के एम जाणवं. वादीनी शंका, अहि संसारीओने दिशा विदिशामांधी आवचा विगेरेनी ॥४५॥ 18 विशिष्ट संज्ञा निषेध याय पण सामान्य संज्ञानो नहिं. आ पात संज्ञी, जे धर्मी आत्मा छे तेने सिद्ध कर्या पछी थाय छे. कछे के धर्मी सिद्ध थाय तो धर्मनु चितवन थाय छे. हवे तमारो मानेलो आत्मा प्रत्यक्ष आदि प्रमाण गोचरथी, दर होवाथी तेनी सिद्धि | HIनहि थाप भने ते प्रमाणे विचारीए तो आत्मा प्रत्यक्षयी अर्थ (आत्मा) साक्षात्कारीथी विषयी थतो नथी (नजरो नजर देखातो| नथी) कारण के ते इंद्रियोना ज्ञानथी दूर छे. अने अतीन्द्रियपणुं स्वभावथी भकृष्ट पणे 2. अने अतीन्द्रियपणाथीन तेनु अव्यः | भिचारी कार्य विगेरेनु चिन्ह तेनो संवैध ग्रहण करवानो असंभव छे. (अतीन्द्रिय ते सर्वक्ष हे. अने ते जाणे, पण बीजां सामान्य माणस न जाणे तो केवी रीते पाने) जेवी रीते प्रत्यक्ष सिद्ध धतो नथी, तेवी रीते अनुमान पणे पण सिद्ध धतो नथी, कारण के आत्माना अमत्यक्षपणाथी सेनी सामान्य ग्रहण शक्तिनी उत्पत्ति न थाय तथा त्या बुद्धि पूर्वक अनुमान पण केवी रीते थाय, जेम आ वे प्रमाण लागु न पढे तेम आगम प्रमाणनी विविक्षाना प्रतिपाद्यमानमा अनुमानना अंतनो भाव के अने बीजी जगोए बाह्य ट्र अर्थमां संबंधनो अभाव होवाथी अप्रमाण छे. अथवा प्रमाण पण मानीए. तो परस्पर विरोधी होवाथी आगम प्रमाण नकामु छ H(जुदा जुदा भागमो एटछे जैन अने जैनेतरमा एकज आगम नथी तेथी बधा पमाण भूत जैनागमने न माने) अने तेना विना For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ४६ ॥ www.kobatirth.org सकल अर्थनी उत्पत्ति पण अर्धा पतिर्थी सिद्ध यती नयी. तेथी जे प्रत्यक्ष अनुमान, आगम, उपमान, अर्थापत्तिथी, दूर छे. अने आ संबंधी छट्टा ममाणना विषयनो अभाव छे. तो आत्मा सिद्ध भइ शकतोज नथी ते प्रयोगथी बतावे छे (१) प्रतिज्ञा--आत्मा नधीज हेतु-कारण ते प्रमाण पंचकना विषथी दूर के टांत-गधेडाना सोंगडा माफक तेना अभावमा विशिष्ट संज्ञाना प्रतिषेधन अभावना संभव वडे सूत्रनी उत्पत्तिन नथी ( बादी कहे छे के. प्रमाण पंचकथी आत्मा सिद्ध यतो नथी तो पछी सूनी रचना करवानुं कारण शुं) जैनाचार्यनुं समाधान, जे कां ते सघद्धं गुरुनी सेवा कर्या विना स्वच्छंदाचातु वचन छे सांभलो. प्रतिज्ञा---(१) आत्मा प्रत्यक्षण छे, तेनो गुण ज्ञान छे हेतु - तेनुं पोताना ज्ञानधीन सिद्धपणुं छे. अने स्वसंवित् निष्टाओ द्रष्टति विषयनी व्यवस्थितिओ छे. घट पट विगेरेने पण रूपादि गुण प्रत्यक्षपणे आंखनी सामेज छे तेथी, मरणना अभावना प्रसंगथी भूतोनो गुण चैतन्य छे एवी शंका न करवी. कारण के तेओनो तेनी साथे हमेशां सन्निधाननो संभव छे. त्यागवा योग्य, | ग्रहण करवा योग्य त्यागनुं लेवं, ए बधानी प्रवृतिना अनुमान वढे आपणी माफक पारका आत्मानी पण सिद्धि थाय छे. आ प्रमाणे एज दिशाए उपमान आदि प्रमाणने पण पोतानी बुद्धि वडे पोताना विषयमा डाह्या माणसे यथा संभव योजवां केवळ मौनीन्द्र ( जिनेश्वर ) ना आ आगम वडेज विशिष्ट संज्ञा निषेधना द्वार वडे हुं हुं एम आत्माना उल्लेख बडे आत्मानो सद्भाव सिद्ध कर्यो छे अने जैनागम शिवायना बीजा आगमो अनाप्त पुरुषना बनावेलां होवाथी अ प्रमाणज छे, For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥ ४६ ॥ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ४७ ॥ www.kobatirth.org अहिं आत्मा छे. एनाज घडे क्रियावादिओना बधा भेदो समाया अने आत्मा नथी, ए वचनवडे अ क्रियावादीओना मतोनो आनी अंदर समावेश करेलो छे. अने अज्ञानी तथा वैनयिकना बधा भेो तेमां समाता होवाथी समान्या छे. जैनेतरना भेदो भा प्रमाणे छे. असिय सयं किरियाणं अकिरियवाईण होइ चुलसीई । अन्नाणिय सत्तट्टी वेणइआणं च बत्तीसा ॥ १ ॥ (१८०) भेद क्रियावादी भना छे अने अ क्रियावादीना ८४) भेद छे अने अज्ञानीना ६७) भेद छे. तथा विनयवादीओना १२, भेद छे. जीव, अजीव, आश्रव, बन्ध, पुन्य, पाप, संवर, निर्जरा, अने मोक्ष ए नव पदार्थ छे ते स्व, पर, ए वे भेदधी तथा नित्य अने अनित्य ए वे विकल्प बढे तथा काळ नियति स्वभाव, इश्वर, अने आत्मा, ए पांच वधा साधे गुणतां ९४२२४५ = १८० भेद क्रियावादीना थवा आनु अस्तित्व माननारा आ प्रमाणे कहे छे. (१) जीव स्वथी भने काळथी नित्य डे, (२) जीव स्वथी अने काळवी अनित्य छे (३) जीव परधी अने काळथी नित्य छे (४) जीवपरथी अने काळथी अनित्य छे. ए प्रमाणे काळना चार भेद थया, ए प्रमाणे नियति, स्वभाव, इश्वर, आत्मा विगेरेना चार चार विकल्प थाय, ते पांच चोकडां गणतां २०) थाय. आ जीव साये थया. आ प्रमाणे अजीवादी आठना भेदो लेवा एटले १८०) भेद पया. तेमां स्वयं एटले पोतानाज रुपवढे जीत्र के पण परनी उपाधिवडे हस्वपणा के दीर्घपणानी माफक नथी ते नित्य अने For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ ४७ ॥ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥४८॥ शालत छे. पण पणिक नथी कारण के से वर्तमाननी माफक भूत अते भविष्यमा पण छे. कानयी पटले कान मा दुनियानी | आचा018 स्थिति अने उत्पत्ति तथा प्रलयन कारण हे. कझुं छे के: कालः पचति भूतानि कालः संहरते प्रजाः । कालः सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः ॥१॥ ॥४८॥ काळज़ भूतोने परिपक्व करे छे, अने तेज सर्व प्रजानो नाश करे छे. बघा सुतेला होय तोपण काळ तो जागेज छे. माटे काळ दुःखेथी पण उलंघन थइ शकातो नथी. अने ते अतिन्द्रिय छे. तया थोडा काळे तथा पणा काळे यती क्रियाथी जणाय छे. हीम, गरमी, वर्षा, विगेरेनी व्यवस्थानो हेतु छे. तथा क्षण, लव, मुहुर्त, प्रहर, अहोरात्र, मास, रुतु, अयन, संवत्सर, युग, कल्प, पल्यो-15 पम, सागरोपम, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी, पुदगल परावर्त, अतीत, अनागत, वर्तमान, सर्व, अद्धा विगेरेनो व्यवहाररुप छे. तथा बीना विकल्पमां काळीज आत्मानुं अस्तित्व स्वीकार्य छे. पण पहेला अने वीजा विकल्पमा भेद एटलो छे के आ अनित्य छ । अने पूर्वनो नित्य इतो. त्रिजा विकल्पमा पर आत्माथीन स्व आत्मानी सिद्धि स्त्रीकारी छे. पण केवी रीते परथी आत्मानु अस्तित्व स्वीकारी शकाय ? उत्तर आतो प्रसिद्धन छे के सर्वे पदार्थ पर पदार्थना स्वरुपनी अपेक्षा ४ | ए, पोताना रुपनो परिच्छेदक छे. जेमके दीर्घनी अपेक्षाए इस्वपणानु ज्ञान छे अने हस्सनी अपेक्षाए दीर्घपणानुज्ञान छे. एमज । आत्मा शिवायना स्तंभ, कुंभ, विगेरे देखीने तेनायी जुदो जे पदार्थ तेमा आत्मपणानी बुद्धि प्रवर्ते छे. तेथी आत्मानु स्वरुप ते 2 परथीज निश्चय पाय छे. पण पोतानी मेळे नहि. एम बीजो विकल्प सिद्ध थयो, चोथा विकल्पमा पहेलानी माफकज छे ए चार 8 For Private and Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥४९॥ विकल्प छे. ते प्रमाणे वीजा नियतिथीन आत्मानु स्वरुप निश्चय करे छे. आचा आ नियति | छे ? उत्तर पदार्थोनु जेवीरीते अवश्यपणे वापणुं होय तेने योजनारी नियति छे.॥१९॥ प्राप्तव्यो नियतिबलाश्रयेण योऽर्थः सोऽवश्यं भवति नृणां शुभोऽशुभो वा। भूतानां महति कृतेऽपि हि प्रयत्ने नाभाव्यं भवति न भाविनोऽस्ति नाशः ॥ १ ॥ नियति बळना आश्रपथी जे पदार्थ मेळवबानो होय छे ते हाय शुभ होय के अशुभ पण ते माणसोने अवश्य प . हवे ते 15 / भटकाचवा के फेरफार करवा माणसो प्रयत्न करे तोपण भावीनो नाश न थाय अने अभाव्य नी पाप्ति न थाय. आ मस्करी नामना परिवाट्ना मतने प्रायः अनुसरनारी छे. बीजा केटलाक स्वभावनेज संसारनी व्यवस्थामा जोडे के. प्रश्न-- Pए स्वभाव छ ? उत्तर-वस्तुने पोतानोज तेवो परिणति भाव ते स्वभाव छे. काछे के कः कंटकानां प्रकरोति तेक्ष्ण्यं विचित्रभावं मृगपक्षिणां च ।। स्वभावतः सर्वमिदं प्रवृत्तं न कामचारोऽस्ति कुतः प्रयत्नः ॥१॥ कांटाभोनी तीक्ष्ण अणीने कोण बनावे छे ? अने मृग तथा पक्षी ओमां विचित्र भाव कोण उत्पन्न करे छे ? खरीरीते ते वधु स्वभावधीन थाय छे. तेमां कोई खास महेनत लेतुं नथी. त्यारे पयत्न शामाटे मुख्य गणवो ? SROSSESEGEETA For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम स्वभावतः प्रवृत्तानां निवृत्तानां स्वभावतः । न हि कत्तेति भूतानां यः पश्यति स पश्यति ॥ आचा० स्वभावधी प्रवर्तेला छे. अने स्वभावधी निवृत थयेला छे तेवा पाणीओनुहुं कइपण करनारो नथी एम जे माने छे तेज देखे | . ( देखतो छे) केनांजितानि नयनानि मृगाइनानाम् । कोऽलङ्करोति रुचिराङ्गारुहान मयूरान् । कश्चोत्पलेषु दलसंनिचर्य करोति । को वा दधाति विनयं कुलजेषु पुस्सु ॥ ३ ॥ | मृगलीओनी आंखो कोण आंजना गयुं छे, तेमज मयुर वगेरेना पीछामां शोभा कोण करवा गयु छे. अने कमळनी पांखडीओने सारी सुंदर रीते कोण गोठववा जाय छे तथा कुळवान पुरुषना हृदयमां विनय कोण मुकवा जाय छे ? ( कोइ नहि, ते वधुं स्त्र-14 भावधीज याय छे एवं स्वभाववादी माने छे.) । | हवे बीजा कहे छे के आ बधुं जीव विगेरे जे कंइ छे ते इश्वरधीज उत्पन्न थयुं छे. अने तेथीज स्वरुपमा रहे छे. प्रश्न आ KI इश्वर कोण छे ? उत्तर-अणिमादि ऐश्वर्य योगथी से इश्वर के. का छे के:-- अज्ञो जन्तुरनीशः स्यादास्मनः सुखदुःखयोः । ईश्वरप्रेरितो गच्छेत् श्वभ्रं वा स्वर्गमेव वा ॥१॥ अझजन्तु आत्माना सुख दुःखना कारणमा असमर्थ छे पण इश्वरनो मेरायलो स्वर्ग अगर नर्कमा जाय छे. तथा बीजाओ कहे छे। के जीवादि पदार्थ कालादिथी स्वरुपने पामता नथी त्यारे केवी रीते छे ? उत्तर आत्माथीन छे. प्रश्न ए आत्मा कोण छ ? उत्तर । For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ५१ ॥ www.kobatirth.org आत्माथी बीजुं नहि एवं अद्वैत माननारा विश्वनी परिणति रूप आत्माज माने छे कल छे के एक एव भृतात्मा भूते भृते व्यवस्थितः । एकधा बहुधा चैव द्रश्यते जलचन्द्रवत् ॥ ५ ॥ निश्वये एक भूतात्मा सर्व भूतोमा रहेलो छे अने ते एकलो छतां जेम चन्द्र पागीमा जुदो जुदो देखाय छे, तेम ते आत्मा भूत भूतमां देखाय छे. वंळी कडेलले के पुरुष एवेदं सर्वे यद्भुतं यच्च भाव्यम्' इति आगम बघु अने थवानुं छे ते सगळं एक पुरुषज छे विगेरे ए प्रमाणे अजीव पण पोताथी भने काळी नित्य छे इत्यादि उपर प्रमाणे वधु योजवृं. तेवीजरीते अक्रियावादीओना पण भेद छे. ते नास्तित्ववादी छे. ओम पण जीव, अजीव, आव, बन्ध, संवर, निर्जरा, तथा मोक्ष ए सात पदार्थ छे. ते स्व अने पर ए बे भेदवडे तथा काळ, यहच्छा, नियति, स्वभाव, इश्वर, अने आत्मा ए छोडे fanत्रता- ८४) विकल्प थाय छे ते आ प्रमाणे छे. जीव स्वतः एटले पोतानाथी अने काळथी नथी तेमज जीव, परथी अने काळथी (सिद्ध यतो ) नथी. आ प्रमाणे काळ साथै लेतां वे भेद थया, तेज प्रमाणे यदृच्छा तथा नियति विगेरेमां पण सर्वे जीव पदार्थमां बार धाप ए प्रमाणे अजीवमां पण चार लेवा. ते बार सप्तक पटले ८४) थयां तेनो अर्थ आ छे. जीव पोताना काळथी नथी. अहि पदार्थोंना लक्षणवडे सत्ता | निश्चय कराय छे. अथवा कार्यथी निश्रय कराय छे। अने आत्मानु ते कंइ पण लक्षण नथी के जेना बडे अमे वेनी ससा For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ ५१ ॥ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ५२ ॥ www.kobatirth.org स्वीकारीए ? तेम अणुभथी पर्वत विगेरेनो संभव थाय तेम पण नथी. बळी लक्षण अने कार्यवडे वस्तु न मेळवीए तो ते विद्य मान नथी जेम आकाशनुं कमळ विद्यमान नथी तेम, तेटला माटे आत्मा नथी. बीजो विकल्प पण जे आत्माने पोताथी नथी स्वीकारतो ते आकाशना कमळनी माफक परथी पण नथी. अथवा सर्व पदार्थोनाज पर भागमांना अदर्शनथज सर्व अर्वाक (?) भाग सूक्ष्मपणाथी अने उभय (ते बन्ने) ना अन उपलब्धिथी, सर्व अनुपलब्धिथी, नास्तित्वने स्वीकारीए छीए कहेल छे केयावद् दृश्यं परतस्तावद् भागः स च न दृश्यते इत्यादि जेटलु देखाय छे तेटलोज भाग पछवाडे छे। अने ते देखातो नथी विगेरे तथा यदृच्छाथी आत्मानुं अस्तित्व नयी [नास्तित्व छे). मश्न, आ यच्छा ते भुं छे ? उत्तर--अनभिसधी (अनायासे ) अर्थनी माशिवाय ते यच्छा छे. अतर्कितोपस्थितमेव सर्वं चित्रं जनानां सुखदुःख जातम् । काकस्य तालेन यथाभिघातो न बुद्धिपूर्वोऽत्र वृथाभिमानः ॥ १ ॥ सत्यं पिशाचास्म वने वसामो भेरिं करायैरपि न स्पृशामः । यदृच्छया सिध्यति लोकयात्रा भेरीं पिशाचाः परिताडयन्ति ॥२॥ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥ ५२ ॥ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ५३ ॥ www.kobatirth.org विचार माणस आथर्यकारक सुख दुःखनुं धनुं ते उपस्थित थयेलुंज छे. जेभ कागडाना बेसनाथ area' पड थाय ते जेम कागडाए पाडयु नथी तेम जगत्मां जे कांइ थाय छे, ते बुद्धिपूर्वक नथी. पण तेमां लोकोनु खोड अभिमान छे (के मे आ कयूँ) १ असे वनना पिशाचो छीए ते खरु छे. अमे हाथथी भेरीने अडकता पण नथी तो पण यदृच्छाए लोको एकटा थाय छे अने कहे छेके पिशाचो भेरीने बगाडे छे. १ (पंच वन्त्रमां आने मळतं एक दृष्टांत छे. फोड़ लश्करमांथी छुटो पडेलो भेरीबाको सिंहना मारथी मरी गयो अने तेनी भेरी वांदराना हाथमां आधी ते कोइवखत बगाडे अने ते पहाडमां जाय ते लोकोने संभळाय तेथी आजुबाजुना लोको गमराया के पहाडनी अंदर पिशाचो भेरी बगाडी डरावे छे. तेथी लोको डरीने नासवा लाग्या. |तेमां को हिंमतवाने फल लइ बांदराभोने एकठां करी तेमनी पासेथी भेरी लह लीधी अने लोकोनो बहेम मदाडयो ? जैम कागहाना बेसवाथी ताडनुं झाड पडे तो पण तेया कागडानी बुद्धि नथी के मारा उपर ताड पडशे, तेम साइनो अभिप्राय नथी के कागडा उपर पहुं. छत ते बेउ थाय छे. ए प्रमाणे, बाकी पण विना विचारतु, अजा कृपाणी, आतुर भेषज, अंध कंटक विगेरे द्रष्टांतो पण जाणी छेवां ए प्रमाणे बधा माणीओनां, जन्म, जरा, मरण विगेरे लोकमां जे कांइ थाय ते बधुं काकतालीय न्याय माफक जाणवु, एवीजरीते, नियति स्वभाव, इश्वर, आत्मा विगेरेधी पण आ आत्माने, असिद्ध करतो, ( एटले आत्मानी | दरेक रीते असिद्धि बतावत्री) क्रियावादीना ८४ भेद थया, हवे अज्ञानीभोना ६७ भेद बतावे छे, ते आ प्रमाणे पूर्वे जीवादि नव पदार्थ कही गया, तेनी साये उत्पत्ति दशमी लेवी ते दशेने सत् असत् सदसत्, अव्यक्तव्य, सद् वक्तव्य For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ ५३ ॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥५४॥ असद्वक्तव्य, अने सदसद्वक्तव्य, आ सात भेदवडे जाणवाने शक्तिमान नथी तेमज जाणवाथी सुप्रयोजन के ? तेनी भावना निआचा०चे मुजब, जीव विद्यमान छ एम कोण जाछे? अथवा जाणवाथी झुं लाभ ? अथवा जीव अविद्यमान छे अथवा जाणवाथी | त लाभ? ए प्रमाणे अनीवादिकमां पण सात विकल्प, ते प्रमाणे सात सात गणसां ६३ भाग थया तेमां चार बीना उमेरवा ते आम ॥५४॥ छे. विद्यमान (छती) भावनी उत्पत्ति कोण जाणे छे? अथवा जाणवाथी प्रयोजन ? बाकीना प्रण विकल्प उत्पसिना, उत्तरकाल पदार्थना अवयवनी अपेक्षाए छे. तेनो संभव थतो नथी तेथी ते पण नथी कया एटले चार भांगा संभवे. ते उमेस्ता कूल ६७) थया. आमा जीच सत् छे ते कोण जाणे छे. तेनो अर्थ आहे के कोइने विशिष्ट ज्ञान नथी के जे इन्द्रिोथी अतीत जीवादि पदार्थोने जाणी श के अने तेमना जाणवाथी कंइ पण फळ नयी | जेमके जीव नित्य, सर्वगत मूर्त ज्ञानादिगुण उपेत अथवा उपरना गुणोथो व्यतिरिक्त छे. अने तेथी कया पुरुषार्थनी सिद्धि थाय? तेथी अज्ञानन श्रेय छे. वळी तुल्य अपराधमां, अज्ञानताथी करवामां लोकोमा स्वल्प दोष छे. अने, तेज पमाणे लोकोत्तरमा पण आकुट्टिक (मनथी पाप करनार) अनाभोग (अजाण्यु) सहशाकार (जलदी) विगेरे कार्य थाय तेमां शुलक (नानो) भिक्षु तथा स्थविर, उपाध्याय, आचार्य ने अनुक्रमे वधारे वधारे पायश्चित्त छे, तेवू वीना विकल्पमा पण योजवू. विनयवादीना १२ भेद आ प्रमाणे छे-देवता, राजा, पति, जाति, स्थविर, अधम, माता पिता, ए आठमां मन, बचन, काया, अने पदान, ए चार प्रकारे विनय करवो ते आ प्रमाणे, आ देवताओनो मन, वचन, काया, अने देशकाळनी उत्पत्ति 1 प्रमाणे दान देवा पढे विनय करवो. आ विनयधीज स्वर्ग, अपवगेना मार्गने तेओ स्वीकारे छे. अने नीति (नीचे नमव ने 154: For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandie , शानथी दर्शन, दशा आत्याने नित्य ने औपपातिक नम्रता बताववी ते विनय छे.बधी जगोए आ प्रमाणे विनयवडे देव विमेरेमा लीन थपेलो. स्वर्ग मोक्षनो मेजवनारो थाय छे. आचार्छ के के सूत्रम् IPविणया णाणं णाणाओ देसणं दसणाहि चरणं च । चरणाहिं तो मोक्खो मोक्वे सोक्खं अणाबाहं ॥१॥131 ॥५५॥ ४ विनयथी ज्ञान, ज्ञानथी दर्शन, दर्शनयी चारित्र, चारित्रयी मोझ अने मोक्षथी अव्याचा सुख छे. अहिं कियावादीओमा अ स्तित्व छे. छतां तेमां पण केटलाकमा आत्माने नित्य, अनित्य, कर्ता, अकर्ता, मृत, अमृत, श्यामाक तंदुल मात्र, अंगुठाना पर्व | M जेटलो दीवानी शीखा समान, हृदयमा रहेलो, विगेरे पण ते औषपातिक छे. तथा अक्रियागदीओमा आत्मान नयी तो क्याथी | भोपपातिक (उत्पन्न यनार) पणुं सिद्ध थाय ? अने अज्ञानीओ आत्माने विषे अपतिपति नथी करता पण ते भो शानने नका, माने छे. विनयवादीभोने पण आत्माना अस्तित्वमा अस्वीकार नथी पण विनय विना बीजु मोक्ष साधना नथी एवू पाने के. तेमा सामान्य आत्माना अस्तित्व स्वीकारथी अक्रियावादीओने दुर कर्या ( तेमना मानवाने खोटु कर्यु ) अने आत्मानुन मान | तेमां आ पण तेमणे विचार जोइए. शास्ता शास्त्रं शिष्यप्रयोजनं वचनहेतुदृष्टान्तः । सन्ति न शून्यं अवतः तदभावाचाप्रमाणं स्यात् ॥१॥ प्रतिषद्ध प्रतिषेधो स्तश्चेच्छन्यं कथं भवेत्सर्वम् । तदभावेनतु सिद्धा अप्रतिसिद्धा जगत्यर्थाः ॥२॥ उपदेश, शास्त्र, शिष्य, प्रयोजन, वचन, हेतु अने द्रष्टांत छे ते वधां बोलनारथी शून्य नथी. तेना अभाववी ते अममाण हे. For Private and Personal use only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ५६ ॥ www.kobatirth.org ( आत्मानु अस्तित्व स्वीकारे तोज बधां कामनां छे. नहि तो ते ओतु बोलवुन आत्माना अभावे अप्रमाण छे ) ॥ १ ॥ प्रतिषेध करनार अने प्रतिषेध जो शून्य होय तो व केवी रीते वाय अने प्रतिषेध करनारना अभावमा प्रतिषिद्ध एवा जगतना पदार्थों सिद्ध थाय ए प्रमाणे जैनाचार्य कहे छे. के आ दरेकोनु अहिंज यथायोग्य रीते निराकरण समज वनमां समजवा माटे | वादीए शंका करेली के आत्मा नथी तो सूत्र शामाटे करबु तेनुं समाधान करें. हवे चालु बात कहे छे. hi अकेला ने तेनी खबर नथी के हुं क्यांथी आव्यो छु एनावडे केटलाकनेज संज्ञानो निषेध करवाथी केटलाकने छे तेषण कहे समजवुतेमां सामान्य संज्ञानुं दरेक प्राणीमां सिद्धपणाची अने तेनु' कारण जाणनाथी अहिआ अकिंचित् पणे छे | ( सामान्य संज्ञानुं विशेष प्रयोजन नथी) पण अहिं विशिष्ट संज्ञानी जरुर छे अने ते केटलाकनेज होवाथी तथा ते संज्ञानु बीजा भवां जनार आत्माने स्पष्ट स्वीकार. ते संज्ञा उपयोगी पणाथी सामान्य संज्ञाना कारणना प्रतिपादनने छोडीने फक्त त्रिशिष्ट संज्ञाना कारणाने सूत्रकार बतावे छे.- सेजं पुण जाणेजा सह संमइयाए परवागरणेण अण्णेसिं अंति एवा सोच्चा तंजहा - पुरत्थि माओ, वादिसाओ, आगओ अहमंसि, जाव अण्णयरिओ, दिसाओ अणु दिसाओ वा आगओ अहमंसि/एमेगेसिं जं णायं भवति अस्थि में आया, उबवाइए जोइमाओ (दिसाओ) अणुदिसाओ वा अणुसंचरइ, सवाओ दिसाओ अणु दिसाओ सोऽहं (सू. ४) For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥ ५६ ॥ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ५७ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥ ५७ ॥ ते जाणे ते हूं, आमां 'से' शब्द मागधी शैली प्रमाणे प्रथमाना एक वचनमां छे. 'श' शब्दवडे जाणवुं के जे पूर्वे फहेलो जानारी एटले जेने वधारे क्षय उपशम होय ते विचारे छे के पूर्व कहेली दिशा भने विदिशामांथी मारु आगमन धयुं छे. तथा हु पूर्व जन्ममां कोण हतो देवता, नारकीय, के तिर्यच, अथवा मनुष्य हतो अथवा स्त्री, पुरुष के नपुंसक हतो? अथवा भविष्यमां हु आ मनुष्य जन्मथी मरीने देवादि शरीरमां जइश एवं विचारे अने समजे आधी एम समज के कोइपण अनादि संसारमां हूँ भ्रमण करतो प्राणी दिशामांधी आगमनने न जाणे (दरेक न जाणे) पण जे विशिष्ट संज्ञावाळो होय ते जाणे ते मति ज्ञानवाळो एटले जेनी बुद्धि खीखेली होय तेनो भावार्थ ए छे के आत्मानी साथे जेनी सुबुद्धि होय ते सुबुद्धिवडे कोइक भव्यात्मा जाणे छे सूत्रमां ' सह सम्मइआए ' चि शब्दधी एम सुचव्युं के मतिनुं आत्मस्वभावपणुं हमेशां हे पण वैशेषिक मतवाळा मतिने आत्माथी । जुदी माने छे अने आत्माथी समवाय वृत्तिए जोडायली छे. तेयुं नहि जो सम्म ए'ति एटले पोतानी बुद्धिवडे तेपां भिन्न पण अश्वादिक पोतानां माने छे तेथी मति पण जुदी थइ जाप तेवी शंका न थाय माटे स शब्द विशेषणमां छे. अने सह (सार्थ) श ब्द बधे लागु न पडे अने आत्मानी साथे हंमेशां रह्या छतां मवळज्ञान आवरणवडे ढंकावाथी सदा विशिष्ट वोध नथी. हवे ते म ति सन्मति अथवा स्वमति, ते अवधि, मनःपर्याय, अने केवळज्ञान, जातिस्मरण, ए चार भेदे जाणवी. तेमां अवधि, मनःपर्याय, अने केवळ ज्ञान स्वरुप, बीजा स्थानमां विस्तारथी का छे. अने जातिस्मरण ज्ञान ते मतिज्ञाननो विशेष बोधज छे, तेथी आ . प्रमाणे आत्मानी चार प्रकारनी मति बडे कोक विशिष्ट दिशानी गति आगति जाणे छे. अने कोक पर (श्रेष्ठ) ते तीर्थकृत् सज्ञ छे. परमार्थथी तेनेज परशब्दनु बाध्यपणुं होवाथी परपणुं होवाथी परपशुं आपे छे तेनावडे व्याकरण ते उपदेश ते उपदेशथी For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ५८ ॥ www.kobatirth.org जीवोने तथा तेना मेदो पृथ्वी बिगेरे तथा तेनी गति आ गतिने बीजो पण जाणे छे. बीजा जीवो तीर्थकर शिवाय अतिशय ज्ञानी एवा केवळी विगेरे पासे सांभळीने जाणे छे अने जे जाणे छे ते सूत्र अवयव बतावे छे. के हु पूर्व दिशाथी आप्पो छु के दक्षिण, पश्चिम, उत्तर, उंची, नीची के बीजी कोई दिशा विदिशामांथी आथ्यो . एवं विशिष्ट क्षय उपशम आदिवाळाने तीर्थकर तथा अन्य अतिशयज्ञानी एवा पुरुषोए जेमने बोध भावेलो छे तेमने आज्ञान होय छे, तथा प्रति विशिष्ट दिशामांथी आगमनना परिज्ञान शिवाय बीजुं पण आ ज्ञान सेने थाय छे के जेम हूं पूर्वे इतो तेम जाणु छ अने हवे पछी मारा आ शरीरनो अधिष्टावा (आत्मा) ज्ञान दर्शन, उपयोग लक्षणत्राको उपपादुक ( भवांतरमां जनारो ) अने असर्व गत ( शरीर मात्र प्रमाण वाळी ) मोक्ता मूर्ति रहित, अविनाशी, शरीर व्यापी, इत्यादि गुणवाळो मारो आत्मा छे. ते आत्माना आठ भेद छे द्रव्य, कषाय, योग, उपयोग ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वीर्य आत्मा, एम आठ प्रकारे छे, तेमां अहिंआ मुख्यत्वे उपयोग आत्मावडे अधिकार छे. अने बाकीना भेदो तेना अंश तरीके उपयोगमां लेवाय छे, तेथी बताया छे. माणे मारो आत्मा छे. जे अमुक दिशामांथी के विदिशामांथी गति प्रायोग्य कर्मना उपादानथी तेने अनुसारे वाले छे. पाठान्तरमां अनुसंचरतीने बदले अनुसंसरह पाठ छे. तेनो अर्थ आ प्रमाणे छे के दिशा विदिशाओनुं गमन अथवा भावदिशामांथी आगमन, तेने याद आवे छे, हवे सूत्र अवयव वडे पूर्वना सूचना कहेला अर्थने उपसंहरे छे. (बतावे छे.) . बधी दिशाओ अने अनुदिशाओमांथी जे आवेलो छे अने अनुसंवरे छे. अथवा अनुसरे छे. ते हु' एवो उल्लेख करवावडे आ त्मानो भाव सिद्ध थाय छे। अने पूर्व विगेरे मज्ञापक दिशाओ बधी ग्रहण करी छे। अने भाव दिशाओ पण लीधी छे आ कहेला For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥ ५८ ॥ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दगंभीर भर्थने नियुक्तिकार खुल्लो बतावना माटे नियुक्तिकार प्रण माथाने साथे कहे छे. आचा० जाणई सयं मईए अन्नेसिं वावि अन्तिए सोचा । जाणग जण पण्णविओ जीवं तह जीव काएवा ॥ सूत्रम् इत्थ य सह संमइ अत्ति जं एअं तत्थ जाणणा होई ।ओही मण पजव नाण केवले जाइ सरणे य ॥६५॥ | परवइवागरणं पुण जिणवागरणं जिणा परं नस्थि । अण्णसिं सोचंतिय जिणेहिं सबो परो अपणो ॥६६ कोई पाणी संसारमा भ्रमण करतो अवधि विगेरे उपर कहेली चार प्रकारनी पोतानी मती वडे जाणे अमनुपूर्वी न्याय प्रगट | फरवा माटे पछवाडे लीधेलं अन्योन आ पद पहेलु कहे छे. अथवा अन्येपां, आ पदंबडे अतिपय ज्ञानिओनी पासे सांभळीने जाणे छे तथा 'जाणग जणपणविओ' आ वाक्यवडे पर व्याकरण पण ग्रहण कर्यु तेना बढे आ अर्थ छे. सापक एटले तीर्थक- | रनो ज्ञापित (बोधेलो) पण जाणे छे. जे विषयने जाणे छे ते पोतेज बतावे छे. सामान्यथी जीवने आ पदबडे अधिकृत उदेशा- | शनो अर्थाधिकार कहे छे. तथा जीव भने कायाने ते पदवडे पृथिवीकायादिने बताववा बडे बाकीना हवे पछीना छए उदेशाना & अधिकार अर्थने अनुक्रमे कहे छे. अहि ' सहसम्मइएति या पद सूत्रमा छे. तेमा 'शाणण' पदवडे ज्ञानने उत्पन्न करेलु छ 'मन' धातु जाणवाना अर्थमा छे. 13 कारण के मनन तेज मति (बुद्धि छ माटे) अने ते ज्ञान केवु छे. ते बतावे छे. अवधि, मनपर्य केवळ अने जातिस्मरण, रुपवालं हैं। छे. तेमा अवधिज्ञानी होय ते संख्याता भने भसंख्याता भवने जाणे छे र प्रमाणे मनः पर्यायज्ञानी पण जाणे ऐ. पण केवळी तो For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नियमथी अनन्ता (तमाम) जाणे छे. तथा जातिस्मरणवाको नियमयी संख्याता भवने गाणे छ. माली I IVE आचा०13॥ ६४-६५॥ सूत्रम टीका नहिं छत्ता छासठमी गाथानो अर्थ थोडो बतावीए छीए. 'परवइ वागरणं' ते जिनव्याकरण जाणवु जिनेश्वरथी पर बीजो ॥ ६० ॥ नथी, तथा बीजाओनी पासे सांभळीने, तथा जिनेश्वरथी सर्व पर अन्य छे. नीचेनी कथाभोथी जणाशे के कोइ भन्यात्माने धर्म- ॥६ ॥ रुचीनी माफक स्वयं जातिस्मरण प्रगट थाय छे. कोइने जिनेश्वर पासेधी सांभळीने थाय छे जेम महावीरस्वामी पासे गौतमस्त्रामीने यु तथा अन्य पासे एटले मल्लिनाथ भगवानना मित्रोने मल्लिकुमारीए युवावस्थामां बोध करता (मित्रोने) जातिस्मरण ज्ञान धयु, Pए नीचेनी कथाथी समजाशे. अहिं सहसम्मति विगेरे परिज्ञानमा सुखेथी समजाय माटे प्रण दृष्टांतो बतावे . वसंतपुर नगरमां जितशत्रु नामे राजा छे. तेनी धारणी नामनी महादेवी (पट्टराणी) छे. तेने धर्मरुपी नापनो पुत्र थयो, से राजा । एक दिवस तापसपणे व्रत लेवानी इच्छावाको धर्मरुचीने राज्य सौंपवानी तैयारी करवा लाग्यो. से जोइने धर्मरुनिए पोतानी हाजाने पूछयु के मारो पिता राज्य शा माटे तजे छ? माए का बेटा ! आ नारकी विगेरेना सकल दुःखना मेतुभूत तथा स्वर्ग अने मोक्षमार्गमां विघ्न करनार अर्गला (आंगळी) समान तथा अवश्य दुःख देनारी लक्ष्मीबहे शुं प्रयोजन के? परमार्थथी आ लोकमा पण अभिमान मात्र फळ देवाचाळी छे. तेथी तेने छोडीनेज सकळ मुखनु साधन जे धर्म तेज करवाने तारो पिता उद्यम करे के. धर्मरुचि ते सांभळी नोल्यो के जो लक्ष्मी आवीज छे तो मारा पिताने अनिष्ठ छुके जे आवी सकल दोपने धारनारी लक्ष्मी मने For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie सोपे छे. अने सकळ कल्याणना हेतु धर्मथी मने दर करावे छे. एम कही पितानी आज्ञा लाने बाप साथे पोते पण सापसना । ० आश्रममा गयो. त्यां बधी तापस सम्बन्धि क्रिया यथायोग्य करी अने रखो. एकदा अमावास्याना पहेला एक दिवसे कोई तापसे सूत्रम् उद्घोषणा करी हे तापसो! आवतीकाले अनाकुट्टि छे. ( अगतो पाखी, अणोनो) छे तेथी आजेन समिन् (होमना लाकडां) ॥ ६१ ॥ H ॥६१।। कुल कुश (दर्भ) कंद, फळ, मूल विगेरे हमणान लइ आवो. आ सांभळोने धर्मरुचिए पोताना बापने पूछयु हे तात' आ अनाकुMहि शुं छे. तेणे कर्वा बेटा! कंदफळ विगेरे छेदवानुं काम अमावास्था विगेरे दिवसे न कराय कारण के ते कापवा विगेरेनी क्रि या सावध (पापवाळी) छे. ते सांभळीने आ विचारवा लोग्यो के हमेशां अनुकृति पाय तो केवु सारु. आ प्रमाणे विचार करतो महतो तेवामां अमावास्याना दिवसेज तपोरन पासे जो साधुभोनु दर्शन थयु ते साधुभाने नेणे पूछयु हे भाइभो ] भाजे ४ तमारे अनाकुट्टी केम नथी जेथी तमो आ अटवीमां निकळ्या छो? ते ओए पण कायु के अमारे तो आखी जीदगी सुधी अनाकु हिज छे. एम कहीने साधु चालता थया. धर्मरुचिने आ सांभळी, इहा, अपोह, अने विमर्शवढे जातिस्मरण ज्ञान थयु के हुँ पूर्वभवमा दीक्षा लइने देवलोकना सुखने अनुभवी अहिं आव्यो छु. ते प्रमाणे तेणे विशिष्ट दिशाओर्नु आगमन पोतानी मति एटले | जातिस्मरणरुप ज्ञानवडे जाण्यु. अने प्रत्येक बुद्ध (गुरु विना पोतानी मेळे दीक्षा लेनार) थयो ए प्रमाणे बोजा पण वल्कल चिरी, ४ श्रेयांसकुमार विगेरे अहीं जाणवा.. हवे पर व्याकरण उदाहरण कहे छे. गौतमस्वामीए महावीर प्रभुने पूछयं के हे भगवन ! मने केवळज्ञान शामाटे उत्पन्न यतुं For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नथी ? भगवाने कहा. हे गौतम तमारो मारा उपर घणो स्नेह छे तेथी. तेणे का हे भगवन ? शामाटे मने तमारा उपर आटलो आचा०६ बधो स्नेह छ ? त्यारे भगवाने का के पूर्वमा घणा भवथी तारे अने मारे आवो संबंध इतो तेथी. | सूत्रम चिरससिहोसि मे, परिचियोसि में' गोयमे त्येवमादि । ॥ २॥ हे गौतम ! तुं मारी साये घणो काळ रहेलो छे. तथा घणा काळनो मारी साये परिचित छे इत्यादि. आ अधिकारने तीर्थकरे । कहेलो सांभलीने पण विशिष्ट दिशानु आगमन विगेरेनुं ज्ञान थयु. बीजानी पासे सांभकेलं तेनु उदाहरण हवे कहे हे. मल्लिकुमारीने छ राज्य पुत्रो जे जाणीता हता ते पाणवाने माटे आवेला, तेमने पोताना अवधि ज्ञानवडे बोध करवा माटे जेवू वा पूर्वमा साथे रहीने दीक्षा लीधेली, अने धर्मना फळथी जयन्त नामना अनुत्तर विमानमा जे सुख भोगवेलुते कही बतायुं अने ते सांभळीने छए मित्रो जे, ओछा पापवाळा हता तेमने बोध थयो भने विशिष्ठ दिशाना आगमननुज्ञान ययु. तेज संबंधे | आ गाथा छे. कि थतयं पम्हट, जं च तया भो! जयंतपवरमि। वुच्छासमयनिवर्क, देवा तं संभरह जाति ॥१॥ हे मित्रो! आपणे जयंत विमानमा रहेला भने त्यो घणा काळ सुधी सुख भोगवेलु ते भूली गया? तेने याद तो करो. आ४ त्रण गाथानो तात्पर्य अर्थ छे. हवे आपणी चालु वातने कहीए छीए. के निचे जे छे ते हुआ पद वडे अहंकार ज्ञान बहे आत्मामा उल्लेख बडे पूर्व विगेरे SCSSSSSSSSS RECEREST For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ६३ ॥ www.kobatirth.org दिशाओमांथी पोताना आत्माने आवेलो अने जरापण रोकाण विना भव भ्रमणमां पडेलो पोतान द्रव्यार्थपणे नित्य अने पर्याय | अर्धपणे अनित्य हुं एम जे जाणे छे, तेज खरी रीते आत्मवादी छे. एवं सूत्रकार बतावे छे. से आयावादी लोयावादी कम्मावादी किरियाबादी (सू० ५) एटले जे पूर्वे नारक, तिच, मनुष्य, देवता विगेरे भाव दिशामां अने पूर्व दिशा विगेरे मज्ञापक दिशामा भमेलो पोते पोताना आत्माने. अक्षणीक, अमूर्त, विगेरे लक्षणवाळ जाणे छे. ते आत्मवादी, एटले आत्माने बोलवाना स्वभावत्राको छे. अने जे पूर्व कला प्रमाणे आत्माने न स्वीकारे ते अनात्म वादी ( नास्तिक) जाणवा. बळी जे आत्माने सर्व व्यापी, नित्य, अने क्षणीक माने छे, ते पण अनात्म वादी छे. कारण के सर्व व्यापी आत्माने निष्क्रिय पणुं होवाथी वीजा भवमां संक्रान्ति न थाय, अने सर्वथा नित्यपणे पण, अप्रच्युत, अनुत्पन्न, स्थिर, एक स्वभाव, ए नित्यनुं लक्षण होवाथी, मरणनो अभाव थाय, अने भव संक्रान्ति पण नज थाय, सर्वथा क्षणिक मानवामां पण निर्मूळ विनाशथी, तेज हु, आवं पूर्व तथा उत्तरतु अनुसंधान (जोडाण ) न थाय. जे आत्मवादी छे. तेज परमार्थथी लीक बादी छे. कारण के अवलोके (जुए) छे ते 'लोक' एटले पाणी गण, तेने बोलवानों जेनो स्वभाव छे ते आ वचनवडे जेभो आत्माने अद्वैत माने छे, तेनुं खंडन करवा आत्मानुं बहुत्व क. अथवा लोयावादीने बदले 'लोका पाती' ए शब्द लइए तो लोक चौदरज्जु प्रमाण छे. ते अथवा प्राणीगण तेमां आववाना स्वभाववाळो आ वचन वढे विशिष्ट आकाश खंडनी 'लोकसंज्ञा' बतावी भने तेमां जीवास्तिकाय ( जीवसमूह ) ना संभवथी जीवोनु गमन आ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम | ॥ ६३ ॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maha Jan Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Si Kailassagarsuri Gyarmandie गमन सूचम्युछे, तेज जीव दिशा विगेरेयां जवाना शानबडे आत्मवादी अने लोकवादी संहत (पुरु) छे भने । आचा०31 (प्राण धारण करनार) छे. कर्मवादी एटले ज्ञानावरणीय आठ कर्म छे. तेने बोलवाना स्वभाववालो कारण के निश्चय, मिथ्यात्व, सूत्रम् अविरति, प्रमाद कषाय योगोथी पहेला पाणीओ गति आगतिना कर्मने ग्रहण करे छे. त्यारपछी ते ते विरुप रुपवाळी योनिओमां। उत्पन्न थाय छे. अने कर्म छे ते. प्रकृति, स्थिति, अनुभाव, प्रदेशरूप चार प्रकारे जाणना. आ वचनधी काळ, यदुच्छा, नियति, P॥ ६४ ॥ इश्वर, आत्मवादी जे एकान्त माननारा छे, तेमन खंडन कयु जाण'. तथा जे कर्मवादी तेज क्रियावादी छे कारण के योगना निमित्ते कर्म बंधाय छे. अने योग एटले व्यापार छे. अने व्यापार नियारुप छे. तेथीन कर्मने कार्य पणे बोलवाथी तेनुं कारण क्रियाने पण परमार्थयी बोलनारो छे. क्रिया कर्म निमित्तपणु जैनागममा प्रसिद्ध छे. ते आ प्रमाणे आगममा छे. जावं गं भंते! एस जीवे सया समियं एयड वेयह चलति फंदति घट्टति तिप्पति जाव तं तं भावं परिणमति तावं चणं अहविहबंधए वा सत्तविहवंधए वा छबिहबंधए वा एगविहवंधए वाणोणं अबंधएत्ति ॥ वा हे भगवन् ! आ जीव हमेशां समान वधे छे के वधारे वधे छे, चाले छे, फरके छे. अथवा तिपे छे (गति करे छे) ते ते । भावने ज्यामुधी परिणमे छे त्यांसधी आठ प्रकारनो कर्म बंध के, सात प्रकारनो, छ प्रकारनो, के एक प्रकारनो, के बंध विनानो छ ? For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा० सूत्रम् ॥६५॥ ॥६५॥ । (अहिं उत्तर नथी पण ज्यांसुधी तेरमा गुणस्थान सुधी जीव संसारमा होय त्यांमुधी योगी क्रिया करनार होय ए आठना, सातना छना, अने एकना बंधनवाळो अनुक्रमे होय छे. ते अन्धातरथी जाणवं. ए प्रमाणे बीनाओनी शंका निवारण करवा गौतमखामीए । पूज्यु अने महावीर प्रभुए उत्तर आयो तेथी एम बताव्यु जे कर्मवादी छे तेज क्रियावादी जाणवा. आ वचनयी सांख्य मतवाळा जे आत्माने क्रिया विनानो माने मर्नु खंडन कर्यु ॥५॥ हवे पूर्वे कहेली आत्मपरिणतरुप क्रियाने विशिष्ट काळ बतावनार 'तिड' प्रत्ययवडे कहेता 'अहे' नाम हुँ पत्यय साधवा योग्य आत्माने तेज भवमा भवधि, मनः पर्याय, केवलज्ञान, जातिस्मरण, ए चार विशिष्ट संज्ञा शिवाय पण पणे काळमां करसनार मतिज्ञानवढे सद्भावनो अवगम ( जाणपणुं ) बतावबाने माटे कहे छे. __अकरिस्सं चऽहं कारवेसु चऽहं, करओ आवि साणुन्ने भविस्सामि (सू०६) अहिंा सुत्रमा भूत, वर्तमान भने भविष्य काळनी अपेक्षाए जण तथा ते त्रण साथे करवु. कराव_ अने अनुमोदयु गणता नव | विकल्प थाय छे. ते आ प्रमाणे छे. में कयुः कराव्यु अने कर्ताने भलो जाण्यो, हु करु छ करावु छु, अने करावनारने अनुमोदु छु'. हुकरीश, करावीश, अने कर्ताने भलो जाणीश, एमां पहेलो भने छेल्लो ए वे भांगा सूत्रमाथीन लीधा छे तेथी करीने बाकीना मध्यमां आवी गया तेथी नवे भागान ग्रहण थयु (लीधा) एज अर्थने मगट करवा चीजो विकल्प डे के हु करावीश ए सुत्रबडे लीधो छे. आ नवे भागा सुखमां वे चकार होवाथी तथा अपिशब्द लेबाथी ते नव साथे मन, वचन, काया चिंतावतां २७) भेदो २२-२२०२८ For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyarmandie आचा० सूत्रम् थाय छे. ते आ प्रमाणे. में कयु अहि हुँकार शब्द वडे आत्माना उल्लेख करनार शब्द बडे विशिष्ट क्रियाना परिणाम हा 1 | आत्मा गताव्यो छे. ते नो आ भावार्थ छे. तेज हुँ' के जेनावडे में आ देहादिनी पहेला युवावस्थामा इन्द्रियने वश पडेला विषयरुपी विष बडे मोहित थएला अन्ध चित्तवडे ते ते अकार्यना अनुष्ठानमा तत्पर थइने मारे अनुकूळ कयु (मने गम्युं ते कयु) कयुं छे के.! विहवाबले नडिएहिं जाई कीरति जोवणमएणं । वयपरिणामे सरियाइ ताई हियए खुडकंति ॥१॥ वैभवना अहंकार बडे नाचेला ( नाटक करेला ) ए यौवनना मद बडे जे जे कृत्यो करायां छे. ते वा बुट्टापामां याद आवीने हृदयमा शल्यनी माफक खटके छे. तथा में करायु एनावडे बीना माणसने आ कार्यमा प्रवर्ततो जोइने में मत्ति करावी. तथा करनारने आज्ञा आपी. आ प्रमाणे कर्यु' कराव्यु अने अनुमोबु ए भूतकाळ मूचक छे. अने करछ', कराचु छ', विगेरे वचनवडे वर्तमान काळ मूचन्यो छे. तथा करीश, करावीश, अने करनारने अनुमोदीश, ए वचनथी भविष्यकाळ सूचयो आ त्रण काळना | फरसवावाळा वचनबडे देह, इन्द्रिय, थी जुदो आत्मा भूत, वर्तमान भविष्य संबंधि काळ परिणाम रुपे आत्मानु अस्तित्वतुं नाणपणुं सूचव्यु छे. अने जाणपणुं ते एकांत क्षणिकवादीने के एकांत नित्यवादीने न संभवे तेथी आ वचनवडे तेमनुं खंडन कयु. आत्मानु क्रियाना परिणामवडे परिणामपणु स्वीकार्य छे तेथी (क्षणिकवादी विगेरेनु खंडन थयु छे.) अने तेनाज अनुसारे संभव अनुमानथी अतीत अनागत भावोमां पण आत्मानु अस्तित्व जाणवू अथवा आ क्रिया पबंधना प्रतिपादनथी कर्मना उपादान। रुप छे. जे क्रिया छे तेनु स्वरुप बतावेलुं जाणवू. ॥ ६॥ इवे शिष्य प्रश्न पुछे छे के आटलीज क्रिया छे के बीजी कोइ छे तेने ४ For Private and Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie आचा सूत्रम ॥६७॥ बावट आचार्य महाराज बतावे छे. एयावंति सवाति लोगंसि कम्मसमारंभा परिजाणियवा भवंति (सू०७) न आटलीज विशिष्ट क्रियायो जे पूर्वे कहेली छे, ते सर्व लोक एटले पाणी समूहमा कर्मनो समारंभ छे ते अतीत, अनागत, वर्तMमान, भेद वडे कर्यु, कराव्यु, अने अनुमोयु ए बडे तमाम क्रियाने अनुसरनार 'करेछे ए शब्दवटे वधी क्रियानो संग्रह थाय छे. आटलीज क्रियाओ जाणवी. बीजी नहिं अने परिज्ञा ये प्रकारनी छे. ज्ञपरिज्ञा अने प्रत्याख्यान परिज्ञा तेमां झपरिज्ञा (पळेला बोध) बडे आत्मा अने बंधन अस्तित्व छे. पूर्वे कहेली कर्म समारंभनी बधी क्रियाओ बडे जाणपणु थाय छे. अने जाण्या पछी मत्याख्यान परिज्ञावहे था पापांने भाववाना हेतुरुप कर्मना समारंभोना पच्चखाण करवां जोइए ( बने त्यांसुधी छोडवां जोइए) आटला सामान्य वचनवडे जीवन अस्तित्व साध्य छे. अने ते आत्मानु दिशाओनु जे भ्रमण तेना हेतु ओना बतायवा साधे अपायोने बताववा कहे छे. अथवा जे आत्मा तथा कर्म वादी छे, ते दिशाओना भ्रमणी छुटशे अने जेओ कर्मवादने नथी मानता | H तेओने केवा विषाक भोगवटा पडशे ते बतावे छे.. म अपरिण्णायकम्मा खलु अयं पुरिसे जोइमाओ दिसाओ अणुदिसाओ अणुसंचरइ, सबाओ | दिसाओ सवाओ अणुदिसाओ साहेति (सू०८) जे पुरुष ( पुरिमा शयन करनार ते पुरुष ) अथवा सुख दुःखोथी पूर्ण ते कोइपण जतु अथवा माणस अहिंआ पुरुषप्रधानपणु । For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandie हावाथा त लामा छ. पण पुरुष शब्द उपलक्षणमा चार गतिमा फरनारो प्राणी लेवो. ते पाणी अथवा पुरुष दिशा अने विदिशाआचा०६मा संचरे ते कर्मना स्वरुपने जाणतो नथी. तेथी अपरिक्षात कर्मा छे. (सूत्रमा खलु शब्द निश्चयरुप छे. ) ते निचे दिशा विदि सूत्रम् शामां भमे छे. पण कर्मने जाणनारो भमतो नबी आ उपलक्षण छे. पण एम जाणवू के अपरिज्ञात आत्मा अने अपरिज्ञात क्रियावाळो पण जाणवो अने जे अपरिज्ञात कर्मा छे. ते दरेक दिशा विदिशाओमा पोताना करेला को साथे बीजी गविमा संचरे छे. P॥ ६८ ॥ (मूळ मूत्रमा सर्व शब्द एटला.माटे छे के बधी प्रज्ञापक दिशाओ तथा भाव दिशाभोनो पण साये संग्रह करवो) ८ 5 ते आत्मा तथा कर्मने न जाणनारो | फळ पामे छे, ते वतावे छे. अणेगरूवाओ जोणीओ संधेइ, विरूवरूवे फासे पडिसंवेदेइ (सू०९) अनेक संकट विकट निगेरे रुप योनियोमा छे ते योनीमां उत्पन्न थाय छे. योनीचें स्वरुप जेमा उदारिक शरीर वर्गणाना पुद्गलो Mसाचे जीव पोते जोडाय छे ते. एटले जीवोनु उत्पत्तिस्थान ते योनीयो छे. योनीओन स्वरुप अनेक प्रकार के 'संत' एटले देकायली 'विवृत्त' एटले खुल्ली तथा बन्ने पकारनी, तथा शीत, अने उष्ण 5 एम भेदो छे. अथवा चोराशी लाख भेदो छे नीचे प्रमाणे. पुढवीजलजलणमारुय, एकेके सत्त सत्त लक्खाओ। वण पत्तेय अणंते, दस चोदस जोणि लक्खाओ ॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा० सूत्रम् विगलिंदि एसु दो दो चउरो चउरो य णारयसुरेसुं। तिरि ते चउरो चोदस लक्खाय मणुएसु ॥२॥ पृथिवी, पाणी, अग्नि, वायु, ए दरेकनी सात सात लाख योनि छे. प्रत्येक साधारण वनस्पतिकायनी चौद अने दस लाख योनि छे. विकलेन्द्रिय एटले बे इन्द्रिय, त्रण इन्द्रिय, चार इन्द्रिय, दरेकनी बब्बे लाख छे. अने नारकीय तथा देवलोकनी चार चार लाख छे. तियेच पंचेन्द्रियनी पण चार लाख अने मनुष्यनी चौद लाख छे. तथा शुभ अशुभ भेदवडे योनियोनुं अनेक रुप पणुं छे. | ते गाथाओथी बतावे छे. सोयादी जोणीओ चउरासीती य सयसहस्साइं। असुभाओ य सुभाओ तत्थसुभाओ इमा जाण ॥१॥ शीतादि भेदथी चोराशी लाख योनियों छे. तेना शुभ अने अशुभ एवा ये भेद छे. तेमां शुभ योनियो नीचे प्रमाणे. असंखाउमणुस्सा राईसर संखमादिआऊणं । तित्थगरनामगोत्तं सबसुहं होइ नायव्वं ॥२॥ तत्थवि य जाइसंपन्नतादि सेसाउ हुंति असुभाओ। देवेसु किविसादि सेसाओ हुँति उ सुभाओ॥३॥ पंचिंदियतिरिएसुं हयगयरयणे हवंति उसुभाओ। सेसाओ असुभाओ सुभवण्णेनिदियादीया ॥४॥ देविंदचकवहितणाई मोतं च तित्थगरभावं । अणगारभाविताविय सेसा उ अणंतसो पत्ता ॥५॥ असंख्य आयुवाळा (जुगलीभा मनुष्पो.) अने संरूपाता आयुवाळा राजेश्वर विगेरे तथा तीर्थकर नाम गोत्रवाला जे जीव होय छे. R For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie सूत्रम् ॥७॥ 15/ तेमने बधं शुभ होय छे. अने तेमां पण जाति स्मरण ज्ञानवाला विगेरे शुभ होय छे, अने चाकीना अशुभ जाणवा. अने देवयोनिमा आचा. पण किल्विपिया शिवाय बीजी देवयोनिओ शुभ जाणवी. ॥ २-३ ।। . पंचेन्द्रिय तिर्यच योनीयोमा घोडा, हाथी, विगेरे जे चक्रवृचिनां रत्नो छे, ते शुभ योनि तथा शुभ वर्णवाळा एकेन्द्रिय विगेरे । ॥७०॥ | शुभ होय छे (४) देवेन्द्र तथा चक्रवृत्तिपणामां तथा तीर्थ कर भावने मूकीने तथा भावित अनगारो ( साधु ) मुकीने बाकीना जीवो अनन्तवार योनियोने पाम्या. आ अनेक रुपवाळी योनियोने दिशा विदिशामा पर्यटन करनारो कर्मने न जाणनारो आत्मा पोतानी साये जोडे छे (योनिमा भमे छे ) एटले योनी साथे संधि करे छे. कोइ जगाए 'संघावइ' पाठ छे. तेनो अर्थ आ छे के वारंवार ते योनियोमा जाय छे. अने तेना संधानने अनुभवे छे ते बतावे छे. विरुप एटले विभत्स अमनोज्ञरुपवाला स्पर्शो जे दुःख देनारा छे ते दुःख समुहने | स्पर्श करवाथी पीडाय छे. 'तात् स्थ्यात् ' शब्दथी तेनो व्यपदेश कर्यो छे माटे जाणवू के दुःखो भोगवे छे. आ तो उपलक्षण मात्र P वेदना छे. के एवा स्पर्शोने अनुभवीने दुःख भोगवे तेवी रीते शरीर संबंधी अने मन संबंधी पण दुःखो अनुभवे छे. ( नारकोनी । अंदर जीवोने ते स्थाननी वेदना शरीरने पीडे छे. तेम मनमां विकल्पोना पण घणां दुःखो छे. ते वताव्यां छे.) X/ अहिं स्पर्श ग्रहण करवाथी एम समजवू के स्पर्शज्ञान वधा संसारी जीवोने छे. तेथी संसारमा रहेनारा सर्व जीवोनो समुह दुःख भोगवे छे. एम वताचवा माटे स्पर्श लीधो छे. वळी अहिंआ पण कहे, के खराब एवा रुप, रस, गंध, अने शब्द तेने पण अनुभवे छे. स्पर्शो विरुप रुप थवान कारण पूर्व करेला जे पापो ते उदयमा आवतो कारणरुप थइने कार्यमा स्पर्शपणे अनुभवावे छे. For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ७१ ॥ www.kobatirth.org एम जाणवु विचित्र कर्मना उदद्यथी क्रर्मनुं स्वरुप न जाणनारो संसारी स्पर्शादि विरुव रुप अनेक जुदी जुदी योनियोमा विपाकथी एटले फळरुपे भोगवे छे.. छे के तैः कर्मभिः स जीवो विवशः संसार चक्रमुपयाति । द्रव्यक्षेत्राद्धाभावभिन्न मावर्त्तते बहुशः ॥ १ ॥ नरकेषु देवयोनिषु तिर्यग्योनिषु च मनुष्य योनिषु च । पर्यटति घटियन्त्रवदात्मा बिभ्रच्छरीराणि ॥२॥ सततानुबद्धमुक्तं दुःखं नरकेषु तीव्रपरिणामम्। तिर्यक्षु भयक्षु नृड्वधादि दुःखं सुखं चाल्पम् ॥ ३ ॥ सुख दुःखे मनुजानां मनः शरीराश्रये बहु विकल्पे । सुखमेव हि देवानां दुःखं स्वल्पं च मनसि भवम् ॥४॥ कर्मानुभावदुःखित एवं मोहान्धकार गहनवति । अन्ध इव दुर्गमार्गे भ्रमति हि संसारकान्तारे ॥ ५ ॥ दुःखप्रतिक्रियार्थ सुखाभिलाषाच्च पुनरपि तु जीवः । प्राणिवधादीन् दोषानधितिष्ठति मोहसंछन्नः ॥ ६ ॥ भाति ततो बहुविधमन्यत्पुनरपि नवं सुबहु कर्म । तेनाथ पव्यते पुनरग्नेरग्निं प्रविश्येव ॥ ७ ॥ एवं कर्माणि पुनः पुनः स बध्नंस्तथैव मुञ्चंश्च । सुखकामो बहुदुःखं संसारमनादिकं भ्रमति ॥ ८ ॥ एवं भ्रमतः संसारसागरे दुर्लभं मनुष्यत्वम् । संसार महत्त्वाधार्मिक-स्वदुष्कर्म बाहुल्यैः ॥ ९ ॥ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ ७१ ॥ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ७२ ॥ www.kobatirth.org आय देशः कुलरूपसंपदायुश्च दीर्घमारोग्यम् । यतिसंसर्गः श्रद्धा धर्म श्रवणं च मतितैक्ष्ण्यम् ॥ १० ॥ एतानि दुर्लभानि प्राप्तवतोपि दृढमोहनीयस्य । कुपथाकुलेऽर्हदुक्तोऽति दुर्लभो जगति सन्मार्गः ॥ ११ ॥ कर्मोथी जीव परवश ने संसार चक्रने पामे छे। अने द्रव्य, क्षेत्र, काळ, अने भाव, ए चारेमा घणीवार बदलाय छे ॥ १ ॥ नरकमां देवयोनि तिर्येच योनि अने मनुष्य योनियां घटी यंत्रनी माफक नवा नवां शरीर करीने आत्मा भमे छे ।। २ ।। हंमेशा पूर्व कलां तीव्र परिणामवाळां नश्कना दुःखो भोगवे छे. तथा तिर्यच योनिमां, भय, भूख, तरश, वध तथा मार विगेरे घणां दुःखो अने थोडां सुखने भोगवे हे ॥ ३ ॥ मनुष्यना सुख दुःखमां मन अने शरीर आश्रयी बहु विकल्पो छे. एटले तेमां सुख दुःखनो निश्चय नथी एटले देवोने सुख तो छे पण तेमने मन संबंधी थोडं दुःख ले || ४ || कर्मना अनुभवथी दुःखी थयेलो आत्मा धनी माफक मोहान्धकारे गहन अने कठण मार्गवाळा संसाररूप बनमां जीव निश्रये भये छे || ५ || (पण नीकळी शकतो नथी) दुःखने दूर करवा अने सुखनी इच्छाथी फरीने पण मोहथी घेरायलो जीव प्राणीवध विगेरे दोषो (धर्मने नामे अधर्म) करे छे ॥ ६ ॥ ते अज्ञानी जीव तेथी घणे प्रकारे घणां पाप अने तेथी एकवार अग्निमांथी नीकळेलो वीजी बखत अग्निमांज प्रवेश करे तेनी माफक दुःखधी बळे छे ||७|| आ प्रमाणे ते जीव कमेने फरी फरीने बांधतो अने भोगवीने मुक्त श्रतो अनादि काळथी सुखनी इच्छावाको बहु दुःखवाळा संसारमां भये छे ॥ ८ ॥ ए प्रमाणे संसार सागरनां भगतां भमतां दुर्लभ मनुष्यपणुं पामीने For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥ ७२ ॥ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥७३॥ www.kobatirth.org विशाळ संसारमां विघ्नरूप अधार्मिकत्व दुष्कर्म प्राय होवाथी जीवो धर्म करी शकता नधी ॥ ९ ॥ आर्य देश, उत्तमकुळ, रुप, संपदा आयुः, अने लांबा काळ सुधी आरोग्यता तथा यति (साधु) संसर्ग तथा तेमना वचन उपर श्रद्धा तथा धर्मनुं सांभळ अने | तेनी बुद्धिमां विचार करवानी शक्ति आववी ए वधुं दुर्लभ छे ॥ १० ॥ ते मळे ते बघु थाय छतां पण चीरुणा मोहनीय कर्म थी कुपथमा पढेला जीवाने आ जन्तमां जीनेश्वरे कईलो सन्मार्ग पामको बहुज मुश्केल छे. ॥। ११ ।। अथवा जे पुरुष बधी दिशा विदिशामां अनुसंचरे छे, तथा अनेक रुपवाळी योनियोगां दांडे छे. अने विरुप रुपत्राळा स्पर्शोने अनुभवे छे. ते मनुष्य कर्म बंधननी क्रियाथी अजाण्यो होवाथी, मन, वचन, अने कायावडे कर्म करे छे. पोते जाणतो नथी के में पूर्वे करेला छे. करू छु अने जे करीश ते बधां कर्मो जीवोने दुःख देवा रूप होवाथी ते सावध छे अने ते बंधननां हेतु छे. अने तेथी अज्ञान दशामांज ते जीवांने पीडा करनारी कृत्योमां तैयार थाय छे अने तेनाथी आठ प्रकारनां कर्म बंध थाय छे। अने तेना उदयथी अनेक रूपवाळी योनिमां अनुक्रमे अवतरे छे अने विरुप रुपवाळा स्पर्शनो अनुभव करे छे. ।। ९ ।। जो आज प्रमाणे छे. तो शुं करं ते बतावे छे. . तत्थ खलु भगवता परिष्णा पवेइआ (सू. १०) उपर कहेला व्यापारने में कर्यो करू छु अने करीश, एवी आत्मानी जे परिणति छे, ते स्वभावपणे मन, वचन, अने कायाना व्यापार रुपयां परिज्ञान ते परिशा छे. अने ते प्रकर्षथी प्रशस्त छे. एम श्री महावीर मनुए बतायुं छे. एम सुधर्मा स्वामी जंबूस्वामीने कहे छे ते परिशा ये प्रकारनी छे. ज्ञपरिज्ञा अने मत्याख्यान परिज्ञा तेमां भगवान कहे छे के सावाच व्यापारथी बंध थाय छे. एम For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ ७३ ॥ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥७१। | जाणवू ते परिक्षा.छे अने त्याग से ने प्रत्याख्यान परिशा छे. नियुक्तिकार तेज अर्थने कहे छे. आचा०18 तस्थ अकारि करिस्संति बंध चिंता कया पुणो होइ । सहसम्मइआ जाणइ कोई पुण हेतुजुत्तीए ॥१७॥ तेमां एटले क्रियाथी बंधाता कर्ममां थयुते कहे छे. कयु अने करीश आ भविष्य अने भूतकाळ लेबाथी वचमा रहेल वर्तमान काळ पण आवी जाय छे तथा करवा साथे करावधु अने फर्ताने अनुमोदए दरेकना त्रण प्रण भेदो गणतां नव थया ते आत्म परिणाम घणे योग ( व्यापार रुपे लीधेला जाणवा तेमां आ आत्म परिणाम रुप क्रिया विशेपचडे बंधनी चिंता करी छे एटले पंधन उपादान लीधुं छे. कारण जे जैन शास्त्रमा कयुछे के 'योग निमिने कर्म बंधाय छे' अने आ कोइक पुरुप जाणे छे।४ जेने सन्मति अथवा स्वमति आस्मानी सा छे. ते अवधि मनःपर्याय केवळज्ञान तथा जातिस्मरण रूप ज्ञान के तेना बढे जाणे छे. अने कोइतो पक्ष धर्म, अन्वयव्यतिरेक लक्षण वाळी हेतुनी युक्ति बडे जाणे छे. इवे अज्ञानी जीव शामाटे आवा कडवा विषाकवाला कर्मना आश्रच रुष हेतुभूत क्रिया विशेषमा प्रवर्षे छ ? आ शिष्यना मननो उत्तर आपे छे. इमस्स चेव जीवियस्य परिवंदणमाणण प्रयणाए।जाईमरण मायणाए दुक्खपडिघायहेउं (सू.११) तेयां जेनावडे जीवे छे ते जीवित एनाथी आयुःकर्म बडे माणधारण कर छे. अने ते दरेक पाणीने जाणीतुं छे. तेथी | P प्रत्यक्ष आसन्न वाची 'इदम्' शब्दबडे प्रयोग कर्यो छे (गुजरातीमां आ जीवित माटे वपराय छे ) चकार हवे पछी कद्देवानी 13/ जाति विगेरेनो सामटो अर्थ बतावे छे. एवकार निश्चय वाचक छे. तेनावडे जाणवु के आ जीवित तदन सार विनानु (नकामु) न 181 a २२-२२८५ For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kailassagersal Gyarmandie सूत्रम् ॥७५॥ पूछे तथा बीजळीना जे चंचळ छे. जेमा बहु विघ्न छ, ते जीवितना लांचा सुखने माटे क्रियाभोमा मवर्ते हे. से आ ममाणे. आचाहूं रोग विना जीवीश, मुखथी भोगो भोगवीश, बळी व्याधि दर करवा माटे स्नेहपान (मदिरा विगेरे पी) तथा लावक पिशित (तितरतुं मांस) पक्षण विगेरे क्रियामां बर्ते छे. तथा अल्प मुखने माटे अभिमान ग्रहवडे माकुळ चित्तवाळो थइ घणा ॥७५॥ आरंभ परिग्रहवडे बहु अशुभ कर्मो उपार्जन करे छे. कहेल छे के देवाससी प्रवरयोपिदपायशुद्धा, शय्यासनं करिवरस्तुरगो रथो वा । काले भिषग्नियमिताशनपानमात्रा, राज्ञः पराक्यमिव सर्वमवेहि शेषम् ॥१॥ सुंदर चे भकारनां वखो, युवान स्त्री, मुख उपजाये एवी सुंदर शय्या, आसन, हाथी, घोडा, रथवाळा राजाने पण काळ आवी पहोंचे छे. ते वखते वैये कहेला नियमची बांधी आपेला खानपान शिवाय बीजु बधु पारका जेज थइ जाय छे एम समजो. ॥१॥ पुष्ट्यर्थमन्नमहियत्प्रणिधिप्रयोगैः संत्रासदोषकलुषो नृपतिस्तु भुङ्क्ते ।। यन्निर्भयः प्रशमसोख्यरतिश्च भैक्षम् तत्स्वादुतां भृशमुपैति न पार्थिवान्नम् ॥२॥ नोकर चाकर द्वाराना त्रासथी पीडायलो राजा पोतानी पुष्टिने माटे जे अन्न खाय छे. पण भय विनानो अने शांतीना मुखमा । | भीतीवाळो साधु भिक्षामा जे आनंद माने छे तेवो आनंद अने स्वाद राजानु अन्न आपतुं नथी. ॥ २॥ For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ७६ ॥ www.kobatirth.org भृत्येषु मन्त्रिषु सुतेषु मनोरमेषु कान्तासु वा मधु मदांकुरितेक्षणासु । विश्रम्भमेति न कदाचिदपि क्षितीशः । सर्वाभिशंकित मतेः कतरन्तु सोख्यम् ॥ ३॥ नोकरोमां, प्रधानोमां, बधी रीते सुन्दर एवा पुत्रोमा, अने सुंदर नयनवाळी पोतानी स्त्रीयोमां पण राजा कोइ दिवस विश्वास राखी शकतो नथी. तो वधी जगे पर शंका वाळाने तो सुख क्यथाज होय ॥ ३ ॥ तेथी आ प्रमाणे न जाणतो एवो तरुण कोमळ खाखराना फुलनी माफक चंचळ जीवितमां आनंद माननार भने जीयोमे हणपा विगेरे कृत्योमां आनंद मानवाथी तेमां प्रवर्ते हे. अने ते बधुं जीवितना, परिचंदन, मान, पूजनने माटे करे छे. (अहिं परिनंदननो अर्थ संस्तव अने प्रशंसा छे.) एटले प्रशंसा माटे पाप करे छे. जेमके हुं मोर विगेरेना मांस भक्षणथी, वळवान, तेजथी देदीप्यमान देवकुमार जेवो लोकोमा प्रशंसा पात्र यश, तथा मानन, ( उभा थयुं, आसन आप हाथ जोडी पगे लागबु ) विगेरेमां ! योग्य पर एवी इच्छाथी सेने माटे चेष्टा करीने कर्म एकठां करे छे. तथा पूजन एटले द्रविण (धन), वस्त्र, अन्न, पान, सत्कार, प्रणाम तथा सेवा विगेरे रूपवाली छे ते अथवा तेने माटे क्रियाओमां कर्माश्रवोवडे आत्माने दोरवे छे. तेज प्रमाणे वीर भोग्या | वसुंधरा मानीने लढाइभ करे छे, अने दंडना भयथी मजा डरे एम धारी दंडे छे. जेवी रीते प्रशंसा मान अने पूजाना मुख्या राजाओ अधर्म करे छे. ते प्रमाणे बीना जीवोने आश्रयी पण जाणी ठेवु ( परोपकार माटे तन मन तथा धन आपत जो के यत्किंचित् क्रियाओ छागे छे अने तेनाथी -मशंसा विगेरे पण धाय छे. सेनो निषेध आ जगोए नथी. परंतु जेओ खास राजा For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ ७६ ॥ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मत्रम ॥८ ॥ जगोए बतादेला होवाथी अडिआं नहि बतावीए अने पृथिवीमा जे निक्षेपा विगेरे संभचे से नियुक्तिकार बतावे छे. आचा पुढवीएनिवखेवो, परूवणालक्खणं परीमाणं। उव भोगो सत्थं वेयणा य वहणा निवित्तीय ॥६॥ P पूर्वे जीवना उद्देशामा जीवनी परुपणा केमन करी? एवी शंका न करवी कारण के जीवात्मा सामान्य छे. तेनो विशेष ॥ ८१॥ आधारपणे पृथ्व्यादिरूपपणे होवाथी सामान्य जीवनु उपभोग विगेरेनु थयु. असंभव छे. जीव जे खाय छे. अथवा जे जे जीवनो विनाश करे . ते जीवनो नहिं पण जीव संबंधी कायानो से. माटे जीवने बदले पृथिवी विगेरेनी चर्चाथी जीवनी चिंतबना फरी छे तेमां पृथिवीनो नामादि निक्षेपो कद्देवो अने मरुपणामां तेना सक्षम, बादर विगेरे भेदो कहेवा, अने लक्षण ते साकार है अने अनाकार उपयोग सामान्य देख ते अनाकार अने विशेष देखq ते साकार, तथा काय योग विगेरे छे. परिमाण एटले सिंचर्तित लोकना प्रतरना असंख्येय भाग मात्र छे. अने उपभोग ते शयन, आसन अने संक्रमण चालवुविगेरे छे. शस्त्र ते स्नेह, अम्ल, खाटो रस तथा खार विगेरे छे. वेदना ते पोताना शरीरमा अव्यक्त चेतनारुप, ते सुख दुःखनो स्वभाव के एम जाणवू | वध, ते कयु, कराव्यु, अने अनुमोद्यं, ए विगेरेथी जोवना उपमर्दन रुप छे. निवृत्ति एटले अप्रमत्तपणे साधुना मन, वचन, काय गुप्तिबडे जोवोने दुःख न देवू ते आ वधा गाथामां आवेला शब्दोनो टुंकामा अर्थ छे. पण विशेष तो नियुक्तिकार अनुक्रमे कहे छे. नामंठवणा पुढवी, दवपुढवी य भाव पुढवो य। एसोखल्लु पुढवीए, निक्खेवो चउबिहो होइ ॥६९॥ । नाम स्थापना पृथिवी, नथा द्रव्य भने भाव पृथिवी, एम चार मकारे पृथिवीनो निक्षेपो थाय छे. तेबो अर्थ गाथामा छे. हवे । य देखg ते अनाकार उपभोग ते शयन, आसन अन, ते सुख दुःखनो स्वभाव , वचन, काप । For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ८२ ॥ www.kobatirth.org नाम स्थापना सुगम होवाथी तेने छोडीने द्रव्य पृथिवीनो निक्षेपो कहे छे. द शरीर भविओ, भावेण य होइ पुढविजीवोउ। जो पुढविनामगोयं, कम्मं त्रेएइ सो जीवो ॥ ७० ॥ द्रव्य पृथिवी आगमथी अने नोआगमथी एम वे प्रकारे छे. आगमथी जाणनारो पण, तेनो तेमां उपयोग नथी, अने आगमथी पृथिवी पदार्थने जाणनारो जीव, शरीर मूकी गयेलो ते ज्ञ शरीर अने भविष्यमां जाणशे ते बाळक विगेरे भव्य शरीर, आ वे शिवाय द्रव्य पृथिवी जीव, एक भविक, बद्ध आयुष्क तथा अभिमुख नामगोत्र छे. ए ऋण भेदों छे. आज वर्णन दशवैकालिकमां, वृक्षना निक्षेपामा उपाय छे. पाने ५१ मे जो. भाव पृथिवी जीव, जे पृथिवी नामादिकर्म उदयमां आयु होय तेने वेदे छे. ( निक्षेपद्वार पूरुं थयु हवे प्ररूपणाद्वार कहे छे. दुविहाय पुढवि जीवा, सुहुमा तह बायरा य लोगंमि। सुहुमा य सवलोए, दोचैव य बायर विहाणा ॥ ७१ ॥ पृथिवी कायना भेद छे. सूक्ष्म अने बादर. ते आ प्रमाणे, सूक्ष्म नाम कर्मना उदयश्री सूक्ष्म, अने बादर नामकर्मना उदयथी बादर, कमना उदद्यथी तेममुं सूक्ष्म बादरपणुं छे. इन्द्रियोथी न देखाय ते सूक्ष्म, अने इन्द्रियोथी देखाय ते बादर, व्यवहाraf alt अने आमचं एक बीजानी अपेक्षाए नानां मोटां गणाय पण ते अहिं न लेवु. दावडामां ठांसी ठांसीने मरेला गंधना अत्रयवोने छुटा फैक्या होय अने तेमांथी सुगंधी उडे अने दाटो खाली पड़ जाय पण देखाय नहि तेनी माफक सर्व लोक | व्यापि ठांसी ठांसीने भरेला सूक्ष्म प्रथिवीकाय छे अने वादर, ते मूळ भेदथी वे मकारे छे. ते बतावे छे. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ ८२ ॥ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा ॥८३॥ दुविहा बायरपुढवी समासओ साहपुढवि खरपुढवी साहाय पंचवण्णा अवरा छत्तीसइविहाणा ॥७२॥ संक्षेपथी घादर पृथिवी चे प्रकारनी छे. मुंबाळी चादर पृथिवी, अने खडबचडी बादर पृथिवी, तेमां मुंवाळी बादर पृथियो । सूत्रम् | लीली, काळी, लाल, पीळी अने धोळी, एम पांच प्रकारनी छे. अहिआ गुणना भेदथी गुणीनो भेद जाणवो. हवे खडवचडी 2 पृथिवी ३६ प्रकारनी छे ते वतावे छे. ॥८३॥ पुढवो य सक्करा वालुगा, य उवले सिला य लोणूसे । अय तंव तउअ, सीसग, रुप्प सुवपणे यवइरेय ॥७३॥ हरियाले हिंगुलए, मणोसिलासासगंजण पवाले। अब्भपडलब्भवालअ, बायरकाएमणिविहाणा ॥७॥ गोमेजए य रुयगे, अंको फलिहे य लोहियक्खे य । मरगय मसारगल्ले भुयमोयग इंदनिले य ॥७५ ॥ चन्दप्पह वेरुलिए, जलकंते चेव सूरकते य। एएखरपुढवीए, नामं छत्तीसयं होइ ॥ ७६ ॥ पहेली गाथामां पृथिवीना चौद भेद छे. बीजीमा हरिताल विगेरे आठ अने श्रीजीमां गोमेदक विगेरे दश अने चोथीमां चंद्रकान्त विगेरे चार भेद छे. अहिं पहेली वे गाथावडे सामान्य पृथिवीना भेद कह्या ए उत्तरनी थे गाथाओवढे मणिना भेद बताव्या. आ गाथाओ स्पष्ट होबाथी टीकाकारे वधारे खुलासो कर्यो नथी. पण सामान्य बुदिवाळा माटे बधा भेदो लखीए छीए (१) पृथीवी । (२) शर्करा (3) वालुका (४) उपल (५) शीला (६) लुण (७) उस (८) लोई (९) तांबु (१०) तरवु (११) सीमं (१२) रुघु For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie 1(१३) सोनं (१४) बन्न (१५) हस्ताल (१६) हिंगलोक (१७) मणशील (१८) सासक (१९) सुरमा (१०) ५९ (२९) -11 आचा०कना पतसं (२२) अभ्रकनी रेतीए बादरकायना भेद हे' अने पणिना भेदो से ते हवे कहेशे. (२३) मोमेद (२४) रुचक (२५)ठा सूत्रम् अंक (२६) स्फाटीक (२७) लोहिताक्ष (२८) मरकत (पार्नु) (२९) मसार्गल (३०) भुजमोचक (३१) इन्द्रनील नीचेनी टिप्पणी पापीणायके चंदन गेलं सग, मा विगरे रत्ननान भेदो छे, ते त्रीसम जाणव' (३३) नाम (४) बैडर (१५) ॥८४॥ जलकांत (३६) सुर्यकांत मूक्ष्म बादर भेदोने में प्रमाणे वतावीने इवे वर्ण विगेरेना भेदबडे पृथिवीना भेदा बतावे छे. वण्णरसगंधफासे, जोणिप्पमुहा भवंति संखेजा । णेगाइ सहस्साई, हुंति विहाणंमि इकिके ॥७७॥ वर्ण ते घोळा विगेरे पांच, अने रस ते तीखा विगेरे पांच अने गंध ते सुगंधी तथा दुर्गधो एका वे तथा मृदु ककर्श विगेरे आठ स्पर्श तेमा एकेक वर्णादिकां पण योनी बिगेरे घणान भेद थाय , संख्येयनु अनेकरूप पणु होनाथी, विशिय संस्थाना अर्थने कहे छे. अनेक हजार एक एक वर्णादिकना भेदो याय छे. कारण के भेदो योनिधी, अने जुदा जुदा गुणोधी धाय के. अने ते बधा मळी सात लाख योनि प्रमाण छे. पृथिवीकायन स्वरूप प्रज्ञापना सूत्रमा कयुं छे के"तस्थ ण जे ते पजत्तगा एएसिणं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाई संखेजाई जोणिपमुहसयसहस्साई पजत्तयणिस्साए अपजत्तया वकमंति, तं जत्थेगो ॐ For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्थ नियमा असंखेज्जा, से सं. खरवायरपुढवीकाइया ।" आचा० तेमां जे पर्याप्त छे, ते पोताना वर्ण आदेशयी, गंध, रस, अने स्पर्श आदेशथी, हजारो भकारना भेदो छे. योनिः विगेरे सूत्रम् लाखो गणत्रीए छे. अने पर्याप्तानी निश्राए, अपर्याप्ता व्युत्क्रमे छे. एटले ज्यां एक पर्याप्त होय त्या असंख्यात अपर्याप्त होय छे आ| || प्रमाणे खर बादर पृथिवी काय जीव जाणवा, अहिआ सवृत्त योनिवाळा पृथिवीकायिक काया, अने ते सचित्त, अचित्त, अने 8/॥ " मिश्र, तथा शीत उष्ण अने ते बेत्र एम भेदो जाणवा, आ योनिना भेद छे. तेज फरीथी नियुक्तिकार खुलासावार कहे छे. वण्णमि य इकिके, गंधमि रसम्मि तह य फासम्मि । नाणती कायवा, विहाणए होइ इकिकं ॥ ७८ ॥ ___वर्णादिक एकेक भेदमा हजारो प्रकारे जुदा जुदापणुं जाणवू. जेमके काळो रंग ए सामान्य छे, पण तेमां भमरो, कोयलो, [४ कोयल, (गवल) अने कानळ काइमां वधारे अने कोइ ओछी काळाश छे. ते भेद छे. तेथी कोइ कालु अने फोइ तेथी काळ8 & कोइ बधारे काळे ए प्रमाणे लीला विगेरे बधा रंगामां जाण. ते प्रमाणे रस, गंध, अने स्पर्शमां पण जाणवु तथा रंगोमां पण परस्पर मेळववाथी धूसर, केशरी, फर्बुर, कावरचित्रु विगेरे बीमा रंगनी पण उत्पति थाय छे एम विचारीने कहे. ए प्रमाणे वर्णादिकना प्रत्येकमा प्रकर्ष अने अपकर्षपणे परस्पर अनुवेध सरखामणी बडे घणा भेदो थाय छे. एम जाणवू. हवे फरीथी तापर्याप्त विगेरेना भेदो जणावे छे. जे बायरे विहाणा, पजत्ता तत्तिआ अपजत्ता । सुहमावि हुंति दुविहा, पजत्ता चेव अपज्जत्ता ॥ ७९ ॥ ॐXSEX -- For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जे वादर पृथिवीकायना भेदो वताव्या ते जेटला पर्याप्ताना छे तेटलाज अपर्याप्तानां छे. आ सरखापणुं भेदने आश्रयीने 12 आचा०४मान, जीवोन सरखापणुं न मानकारण के एक पर्याप्ताने आश्रयी असंख्यात अपर्याप्ता होय छे. सूक्ष्म पण पर्याप्ता अने 31 सुत्रम् अपर्याप्ता एम बे भेदे जाणवा, पण अपर्याप्तानी निश्राये पर्याप्ता उत्पन्न थाय छे. जेमां एक अपर्याप्तो त्यां तेने आश्रयी असं| ख्यात पर्याप्ता निधे होय छे. हवे पर्याप्तिभो बतावे छे. आहारसरीरिदियऊसासवओमणोऽहि निव्वत्तो होति जतो दलियाओ, करणं पइसाउ पज्जत्ती॥१॥ आहार, शरीर, इन्द्रियो, श्वासोश्वास, वचन, मन, एओनी अभिनिति (संपूर्ण रीते माप्ति) पाय छे. जे समूहथी करवं तेनी ते पर्याप्ति कहेवाय, एटले एक गतिमांयी जनारो बीजी गतिमां उत्पन्न थाय त्यां प्रथम पुद्गलने ग्रहण करीने निर्वाह करे छे. ते करण विशेष बडे एटले आहारने लीधे जुई खल रस विगेरे भाव वडे परिणाम पपाडे, तेवु करण विशेष एटले आहार तेने पर्याप्ति कहे छे ए प्रमाणे चीजी पर्याप्तिो पण जाणवी (आत्मा कर्मने आश्रयी नवी गतिमा उत्पन्न यतां जे शक्ति वडे आहारनां पुद्गलो लइश के ते 18 आहार पर्याप्ति जाणवी. तेज प्रमाणे आहार लीधाथी शरोररूपे बनावे तेज प्रमाणे बधी पर्याप्तिओ जाणवी.) तेमां एकेन्द्रिय जीवोने आहार, शरीर इन्द्रिय, अने उच्छवास नामनी चार पर्याप्तिो छे. आ चार पर्याप्तिओने अंतर्मुहूर्तमा (अडताळीश मीनीटनी अंदर) जीव ग्रहण करे छे. अनाप्त पर्याप्ति एटले पर्याप्त पूरी कर्या विनानो जे जीव होय ते अपर्याप्त कहेलाय, अने जे पर्याप्त पूरी करे तें पर्याप्त कहेवाय. पृथिवीकायनो विग्रह आ प्रमाणे करतो. पृथिवी तेजकाय जेनी छे ते पृथिवो काय जाणवाडी For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० 112 11 www.kobatirth.org जेम सूक्ष्म बादर भेदो सिद्ध थाय छे तेमांना प्रसिद्ध भेदो उदाहरणची बतावे छे. रुक्खाणं गुच्छाणं गुम्माण लयाण वल्लिवलयाणं । जह दीसइ नाणतं, पुढवीकांए तहा जाण ॥ ८० ॥ जे वनस्पतिने शाड विगेरेना भेदवडे जुदा जुदा पशुं जाणीए तेम पृथिवीकायम पण जाणो. जेमके वृक्ष ए आंबा विगेरे गुच्छा ते वेगण, शल्लकी अने कपास बिगेरे छे, गुल्म छे ते नव मल्लिाका कोरंटक विगेरे, छतामां पुन्नाग अशोक लता बिगेरे अने वल्लीम तुरीवं बालोर अने stanant विगेरे छे. वयम केतकी अने केळ विगेरे छे. बळी फरीथी वनस्पति भेदना दृष्टांतवडे पृथिवीना भेदो बतावे छे. ओस हि तण सेवाले, पणग विहाणे य कंद मूले य । जह दीसइ नाणतं, पुढवीकाये तहा जाण ॥ ८१ ॥ जेम वनस्पतिकायना औषधि विगेरे भेद छे ते पृथिवीकायना पण जाणवा, औषधियां शाली कमोद fat graां दर्भ विगेरे शेवाळ ते पाणीना उपर मेळ बाजे छे ते, पनकले लाकडा बिमेरे उपर उल लीलण फुलण विगेरे पांच बर्णनी होय छे. कंद ते सुरण विगेरे मूळ ते उशीरादि सुगंधी वाळो बिगेरे आ सूक्ष्म, होवाथी एक थे, बिगरे भेद यता नथी. हवे जेनी संख्या यह शके ते बतावे छे. इकल्स दुह तिह व संखिजाण व न पासिउं सका। दीसंति सरीराई, पुढविजियाणं असंखानं ॥ ८२ ॥ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ ८७ ॥ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥८॥ P गाथा स्पष्ट छे तेनो अर्थ आछे, के, एफ, ग्रे, ण, अन्ने संख्याता, जीवो एक एक शरीरमा रहेनारा देखादा नयी. पण PM आचा०15असंख्याता जीवोना असंख्याता शरीर साथे मळे न्यारे तेनो समूह आपणी नजरे आवे, एवां तेमनां शीणां शरीर छे. आ केवी सूत्रम् रीते मानवामां आवे के पृथिवीकायमां पण जीव छे? उत्तर-तेमां रहेला शरीरनी उपलब्धीची शरीरयां रहेनार आत्मानी प्रतीति ॥ ८॥ छे जेम गाय, घोडा विगेरेनी प्रतीति थाय छे तेम अहिं पण जाणवी ते बतावे हे, एएहिं सरीरे हिं पच्चक्खं ते परूविया हुंति । सेसा आणागिज्झा, चक्खुफास न जं इंति ॥ ८३ ॥ 12 असंख्यातपणे मेळवता पृथिवी शर्करा विगेरे जुदा भेदवाळा शरीरोवडे ते शरीरवाळा शरीरबडे साक्षात् कहेवाय छे. वाकीना सूक्ष्म जीवो आपणी पुदिनी बहार होवाथी ते जिनेवानी आज्ञा प्रमाणे मानवा जाइए कारण के ते घाग देखाता नथी. अहिं| 'स्पर्श' ए शब्द मूळमां छे. तेनो अर्थ चक्षुनो विषय एम करतो. प्ररुपणा द्वार पुर थयु. इवे लक्षणद्वार कहे छे. उवओगजोगअज्झव,साणे मइसुय अचक्खुदंसे य । अढविहोदय ले या, सन्तुस्सासे कसाया य ॥ ८४ ॥ तेमां पृथिवीकाय विगेरे स्त्याना (एक जातनी उंथ) ना उदयवी जे उपयोग शक्ति अव्यक्त छे ते ज्ञान दर्शन रुपवाळी छे | | गज रूपे उपयोग लक्षण हे. तथा योग ते कायानो एकलोन छे. अने औदारिक तथा औदारिकमिश्र तथा कार्मणरूप वृद्ध माणसनी लाकडी समान कर्भ धारी जीवोने आलंबन माटे चपराय छे. तया अध्यवसाय ते आत्माना सूक्ष्म परिणाम विशेष छे. अने ते में लक्षण छे. अव्यक्त चैतन्य पुरुगना मनमा उत्पन्न धयेली चिंता विशेषनी माफक ते लक्षमा न आवे तेवा जाणवा तया साकार SASAR करवाकर For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ८९ ॥ www.kobatirth.org उपयोगमा समावेश थाय तेत्रा मति श्रुत अज्ञानयुक्त पृथिवीकायिक जीव जाणवा तथा स्पर्शन इन्द्रिय वडे अचक्षु दर्शन पामेला जाणवा तथा ज्ञान आवरणीयादि आठ प्रकारना कर्मना उदयने भजनारा तथा बांधनारा जाणवा तथा लेश्या ते अध्यवसाय | विशेषरूप छे तेषां कृष्ण, नील कापोत, अने तैजस. ए चार लेश्याने ते ओ मेळवे छे. तथा दशविध संज्ञा पामेला छे. ते पूर्वे आहार विगेरे कही गया छीए. तथा सूक्ष्म उच्छास निश्वास सहित छे, धुं छे, के पुढचिकाइयाणं भंते! जीवा आणवन्ति वा पाणवंति वा ऊससन्ति वा नीससंति वा? गोयमा ! अविरहियं सतयं चेत्र आणवन्ति वा पाणवन्ति वा ऊससंति वा नीससन्ति वा । गौतम इन्द्रभूति महाराज पूछे छे. हे भगवन्! पृथिवीकायिक जीवो श्वास विगेरे ले छे? त्यारे जिनेश्वर भगवान कहे छे. हे गौतम! जरा पण विसामो लीधा विना पृथिवीकाय उसासो निसासो लीधा करे छे. तथा कषायो क्रोधादि पण सूक्ष्म होय छे. ए ममाणे जीव लक्षण ते उपयोग विगेरेथी लइने कषाय सुधीना पृथिवीकायना जीवोमां होय छे. अने ते जीव लक्षण समूदवाळी होवाथी मनुष्यनी माफक पृथिवी पण सचित्त जाणवी. शंका--आप कहे ते असिद्धवडे असिद्धज साधवा जेतुं छे. केमके उपयोग विगेरे क्षण पृथिवीrani मग देखातां नथी! उत्तर तमारूं कहे सत्य छे के उपयोग विगेरे लक्षणो पृथिवीकायम मगट देखातां नथी. कारण के ते लक्षणो तेमां अमगटपणे छे. जेम कोइ माणस घणाज प्रमाणमां नसो चढे तेषु मदिरा पान करे अने तेनुं चित व्याकुळ पड़ जाय तेथी तेने प्रगट भान होतुं नयी पण सूक्ष्म होय छे. तेटला गावे कंइ लेने अचित न गणी शकाव For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥। ८९ ।। Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेज प्रमाणे बीजी अगोर पण अमगट चेतनानो संभव जाणवो. आचा० शंका- अहिं पीधेला विगेरेगा श्वासोचास विगेरे अध्यक चेतनानु चिन्ह छे. पण पृथिवीकायमां ते जरापण चिन्ह देखातुं नथी. 181 सूत्रम् समाधान-तेम नथी, पृथिवीकायमां पण मांसना अंकुर पसानी माफक समान जातित्राला लताना उभेदादि चेतना त IN चिन्ह छे. कारण के अव्यक्त चेतनावालामां पण जेमां एक पण चेतनानो दाखलो चिन्ह मळी आवे छे एवी वनस्पति माफक P॥ ९॥ चेतना मानी लेवी. अने वनस्पतिमा जीव चतन्य छे. एम चोरूखु जणाय छे. कारण के तेओ ऋतु, ऋतुमा ऋतुने लायक फुल फलो आपे छे. (चैतन्य विनानी मुकी वनस्पति फळ आपी शकती नथी) तेथी वनस्पतिमां चैतन्य छे एम अव्यक्त भने उपयोग विगेरे। लक्षण तेमा होवाथी सिद्ध ययु. के पृथिवी सचित्त छे शंका पत्थरनी पाट विगेरे कठण पूदगलबाळाने चेतना पांथी होय? तेनुं । समाधान करवा नीचेनी गाथा कहे छे अट्ठी जहा सरीरंमि, अणुगयं चेयण खरं दिई । एवं जीवाणुगयं, पुढविसरीरं खरं होई ॥८५॥ जेम शरीरमा रहेलु हाइकुं कठण के पण चेतन छे. (कारण के हमेशां वधतु देखाय छे) तेवीन रीते जीववाळु पृथिवी शरीर कठण छे. हवे लक्षणद्वार कहीने तुरतज परिमाणद्वार नियुक्तिकार कहे छे. जे बायारपजत्ता पयरस्स असंखभागमित्ताते, सेसा तिन्निवि रासी, वीसुं लोया असंखिज्जा ॥८६॥ पृथिवीकाय चार प्रकारे छे ते आ प्रमाणे - For Private and Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा० सूत्रम् २८२८२-८ ॥ ९१ ॥ (१), बादर पर्याप्ता (२) बादर अपर्याप्ता (३) सूक्ष्मअपर्याप्ता (४) सूक्ष्म पर्याप्ता, तेमां जे बादर पर्याप्ता छे ते संवर्तित । । लोकमां जे प्रतर छे ते ना असंख्येय भाग मात्रमा रहेनारा प्रदेशनो जे समूह तेनी बरोबर जाणवा, बाकीनी श्रण गशीओ प्रत्येक छ. ते असंख्यात लोकाकाशना जेटला आकाश प्रदेश तेनी राशीममाणे जणवा आचारे भेदे अनुक्रमे एक एकथी घणाम जाणवा. का छे के सम्वत्थोवा बादरपुढविकाइया पजत्ता, बादरपुढविकाइया अपजत्ता, असंखेजगुणा, सुहुम पुढविकाइया, अपजत्ता, असंखेजगुणा सुहमपुढविकाइया पजत्ता असंखेजगुणा । बादर पर्याप्ता सौथी योटा छे तेना करता वादर अपर्याशा असंख्यात गुणा छे. तेनाथी सू० अपर्याप्ता असंख्यात गुणा अने तैनाथी सू० पर्याप्ता असंख्यात गुणा छे. हवे बीजी रीते प्रण राशीनु परिमाण बतावे छे. पत्थेण व कुडवेणव, जह कोइ मिणिज्ज सव धन्नाई। एवं मविजमाणा, हवंति लोया असंखिज्जा ॥८॥ जेम कोइ माणस पोताना वधा अनामने प्रस्थ अथवा कुडव (एक जातना माष) थी मापे छे तेवीन रीते जो कोइपण माणस असद्भाव प्रज्ञापनाने भंगीकार करीने आ जगतनेज कुडव रुप बनाने मध्यम अवगाहनावाला पृथिवीकायना जीवोने जो मापवा | मांडे तो असंख्यात लोकोने पृथिवीकाथनानीवो पूरी नाखे, हवे बीजी रीते परिमाण बतावे छे. लोगागासपएसे इकिक निक्खिये पुढविजीवं । एवं मविज्जमाणा, हवंति लोया असंखिज्जा ॥ ८८ ॥ For Private and Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasagarsuri Gyanmandir सूत्रम् P॥ ९२॥ लोकाकाशना प्रदेशमा एक एक पृथिवीकायनो जीव मुकीए तो असं ख्यात लोक. भराय. हवे काळी tamittini आचा 15 वाळा नियुक्तिकार क्षेत्र अने कालनुपूक्ष्म चादरपणाने कहे छे, निउणोउ होइ कालो, तत्तो नियुणरयं हवइ खित्तं । अंगुलसेढीमित्ते, ओसप्पिणीओ असंखिज्जा ।। ८९॥ ६ ॥९२॥ समय रुपकाळ अत्यंय निपुण अर्थात् सूक्ष्म छे. तेनाथी पण क्षेत्र घणुन सक्ष्म छे. कारण के एक आंपळ श्रेणीमात्र पण क्षेत्रना प्रदेशोने एक एक समये खसेडवा मांडीए तो असंख्यात उत्सर्पिणीओ अने अवसर्पिणीभो चाली जाय तेटलान माटे काळथी पण क्षेत्र घणुंज सूक्ष्म छे. हवे चालतुं परिमाण पहेला काळथी बतावे छे-- अणुसमयं च पवेसो, निक्खमण चेव पुढविजीवाण काये कायद्विइया, चउरोलोयाअसंखिज्जा ॥९॥ पृथिवी जीवोनो पृथिवीकायमा दरेक समये प्रवेश अने बहार आवबुं यया करे छे. ते एका समयमा केटलामो भवेश थाय छे, १. अने केटलातुं बहार निकळवू याय छे. २. तथा कहेवाता एक समयमा केटला पृथिवीकायना जीवी परिणाम पाम्या संभवे छे. ३. तथा पृथिवीकायनी स्थिति केटली छे. ४ ए प्रमाणे चार विकल्पो काळथी कहेबाय छे, मां घणाज असंख्यात लोकाकाश पदेशना परिमाणवाळा जीवो एक समय उत्पन्न थाय छे अने नाश पामे छे असंख्येय लोकाकाश प्रदेश प्रमाणो ? पृथिवीपणे परिणाम पामेला छे अने शरीरनी स्थिति पण छे, मरी मरीने असंख्यात लोकाकाश प्रदेश परिमाण काळ त्या उत्पन्न % EX For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyarmandie आचा सूत्रम् ॥९३ ॥ ॥ ९३॥ RAHASANGRAHADRASTAK थाय छे, ए प्रमाणे क्षेत्र अने काळथी परिमाण प्रतिपादन करीने हवे ते सर्व परस्पर मळीने (सेळभेळ थइने ) | रहेला छे ते बतावे छे, बायरपुढविक्काइयपजत्तो अन्नमन्नमोगाढो । सेसा ओगाहंते सुहमा पुण सबलोगंमि ॥९॥ बादर पृथिवीकाय पर्याप्तो जे आकाश खंडमां जीव रह्यो छे ते आकाश खंडमां बीजा पृथिवीकाय जीवतुं शरीर अवमाढेलं छे. अने बाकीना अपर्याप्तक जीवो पर्याप्ताने आश्रयीने अंतरा रहितनी प्रक्रियावडे उत्पन्न याय छे. ते पर्याप्ता पृथिवीकायना | अवगाद आकाश प्रदेशमा अवगाटेला समाइने रहेला छे. अने जे सूक्ष्मो छे ते वधा लोकमां अवगाढेला छे. हवे उपभोगद्वार कहे छे चकमणे यहाणे, निसोयण तुयदृणेय कयकरणे। उच्चारे पासवणे, उवगरणाणं च निविखवणे ॥९॥ आलेवण पहरण भूसणेय कयविक्कए किसीए य । भंडाणं पि य करणे, उव भोग विही मणुस्साणं ॥९३ ॥ चालवू, उभा धर्बु, निचे बेसवु. सुबुं कृतक पुत्रकरण माटीनां पूतळां बनावबां उच्चार, पेशाव, तथा उपकरण मृकः ॥९२॥ 8 तथा लीप, ओजार दागीना चनावां विगेरे लेवा वेचवा, खेती करवी, चासण बनावां विगेरेमां माणसोने पृथिवीकाय उपभोग -पराश ) मां आवे छे. जो एम छे तो झुं करवं ते कहे छे. एएहि कारणे हिं हिंसंति पुढविकाइए जीवे । साय गवेसमाणा परस्त दुक्खं उदीरति ॥९४॥ For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir उपर कहेला चालवा विगेरे कारणोमां पृथिवीना जीयोने हणे छे. शा माटे ? ते बतावे छे. जे जीवो पोताना सुखने बांछे छ। आचा०/8/ अने परर्नु दुख भूले के अने केटलाक दिवस रमणीय भोगनी आशाथी जेपनी इन्द्रियो खेचायली छे तेश्रो विमूढ चित्तवाळापनेला ४ सूत्रम् छे. अने तेथी तेओ पृथिवीकायमा रहेला जीवोने दुःख उत्पन्न करे छे. एनावडे पृथिवीकायना दानथी उदय थयेल शुभ फळनो उदय प्रतियुक्त छे. (आ टीकाकारनुं वचन लोकमा जे भूदानथी शुभ फळनो उदय मनाय हे तेथी उलटुं छे. एटले मोक्ष बांछ ॥ ९४ ॥ के पृथिवीकाय जीवोने दुःख न थाय माटे ते दान देवानी अभिलाषा न करवी पण ग्रहस्थे पोताना संसारिक काममां ते वापरतो होय अने तेमाथी परोपकारार्थे थोडी पृथिवीनुं दान आपे तो तेनो निषेध नथी) हवे शस्त्रद्वार कहे छे. जेनानडे क्रिया थाय ते 2 शल थे प्रकारचें के द्रव्य शत्र अने भावशस्त्र. हवे द्रव्य शस्त्र पण समास अने विभागवडे वे प्रकार- छ. तेमां पहेलु समास द्रव्य शस्त्र कहे ऐ. हल्लकलियविसकुद्दालालित्तयमिगसिंगकट्ठमग्गी य । उच्चारे पासवणे एयं तु समासओ सत्थं ॥१५॥ हळकोष, झेर, कोदालो लित्रक मगनुं शींग, लाकई, अनि, झाडो, पेशाव आ संक्षेपथी द्रव्य शस्त्र छे. हवे विभाग द्रव्य 8 रख कहे . सकिंची सकायसस्थं किंची परकाय तदुभयं किंचि। एयं तु दवसत्थं, भावे अ असंजमो सत्थं ॥ ९६ ॥ का अंशे पथिवीनुं शस्त्र पथिवी बने तो ते स्वकाय शस्त्र छे. (एटले जुदा जुदा रंगनी माटी विगेरे एकठी थाय तो परस्पर A + + For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पीडाकार छे.) तथा परकाय शस्त्र ते पाणी विगेरे पृथिवीने अचेत धनाचे छ. अने धमे साथे ते पाणीथी भीजापली पृथिवी ते से आचाबीजी पृथिवीन शस्त्र छे. आ वां द्रव्य शस्त्र छे. असंयम एटले मन, वचन, कायाने खराब रीते उपयोगमा लेखां भाव शवं छे. हवे वेदना द्वार कहे छे. * सूत्रम् ॥९५॥ पायच्छेयण भेयण जंघोरु तहेव अंगुवंगेसु । जह हंति नरा दुहिया, पुढविकाए तहा जाण ॥ ९७ ॥ ॥९५॥ स जेम पग विगेरे अंग उपांगमां छेदन भेदन करवाथी माणसोने दुःख थाय छे. तेज प्रमाणे पृथिवीकायमां पण ते जीवोने वेदना जाणो जो के पथिती कायने पग, माथु, गरदन विगेरे अंगो नथी तो पण शरीरना छेदनथी वेदना अवश्य छे. ए बतावे छे. नथि य सि अंगुवंगा, तयाणुरूवा य वेयणा तेर्सि। केसिंचि उदीरंती केसिंचतिवायए पाणे ॥९८॥ ____ अब्धी गाथानो अर्थ उपर कयों छे. पाछलीनसे कहे छे. केटलाक पृथिवीकायना जीवोनो आरंभ करनारा ते जीवोने वेदना लाउदीरे छे. अने केटलाकना तो तेथी प्राण पण जाप छे. तेवोन दृष्टांत भगवती सूत्रमा आपेलो छे. जेमके चार दिशामां चक्रथी A आण फेरवनार चक्रवर्तीनी, सुगंध पोसनारी यौवन मंदमाती बळवान दासी काचा आमला जेटला प्रमाणवाळा सचित्त पृथिवीनी गोळीने एकवीश वार गन्धपट्टमा कठण शीला पुत्रक पीसबाना पत्थर बढे पीसे छे. तोपण केटलाक पृथिवीकायना जीवोने फक्त तेनो संघट्ट थाय छे. केटलाकने परिताप अने केटलाफ मरे पण छे. अने केटलाक जीवोने शिलापुत्रकमो स्पर्श पण यतो नथी. दे वधद्वार कहे छे. For Private and Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न पवयंति य अणगारा ण य तेहि गुणेहि जेहिं अणगारा । पुढवि विहिंसाणा, न हु ते वायाहि अणगारा ॥२९॥ १।। आचा०४ ___ अहिं केटलाक जिनेतर साधुवेशने लइने कहे छे के अमे अनागर छीए, प्रवजित छोए पण तेश्रो निर्वद्य अनुष्ठानरुप जे सूत्रम् ness त्यो अनागार करे छे, ते तेभी करता नथी. हवे से अनागार गुणमा केम नथी वर्तता, ते बताये छे. तेो ईमेशां मळद्वार द्वार ॥ ९६ ॥ नया हाथ पग साफ करवामां पृथिवी जीवोने विपत्ति करनाग देखाय छे. तथा बीनी रीते पण मल द्वारने निर्लेप करवाने तथा | दुर्गध रहित करवाने शक्य छे. तेथी यती गुण कलापथी शून्य एवा अनगारोने बोळवा माथीजयुक्ति विना अनगारपणुं मळतुं नथी. आथी एम समजाव्यू के यती भोए पृथिवीकायने पीडा न थाय माटे हाथ धावा विगेरेमा पाटीनो उपयोग न करवो. अहिंआ पहेली गाथाना पहेला अर्थ भागवडे मतिना छे, पाछ्ली अडधी गाथाथी हेतु छे तथा उत्तर गाथाना अर्थ बडे साधर्म्य हष्टांत छे. के जेनेतर यतिपणानुं अभिमान करना छत्ता यतिमुणमा प्रवर्तता नथी. कारण के तेश्रो पृथिवीनी हिंसामा प्रवर्ते छे. अने जे जे पृथिवीनी हिंसामा प्रवर्ते छे, ते यतिगुणोमा प्रवर्तता नथी. जेमके गृहस्थीओ हवे दृष्टांतवाद्धं निगमन कहे छे. अणगारवाइणो पुढविहिंसगा निग्गुणा अगारिसमा। निहोसत्ति यमइला, विरइदुगंछाइ मइलतरा ॥१०॥ अमे यति छीए एम बोलीने पृथिवीकायनी हिंसा करनारा यतिओ ग्रहस्थाश्रमी जेवान के मामटो अर्थ कहे. छे. सचेतना पृथिवी छे. ए सानना अभावमा तेना समारंभवडे दोपवाळा छतां अमे निर्दोष छोए एम माननारा पोताना दोष जोवामां विमुख For Private and Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie आचा० ॥९७॥ होवाथी तेभो मलील हृदयवाला छे. छतां पाय पणाथी साधुनन आश्रित निर्वद्य अनुष्ठानवाळी विरतीनी निंदा करे छे. अने? वधारे मलीन बने दहे. आ साधु निंदाथी अनंत संसारीपणु बताव्युं जाणवू आ वे गाथा सूत्रमा कहेला अर्थने अनुसरनारी छतां 3 अधद्वारना अवसरमा नियुक्तिकारे कही छे. तेनुं व्याख्यान पोतेज करवू ते न्याययुक्त के कारण के गाथा पोतेज कहेली छे. ते G सूजन सूत्र नीचे बताये छे. 'लज्जमाणा पुढो पास अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणे त्यादि। आ वध करवो, करायचो, अने अनुमोदयो एम प्रण प्रकारे थाय छे ते बतावे छे केई सयं वहंति, केई अन्नेहिं उवहार्विति । केई अणुमन्नंति, पुढविकायं वहेमाणा ॥११॥ ___ गायानो अर्थ स्पष्ट छे. बोपण कहीए छीए. केटलाक लोको जीवने स्वयं मारे छे. केटलाक बोजा पासे वध करावे छे. अने केटलाक वध करताने अनुमोदे छे, हवे तेने आश्रित बीजाओने पण वध थाय छे एम बताये छे, जो पुढवि समारंभइ, अन्ने विय सोसमारभइ काए।अनियाए अनियाए, दिस्से यतहाअदिस्सेय ॥१०॥ जे पृथिवीकापने हणे छे ते सेने आश्रय करीने रहेला पाणी तथा घेइन्द्रिय विगेरे घणा दृश्य तथा अदृज्य जीवोने इणे छे. जेमके (अंबर) तथा पर्नु फळ विगेरे जे खाय ते फळमा रहेला वीजा जीबौने पण स्वाय छे म समजवू कारणने लीधे अथवा For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ९८ ॥ SONOR www.kobatirth.org अकारण, मनथी घारीने अथवा अणजाणे पृथिवी जीवांने हणे छे. अने तेने हणतां देखाता जीवो देवका विगेरे, तथा न देखाता एवा पांचे वर्णना पनक विगेरे जीवोने हणे छे. हवे ते बधारे स्पष्ट करे छे. समारंभता हणंति तन्निसिए य बहुजीवे । सुहुमे य बायरे य पजते या अप्पजते ॥ १०३ ॥ पृथिवीकायनो समारंभ करतां तेने आश्रयीने रहेला सूक्ष्म अने बादर पर्याप्त अने अपर्याप्त एवा अनेक जीवोने ते हणे छे. अहिं सूक्ष्मोनो वध खरी रीते यतो नथी. पण परिणामनी अशुद्धिथी तेनी निहसितुं पच्चखाण न कर्तुं होय त्यां सुधी तेना मनो दोष लागे छे. हवे विरतिद्वार कहे छे. एवं वियाणिऊणं पुढवीए निक्खिवंति जे दंडं । तिविहेण सवकालं मणेण वायाए कारणं ॥ १०४॥ उपर कहेला वचनने अनुसारे पृथिवीना जीवोने जाणीने तथा तेनो वध तथा बंध जाणीने पृथिवीकायना जीवोने इगवानी वृत्तिथी दूर थाय छे ते हवे पछीनी गाथामां कहेवाता अणगार थाय छे, तेओ मन, वचन, कायावडे पृथिवीना जीवोने कोइ दिवस इणे नहि, हणावे नहि, अने अनुमोदना पण न करे, आवं व्रत जे आखी जींदगी पाळे ते अणगार छे. बाकी रहेला अणगारना लक्षण हवे कड़े छे. गुत्ता गुप्तीहिं सवाहिं समिया समिईहिं संजया । जयमाणगा सुविहिषा परिसया हुति अणगारा ॥ १०५ ॥ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ ९८ ॥ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ९९ ॥ मन, पचन, काया, पत्रणेने कयजामा राखवाथी गुमा तथा पांच समिति ते इयाँ भाषा, येपणा, विगेरेथी युक्त एतले आचासम्मक रीते उभा थy q. चालविगेरे क्रियामा उद्यम करनार, ते संयत सर्व प्रकारे निदोष पस्न करनाग तथा सम्पदर्शन विगेरे अनुष्ठान जेओन सा छे ते गुणोवाला जैन अणगार होय छे. पण पूर्वे बतावेला मात्र नामचीन अणगार पृथिवीकायना ९९॥ भीवाने हणनारा शाक्य मत विगेरेना साधुभो न लेवा. नाम निष्पक्ष निक्षेपो समाप्त भयो.ाचे सूत्र अनुगमा अस्खलितादि गुण युक्त सूत्र उच्चारवान छे. ते आ छे. अहे लोए परिजण्णे दुस्संबोहे अविजाणए अस्सि लोए पवहिए तत्थ तत्थ पुढो पास आतुरापरिताति [ सू० १४]] पूर्वनो संबंध बतावे छे. तेरमा मुत्रमा परिज्ञातकर्मा मुनि होय छे. पण जे कर्मना भेदने माणतो नथी ते अपरिझात कर्मा पोते भाव आर्त होय छे. ते बतावे छे. वळी पहेला सूत्र साये आ संबंध छे. सुधर्मस्वामी कहे छे के हे जंबू में सांभळ्यु ! ते ४ कहे छे. पूर्व उद्देशामां कहेलुं ते अने आ पण सांभब्युछे के अ?' विगेरे तथा परंपर संबंध आ प्रमाणे छे. 'के इह एगेसि णो | Mसमा भवति इति उक्तं' ते केवी रीने ते जीवोने संज्ञा न होय ते बतावे छे, ते जीवो पीडायला छे, तेथी बतावे छे, 'अट्टे'। आर्तना निक्षेषा चार प्रकारे छे, नाम स्थापना सुगम छे. शरीर, भन्यशरीर अने ते थी व्यतिरिक्तनो आगमथी द्रव्यात गाडा For Private and Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie २ विगेरेना चक्रोमां उद्धीमूळमां जे लोढानो पाटो खोळी चडावे ते द्रव्यात छे, भावात पण वे प्रकारे छे, आगपथौ नामआचा०६ मथी तेमां आगमथी ज्ञाता ते आर्त पदार्थने जाणनारो अने उपयोगमा राखनारो अने नो आगमथी औदियिक भावमा वर्तनारो ते 8 सूत्रम् | राग द्वेषरुप ग्रहवडे घेरायला अंतरात्मावालो पियना वियोग विगेरे दुःख संकटमा निमग्न भावात तरीके गणाय छे, अथवा शब्दादि विषयो जे विषना विपाक जेबा छे, तेमां तेनी आकांक्षा होवाथी हित अहितना विचारमा शून्य मनवाळो होवाथी भावात छे, ॥१०॥ ते कर्मने एकठां करे छे, जेथी कबुं छे के :-- 'सोडदियवसट्टेणं भंते जीवे किंबंध? किं चिणाइ? किं उव चिणाइ? गोयमा! अह कम्म पगडीओ, सिदिलबंधणवद्धाओ धणियबंधणबद्धाओ पकरे? जाब अणादियं चणं अणवदग्गं दीहमर चाउरन्तसंसारकन्तारमणुपरियइ' श्रीवीरने पन-हे भगवान! कानथी सांभळयानो रसीओ बनी पीटातो जीव मुं बांधे छे, एकठे करे छे. उपचप करे? उचर- गौतम, आठ कर्मनी कतिमी जे शिथिल बंधवाळी होय सेने गाद धनवाळी करे हे, ते क्या सभी के जेम अनादि काब्धी रखडतो आवेलो तेम अनंत काळना लांबा पंथना चार गतिवाळा संसार कांतारमा भ्रमण करशे, ए प्रमाणे वीजी चार 0 इन्द्रियोना विषयमा ते स्पर्श इन्द्रिय सुधी समजबू, एज प्रमाणे क्रोध, मान, माया, लोभ, दर्शन मोहनीय, चारित्र मोहनीय विगेरेथी दा For Private and Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ १०१ ॥ www.kobatirth.org भाव आर्त संसारी जीवो पण चार गतिमां भ्रमण करनारा जाणवा. कं छे के : रागद्दोसकसाएहिं इंदिएहि य पञ्चहिं । दुहा वा मोहणिजेण अट्टा संसारिणो जिया ॥ १ ॥ राग द्वेष अने कपायो बढे पांच इन्द्रियों तथा वे प्रकारना मोहनीय कर्मथी संसारी जीवो पीडायला छे. अथवा ज्ञान आव रणीय विगेरे शुभअशुभ जे आठ प्रकारनां कर्म छे तेनाथी पीडायलो ते कोण छे? तेनो उत्तर कहे छे. अवलोके ते लोक, एक, बे, त्रण, चार, पांच इन्द्रियवाळो जीव समूह ते अहिं लोक जाणवो. लोक शब्दना नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काळ, भव, भाव, अने पर्याय ए आठ प्रकारे निक्षेप बतायी तेमi aera ra उदय वाळा लोकवडे अहिं अधिकार कहेवो, करण के जेटलो जन समूह आर्त छे ते सर्व परिन नाम परिपेलव निःसार छे, औपशमिक विगेरे प्रशस्त भाव रहित अथवा अन्यभिचारी मोक्ष साधन विनानो छे. (सम्पवदर्शन ज्ञान चारित्र ते मोक्षनो उपाय लेना विना संसारी जीव मात्र दुष्ट भावोमां रही पोते पीड़ाय छे। अने बीजाने पीडी नवां चीकणां कर्म बांधी चारे गतिमां अनंत काळ भमे छे.) परियुन शब्द वे मकारे छे. द्रव्यथी अने भावथी तेमां भावथी सचित्त परिधून ते जीर्ण शरीरवाळ बुढो अथवा जीर्ण जुनुं झाड अने अचित्त द्रव्य परियुन ते जीर्ण वस्त्र विगेरे अने भाव परिधुन ते औदविक भावनना उद्गथी प्रशस्त ज्ञान विगेरेथी रहित केम विकल ? अनंत गुणोथी परिहाणीथी कहे छे. पांच, चार, त्रण, ये एक इंद्रियवाळा जीव क्रमयी ज्ञाने विकल ओछा ज्ञानवाळा छे. तेमां सौथी ओछा ज्ञानवाळा सूक्ष्म निगोदना अपर्याप्त जीवो For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ १०१ ॥ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ACC ID जे प्रथम समये उत्पन्न धयेलो होय ते जाणवा. कहुं छे के:आचा। सर्वनिकृष्टो जीवस्य दृष्ट उपयोग एष वीरेण। सूक्ष्मनिगोदापर्याप्तकानां सच भवति विज्ञेयः ॥१॥ सूत्रम् ॥१०२॥ सौथी ओछा ज्ञानवाला जीवनो उपयोग महावीर प्रभुए निगोदना अपर्याप्ता जीवोनो देख्यो छे. ए जाणवू. ।।१०२॥ तस्मात्प्रभृतिज्ञानविवृद्धिष्टा जिनेन जीवानाम् । लब्धिनिमित्तः करणः कायेन्द्रिय वाङ्मनोहग्भिः ॥२॥ स्यार पछी जीवोनी लब्धिना निमित्त कारण तथा कायेन्द्रिय, मन, वचन, वडे ज्ञाननी वृद्धि थाय छे. एम जीनेश्वरे देखेळु | छे. ॥२॥ हवे ते विषय अने कपायथी पीडायलो प्रशस्त ज्ञान पून (हीणो) केची अवस्थावाळो थाय छे, ते बतावे छे. 'दुःस्संबोध' | एटले धर्मनी अने चारित्रथी प्राप्ति संबंधी जे बोध तेने घणी मुश्केलीथी समजाय छे समजबुं दुर्लभ छे. जेम मेतार्य मुनिने समजवू कठण पडयु हतुं अथवा ब्रह्मदन चक्रवर्ती माफक तेने बोध आपनो मुश्केल इतो तेना पूर्व भवना भाइए ज्ञानथी जाणी पोते साधु बनीने तेने बोध आप्यो पण घणा प्रयास छतां न समजायाधी साधु थाकी गयो पण ब्रह्मदत्त न समज्यो अने क्रूर कर्म करी नरकमां गयो. शा माटे आ करे? ते कहे छे. विशिष्ट अवबोध रहित ते आ ममाणे अशान बनेलो शुं करे छे ? ते कहे छे आ । प्रथिवीकाय लोकने अतिशय पीडा करे छे. तेना प्रयोजन माटे खोदवा विगेरेथी पीडा करतां जुदी जुदी जातनां शत्रोवडे ते जीवोने डरावी ते खेती करवी खाण खोदवी घर करवू विगेरे जुदा जुदा कार्यामां जरूर पढ़ता ते जीवोने पीडा करे छे. तेव18 - Res For Private and Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरु महाराज शिष्यने कहे छे के तुं जो पृथिवीकायना उपरज बधानो आश्रय होवाची प्रकर्षे एटले मुख्यत्वे पीडा पृथिवीकायनेज है। आचा० थाप, तथा व्यय धातु भय तथा चलनमां पण थाय छे. एटले टीकाकारे व्यथितना वे अर्थ लीघा. पीडा करवी अथवा भय पमा- सत्रम् Dडयो तथा पश्य शब्दथी एक देशमा एटले थोडाथी चीजें रहेलु ते पण लेवाय ते सिद्धांत शैलीवडे प्राकृत भाषानी रीती प्रमाणे 81 ॥१०३॥ ४ घणो आदेश लेवाय एटले शिष्यने का के. जो, शिध्ये पछयु Y? उत्तर-लोको पोताना प्रयोजनमा पृथिवीकायने निरंतर पीडे छे. ॥१०३॥ ___ आतुर शब्दवढे मूचव्यू के विषय कषाय विगेरेयी पीडायला जीवो ( अहिं पृथिवीकायनो विषय चालतो होवाथी) तेने la वारंवार पीडे छे. बहु बचननो निर्देश करवाने कारण ए छे के तेनो आरंभ करनारा घणा छे. अथवा लोक शब्द छे ते दरेका संबंध राखे छे. एटले कोइ लोक (जीव समूह) विषय कषायथी पीटायेल के. बीजो कापथी परिजीर्ण छे. कोइ दुःख संबोधले. अने कोइ विशिष्ट ज्ञान रहित छे. ए बधाए दुःखी जीवो पोतानी इच्छाभो पूरी करवा तथा मुख मेळवना आ पृथिवीकायना जीवोने अनेक प्रकारना उपायोबडे परिताप उपजावे के पटले घणी पीटा करे ।। १४॥ MM शंका-एक देवता विशेषथी आधारवाळी पृथिवी रहेली छे. ते वात मानवी शक्य हे. पण तेमां असंख्यात जीवोनो समूह | रहेलो छे. ए बात मानवी कठण छे. जैनाचार्य ते शंका दूर करवा कहे छे. संति पाणा पढो सिया लजमाणा पुढो पास अणगारामोति । एगे पवयमाणा जमिणं विरूवरूवेहि For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥१०४॥ सत्थेहिं पुढविकम्मसमारंभेणं पुढविसरथं समारंभेमाणा अणेगरुवे पाणेपिदिका आचा० संति शब्दथी विद्यमान छे. जीवो जुदा जुदा भाचे अंगुलना असंख्येय भाग स्वदेहनी अवगाहनावडे पृथिवीकायने आश्रयीने ॥१०॥ रखा छे. तेथी शास्त्रकार कहे छे के पृथिवी ते एकज देवतारुप नथी, पण जीवोनुं जुदा जुदा शरीरनुं संधान थइने पृथिवी अनेक H जीवोनी बनेली हे. तेथी सचेतनपणुं अने अनेक जीवोनो मां आश्रय छे. प पृथिवी स्वरुप खुल्लुं बताव्युं छे. अने ए जागीने तेना आरंभथी वर्तेलाने बतावे छे के तमो जो साधुपणुं कहेता होतो ते जीवोनी रक्षा करो नहि तो लजा पामशो. अहिं लज्जा चे मकारे छे लोक संबंधी ते वहु ससरानी लाज काढे छे, तथा सुभट विगेरे पोताना अमलदारथी युद्धमा हारतां शरमाय छे, ते । अने लोकोत्तर लज्जा ते सत्तर प्रकारनो संयम छे, तेथी कह्यं छे के : लज्जा दया संजम बंभचरे मित्यादि । लाज, दया, संयम, ब्रह्मचर्य, विगेरे एकार्थ छे लाजनो अर्थ ए छे के संयम अनुष्ठानमा रही तेनी मर्यादा पालन करीने वीजा 8 जीवोने न पीड. अथवा जैनेतर साधु पृथिवीकापना समारंभ रुप असंयम करवाथी लज्जा पामता एवा प्रत्यक्ष ज्ञानीओधी तथा । परोक्ष ज्ञानीभोथी छे, तेमने तुं जो तेवु शिष्यने गुरू कहे छे आ कडेवाथी सुचव्यु के शिष्ये कुशळ अनुष्ठान प्रवर्तिना विषयमा ४/ रहेके तेने तेओनी माफक लजावू न पडे, जैनेतर जीव दयान स्वरुप जेवू घोले छे तेवू करता मी ए देखाच्या जैनाचार्य For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ १०५ ॥ www.kobatirth.org कहे छे के जैनेतरी पोताने अमे अगार पटले घर तेनाथी रहित एटले अनगार (यति) छीए एम बोले छे. ते शाक्यमत विगेरेना साधुओ जाणवा. एम बतावे छे ते कहे छे के अमेज जंतु रक्षामां तत्पर छीए तथा अमे कषाय अज्ञानरूप अंधकारने दूर कर्या छे. ए ममाणे बोलनारा प्रतिज्ञा मात्र जे अनर्थनुं मूळ ते व्यर्थ बोले छे. जेम कोइ अत्यंत सुचीबोद्र ते चोसठ बार माटीथी स्नान करना अने गायना मदानी शुचीने दूर करीने पाछो कर्म कर ना कहेवाथी चामडां हाडकां मांस, स्नायु विगेरेने पोताना उपयोग माटे तेनो संग्रह करे तेज प्रमाणे तेणे पवित्रतानुं अभिमान धारण कर्या छर्ता शुं त्यायुं ? इज नहि ते प्रमाणे शाक्यमत | विगेरेना साधुओ अनगार वादने वहन करे छे, पण अनगारना गुणोमां जरापण वर्तता नथी अने गृहस्थनी चर्चाने जरा पण उल्लंघता नथी एवं देखा छे एनुं आ सर्वजन प्रत्यक्ष एवं कृत्य पृथिवीकायना जीवोने जुदा जुदा प्रकारना हळ कोदाळी, खनित्र विगेरेथी जीवोने हणे छे. अने पृथिवीकायना समारंभमां पृथिवीकायना शस्त्रोत्र डे पृथिवीकायना जीवोने हणवा साथै तेने आथयीने रहेला बीजा जीवो पाणी वनस्पति, विगेरेने हणे छे. तेनो भावार्थ आ छे के जीव मात्रने बचाववानी प्रतिश करी जीवनु | स्वरुप जाणवानी दरकार करता नथी अने गृहस्थ माफक पृथिवीकायनो समारंभ करीने अनेक प्रकारे पृथिवीना जीवोने तथा | तेने आश्रयी रहेला अनेक जीवांने हणे छे. आ प्रमाणे शाक्य विगेरेनुं पार्थिव जंतु साथै बैरभाव बताची तेमनुं अयतिपर्ण मतावी | हवे सुखोना अभिलाष बड़े कर कराव अनुमोदधुं तथा ते त्रण करण साथे योगनी महत्ति बतावे छे. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ १०५ ॥ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥१०६॥ तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदणमाणणपूयणाऐ जाइमरण आचा मोयणाए दुक्खपडिघायहेउं स सयमेव पुढविसरथं समारंभइ अण्णेहिं वा पुढविसत्थं समारंभावेड ॥१०६॥ अण्णे वा पुढविसत्थं समारंभंते समणु जाणइ (सू. १५) त्यां पृथिवीकायना सभारंभमा श्री वर्धमान स्वामी भगवाने आ, कां छे के हवे पछीना कहेवाता कारणावडे मुखना अभिलापीओ करवा करावना अने अनुमोदवावडे पृथिवीकायनो समारंभ करे छे, तेना कारणो बतावे छे. (१) नाशवंत जीव-४ मना परिवंदनमानन पूजन माटे तथा जन्म मरण अने मुक्ति माटे तथा दुःखोने दूर करवा माटे पोते सुखनो अभिलाषी अने दखनो द्वेषी बनी पोते पोताना बडेज पृथिवी शखनो समारंभ करे छे बीजा, जीवो पासे करावे छे. अने करताने अनुमोदे के. एम अज्ञान दशाथी पूर्वकाळमां करी भविष्यमां करशे ए प्रमाणे मनवचन कायाना कर्मवडे योजवू, आची जेनी मति छ तेनु Mथाय छे ते बतावे छे. तंसे अहिआए तं से अबोहीए से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुहाय सोचा खल भगवओअण-d गाराणं इहमेगेसिं णातं भवति एस खल्लु गंथे एस खल्ल मोहे एस खलु मारे एस खल्लु णरए इच्चत्थं गड्ढिए लोए जामिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं पुढविकम्मसमारंभेण पुढ विसस्थं समारंभमाणे अण्णे SAA%कर For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ १०७ ॥ www.kobatirth.org अणेगरुवे पाणे विहिंसइ से बेमि अप्पेगे अंधमन्भे अप्पेगे अंधमच्छे अप्पेगे पायमन्भे अप्पेगे पायमच्छे अप्पेगे गुल्फमवभे अप्पेगे गुप्फमच्छे अप्पेगे जंघमब्भेर अप्पेगे जाणुमन्भे? अप्पेगे उरुमन्भे अप्पे कमि २ अप्पेगे णाभिममे २ अप्पेगे उदरमब्भे २ अप्पेगे पासमब्भे २ अप्पेगे पिट्ठिमन्भे २ अप्पेगे उरमब्भे २ अप्पेगे हियमन्भे २ अप्पेगे धणमन्भे २ अप्पेगे धमन्भे २ अप्पेगे बाहुमन्भे २ अप्पेगे हत्थमन्भे २ अप्पेगे अंगुलिमव्भे र अप्पेगे हमब्भे २ अप्पेगे गीवमव्भे २ अप्पेगे हणुमब्भे २ अप्पेगे होडमब्भे २ अप्पेगे दंतमन्भे २ अप्पेगे जिन्भमन्भे २ अप्पेगे तालुमन्भे २ अप्पेगे गलमब्भे १ | अप्पेगे गण्डमभे २ अप्पेगे कष्णमब्भे २ अप्पेगे णासम भे २ अप्पेगे अच्छिम भे २ अप्पेगे भमुहमध्ये २ अप्पेगे णिडालमभे अप्पेगे सीसमध्ये २ अप्पेगे संपसारए अप्पेगे उदवए इत्थं इत्थं समारभमाणस्स | इचेते आरंभा अपरिण्णाता भवंति ( सू० १६ ) २ उपर कहेला पापना कृस्पो जे पृथिवीकायने दुःख देवारूप छे ते करवा करावा तथा अनुमोदवाथी तेने भविष्यकाळमां For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥ १०७॥ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie Skekse अहितने माटे यशे तेम बोधिलाभ सम्यक्त्वथी विमुक्त करशे. कारण के प्राणी गागना उपमर्दनमा प्रयोलामाने बोडो पन दियो । लाभ नहि थाय जे कोइ भगवान पासे अथवा तेना शिष्य खरा साधु पासे पृथिवी कायना आरंभने पापरुप जाणीने भावे छे ते सूत्रम् 1 आईं माने छे. जेणे पृथिवीनुं जीवपणुं जाण्यु छे, ते परमार्थनो जाणनारो साधु पृथिवीकायना शखना समारंभने अहितपणे सारी / ।१०८॥ P ॥१०॥ रीते जागनारो पोते सम्पदर्शन विगेरे स्वीकारीने बचावे छे. हवे ते केवा प्रत्ययथी याने हे ते पताये छे. का तो ते भगवान पासे का तो कोई साधु पासे समजीने बचावे छे. मनुष्य जन्मयां तत्तनो प्रतिबोध पामेला साधुओए आ जाण्युं छे. शुं जाण्यु छे ? ते वतावे छे. आ पृथिवीकायन शास्त्र जेनो समारंभ अg प्रकारना कर्मनो बंध छे खलु शब्दथी निधे जाणवू तथा कारणमा कार्यनो । ६ उपचार करवो ते नालोदक गंदु पाणी जेम पगने रोगी बनाये छे तेथी पग रोग तरीके जाणोतुं छे ते न्याये पृथिवीकायनो समा४रंभ मोहनीय कर्मना बंधरुप छे. वक्री मोहनो हेतु होवाथी पृथिवीकायनो समारंभ कारण अने आठ कर्म ते कार्य छे एम मन्यु ते मोहनीय कर्मना चे भेद छे. अने अठावीश कारनी कर्म प्रकृति छे. ते जाणवी. वळी मरणतुं हेतु होवार्थी माररुप छे, एटले पृथिवीकायने मारे ते पोताना आयुःकर्मनो क्षय करे छ, अर्थात् अकाळे मरे छे. तथा नरकनो हेतु होवाथी ते नर्क छे. आपणा रहेवासथी नीचे जे पृथिवी छे तेमां नरक, मां सोमंत विगेरे दुःखदाइ स्थानोमां नरकना जीवो तरीके रही दुःख भोगवे छे. आथी अशावा वेदनीय कर्म बांधवान सूनव्यु छे. For Private and Personal use only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie आचा० CERIES सत्रम ॥१०९॥ ॥१०९॥ शंका-एक पाणीना नाश करवायी प्रवृत्तिमा आठ प्रकारको कर्मबंध केवी रीते थाप? उत्तर-मराता जंतुना ज्ञानने रोकवाधी शानावरणीय कर्म बंधाय ऐ. एपी रीते बघा कोमा योजg अने पूर्वे कहेला हानी साधुओए बीजुं पण आq जाणेलुं छे, ते बतावे छे. के आहार भूपण तथा उपकरणने पाटे तथा परिवंदन, मानन, पूजनने माटे 31 भने दुःखना प्रतिघात माटे लोक (माणीगण ) घेलो बनेलो छे. कार्य भकार्य ने जाणतो नथी. आ प्रमाणे अति पापना समूहना विपाकरुष फळ एका पृथिवीकायना समारंभमा अज्ञानी अज्ञानवश मूर्छित थयेलो आव कार्यों करे छे. ते चताये छे. आ पृथिवीकायना जीवोने विरुप शस्त्रोवढे पृथिवीकायनो समारंभ करतो पृथिवीकायना जीवोने हणे हे. अने तेनी साथे पृथिवी भखबरे पृथिवीनुं निकंदन करे छे. अथवा हक, कुदाळा विगेरेथी अनेक प्रकारे समारंभ करे छे. अने तेने रणां तेने आश्रयीने रहेका थे इन्द्रियादि जीवोने हणे थे. बादीनी शंका आरेका (हदपार) प्राय कारण के जे न जुए, न सांभळे, न सुचे, न जाय, ते केवी रीने वेदना अनुभवे अने ते बात अमे मानीए? आ वायतमा आचार्य महाराज हतिथी समाधान करे छे. तमे पूछयु माटे पृथिवीकायनी वेदना हुँ कहु छु', अपि शब्द | यथाना रुपमां छे. जेम कोइ जन्मथी अंध बहेरो, मुंगो, कोढीओ पंगु, तथा हाथ पग विगेरे अवयवथी शिथील विपाक सूत्रमा कहेला दुःखी पगापुध सेवा पूर्वे करेला पापोथी अशुभ कर्म उदयपो आवतां हित, अहित, माप्ति तथा त्यागथी विमुख सर्व प्रकारे दुःखी जोतां आपणने तेना उपर अति करुणा आवे तेज पमाणे भंध विगेरे गुण युक्त दुःखीने कोइ भालानी अणीवडे भेदे छेदे | For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् तोपण ते वापढो दुःखी छे. अने छेदातो भेदातो म देखे न सांभळे अने मुंगापणाथी न हए तो आपणे तेने वेदनानो अभाव आचा०/-/मानी ? अथवा तेमां जीवनो अभाव मानी शकाशे. एज प्रमाणे पृथिवीना जीवो पण अव्यक्त चेतनावाला जन्मांध, बहेरा, मुंगा, पंगु, विगेरे गुणोवाला पुरुष माफक जाणवा अथवा जेम पंचेन्द्रिय जीवो जे स्पष्ट चेतनावाला छे, तेमने कोइपण पगमा भेदे,H ॥११॥ त छेदे ए प्रमाणे गुल्फ घुटण विगेरेमां पण दुःख दे तथा एज प्रमाणे जंघा, जानु, उरु,-कटी, नाभी, पेट, पडखां, पीर, छाती, हृदय, स्तन, स्कंध, बाहु, हाथ, आंगळी, नख, गळ, हडपची, होठो, दांत, जीभ, ताळg, गर्छ, लमणा, कान, नाक, आंख, भ्र, ललाट, शिर विगेरे अवयवमा छेदन, भेदन विगेरे थतां वेदना उत्पन्न यती देखाय छे तेज प्रमाणे अतिशय मोहना अजानने भजनारा, स्त्यानधिं (घोर निद्रा) ना उदयथी अव्यक्त चेतनावाला प्राणीभोने अव्यक्त वेदना थाय छे एम जाणवू अहिं बीजें दृष्टांत कहे छ. जेम कोइ माणस दुष्ट बुद्धिथी जीवोने वेभान करे अने बेभान कर्या पछी तेने मारे अने जीवरहित करे तो तेनी वेदना प्रकट देखाती नथी पण तेने वेदना अपकट छे. एवं आपणे जाणीए छीए तेज प्रमाणे पृथिवीकायना जीवोने पण जाणवू दारू पीने घेला थयेला अथवा ब्यंतर विगेरेथी घेला बनेलाने जोरथी मारतां ते वखते तेने दुःख पूरु पडतुं देखातुं नथी पण चेतना भावतां तेना मारने पोतेज सारी रीते जाणी शके छे. तथा शीशी सुंघाडी डोकटर कापतप करे छे. ते मालुम पडतुं नथी पण ते नसा करतां वधारे नार रहे तो पेलो साक्षात् दुःख अनुभवतो देखाय छे. अथवा वधारे वार नसो रहे तो दरदीना पाण पण जाय छे. ए प्रमाणे पृथिवीना जीवोर्नु पण जाणवू. हवे पृथिवीकायतुं जीवत्व साधीने तथा जुदा जुदा शस्त्रोना मारवढे पीडा For Private and Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie थती बतावीने तेना बघां यता बंधने बताये छे. आचा० ___ सोळमां मूत्रमा सुगम अर्थ धारीने टीकाकारे पुरो अर्थ लख्यो नथी माटे खुलासो करीए छीए के ते अहितने माटे अबोधीने । सूत्रम् मारे थाय छे. एवं जाणीने आदरवा योग्य चारित्र विगेरे लड़ साधु विचारे छे के जिनेश्वरने तथा सारा साधुओने आ मालुम 01 ॥१११॥ छे के पृथिवीकापनी हिंसा ते कर्मनो गांसडो, मोह, मार, नर्क छे. छतां तेनी अंदर लोक गृद्ध बनीने विरुप शस्त्रोवडे पृथिवीकायने ॥१११ ॥ । अनेक प्रकारे दुःख दे छे. ते दृष्टांत बतावे छे के पृथिवीकाय जीवो अंध माफक नसावळा माफक अव्यक्त चेतनावळा छे. तेने । | दुःख दे छे. जेम ते आंधळांने पग घुटी-पीडी झांग, जानु, नाभी, केड, उदस्थी छेवट माथा सुधी दुःख दे छे तेम पृथिवीकायने । 8 दुःख दे छे, आ भावार्थ छे. एत्थ सत्थं असमारभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिपणाता भवंति, तं परिणाय मेहावी नेव संयं पुढवि सत्थं समारंभेजा णेवण्णेहिं पुढवि सत्थं समारंभवेज्जा णेवण्णे पुढवि सत्थं समारंभते समणु । जाणेजा, जस्सेते पुढवि कम्म समारंभा परिपणाता भवंति से हु मुणी परिणातकम्मेत्ति बेमि | (सु. १७) ॥ इति द्वितीय उद्देशकः॥ अहिआं पृथिवीकायमा द्रव्य अने भावथी भिन्न चे शस्त्र ले तथा द्रब्ग शस्त्र ते स्वकाय अने परकाय तथा बे रुपवाज़ बताव्यू For Private and Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ११२ ॥ www.kobatirth.org अने भाव शत्र ते असंयम एटले खराब ध्यान तथा मन, वचन, कायानो खरावं उपयोग तान्यो बन्न प्रकाश चलावी खोद, खेती करवी विगेरे समारंभन कामो बंध हेतुपणे जेमणे जाण्यां नथी ते अज्ञात अने जेमणे जाण्या छे ते परिज्ञात छे. ते बतावे छे. अहिं पृथिवीकायां वन्ने मकारनुं शस्त्र न चलावनारा पूर्वे कडेला समारंभने पापरूप जाणीने तेने स्वागेला जे | अणगारो ते परिज्ञात जाणवा. आ वचनथी ए सूचभ्युं के अहिआ बिरति एटले जीवोने दुःख न देधुं ते बतान्यु हवे ते विरतिने खुल्ले खुल्ली बतावे छे. एटले पृथिवीकायना समारंभमां बंध जाणीने मेघावी बुद्धिमान शुं करे ? ते बतावे छे. आ पृथिवी शस्त्र जे द्रव्यभावे भिन्न छे, ते पोते न करावे न अनुमोदे ए प्रमाणे मन, वचन, फाय, तथा अतीत, अनागत, काळना पण पञ्चखाण करे के मारे पृथिवीकायना जीवोने कोइ पण रीते दुःख न देखूं विगेरे आ ममाणे करेली निवृत्तिवाळो मुनि छे. एम जाण पण बीजा नहिं, हवे आ विषयने संकेतां कहे छे के जेओए पृथिवी जीवोनी वेदनानुं स्वरूप जाण्यृ छे तथा पृथिवी खोदवी खेती करनी तेमां कर्म बंधनो हेतु छे. ते जाण्युं छे. तेथी सपरिज्ञावडे जाणीने प्रत्याख्यान परिज्ञावडे तेने त्यागे से मुनि छे. आ प्रमाणे बन्ने मकारनी परिज्ञाकडे जाणे तथा जे त्यागे ते आठ प्रकारना कर्म संधाय ते सावध अनुष्ठान त्यागवाथी ते परिज्ञान कर्मा मुनि जाणवो. पण न त्यागनारो शाक्यादि मुनि न जाणो. 'अनीमि' शब्दनो अर्थ पूर्व माफकज छे. शखपरिज्ञानो बीजो उद्देशो पुरो थयो पृथिवीनो उद्देशो पुरो थयो हवे अपकायनो उद्देशो कहे छे. तेनो संबंध आ प्रमाणे छे. गया उद्देशानां अने तेमां पृथिवीकायना जीव सिद्ध कर्या तेना बधमां कर्म मंध बतायो For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ ११२ ॥ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir C आचा० सूत्रम् ॥११३॥ o अने छेवटे मोक्ष माटे विरति धर्म घताच्यो, तेज प्रमाणे हवे अनुक्रमे आये अपकायर्नु जीवत्व अने तेना वधमां बंध अने करवी जोइती विरति बतावे छे. आ प्रमाणे वीजा अने बीजा उद्देशानो संबंध छे. तेना चार अनुयोग द्वार कहेवा तेमा नाम निष्पन्न निक्षेपामां अपफायनो उद्देशो छे. अने जे पूर्व पृथिवीकाय जीवनुं स्वरुप समजाववाने माटे निक्षेपा विगेरे जे नव द्वार कयां इतां । ते अहि समानणे होवाथा तेज कायम राखी वइक बधारे बतायवानी इच्छाथी उद्धार करी नियुक्तिकार कहे छे. आउस्सवि दाराई ताई जाइं हवंति पुढवीए । नाणत्ती उविहाणे परिमाणु वभोग सत्थे य ॥ १०६ ॥ अपकायना पृथिवीफायां बताव्या प्रमाणे नवद्वारो छे. फक्त भेद एटलोज छे के विधान प्ररूपणा परिमाण. उपभोग, शस्त्र, संबंधमां ते पृथियोथी जुदी रीते के एम भाण. च शब्दथी लक्षण विषय छे. तु शब्द निश्चय वाचक छे. एटले पृथिवीकाय अने अपकाय फकत विधान विगेरेमांज जुदा के बीमामा नहि एम जणाचुं हवे विधान एटले परुषणा ते संबंधी जुदापणुं बतावे छे. दुविहा उ आउजीवा सुहमा तह बायराय लोगंमि । सुहमा य सव्वलोए, पंचेव य घायर विहाणा ॥१०७॥ ____ अपकापना जीव लोकमा सूक्ष्म अने चादर एम चे प्रकारे छे, तेमां सूक्ष्म रथा लोकमां छे. पण वादरना पांच भेद छे, हवे तेनी भरुपणा करे हे सुद्धोदए य उस्सा, हिमे य महिया य हरतणूचेव । बायर आउविहाणा, पंचविहा वणिया एए ॥१०८॥ -ORK For Private and Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ १९४ ॥ www.kobatirth.org शुद्धोदक ते तळाव, नदी, समुद्र, कुंड, अव विगेरेमां रहे पण ते ओससित्रायतुं जाणयुं, अने रातमा अथवा परोडीए जे ठार पडे छे जेने गुजरातमा झाकल कहे छे. ते अवश्याय (ओस ) छे, अने शियाळाम टंडा पुलना समुहना संपर्कथी जळ बरफीना चोसला जेवं कठण थाय छे ते हिम छे. अने गर्भ महिनामां सांज सवार जे घुमाडा जेवुं पडे छे ते धुमस अथवा महीका कवाय छे अने शरद तथा वर्षाना काळमां लीली वनस्पतिना उपर पाणीनां बिंदु पढे छे, ते जमीनना स्नेहना संपर्कधी उत्पन्न थयेलो हरतनुं कहेवाय छे. आ मुख्य पांच भेद बादर अपकायना छे. शंका- पण सूत्रां बादर अपकायना घणा भेदो बताव्या छे जेमके करा, थंडो उनो खारक्षत्र, कटु, अम्ल, लवण, वरुण, कालोद, उच्कर, क्षीर, घृत, इक्षुरस, विगेरे भेदो बताब्या छे, ते शा माटे ? उत्तर-आ वधा भेद बादर अपकायना छे खरा, पण बधा भेदोनो पांच भेदमांज समावेश थाय छे जेमके करा कठण होवाथी हिममां तेनो समावेश थाय छे अने बाकीनाओनो शुद्धोदकमां समावेश थाय छे, फक्त तेनुं भिन्नपणु स्पर्श, रस, स्थान, वर्ण, विगेरेमांज छे, (जेम के समुद्रनुं पाणी मात्र जुदा जुदा पाणीना पुद्गलो तेमां मळेला होवाथी स्वादमां खारु छे पण ते शुद्धोदकम छे. शंका- जो एवी रीते पांचमांज बानो समावेश तो होय तो पद्मवणा सूत्रमां बीना भेदोनो पाठ केम आप्यो ? उत्तर- श्री बाळ, अने मंद बुद्धिबाळाने सहेलथी समजाय ते माटे भेद पाया छे. प्रश्न- त्यारे अहिं नियुक्तिकारे केम भेद न बताव्या? For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥ ११४ ॥ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ।। ११५ ।। www.kobatirth.org उत्तर - प्रज्ञापना अध्ययन ते उपांग छे अने आर्ष वचन छे. तेमां बधा भेदो लेवा योग्य छे। अने स्थां बधा भेदो बताववाथी स्त्री विगेरेने बधारे लाभ धाय, अने नियुक्तिओ तो सूत्रना अर्थ साथै एकता करे छे, तेथी लीपा नथी, तेथी अदोष छे. उपर कहेला बादर अपकायना संक्षेपथी ये भेद छे. पर्याप्ता अने अपर्याप्ता तेमां अपर्याप्ता ते वर्ण विगेरेने न पामेला अने पर्याप्ता ते वर्ण, गंध, रस, अने स्पर्शना आदेशोवडे हजारो भेवाळा छे। अने तेथी संख्येय योनी प्रमुख लाखो भेदे थाय छे ते जाणवुं. आ बधानी संतृत योनि जाणवी अने ते योनि सचित्त, अचित्त, मिश्र एम त्रण भेदे छे. तथा शीत उष्ण, अने मिश्र एम ऋण भेदे छे. प प्रमाणे गणतां अपकायनी सात लाख योनी थाय छे. हवे प्ररूपणा पछी परिमाण द्वार कहे छे. जे बायरपज्जत्ता पयरस्स असंखभाग मित्ताते। सेसा तिन्निवि रासो वीसुं लोगा असंखिजा ॥ १०९ ॥ जे बादर अपकाय पर्याप्ता छे ते संवर्तित लोक मतरना असंख्यातमां भागमां जे प्रदेश राशी छे तेना बरोबर छे. अने बाकीना जे ब्रह्या ते प्रथक असंख्यात लोकाकाश प्रदेश राशी प्रमाण जाणवा पण तेमां आटलं विशेष छे के बादर पृथिवीकाय पर्यासाथी बादर अपकाय पर्याप्ता असंख्यात गुणा छे, अने बादर पृथिवीकाय अपर्याप्ताथी बादर अपका अपर्याप्ता असंख्यात गुणा छे, तेमज सूक्ष्म पृथिवीकाय अपर्याप्ताथी सूक्ष्म अपकाय अपर्याप्ता विशेष अधिक छे अने सूक्ष्म पृथिवीकाय पर्याप्ताथी सूक्ष्म अपकाय पर्याप्ता विशेष अधिक छे. हवे परिमाण द्वार कछु पछी च शब्दधी चुचवेलुं लक्षणद्वार कहे छे. जह हत्थिस्स सरीरं कललावत्थस्स अहुणोववन्नस्स होइ उदगंडगस्स य एसुवमा सङ्घजीवाणं ॥ ११० ॥ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥११५॥ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ११६ ॥ www.kobatirth.org शंका- अपका जीवनथी तेनुं लक्षण समजातुं नथी जेम पेशाच विगेरे द्रव्य छे तेम पाणी पण जाव है, आचार्य ते संबंधी दृष्टांत साथै समाधान-जेम हाथणीना पेटमा गर्भ उत्पन्न थवा साथे द्रव छतां ते चेतन के तेवीज रीते अवकायनुं पण सचेतन पथुं जाणबुं अथवा पक्षीना तुर्त उत्पन्न थयेला डंडामा ज्यांसुधी करण भाग चांच विगेरे बंधाया नथी त्यांसुधी घणुं पाणी होय छतां ते चेतन छे तेम अपकाय पण चेतन छे एम जाणवुं हाथणीनो गर्म तथा इंडानुं पाणी लेवानी | जरुर एटलीज के तेमां बधारे पाणी होवाथी सारी रीते दृष्टांत समजाय छे. तुर्त उत्पन्न थयेला एम कहेवाथी सात दिवस सुधी लेबुं त्यां सुधीज, कलल रहे छे पछी तो ते गर्भनो भाग कठण थइ जाय ले. वे अपकायनी सचेतनता उपर अनुमान करे छे ते नीचे प्रमाणे. शत्रथी न हणा होय त्यां सुधी द्रवषणुं छे तेटला माटे पाणी हाथणीना गर्भ कललनी माफक चेतन है. अहिं विशेषण लेवाथी मश्रवण विगेरेनो निषेध जाणो. तेज प्रमाणे बीजुं अनुमान प्रयोगथी बतावे छे. इंडा रहेला कललनी माफक माणीतुं द्रवपणुं नाश नथी थयुं तेथी ते पाणी सचेतन छे तथा पाणी जीव शरीर छे. कारण के, छेदी शकाय छे, भेदी शकाय छे, उराडी शकाय छे, पी शकाय के, भोगवाय छे, सुंघाय छे, स्वाद लेवाय छे, स्पर्श कराय देखाय छे अने द्रव्यपणे छे. आ वधा शरीरना धर्मो पाणीमां के माटे ते चेतन के, (आ वो संबंध बतावीने पाणी ए जीवोनुं शरीर छे एम बताव्यु .) अने आकाश वर्जिने भूतोना जे धर्म ते रूप आकार विगेरे पण लेवा. सर्व जगाये आ दृष्टांत छे. सास्नाविशाण ना समूहनी माफक जाणवुं. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ ११६ ॥ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥११७॥ www.kobatirth.org शंका- रुपपणुं, आकारपणुं, विगेरे धर्मो परमाणुओमां पण. छे. तेथी तमारी हेतु अनेकांत दोषवाळो छे. उत्तर- एम नथी कारण के अहिं छे; छेद्यत्व विगेरे हेतु पण साथे लीवेला छे अने ते बंधू इन्द्रियना व्यवहारने अनुपाती साथै रहेनारा छे. ते प्रमाणे परमाणु नथी. आ प्रकरणथी अतीन्द्रिय परमाणुनां व्यवच्छेद कर्यो. अथवा विपक्ष नथी कारण के सर्व पुद्गल द्रव्योनुं द्रव्यशरीरनो स्वीकार कर्यो छे अने जीव सहित अने नजीव सहित आटलं विशेष छे. कहां छे के:--- तणवोऽभातिविगार मुत्त जाइत ओऽणिलंता उ सत्यासत्यहयाओ निज्जीवसजीव रूवाओं ॥ १ ॥ अणु अ विगेरे विकारवाळां मूर्त जातिपणाथी पृथिवीथी वायु सुधी एटले. पृथिवी, पाणी, अग्नि अने वायु ए चारनां शरीर शस्त्रथी हणायला ते निर्जीव छे. अने शखथी न हणायला ते सजीव छे ए प्रमाणे शरीरपर्णु सिद्ध थतां प्रमाण थाय छे (१) हीम कोइ जगोपर पाणी पणे होवाथी बीजा पाणीनी माफक सचेतन छे. (२) अने पाणी सचेतन छे कारण के कोइ जगोपर भूमि खोदतां देडकांनी माफक उछळी आवे छे. (३) अथवा staticी पडतं पाणी सवेतन छे. कारण के ते आकाशमां स्वाभाविक रीते उत्पन्न थत माछलानी माफक उछळी पडे छे, उपर कहेला बधा लक्षणो अपकायने मळता भवतां होवाथी अपकाय सचेतन छे. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥११७॥ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ११८ ॥ www.kobatirth.org उपभोग द्वार कहे छे पहाणे पिय तह घोयणे य, भत्तकरणे असे ए अ । आउस्स उ परिभोगो गमणागमणे य जीवानं ॥ ११९॥ नहा, पी, घो. गंध, सींचनुं, तथा नाच विगेरेथी जयं आयषु॑ तेमां पाणी काम लागे छे. तेथी सेना भोगना अभिलाषी जीवो आ कारणोने उद्देशीने अपकायना वधमां मवर्ते छे, ते बतावे छे. -- एएहि कारणेहिं हिंसंती आउकाइए जीवे । सायं गवेसमाणा परस्स दुक्खं उदीरंति ॥ ११२ ॥ स्नान, अवगाहन विगेरे कारणो भवत इन्द्रियोना विषयना विषमां मोहित थयेला जीवो निर्दयपणे अपकायना जीवोने | हणे छे. कारण के पोताना सुखनी इच्छा होवाथी पारकाना हित अहितना विचारथी शून्य होवाथी केटलाक दिवसना स्थायी | मनोहर जुबानीना मदथी तपेल चित्तवाळानी सारासार विवेक रहित, तथा विवेकी पुरुषना संसर्ग रहित रहीने पाणी विगेरे जीवोना दुःखने उदीरीने पीडा करे छे. क छेके.: एकं हि चक्षु रमलं सहजो विवेकस्तद्वद्भिरेव सह संवसतिर्द्वितीयम् एतद्वयं भुवि न यस्य स तत्त्वताऽन्धस्तस्यापमार्गचलने खलु कोऽपराधः ? जेने स्वभाविक निर्मळ विवेक छे, ते एक चक्षुवाळो कहेवाय छे। अने विवेकवाळा पुरुषनो संग ते मनुष्यने वीजी आंख For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ ११८ ॥ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥११९॥ www.kobatirth.org |गणाय छे. ते येउथी जे रहित छे ते खरेखरी रीते जोशां तो आंखवाळो होय छतां आंधळीज छे तो सेवो पुरुष कदी खराब रहते जाय तो तेमां ते विचारानो गुनो छे ? विवेक तथा विवेकी पुरुषनी संगत विनानो आदमी जरुर आडे रस्ते जाय छे. हवे शखद्वार कहे छे. : उचिणगाल घोषणेय उवगरणमत्तभंडे य। बायरआउकाए एयं तु समासओ सत्यं ॥ ११३ ॥ द्रव्य अने भाव ए वे शत्र छे. अने द्रव्य शत्र पण समास अने विभाग ए वे भेदे छे, तेमां समासथी द्रव्य शत्र आह े. कुवामांथी कोश विगेरेवडे पाणी उंचे चडाव ते ऊर्ध्व सिंचन छे. अने घन (घट्ट) मसृण (कोमल) वस्त्रथी गाळ तथा ब विगेरे उपकरण चर्म कोश, कडा, विगेरे वासण धोबा विगेरेमां आ प्रमाणे अनेक रीते बादर अपकायनां शत्रो जाणवा पेटले आ कारणने जीवोने पीडा धाय छे. गाथामा 'तु' शब्द विभागनी अपेक्षाए विशेषण अर्थ छे. हवे ते विभागथी बतावे छे. किंची सकाय सत्थं किंची परकाय तदुभयं किंचि । एयं तु दव्वसत्थं भावेय असंजमो सत्थं ॥११४॥ किंचित् स्वकाय शत्र ते तळवानुं पाणी नदीना पाणीने दुःख दे अने किंचित् परकाय शस्त्र ते, माटी, स्नेह ( तेल बिगेरे) खार विगेरे, पाणीना जीवोने हणे छे. किंचित् उभय एटले पाणीमां मळेली माटी विगेरे बीजा पाणीना जीवोने हणे छे. पण भावशाखमां तो पूर्व का मुजब प्रमादीनो, खराब ध्यानवाळानो मन, वचन, कायाए पाळेलो असंयम छे. बाकीनां द्वारा पृथिवीकायनी माफक जाणवां ते कहे छे. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥११९॥ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ १२० ॥ www.kobatirth.org सेसाई दाराई ताई जाई हवंति पुढधीए । एवं आउसे निज्जुती किचिया एसा ॥१४॥ निक्षेप, वेदना, वध, अने निवृत्ति जेम पृथिवीकायमा वतान्यां तेवी रीते अपकायना उद्देशामां पण निर्युक्ति एटले निश्वयथी अर्थ घटना बतावी छे. एटले एम जाग के अपकायना जीवोनों वध करवायी बंध थाय छे। अने ते समजी बुद्धिमाने अपकायना जीवोने दुःख न दे एवो सर्व विरति धर्म स्वीकारको हवे सूत्र अनुगममां अस्खलित विगेरे गुणयुक्त सूत्र उच्चारण करयुं, ते नीचे प्रमाणे. से बेमि जहा अणगारे उज्जुकडे नियायपडिवण्णे अमायं कुवमाणे वियाहिए (सू०, १८) पूर्व सूत्र साथै आ मूत्रनो एम संबंध के के गया उद्देशामां छेल्ला सूत्रमां पृथिवीकायनो: समारंभ त्यागे ते मुनी एम क हतुं. पण तेटलाबीज संपूर्ण मुनी न थवाय ते बतावे छे, धर्मस्वामी कहे छे के “ में भगवान पासे पू सांभ तेमां आ पण जाणवु." एटले पूर्वना सूत्र साथै आ सूत्रनो संबंध जोडायो. मूळमां 'से' शब्द छे तेनो अर्थ गुजरातीमां 'ते' थाय छे.. एटले पृथिवीकायनो समारंभ त्यागे अने तेनी साथे बीजुं भुं त्यागे तो संपूर्ण अणगार थाय. अथवा केवो अणगार न थाय ते हुं कहुं हुँ, " अणगारा मो चि एगे पत्रयमाणेत्यादि " जेमने घर नथी ते 'अणगार' छे. अहींया यति विगेरे शब्द छोडीने अणगार शब्द लीधो तेनुं कारणं बतावे छे. परतु For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ १२० ॥ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥१२१॥ www.kobatirth.org raja gramini प्रथम गणाय के कारण के घरनो आश्रय करे तो घर संबंधी पाप कृत्य करवां पढे अने मुनि सो निर्देप अनुष्ठान करवावाळा होय छे ते बतावे छे. ऋजु ते अकुटिल संयम एटले मनवचन कायानी खराब चेष्टानो निरोध करीने सर्व | माणीना रक्षण माटे प्रवृत्ति करवाथी दयानुं एक रुपज छे अने वधी जगाए तेनी 'अकुटिल' (सरळ) गति छे अथवा मोक्ष स्थानयां गमन करवा सरळ श्रेणी जे ऋजु श्रेणी गति कहेवाय छे ते मेळववा सर्व प्रकारे संवरवाद संयम पाळवाथी मोक्ष मळे. | अहीं कारणमा कार्यनो उपचार करीने संयम से सत्तर प्रकारनो बतावेलो सरळ साधु मार्ग तेने करे (आराधे) ते ऋजुकारी छे, एनाथी एम सूचयुं के संपूर्ण संयम अनुष्ठान करनार संपूर्ण अणगार छे आवो मुनि शुं फळ पाये से बतावे छे. यजन ते याग, नियित एटले निश्चित ए वे मळीने नियाग एटले मोक्ष मार्ग, अहींआ संगत अर्थपणाथी धातुओनुं सम्यग् ज्ञान दर्शन चारित्ररूप पणे संगत छे. ते नियाग सम्यग् दर्शन ज्ञान चारित्र्यरुप मोक्ष मार्ग छे तेने स्वीकारेलो ते नियाग प्रतिपत्र जाणवो. पाठान्तरमां निकाय प्रतिपन्न छे. एटले निर्गत काय ते आदारिक विगेरे शरीर जेनाथी अथवा जेमां छे, ते निकाय तेने पामेली तेनुं कारण सम्यग्दर्शन विगेरे पोतानी शक्ति प्रमाणे अनुष्ठान करवाथी अने निष्कपटपणे आचरवाथी ते अमायावी थाय छे ते बतावे छे, अहिं माया एटले बधां धर्म कार्यमां पोताना वीर्यने, उपयोगमां न लेते; तेथी एम सुबह के अमायावी एटले उपर कहेला वीर्य ने उपयोगमा ले ते अने अगूहित, बल, वीर्य एटले संयूम अनुष्ठानमां पराक्रम बताबनारों अणगार कलो. आ वचनथी तेना संबंधी बघा कषायोनो पण अपगम (दूर कर) जाणवो. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥१२१॥ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www bath.org Acharya Sh Kailasagersuri Gyanmandie आ आखा सूत्रनो सार ए छे के हे जंबूप्रभु पासे में सांभळ्यु छे के जेश्रो सत्र प्रकारनो निर्दोष संयम पाळे सम्यकदर्शन आचाज्ञामचारित्रनी आराधना करे तथा पोतानी शक्ति गोपवे नहि तथा वधा कपाय विगेरे दुर्गुणोने छोडे तेमनेज साधु जाणवा. कयु छे के.18सुत्रम् सोही य उज्जुयभूयस्स धम्मो सुद्धस्स चिट्ठड' ति. ॥१२२ ॥ ॥१२२॥ पायश्चित्त ते निष्कपटीनुं छे, अने धर्म पवित्र भाववालानो छे. तो आ बधी माया वेलडीने दूर करी शें करे? ते कहे छे. जाए सद्धाए निक्खंतो तमेव अणुपालिजा वियहित्ता विसोत्तियं (सू० १९) वधता संगम स्थान कंडक रुपवाळी श्रद्धावढे दिक्षा लीधेली ते आखी जींदगी सुधी पोतानी निर्मळ श्रद्धा पाळे कारण के मायः एवो नियम छे के परिणाम उच्च भावमा चडेला होय त्यारेज दिक्षा ले छे, अने पाछळ्थी संयम श्रेणीने पामेलो तेने | परिणाम बधे घटे, अथवा बरोबर रहे तेमां वृद्धिकाळ के हानिकाळ एक समयथी मानीने उत्कर्षथी अंतर्मुहुर्त जाणवो पण एथी वधारे काळ संकलेश के विशृद्धि न होप. का छे के:नान्तर्मुहुर्तकालमतिवृत्य शक्यं हि जगति सङ्क्तेष्टुम् नापि विशोढुं शक्यं प्रत्यक्षो ह्यात्मनः सोऽर्थः ॥१॥ उपयोगद्वयपरिवृत्तिः सा निहेतुका स्वभावत्वात् आत्मप्रत्यक्षो हि स्वभावो व्यर्थाऽत्र हेतुक्तिः ॥२॥ अंतमहत काळने उल्लंघीने जगतमां वधारे कलेश करवाने शक्तिमान् नथी तेज प्रमाणे आत्माने शुद्ध करवाने पण वधारे । For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥१२३॥ www.kobatirth.org काळ. शक्य नथी ते आत्मानो अर्थ प्रत्यक्ष छे तेथी बधारे बार परिणाम न टके कड़क फेरफार थाय. ॥ १ ॥ ये उपयोगनी परिवृत्ति ते स्वभावथीज हेतु रहित छे. कारण के स्वभाव ते आत्माथी प्रत्यक्ष छे. अने त्यां हेतु बताववा व्यर्थज छे || २ || अने अवस्थित काळ ते वृद्धि, हानि, लक्षणवाला बन्ने अने यत्र मध्य, अने वज्र मध्य एबेनी माफक आठ समय छे. त्यार पछी अवश्य बदलाव आ वृद्धि हानिनुं रहेलं परिणाम ते केवळी जाणे, पण केवळ ज्ञान बिनाना उद्यस्थ जीवोने जणाय नहि. जो के प्रवज्या लीधा पछीना काळमां सिद्धांत सागरने अवगाहन करतो संवेग वैराग्य भावना भाविक अंतर आत्मावाळो कोई मुनि बघता परिणाम ने भजे छे तेज क छे :-- |जह जह सुयमावगाहइ अइसयररस पसरसंजु यम उव्वं । तह तह पल्हाइ मुणी नवनव संवेगसद्धाए ॥ १ ॥ सुनि जेम जेम श्रुतने अवगाहे, (भणे) तेम तेम अतिशय रसना मसस्थी संयुक्त अपूर्व आनंदने नवा नवा संवेगनी श्रद्धावडे पामे छे, तो पण वघवावाळा घोडा अने उत्तम भावमाथी देठे पडनारा घणा तेथी कहीए छीए के ते श्रद्धा पाळे, एटले निरंतर उत्तमभाव वधारे, हवे ते केवी रीते पाळे, ते कहीए छीए, शंका छोडीने पाळे, आशंका वे मकारनी छे. सर्व शंका अने देश शंका आ सर्व शंकामा जिनेश्वरनो मार्ग छे के नहिं अने देश शंकामां अपकाय विगेरेना जीवा छे के नहि? कारण के प्रवचनमां विशेष प्रकारे कहीने बतावेल. छे. तेथी स्पष्ट चेतना लिंगना अभावथी जीवो नथी विगेरे शंकाओने दूर करी साधुना संपूर्ण गुणाने पाळे, अथवा विश्रोत ये प्रकारे छे. द्रव्यथी नदी विगेरेना झरणो जोरथी चाले छे ते, अने भाव विश्रोत ते मोक्ष तरफ सम्यग्दर्शन विगेरे For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥१३३॥ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ १२४ ॥ www.kobatirth.org उर्दु गमन थाय ( अमभावे परिणमे ) तेमने छोडीने संपूर्ण अंगगारना क अर्थमा छे. बळी- 'विजहित्ता पूव स जोगं' एटले पूर्वनो संबंध जे माता पिता साथै छे तथा पाछलो संबंध जे ससरा विगेरे साथ छे ते बन्ने संयोग छोडीने श्रद्धा पाळे तेमां जेने आ उपदेश देवाय हे ते शंका अथवा कुभावना छोडीने श्रद्धातुं पालन कर | तेनेज कहेवाय छे, तेथी एम समज के जंबूस्वामीने कहे छे के तमे आयुं संयमनुं रुडु अनुष्ठान करशो एटलुंज नहिं पण वीजा महा सत्ववाळा पुरुषो थड़ गया ते पण पूर्वे आ प्रमाणे करता हता ते बतावे छे. या वीरा महावीहिं ( सू० २० ) परिसद, उपसर्ग, कपाय, तेमनी सेनाना विजगथी वीरपद पामेला अने महान पंथ सम्यक्दर्शन विगेरे रूप मोक्षमार्ग जे जिनेश्वर विगेरे सत्पुरुषो वारंवार वापरेला तेने अनुसरीने वीर्ययाका घनी संयम अनुष्ठान करे छे, तेथी उत्तम पुरुषोथी आ मार्ग उपयोगमा लेवायलो छे, एवं बतावी तेमणे पाडेला मार्गमा विश्वासवाळा शिष्यो संयम अनुष्ठान सुखथीन करशे, उपदेश कर्या पछी कहे छे, के लोक विगेरे छे तेमां तमारी बुद्धि अपकायना जीव विगेरे विषयोमा असंस्कारी होवाथी न पहावे तो पण भगवाननी आज्ञा छे, तेथी मानवं जोइए ते कहे छे, लोगं च आणाए आभसमेच्चा अकुओभयं (सू० २१ ) अलोक शब्दयी चालता मसंगे अपकायनो विषय होवाथी अपकायनेज लेवो ते अपकाय लोकने अने 'व' शब्दथी अन्य For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ १२४॥ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ १२५ ॥ www.kobatirth.org पदार्थों ने आज्ञावडे एटले जिनेश्वरन वचननी यह मान्यताथी सारी रीते जाणीने आ अपकायना जीवो छ. एवं मानीने तेमने कोइ प्रकारे भय न याय एवो अकृतो भय संयम पाळवो अथवा अकुतो भय एटले अपका जीवनो समूह छे ते कांइथी भय न वांच्छे, कारण के तेमने पण मरणानी बीफ लागे छे. माटे भगवाननी आज्ञाथी तेनी रक्षा करवी तेमनी रक्षा माटे शुं करखं ते कहे छे. से बेमि व सयं लोगं अब्भाइक्खिजा णेत्र अत्ताणं अभाइ क्खिजा, जे लोयं अभाइक्खड़, से अत्ताणं अब्भाइवखइ जे अत्ताणं अब्भाइक्खड़ से लोयं अभाइक्खर (सु० २२ ) स्वामी कहे छे के हे जंबू जे में भगवान पासे सांभळ्युं छे. तेज सने कहुं हुं पण कल्पना करीने नथी कहेतो. आ अपका जीवनो समूह जीव छे. एम हुं जे कहु हु में अचोरने चोर कहेबा माफक जुनुं नथी कहेतो, कोइ एम कहे के, अपकाय जीव, नथी, फक्त घी, तेल, विगेरे जेम उपकरण के तेम ते उपकरण मात्र छे. आ असत् अभियोग छे. कारण के हाथी विगेरेमां पण करणपणुं आवी जशे तेथी शंका थशे के हाथीमां जीव छे के नहि ? शंका- आज अभ्याख्यान छे के तमो अजीवाने जीवपणुं आपो छो. आचार्यनुं समाधान, एम नथी. अमे पूर्वे पाणीनुं सचेतन पशुं सिद्ध कर्तुं छे. जेम आ शरीरनो हुं विगेरे हेतु सहित आत्मा अधिष्ठित छे एटले शरीरथी आत्मा जुदो छे. एवं पूर्वे साध्यं छे. एज प्रमाणे अपकाय पण अव्यक्त चेतन बढे पूर्वे सचेतन साध्यो छे अने साधेलाने अभ्याख्यान कहेतुं, ते न्याय नथी, बळी बादी कहे छे के आत्माने पण शरीरनो अधिाता मानवो ते अभ्याख्यान छे. कारण के वे क्रिया करतो युक्तिमां घटतो नथी, For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥१२५॥ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ १२६ ॥ www.kobatirth.org | एटला माटे कहे छे. आत्माने शरीरनो अधिष्ठाता एटले हुं ज्ञानथी अभिन्न गुणवाको प्रत्यक्ष सिध्ध छु, एवं दरेक जाणे छे तेथी तेने न लोपे. शंका- आ अमे केवी रीते नाणीए के आत्मा शरीरमां घरना मालीक माफक रहेलो छे? उत्तर- भूलाबाना स्वभाववालो देवोने प्रिय हे वादि! आगळ कहेलु छर्ता फरीने कवडावे छे, फरोधी समिळ, जेमके आ शरीर कोथी लवायु छे, तेनो संबंध आ शरीर साथ छे. तेथी कफ, लोही, अंग, उपांग विगेरे परिणतिने पामेलाथी अन्न विगेरे माफक छे, तेवीज रीते कोइ संधी राखनाराधीज उत्सृष्ट (त्यजागलं) छे. लीवेलं होवाथी अन्न मळ (विटा) नी माफक छे, बळी | तेज ममाणे ज्ञाननी उपलब्धिपूर्वक परिस्पंद ( शरीर हलन चलन ) पण भ्रांति रूप नथी, कारण के परिस्पंदपणे थवाथी तमारां वचन जेम बुद्धिपूर्वक बदलाय छे, तेम, बळी चोधुं अनुमान कहे छे, अंदर रहेलो मालीक हे तेना व्यापारने भजनारी इन्द्रियो छे. करणपणे होवाथी, जेम दातर विगेरे, उपयोग पूर्वक हाथी चाले तेम आ छे. आ प्रमाणे चार अनुमान प्रमाण आपीने | जीवने शरीरनी अंदर रहेलो सिद्ध कर्यो, ते प्रमाणे कुतर्क मार्गने अनुसरनारा हेतुनी माळा (श्रेणी) ने स्यादवाद कुहाडावडे | दरेक आत्मार्थी उच्छेद करवो, अर्थात् नास्तिकोने जीव सत्ता सिद्ध करी आपकी ए प्रमाणे जो उत्पत्ति अने प्राप्त थलो | आत्मा शुभ अशुभ फळने भोगवनारी जाणवा छतां कोइ न माने, तो ए प्रमाणे थतां जे अज्ञ छे तथा कुतर्क रूप तिमिरथी जेनां ज्ञान चक्षु हणायां छे, ते अपकायना जीवने न माने, ते अपकायने न मानतां सर्व प्रमाणथी सिद्ध एवा आत्माने पण उडावे छे ! For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ १२६ ॥ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie आचा० सूत्रम् ॥१२७॥ ॥१२७॥ | एटले जे एम कहे छ, के हु' नथी, ते पोते साम्यर्थथी अपकायना जीवोने पण न माने, कारण के आत्मा नी अंदर हाथ विगेरे अवयव युक्त शरीर अधिष्ठाता के छतां तेने उडावे के तो पछी जेनुं चेतना लिंग अव्यक्त के एवा अपकाय जीवोने उडावे ए तो सहेलुंज छे. आ प्रमाणे अनेक दोषो आवता जाणीने बुद्धिमान पुरुषे अपकाय नथी, एवं खो न बोलवू, एवं विचारीने अपकायमां पण जीव छ, एम समजीने अपकायनो आरंभ साधुओए न करवो, पण बौद्ध मत विगेरेना साधुओं तेनाथी उलटा एटले अपकायनी हिंसा करनारा छे, ते बतावे के लजमाणा पुढो पास अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा जमिणं विरूवरूवेहि सत्थेहि उदय | कम्मसमारंभेणं उदयसत्थं समारंभमाणे अणेगरूवे पाणे विहिंसइ । तत्थ खल भगवता परिणा पवेदिता । इमस्त चेव जोवियस्त परिवंदणमाणणपूयणाए जाइमरणमोयणाए दुक्खपडिघायहेडं से सयमेव उदयसत्थं समारभति अण्णेहि चा उदयसत्थं समारंभावेति अण्णे उदयसत्थं समारंभंते समणुजाणति । तं से अहियाए तं से अबोहिए । से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्टाय सोच्चा भगवओ अणगाराणं अंतिए इहमेगेसिं णायं भवति-एस खलु गंथे एस खलु मोहे एस। कर For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandir आचा सूत्रम् ॥१२८॥ ॥१२८॥ खलमारे एस खल णरए, इच्चत्थं गढिए लोए जमिण विरूवरुवेहिं सरथे हि उदयकम्म समारंभेणं उदयसत्थं समारभभाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसइ से बेमि संति पाणा उदयनिस्सिया जीवा अणेगे (सू० २३) अन्य साधुओ पोतानी प्रव्रज्याने लजावनारा अथवा सावध अनुष्ठानथी लजा पामेला जुदा पढेला शाक्य, उलूक, कमभुक, कपिल, विगेरेना जे मुनिओ छे तेमने तुं जो, एबुं जैनाचार्य शिष्यने कहे छे. अविवक्षित कर्म बाला छतां अकर्मक याय के. जेमके तुं जो मृग दोडे छ. ए प्रमाणे बीजी विभक्तिना भर्थमां पहेलीनो प्रत्यय छे, तेनो अर्थ आ छे के शाक्य विगेरे साधुओ दिक्षा लीधेली छे छतां सावध अनुष्ठान करे छे. एवा जुदा जुदा पहेलाने तुं जो, नेओप जेनावडे साधुने अयोग्य | आचरण कर्यु ते आ प्रमाणे बताव्यु, से कहे छे के अमे साधु छीए एयु केटलाक शाक्यादि बतावे छे ते व्यर्थ बतावे छे, कारण के तेओ उत्सेचन, अग्नि विद्यापन, विगेरे शस्त्रोथी स्वकाय अने परकाय ए वे भेदथी भिन्न शस्त्रोचडे उदक फर्म (पाणीने दुःख | देव ) करे छे. उदकना कर्म समारंभ वडे अथवा उदकमां शस्त्र चलावे छे. अने तेथी ते कर्म करतां वनस्पति वथा वे इन्द्रिय जीव विगेरे हणे हे. त्या आगळ निचे करीने जिनेश्वर देवे परिक्षा बतायी छे के जेम आ जीवितव्यनाज परिबंदन, मानन, पूजन, जन्म मरणथी मूकवाने माटे तथा दुःखनो नाश करवा जे करे छे ते, बतावे छे. पोते पाणीना जीवोनो समारंभ करे छे, बीजाओ पासे समारंभ करावे छे, अने समारंभ करनाराने अनुमोदे छे. ते करवू करावबुं अनुमोद, अने तेनाथी INCard For Private and Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ४२. ॥१२९॥ | अप्कायना जीवोने दुःख याग छे, तेनुं फळ आ पमाणे छे. अहित माटे अयोधिलाभ माटे अर्थात् पाणीना जीवोने दुःख देनारनु है आचा० अहित थाय छे. तथा सम्यकत्व (धर्म बीज ) नाश थाय छे. आ वधुं समजनारो पुरुष ग्रहण करवा योग्य सम्यक् दर्शन विगेरे सारी रीते भगवान अथवा मुसाधुओ पासे सांभलीने आ लोकना केटलाक साधुओने जे जाणपणुं थाय छे ते वतावे छे. ॥१२९॥ EL आ अप्पकायने दुःख देवं ते खरेखर ग्रन्थ, (पापनो समूह एकठो थवो) मोह, मार, नर्क छे. छतां तेने अर्थे गृद्ध ययेलो लोक पाणीने दुःख देनारा विरुप शस्त्रोचडे पाणीने दुःख देवा साथे तेने आश्री वीजा अनेक जीवोने जुदी जुदी रीते हणे छे, ते PI वधु पूर्व माफक जाण'.. फरीथी सुधर्मास्वामी कहे छे के आ अकाप संबंधी तत्वनुं वृत्तांत में पूर्व सांभब्युं ते उदयमा रहेला 8 पाणीओ पोरा, मत्स्य विगेरे जे जीवो के तेने पण पाणीना समारंभ करनारो हणे छे. अथवा बीजो संबंध आ छे के पर्वे कहेलं दाउदक शास्त्र आरंभतो बीजा अनेक जीवोने अनेक रीते हणे छे. शंका-ए केवी रीते जाणवु शक्य छे ! उत्तर-जीवो छे. ते अमे पूर्व कही गया छीए, ___शंका-ते केटला छे.? उत्तर-जीवो अनेक छे. अहिआ जीवन फरी उपादान उदकमा रहेला घणा जीवो छे ते जणाववा माटे कयु छे तेथी पम समजवू के एक एकजीव भेदमा | उदकने आश्री असंख्यात पाणीओ छे. ए प्रमाणे तेओ अकायनो समारंभ करता ते पुरुषो पाणीने तथा पाणीना आश्रयना घणा जीवोने मारनारा थाय छे. ते जाणवू, . कलाकार क For Private and Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥१३०॥ www.kobatirth.org वे शाक्यादि उदक आश्रित येइन्द्रिय जीवोने इच्छे ले पण उदकने नहि, ते बतावे छे, इहं च खलु भो! अणगाराणं उदयजीवा वियाहिया (सू० २४) अज्ञातपुत्र महावीर सेना प्रवचन ते बार अंग जे गणी पिटक नामे ओळखाय छे, तेमां साधुओने बतायुं छे के उदकरुप जीव छे अने 'च' शब्दथी सेने आश्रित पोरा छेदनक, लोद्रणक, भमरा, माछलां विगेरे अनेक जीवो छे तेमां अवधारण फळ आ छे के जैन शास्त्र माफक वीजामां आवी रीते पाणीना जीवो सिद्ध नथी कर्या, शंका- जो एम होय, के पाणीज जीव छे तो तेनो वारंवार परिभोग करता साधुओ पण पाणीना जीवोना घातक सिद्ध थशे ? उत्तर—एम नथी पण अमे पाणीना सचित्त, अचित्त अने मिश्र एप त्रण भेद मानीए छीए अने अति, अपायनो उपभोग थाय, एवी विधि छे, पण सचित्त अथवा मिश्र पाणी साधु न वापरे. प्रश्न- आ पाणी अचित स्वभावथी थाय छे के शखना संबंधथी ! उत्तर- बन्ने मकारे एम जे अष्काय स्वभावथी अचित्त छे, तेने जो बाह्य शस्त्रनो संपर्क न थाय, तो तेने आचेत जाणनारा पण केवलज्ञानी मनःपर्यायज्ञानी अवधि तथा श्रुतज्ञानी मुनिओ पण तेने वापरे नहिं, कारण के तेथी मर्यादा तुटी जवानी बीक रहे है. जेमके गुरु परंपराथी सांभळीए छीए, के भगवान् श्रीमहावीरे पूर्ण निर्मळ पाणीथी उलसत्वरंगवाळो तथा शेवाळ समूहास विगेरे For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥१३०॥ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥१३१॥ www.kobatirth.org जीव रहित अने जेमां वा पाणीना जीवो अचित्त थह गयेला छे एवो एक अचित पाणीथी भरेलो मोटो कुंड देखीने पण घणीज तरशथी पीडाता पोताना शिष्योने ते पाणी पीवानी आज्ञा न आपी तथा अचित तलनुं गाई स्थडिंलना परिभोगनी अनुज्ञा अनवस्था दोपना रक्षण मे माटे न आपी श्रुतज्ञानतुं प्रमाण वा माटे, कारण के स्वभावथी अचित्त अष्काय केवळ ज्ञानथीन जणाय, पण श्रुतज्ञानथी न जणाय, अने साधुओने श्रुतज्ञानपणे चालवानुं होवाथी तेज प्रमाणे कर्बु, जेमके सामान्य श्रुतज्ञानी होय ते बाह्य इन्धनना संपर्कथी गरम घयेलुं तेज अचित्त जळ छे एम माने छे, पण लाकडाना ताप विना पाणी पोतानी मेळे अचित्त नज थाय एम व्यवहार छे बाह्य शखना संपर्कथी जुदा परिणामने पामेलं एटले तेनो वर्ण गंव विगेरे बदलाय ते अचिन थयेलुं कद्देवाय अने तेज साधुओने वापर करपे, हवे ते शस्त्रां बताये छे सत्यं चेत्थं अणुवी पासा, पुढो सत्थं पवेइयं (सू० २५) जेनाथी पाणीओ शस्य थाय (मराय) ते शस्त्र, ते उंचे चडाव गाळ उपकरण घोवा अने पोतानी काया विगेरेथी जे पूर्व अवस्थाथी विलक्षण रुपवाळा थयुं, ते जेनावडे थाय, ते पाणीनुं शस्त्र कडेवाय, जेमके अग्रि पुद्गल अंदर जवाथी थोडं पिंगळ (पीछे) पाणी गरम थाय छे, ते गंधथी पण घुमाडाना गंध जे थाय छे, रसवी पण विरस थाय छे, अने स्पर्शधी उष्ण होय छे. तथा ऋण काळा (उभरा ) आवेल होय, एवं बरोबर उकाळेलं पाणी होय ते कल्प छे. शिवाय नहि. वळी कचरो कप (छाणां) गोमुत्र उप विगेरे तथा इन्धन (लाकडां) थी स्तोक अने मध्य एवा घणा भेदथी एटले थोडामां थोडं नाखे एवी चोभंगीनी भावना करवी For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥१३१॥ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - सूत्रम् ॥१३२॥ एमाणे प्रकाशन, महिमा चाब्द अवधारण अर्थमा छे. तेथीएम .. आचा०पाणीनो जे कपडां विगेरे धोवाथी स्वभाव बदलाय ते स्वकाय शस्त्र तथा अमिथी तपावेलु तथा कचरा विगेरेथी मळेलु एवं त्रण प्रकार पाणी जे अचित्त ययेलं होय तेज लेबु आ अप्कायना विषयमा विचारीनेज अमे आ पर्नु शस्त्र के तेज बताव्यु. पश्य कि| यापदबडे शिष्यने प्रेरणा करी के ते तुं जो ( आ पाणीनां शस्त्र छे) तेज बतावे के के २५ मुं सूत्र छ तेमा जुदां जुदां उनसेचन जुदा (छांटq ) विगेरे शस्त्र भगवाने बताव्यां छे, अथवा पाठान्तरनां आ पाठ छे के पुढोऽपासं पवेदितं । पप्रमाणे जुदां जुदां लक्षणवाला शखोवढे परिणामने पामेलं पाणी ग्रहण करे एम अपाश बताब्यु एटले अपाशथी एम सुचव्यु के अचित्त पाणी ले तो कर्मबन्ध न थाय ए प्रमाणे साधूआने, सचित्त तथा मिश्र पाणी त्यागीने केवळ अचिन पाणीए काम चलावं, जेओ शाक्यादि साधुश्रो छे ते अकायना उपभोगमा लीन थयेला छे, तेओ नियमयी अफायने हणे छे. अने लेना आश्रय६ मा रहेला बीजाओने पण हणे छे. आधी तेओने फक्त प्राणातिपातनो दोष नथी लागतो, पण बीजादोपोसाये लागे छे ते बतावे छे अदुवा अदिन्नादाणं (सू० २६) | अथवा शब्दथी बीजा पक्षना उपन्यास द्वारवडे अभ्युच्चय बताथवा माटे छे तेथी एम जाणवू के अचित्त न थयेलुं पाणी वापरवामां प्राणातिपातनोदोप लागे छे एम नही पण तेनी साथे अदत्तादाननो पण दोष लागे छे. कारणके अकायना जीवोए जे शरीरो ॐ For Private and Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥१३३॥ www.kobatirth.org मेळव्यां हे, ते ओए तेमने वापस्वानी आशा आपी नथी, के तमो अमोने वापरो, छतां तेओ वापरे छे. जेम कोइ भिक्षु शाक्यना सचिन शरीरमांथी टुकडो छेदी से तो लेनारने अदत्तानो दोष लागे छे. कारण के ते पारकी वस्तु छे जेम कोइ पारकी गाय विगेरे चोरी जाय तो चोर गणाय, एज प्रमाणे अकायना जीवोए जे शरीर ग्रहण करेला छे ते बीजा ले तो अदत्तादाननो दोष अवश्य लागे, कारण के स्वामीए तेमने आज्ञा आपी नथी, शंका- जेनो कुत्रो के तळाव होय तेनी आज्ञा लड़ने कोइ पणी पीए, तो तेमां स्वामीए एकबार आज्ञा आपवाथी दोष लागतो नथी तेम पारकानुं ढोर होय, अने ते आज्ञा आपे अने बीजो मारे, तेमां दोष नथी आ पण साध्य अवस्थाबाज अमे कहेलं छे, उत्तर- आपण साध्य अवस्थाने योग्य वतान्युं के कारण के पशु पण शरीर अर्पण करवाथी विमुखज छे. अने आर्य मर्यादा ओलंघनाराओ पोटेथी बराडा पाडता पशुने मारे छे. तो या माटे अदत्तादान न थाय? कारण के परमार्थचिंताओ जोतां कोइ पशु | विगेरेनो कोइ बीजो मालीक नथी. दवे वादी कहे छे के, जो जैनांना कद्देवा प्रमाणे मानीए, तो व्यवहारनी अंदर वधा लोकमां प्रसिद्ध गायना दान विगेरेनी रुढी तुटी जाय. जैनाचार्य - भले ए पाप संबंध तुटी जाय, पण तेथी ते पशु विगेरे दासी तथा बळदनी माफक दुःखी नहि था अने हळ । तथा तलवारनी माफक बीजाओना दुःखनी उत्पत्तिनुं कारण पण नहि थाय एनाथी व्यतिरिक्त अने छेनार तथा देनार बन्नेने एकांतथी उपकार करनारी, आपवा लायक वीजी वस्तु जिनेन्द्र मतवाला बतावे छे कां छे के For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥१३३॥ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम यस्वयमदुःखितं स्यान्न च परदुःखे निमित्त भूतमपि ॥ आचा० केवलमुपग्रह करं, धर्मकृते तद्भवेद्देयम् ॥ १॥ ॥१३॥ जे पोते दुःखी न याय अने दुःख देवामा निमित्त न थाय भने केवळ उपकार करनारी वस्तु होय तेज धर्मने मादे आपवी जोइए, आ उपरथी ए सिद्ध थयु के पशु विगेरेनुं आपq ते पण अदत्तादानन छे. हवे ए दोपने पोताना सिद्धांतना स्वीकारना द्वारवडे वादी वीजा दोष दुर करवाने माटे कहे छे. . कप्पइ णे कप्पइ णे पाउ, अदुवा विभूसाए (सू० २७) ___ अशस्त्र उपहत (सचित्त) जल वापरनाराओने आ प्रेरणा करतां तेओ आ प्रमाणे कहे छे. आ अमारी पोतानी बुद्धिथी समालारंभ करता नथी. किंतु अमारा आगममा निर्जीव पणावढे न निषेध करवायी अमने पीवाने तथा वापरवाने कल्पे छे. अने जुदा IPI जुदा प्रयोजनमा उपभोग करवानी अमोने आज्ञा आपी छे. जेप के आजीविक (गोशालना मतवाळा) तथा भस्मस्नापी विगेरे ४ कहे छे के अपने पाणी पीवाने कल्पे छे, पण नहावाने नहि, तथा वौध मतबाळा अने परिवाजक विगेरे कहे छे के स्नान, पान, & अवगाहन विगेरे बधामां अमोने सचित्त जळ कल्पे छे, तेज पोताना नाम लेइने बतावे छे. अथवा पाणी अमारा शरीरनी शोभा माटे अमारा सिद्धान्तमा बताव्यु छे. विभूषा एटले हाथ, पग, मलद्वार तथा मुख विगेरे धोवां, तथा वस्त्र वासण विगेरे घोबा, हए प्रमाणे स्नान विगेरे पवित्र अनुष्ठान करनारने कंइपण दोप नथी जैनाचार्य तेमन खंडन करीने कहे छे के SACHC For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम आचा ॥१३५॥ ॥१३५॥ गरनाराभाना मानकापना जीवाने सारथी विरुद्ध आचरण ए प्रमाणे तेो व्यर्थ वचन बोलनारा परिव्राजक विगेरे पोताना सिद्धांतमा उपन्यासवढे मुग्ध बुद्धिवाळाने मोह पमाडीने मुं। करे छे, ते कहे छे. पुढो सत्थे हि विउदृन्ति (सू. २८) विभिन्न लक्षणवाळा एटले जुदी जुदी रीते छांटवा विगेरे शस्त्रोथी ते अनगारथी विरुद्ध आचरण करनारा अपकायना जीवोने । तेमना जीवनथी दुर करे छे. अथवा जुदां जुदा शखोबडे अपकायना जीवाने छे. मूळसूत्रमा कह धातु छेदे छे, तेनो अर्ध छेदनना रुपमा छे हवे तेमना कहेला अगमने अनुसारनाराओना मतने असारपणे बसाववा कहे छे. एथवि तेसिं नो निकरणाए (सू०२९) चालता विषयमा तेओना मत प्रमाणे स्वीकारे छते तेओ पाणी पीवामा न्हावामां धोवामां बापरे तो ते सिद्धांत स्यावाद युक्तिवडे खंडन धयेछते निश्चय करवाने तेओ समर्थ नथी ते भोनी युक्तिो केवळ निश्चयने पाटे समर्थ नथी एटलुज नहि पण तेमना आगम पण निश्चय करवाने समर्थ नधी. प्रश्न-केची रीते तेमना आगम निश्चयने माटे समर्थ नथी. उत्तर-तेमने एवं पूछ के तमारो आगम कयो छे के जेना आदेशवहे तमारो अकायनो आरंभ छे! तेश्रो पतिविशिष्ट अ-1& नुपूर्वी विनयस्त वर्ण पद वाक्य समूहवाळो आप्त पुरुषे कहेलो आगम छे एम कहेशे अथवा तो ते नित्य अकर्तृक छे, एम कदेशे । For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥१३६॥ www.kobatirth.org तो पहेलाना उत्तरमां एज कहेतुं के जेनो मानेलो ते तेने आप्त (विश्वासलायक पुरुष ) छे. तेथी दूर करना योग्य के कारण केव अनाप्त छे. तेथी अष्कायना जीवोनुं तेने ज्ञान नथी अथवा तेने ज्ञान होय छतां तेना वधनी आज्ञा आपेली छे. तेथी तमारी माफकज ते अनाप्त छे, कारण के अमे पाणीनुं जीवपणुं पूर्वे साधी गया छीए अने तेमना कडेला सिद्धांतो पण सद्धर्मनी प्रेरणामां अप्रमाण थशे अने शेरीमा करता पुरुषना वाक्य माफक ते वाक्यो पण अनाप्त पुरुषनां कलां के एमन मनाशे, ये वादीओ एम कहे के अपारो आगम आत प्रणीत नथी पण नित्य अकर्तृकज छे, तो नित्यपणुं सिद्ध यशे नहिं, कारण | के मारो आगम वर्णपद वाक्यवाको छे, तेथी कर्तृक छे अने विधि तथा प्रतिपेधरूपाळो छे उभव संमत सकतुक ग्रंथनी माफक स्वीकारया योग्य छे. अथवा आकाशादिनी माफक तमोरा प्रन्थने तमारुं नित्य मानयुं अमे अप्रमाण गणीएकीए ' कारण के आकाशनी माफक तमारो सिद्धांत नित्य नथी पण तेमां इंमेशा प्रत्यक्षनी पेठे फेरफार देखाय छे. वीओ विभूषासूत्र बतावे छे तेना अवयवमां पण प्रश्न पूछता उत्तर देवाने तेओ समर्थ नहि थाय, जेमके अमेकहिभुं के-यतिने योग्य स्नान नथी, कारणके आभूषणनी माफक ते कामांग छे। अने स्नानमां कामांगता सर्व जन प्रसिद्ध छे. कं छे के स्नानं मददकरं कामांग प्रथमं स्मृतम् । तस्मात्कामं परित्यज्य नैव स्नान्ति दमे रताः॥ स्नान, मद अने दर्प करनारुं छे, अने ते कामनुं प्रथम अंग कहेलुं छे, तेथी कामने छोडीने इन्द्रियोना दमनमा रहेनारा स्नान For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥१३६॥ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा ॥१३७॥ नथी करता, वळी शौचने माटे पण पाणी पुरं नथी, कारणके ते पाणीधी फक्त बाप मलज दूर कराय छे, परंतु अदररहेलो कर्मनो I मेल दूर करवा माटे पाणी समर्थ नथी, तेथी शरीर बाचा अने मन तेमनी अकुशल वर्तणुक रोकवारूप भावाचा कर्म क्षय कर-14 वाने समर्थ छे, पण ते पाणीधी साध्य थाय तेम नधी? सूत्रम प्रश्न-शा माटे पाणी समर्थ नधी ? उत्तर सर्व पदार्थो अन्वय व्यतिरेकने आश्री छे. कारणके पाणीमा रहेनारां मांछलां विगेरे ल॥१३७n पाणीमां सदा स्नान करता होवा छतां पण ते आनु माछलापणुं दूर यतुं नथी अने पाणीथी स्नान नहि करनारा महर्षिो विचित्र तपवढे संसार भ्रमणY कर्म हणे छे, तेथी ए सिद्ध थयु के तेमनो सिद्धांत निश्चयने माटे समर्थ न थयो. तेथी आ प्रमाणे पाणीना जीवोन अशत्रुपणु सिद्ध करीने तेनी प्रवृत्ति अने निवृत्तिना विकल्प, फळ बतायवाना द्वारवडे समाप्त करवानी इच्छाथी जैनाचार्य आखा उद्देशनी अर्थ कहे छे. एत्थ सत्थं समारभमाणस्त इच्चेए आरंभा अपरिणाया भवंति, एत्थ सत्थं असमारभमाणस्स इञ्चेते आरंभा परिणाया भवंति, परिणाय मेहावो णेव सयं उदयसत्थं समारंभेजा णेवण्णेहिं उदय सत्थं समारंभंतेऽवि अण्णे ण समणुजाणेजा, जस्सेते उदयसस्थसमारंभा परिणाया भवंति सेहु मुणि परिणणातकम्मे (सू० ३०) त्ति बेमि ॥ इति तृतीयोऽप्कायोद्देशकः ॥ For Private and Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥१३८॥ www.kobatirth.org आ अपकायां द्रव्य भावरूप शस्त्र न वापरनाने आ समारंभी वध कारणपणाथी अपरिज्ञात छे. (पाणीना जीवोने हणवाधी कर्मबंध थाय छे ते जाणता नथी) अहिंसा अपकायना जीवोनो शस्त्र समारंभ करतां आ समारंभो कर्म बंधनु कारण छे. ते झपरि| साथी साधु जाणीता थाय छे अने प्रत्याख्यान परिज्ञायी ते समारंभो दूर करे छे. ते प्रत्याख्यान परिज्ञाने विशेषथी ज्ञ परिज्ञापूर्वक बतावे छे. उदकनो आरंभ करवो बंध माटे छे, एवं जाणीने मर्यादामा रहेलो डाम्रो पुरुष पोतानी मेळे उदकने नाश करनार शस्त्र न चलावे, चलावरावे नहि; अने चलावनारने अनुमोदे नहि. जे मुनिने उदकशखना समारंभ वत्रे प्रकारे जाणीता छे, तेज सुनिने मुनि कहे छे ज्ञाता हे जंबू ? में सांभळयुं छे, ते तने कहुं हुं ॥ त्रीजो उद्देशो पूरो थयो . हवे चोथा उद्देशो कहीए छीए, तेनां त्रीजा साथै आ संबन्ध छे त्रीजा उद्देशायां मुनिपणाना स्वीकार माटे अप्काय बताव्यो. डवे मुनित्वना स्वीकार माटे क्रमे आवेला अग्निकायनां उद्देशां बतावे छे. (अग्निना जीवो बताववा चोथो उदेशो कहे के, ) तेनां उपक्रम विगेरे चार अनुयोगद्वार कहेवां, तेवां नाम निष्पन्न निक्षेपमां तेजस उदेशो एवं नाम छे. मां तेज शब्दना निक्षेपा विगेरेद्वार कदेवां अने अहिं पृथ्वीना विकल्प माफक केटलॉक द्वारोमां अतिदेश (जूदापं) तथा विलक्षणपणाथी बीजां द्वारोनुं अप् (पाणी) उद्धार (बाकी रहेला) ए बेने ध्यानमा लड्ने नियुक्तिकार गाया कहे छे. उस्सवि दाराई लाई जाई हवन्ति पुढवीए । नाणत्ती उ विहाणे परिमाणुत्र भोगसत्थे य ॥ १५६ ॥ अमिना पण द्वार विगेरे निक्षेपा पृथ्वीमां बताच्या छे, तेज प्रमाणे छे, पण जे अपवाद छे, ते कहे छे, विधान, परिमाण, For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥१३८॥ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥१३॥ उपभोग, अने शस्त्र ए निक्षेपामां भेद छे, पण बीजे जुदापणुं नथी, मूळमां 'च' शब्दथी अहि लक्षणाद्वरनो परिग्रह छे. हवे जेवी ৰা पतिज्ञा करी ते प्रमाणे नियुक्तिकार द्वार वतावे छे. दुविहा य तेउजीवा, सुहमा तह बायरा य लोगंमि | सुहमा यसवलोए, पंचेव य बायरविहाणा ॥ ११७ ॥ ॥१३९॥ अग्निकायना जीवो मूक्ष्म, अने वादर एम वे प्रकारे छे, तेमा मुक्ष्म ते सर्व लोकमां छे, अने वादर अग्निकायना पांच भेद । छे ते बतावे छे. इंगाल अगणि अच्ची, जाला तह मुम्मुरे य बोद्धव्वे । बायरतेउविहाणा, पंचविहा वणिया ए ए ॥ ११८ ॥ तेषां धुमाडो, तथा ज्वाळा विनानुं वळेलु लाकडु, ते अंगारो, तथा इन्धनमा रहेलो वळवानी क्रियाना विशिष्टरूपवाळो, तथा । बोजळी अने उल्कापात, तथा अशनीथी घसाता उत्पन्न थयेल, तथा सूर्यकान्त मणिना संमृत विगेरेषी उत्पन्न थयेल ते अग्नि छे,18 तथा वळवाना सबन्धमा रहेलो ज्वाला विशेष ते अर्चि, अने अंगारथी जुदी पडी ते संबन्ध विनाना जे भडका, ते ज्वाळा, अने HI कोइ कोइ अग्निना कण (तणखा) अने भस्म उडे छे, ते मुरमुर एम पांच भेद बादर अग्निकायना छे, अने ए वादर अमिन पोतार्नु स्थान चिंतवतां मनुष्यक्षेत्रमा अढी द्वीप, अने ये समुद्रमा व्याघात न होय, त्यारे पंदर कर्म-भूमिमां छे, अने व्याघातमा फक्त पांच त महाविदेहमा होय छे. (ज्यारे भरत औरत्रतमा जुगली होय; त्यारे वादर अग्निकाय न होय) र शिवाय बीजे बादर अग्निकाय ४ होय. इवे जपपात चितवतां लोकना असंख्येय भाग वर्ती छे सिद्धान्तमा आ प्रमाणे का छे. -- For Private and Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आवा० ॥१४०॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उवावण दो, उड्ढकवाडेंसु तिरियलोयतद्वेष || तेनो अर्थ आ प्रमाणे छे अढी द्वीप वे समुद्रनी बाहल्य (लंबाइ) पूर्व पश्चिम दक्षिण स्वयंभूरमण पर्यंत, आयत (विस्तारवाळा) उर्ध्व अघो लोक प्रमाण कमाड, ते बेनी वचमां रहेला बादर अग्निमां उत्पन्न थतां तेनो व्यपदेश अनिकाय (नाम) पामे छे. तथा तिर्यक लोक प्रमाण थाळीना आकारमा रहेलो बादर अग्निमां उत्पन्न थयेलो बांदर अग्निकायनो व्यपदेश पामे छे. वीजा आचार्य आ प्रमाणे कहे छे, के ते बेनी वचमां रहेलो एटले तिर्यक लोक वत्स्थ तेमां रहेलो उत्पन्न थवानी इच्छावाळो वादर अग्निनो | व्यपदेश पामे छे. आ व्याख्यानमां कमाडनी अंदर रहेलोज लेवो अने ते बन्नेनी उंचा कमाडनी वचमांनो आ कहेवावडे तेज आभ्युं छे. तेथी तेनी व्याख्याना अभिप्रायने अमे समजी शक्ता नथी (आवुं टीकाकार लखे छे.) कवाटनी स्थापना आ प्रमाणे छे' समुद्घातकडे सर्व लोक वर्ती छे. अने पृथिवीकाय विगेरे मारणांतिक समुद्वातबडे मरायला बादर अग्निमां उत्पन्न नारा तेना व्यपदेशने पामनारा सर्व लोकव्यापी होय छे, अहिं ज्यां बादर अग्निकाय पर्याप्ता होय त्यांन बादर अपर्याप्ता होय कारणके | पर्याप्तानी निश्राये अपर्याप्ता उत्पन्न थाय छे. तेथी ए प्रमाणे सूक्ष्म अने बादर पर्याप्ता अने अपर्याप्ताना भेद दरेक बच्चे प्रकारे छे। अने ते वर्ण, रस, गंध, स्पर्शना आदेशवडे हजारो प्रकारना भेदवाळा संख्येययोनि प्रमुख शत सहस्त्र ( लाख ) भेदना परिमाणवाळा होय छे, त्यां तेओनी संकृत, अने उष्ण योनि छे. ते सचित्त अचित्त अने मिश्र, एवा त्रणभेदवाळी छे, अने ए For Private and Personal Use Only सूत्रम ॥१४०॥ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ४१४१ ॥ www.kobatirth.org अग्निकानी व मळीने सातलाख योनि छे. हवे मूळमांजेच शब्द छे, तेनो समुच्चित जे लक्षणद्वार छे ते कहे छे. जह देह परिणामो रतिं खज्जोयगस्स सा उवमा | जरियस्सय जह उम्हा तओवमा तेउजीवाणं ॥ ११९ ॥ जेम देहना परिणाम, ते प्रतिविशिष्टि शरीर-शक्ति छे, ते रात्रीमा आगीयो जणाय छे, तेवी रीते आ देहनुं परिमाण जीव प्रयोगनी निवृत शक्ति देखाडे छे. एवी रीतेज अंगारा विगेरेनी पण प्रतिविशिष्ट प्रकाश विगेरे शक्ति अनुमानमां लेवाय छे. के, जीव प्रयोग विशेष वडे आ प्रकट थइ छे. (टीकाकारे निर्युक्तिनो अर्थ करता आगीयानुं दृष्टांत बतावी अंधारामां ते प्रकाशे छे, तेनी उपमा लइ जेम प्रकाशथी आगीओ जीव है, तेम अग्नि पण प्रकाश विगेरे शक्तिथी जीव छे, आ प्रयोग छे, अने ते शरीरना | परिमाण बडे बताव्यो; तेम अग्निकाय पण जीव मानवो), अथवा तावनी गरमी जीव-प्रयोगने छोडीने जती नथी; पण ते जीवथीं अधिष्ठित शरीरनी अंदरज रहे छे. आज उपमा व्यग्निकायना जीवोने छे, अने मरेला ताववाळा फोइ जगोपर देखावा नथी. ( मर्यापछी तात्र होतोज नथी). एज प्रमाणे अन्य व्यतिरेक बडे अग्निनुं सचिचपशुं मुक्त (जैन सिद्धान्त ) ग्रंथनी उत्पत्तिना मुख वडे स्वीकार्य छे. हवे प्रयोग (अनुमान) बतायीए छीए तेनो अर्थ आ छे. अंगारा विगेरे जीव शरीर छे. कारण के जेम सारना विषाण विगेरे भेदाय छे, तेम ते पण छे, छेद्यत्वादि हेतु गणथी युक्त छे. ते प्रमाणे आत्माना संयोगथी प्रकट घयेलो अंगारा विगेरेनो प्रकाश परिणाम छे। अने ते शरीरमा रहेलो दोवाथी सिद्ध थाय For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥१४९॥ Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा० सूत्रम् ॥१४२॥ ॥१४२॥ | छे, अने तेनुं दृष्टांत आगीआना शरीरनुं परिणाम माफक जाणवू. तेज प्रमाणे आत्माना संपयोग पूर्वक अगारा विगेरेथी गरमी छे. ।। अने ते शरीरमांज रहेला होचायी जणाय छे. जेम तावनी गरमी जीवता शरीरमां छे, तेम अंगारा विगेरेनी गरमी पण जीव शरीरमांज होगी जोइए, एम जाणयु. अहिं सूर्य विगेरेना प्रकाशथी अनेकान्त ( दोपवाळी ) हेतु नथी कारण के वधाओने आत्म-1 प्रयोगपूर्वक उष्ण परिणामर्नु भजवापणुं छे. तेथी अमारो हेतु, अनेकांत नथी पण निर्दोष छे. ___वळी अग्नि सचेतन हे. तेने यथायोग्य आहार मनवायी तेना शरीरनी वृद्धि थइ विकार पामे छे, माटे तेमां विकारपणु छे. जेम पुरुपर्नु शरीर ज्यांसुधी चैतन (सचेतन) होय त्यांमुधी आहारथी वृद्धि पामे छे, आवां लक्षणथी अग्निकायनां जीवो निश्चयथी मानवा, लक्षणद्वार समाप्त. हवे परिमाणद्वार कहे छे, जे बायर पजत्ता पलिअस्स असंखभागमित्ता उ। सेसा तिपिणवि रासी वीसुं लोगा असंखिजा ॥१२०॥ जे बादर पर्याप्ता अग्निकायना जीयो छे, ते क्षेत्रपल्योपमना असंख्येय भाग मात्रमा वर्ती प्रदेश राशीना परिमाणवाला छे, अने ते वादरपृथ्वीकाय पर्याप्ताथी असंख्येय गुणहीन छे, बाकीनी प्रण राशीओ पृथ्वीकायनी माफक जाणवी, पण बादर पृथ्वीकाय अपर्याप्ताथी बादर अग्निकाय अपर्याप्ता असंख्येय गुणहीन छे, अने सूक्ष्म पृथिवीकाय अपर्याप्ताथी मूक्ष्म अग्निकाय अपर्याप्ता विशेष हीन छे. सूक्ष्म पृथिवीकाय पर्याप्ताथी मूक्ष्म अग्निकाय पर्याप्ता बधारे हीन छे. हवे उपभोगद्वार कहे छे. दहणे पग पगामणे य से एयभनकरणे य । वायरतेउक्काए उवभोगग्रणा मणस्साणं ॥ १२१ ॥ RECX * For Private and Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ १४३ ॥ www.kobatirth.org मृत शरीर विगेरेना अवयवो वाळवा तेनुं नाम दहन, दाढ विगेरे दूर करवा जे अमिनी पासे बेशीने तापीए छीए तेनुं नाम | प्रतापन तथा प्रकाश (अजवाळा) माटे दीवो विगेरे जे वाळे, तेनुं नाम प्रकाशन, तथा रसोइ करवा माटे जे लाकडां बीगेरे बाळवामां आवे, तेनुं नाम मक्तकरण, अने चूंक विगेरे रोगमा जे बाफ छे छे, तेनुं नाम स्वेद, (अथवा मार बिगेरे लोहीनी गांठ उपर शेक करवामां आवे छे ते) विगेरे अनेक कामोमां अग्निनो उपभोग (उपयोग ) थाय छे. आवां कारणों पोताने आवतां निरंतर आरंभमा रहेला गृहस्थों अथवा सुखना अभिलापी जीवो यतिपणानो डोळ करनारा अग्निकायना जीवोने हणे छे ते बतावे छे. एएहिं कारणेहिं, हिंसंती तेडकाइए जीवे । सायं गवेसमाणा परस्स दुक्खं उदीरंति ॥ १२२ ॥ उपर बतावेला दहन विगेरेना कारणे अग्निकाय जीवोने संघटन परिताप अपद्रावण (हिंसा) करे छे. अने ते बडे पोताना | आत्मानुं सुख बांछनारा बादर अग्निकायने दुःख उपजावे छे. हवे शखद्वार कहे है. ते द्रव्य अने भाव एम वे प्रकारे छे. पळी | द्रव्य शत्र पण समास अने विभाग एम के प्रकारे छे हवे समासथी द्रव्यशस्त्र बतावे छे. पुढवी आउ काएउल्ला य वणस्सइ तसा पाणा । वायरतेडक्काए, एयं तु समासओ सत्थं ॥ १२३ ॥ धूळ, पाणी, लीली वनस्पति त्रस जीवो ए वादर अग्निकायनां सामान्य शस्त्रो छे. हवे विभागथी द्रव्यशस्त्र कहे छे. किंची सकायसत्थं, किची परकाय तदुभयं किंची । एयं तु दवसत्थं, भावे य असं जमो सत्थं ॥ १२४ ॥ कोइक स्वकायज शस्त्ररूप याय छे, एटले एक अनिकायथी वीजा अधिकायने दुःख पढे छे. जेमके तृणनो अग्नि अने पां For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥१४३॥ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥१४४॥ दडानो अग्नि परस्पर एकबीजाथी दुःख पामे छे. कोइ परकाय शस्त्र छे, जेम पाणी अग्निकांपना जीवाने हक छे अने उभय सत्र आचामा | ते तुष, करीप, (छाणां) विगेरेथी मळेलो अग्नि बीजा अग्निने शस्त्ररूप छे. (अहिं उभयथी एम समजg के थोडा वळतां माटीवाळा छाणां तथा वळतां भातना छोडां विगेरे अग्नि सहित होय छे तेथी अग्नि अने पृथिवी एम घेउ मळी उभय थयां.) मूळमां 'तु'। ॥१४॥ शब्द छे ते भाव शस्त्रनी अपेक्षाए विशेष अर्थ छे. अने पूर्वे कहेल समास विभागरूण पृथिवी तथा समाप निगेरे द्रव्य शख छे. हवे भाव शस्त्र बतावे छे, भावमां शस्त्र ते असंयम छे, ते मन, वचन, तथा कायार्नु खराब ध्यानरूप लक्षण के पूर्वे कहेलं व्यतिरिक्तना द्वारना अतिदेश द्वारवडे समाप्त करवानी इच्छायो नियुक्तिकार कहे छे. सेसाई दाराइं ताई जाई हवंति पुढवीए । एवं तेउद्देसे, निज्जुत्ति कित्तिया एसा ॥ १२५ ॥ पूर्व कहेला द्वारो जे पृथिवीकायना उद्देशामां कडेला ते तेजस कायना पण समजवां ते वधो नियुक्तियो अग्निकाय उद्देशामा लागु पडे, एम समजबुं. हवे मूत्रानुगमर्मा अस्खलितादि गुणयुक्त मूत्र कहे ते आ छे. से बेमि व सयं लोग अब्भाइक्खेजा, णेव अत्ताणं अब्भाइक्खेज्जा, जेलोयं अभाइक्खइसे अत्ताणं अब्भाइक्खड़ जे अत्ताणं अब्भाइक्खइ से लोयं अब्भाइक्खइ । (सू० ३१) एनो सम्बन्ध पूर्वमाफक छे. जेवीरीते में सामान्य आत्म पदार्थ पृथिवी अप्काय जिवविभागर्नु वर्णन कयु, तेवीरीते हुँ अहिं 5 For Private and Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥१४९॥ www.kobatirth.org | पृथिवी पाणी, वायु, अने वनस्पति विगेरेनी अनुक्रमे (उत्कृष्ट स्थिति) बावीश हजार, सात हजार, ऋण हजार, अने दश हजार वर्ष प्रमाण होवाथी ते दीर्घ है, एथी दीर्घलोक ते पृथिवी विगेरे तेमनुं आ अग्निकाय शस्त्र छे एम जाण तेना क्षेत्रने जाणनारा निपुण अफ्रिकायने वर्ण बीगेरेथी जाणे छे, तथा अग्निनो सर्व प्राणीओने खेद पमावान एटले बाळवानो व्यापार होवाथी; पाक वीगेरे अनेक शक्तिकलापथीच वेला मोटा मणिनी माफक जाज्वल्यमान होय; ते अग्निना व्यपदेशने | पामे छे, ते अनि (जीवांने दुःख आपनार) होवाथी साधुओए तेनो आरंभ न करवो; ए एटले बीजा प्राणीओना खेदने जाणनार | ते खेदझ-मुनि छे, एथीज दीर्घलोक शस्त्र (अग्नि) ना खेदने जाणनार तेज सत्तर प्रकारना संयमनी खेदज्ञ छे. अर्थात् मुनिनो संयम अशस्त्र छे, ते संयम निगथी कोइपण जीवने न मारे; तेथी अशख छे, तेथी संयम जे सर्व सत्त्वने अभय देनार छे, ते आदरवा वडे अग्नि-जीव संबंधी आरंभ तजवो सहेल छे, अने पृथिवीकाय विगेरेनो समारंभ पण त्यागवो; एम वर्तनार साधु-संयममां, निपुण मतिवाळो छे, अने निपुणमतिपणाथ परमार्थने जाणनार अग्नि समारंभथी पाछो हठीने संयम अनुष्ठानमा भर्ते छे. हवे कलां अने आतां लक्षणो वडे अविना भावित्व (साथै रहेनार) बताववा माटे विपर्यय (उलटापणा) वडे सूत्रांना अवयवनो विचार करे छे, जे 'असत्यस्सेत्यादि' जे अशस्त्रवाळा संगमां निपुण छे, ते format दीर्घलोक शत्र (अग्नि)ना क्षेत्रने जाणनारा, अथवा खेदने जागनार छे. संयमपूर्वक अग्नि विषय खेदने जाणवापणुं होवाथी तथा अग्निविषय खेदनुं जाणवाप जेमां छे; तेज संयमनुं अनुष्ठान छे. आ शिवाय बीजी रीते संयमनो असंभवज छे. तेथी आ गयुं, आव्यु फळ प्रकट करेलुं छे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only सूत्रम ॥१४९॥ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir CA- 25 e ___ आ बताचेलं कोणे जाण्यु ते बताये छे, 'वीरेहीत्यादि' मूत्र ३३ थी जाणवू अथवा सारा वक्तादि मसिद्ध थये वाक्यनी :आचा० सिद्धि थाय छे. ते कहे छे सूत्रम् वीरहिं एयं अभिभूय दिटुं, संजएहीं सया जत्तेहिं सया अप्पमत्तेहिं (सू० ३३) ॥१५०॥ ॥१५०॥ घनघाती कर्म समूह दूर करवा साथे तेज वखते केवळ ज्ञानरुप लक्ष्मी प्राप्त करवाथी विशेष प्रकारे राजे छे. तेथी 'वीर' ते | तीर्थकरो छे, ते वीरोए अर्थथी आ देख्यु (मकाश्यु) अने गणधरोए ते सांभळीने सूत्रथी अग्नि शस्त्र देख्यौं भने अशस्त्ररुप संयम देख्यं छे. । प्रश्न-तेओए शुं करी आ प्राप्त कयु ? उत्तर-पराजय करीने, ते पराजय चार प्रकारे छे, नाम स्थापना सुगम छे, द्रव्य पराजय ते शत्रुनी सेना विगेरेनो पराजय करवो अथवा मूर्यना प्रकाशथी चंद्र, ग्रह, नक्षत्र, विगेरेनुं तेज ढंकाइ जाय छे ते. अने भाव अभिभव (पराजय) ते परिषद उपसर्गनो समूह जे शत्रुरूप छे, ते तथा ज्ञान दर्शननु आवरण तथा मोह अने अंतराय ए चार कर्मनु नाश कर ते भाव पराजय छे, परिपह अने उपसर्ग विगेरे सनाने जीतवाथी निर्मळ चारित्र मळे छे. अने चरणनी शुद्धिथी ज्ञान आवरण आदि कर्मनो क्षय याय छे, अने ते कर्मना क्षयथी आवरण रहित कोइ जगोए न हणाय, ते, संपूर्ण जाणवा योग्य पदार्थने जणावनार केवळज्ञान थाय छे, एनो भावार्थ आ छे. के ते वीरोए परिषह, उपसर्ग, तथा ज्ञान दर्शन, आवरणीय मोह अंतराय कर्मने जोतो केवळ ज्ञान प्राप्त कठिाने ते तानवडे ते आप जाण्य केले के आ अग्निकाय पण जीव छे. निगेरे. For Private and Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagawur Gyanmandir www.kobatirth.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra IN ॥१५१॥ तेमणे आ केवीरीने प्राप्त करें ते बतावे के. आचा० सम्यक्पकारे वर्ते, ते संयत एटले प्राणातिपात (जीव हिंसा) विगेरेशी पाछा हठेला, तेमणे सर्वकाळ चरण (चारित्र) नो स्वीकार को, तेना मुळ अने उत्तर गुण एवा ये भेदमा तेपणे निरतिचार (दोप रहित) उद्यम कों, तथा मद्य विषय, कपाय, विकथा अने ॥१५॥ निद्रा ए पांच प्रकारको प्रमाद सर्व काळ छोड्यो. तेथी ते अप्रमत्त वन्या, एवा बनेला महावीरोए केवळ ज्ञान चक्षुबडे आ दीर्य लोक शस्त्र (अग्नि) तथा अशख ने संयम एवं देख्यु. अहियां — यत्रः' शब्द ग्रहण करवाथी इर्या समिति विगेरे गुणो लेना, अने 'अप्रमाद, ग्रहण करनाथी मद्यपान विगेरेनो निषेध जाणदो. आ उपरथी एम सिद्ध ययु के आ प्रधान पुरुगोए स्वीकारेलं, अग्नि काय शस्त्र अपायर्नु कारण छे, माटे अपमत्त साधुभोप तेने छोट्युं जोइए, एवीरीते खुल्ला बतावेला अनेक दोपना समूहवाळा अM, निशखने उपभोगना लोभधी, प्रमादवश धपेला, जेभो न छोडे, तेमने उद्देशीने तेमनां कडवां फळ थाय छे, ते बनावे हे जे पमते गुणट्टीए से हु दंडेत्ति पवुच्चइ (सू०३४) जे मद्य विषय विगेरे प्रमादयी पमादी थाइरहे, ते असंयत छे, अने रंन्धन, पचन, प्रकाश, आतापना, विगेरे अग्नि गुणोने है। प्रपोजवाथी. ते गुणार्थी ( स्वार्थ साधक) मन, वचन कायानो दुरुपयोग करनार, अग्नि शमना समारंभ वडे माणीभोने दंड देवाथी पोते दंड रुपेज छे. एq पकधी कहेवाय छे. जेम आयुष्य छे तेमां घी विगेरेनो व्यपदेश कराय छे, (घी विगेरे योग्य पदार्थ मळवाथी जीवन वधे छे. एथी हवे | करवू, ते कहे छे. For Private and Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥१५२॥ www.kobatirth.org तं परिण्णाय मेहावी, इयाणिं णो जमहपूव्व मकासी पमाए (सू० ३५) ते अग्रिकायना समारंभमा दंड रूप फळने जाणीने परिज्ञा बढे जाणवु, अने प्रत्याख्यान परिज्ञा वडे छोडं, ते बे परिक्षा बडे मयार्दामा रहेलो, ते मेघावी (साधु) हवे पछी ना कहेवाता मकारों पठे आत्मामा विवेक करे, ते प्रकार बताये है, 'इयाणीत्यादि ' जे अग्नि समारंभने विषय प्रमादवडे आकुल अंतःकरण वाळो बनीने में कर्यो, तेने हवे जिनेश्वर भगवानना वचनथी अग्नि समारम्भ दंड तत्त्रने मे जाण्युं, तेथी हवे ते नहि करूं, पण बीजामतना वीजीरी ते बोलनारा उलड करे छे ते बतावेले जमाणा पुढो - पास अणगारा मोति एंगे पवदमाणा, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं अगणिकम्मसमारभेण अगणिसत्यं समारभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसंति, । तत्थ खलु भगवता परिणा पवेदिता, इमस्स चैव जीवियस्स, परिचंदणमाणणपूयणाए, जाइमरणमोयणाए, दुक्खपडिघावहउं से सयमेव अगणिसत्थं समारभइ, अण्णेहिं वा अगणिसत्यं समारंभावेइ, अण्णे वा अगणित्थं समारभमाणे समणुजाण, तं सेअहियाए अबोहियाए, सेतं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुद्दाय, सोच्चा restore इहमेगेसिं णायं भवति - एस खलु गंथे एस खलु मोहे, एस खलु मारे एस For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥१५२॥ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ १५३ ॥ www.kobatirth.org खलु णरए इच्चत्थं गड्दिए लोए जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं अगणिकम्मसमारंभमाणे अण्णे अगरूवे पाणे विहिंसइ ( सू० ३६ ) उपरनो एटले ३६ मा मूत्रनो अर्थ पूर्वे बोजा सूत्रोमां कही गया छीए, छतां वाकीनो थोडो अर्थ कहेवाय छे. पोताना आगममां । | कहेला अनुष्टान करनारा अथवा पाप अनुष्ठान करवायी लज्जा पामेला जुदा जुदा मतवाळा शाक्य विगेरे साधुओ केवा छे, ते तुं जो, एवं आचार्य पोताना शिष्यने संगममां स्थिर करवा माटे कहे छे. ते ओ पोताने अणगार तरीके बोलनारा छे. छतां तेओ केतुं विरुप आचरे । छे, जेथी सेभो लज्जाय छे, ते बतावे छे, जे आ विरुष रूपवाळां शखोवडे अभिनं कार्य आचरवाथी अग्निशखनो समारम्भ करता बीजा अनेक जीवोने हणे छे. (अने ते अणगार कहवाय, छतां बीजा जीवांने हणे ते शरम भरेलं कृत्य छे.) तेमां जिनेश्वरे परिज्ञा बताची छे, के व्यर्थ जीवनना, मानन, पूजन, बन्दन, तथा जन्ममरणथी छुटवा माटे दुःखने दूर करवा माटे जे करे छे, ते बतावे छे; ते परिवन्दन विगेरेना अर्थी पोतानी मेळे अग्नि वाळे वीजा पासे वळावे, तथा वाळनाराओने अनुमोदे छे, ते अग्नि शत्रनो, समारंभ तेनी सुखनी इच्छाए करवा छतां तेने तेनाथी अहिं तथा परलोकमां अहितने माटे थाय छे। अने तेनी धर्म श्रद्धा नाश पामे छे, तेनुं आ आ असदाचरण बताव्युं, तेथी सारो शिष्य अग्निकायनो समारंभ पापने माटे छे, एवं जाणे, तेथी सम्यक दर्शन विगेरे जिनेश्वर पासे अथवा कोइ सारा साधुओ पासे सांभळीने केटलाक साधुओने के ज्ञान, थाय ते बतावे छे. अग्रि बाळवी, ते कर्मबन्धननो हेतु होवाथी ते ग्रंथ छे, मोह, मार, तथा नर्क छे, कारण के तेथी नर्कन थाय छे. एवं छतां जे गृद थयेल लोक छे For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥१५३॥ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ १५४ ॥ www.kobatirth.org ते जे करे छे, ते बतावे छे. आ विरुप शखोवडे अग्रिकायनो समारंभ करे छे, अने ते आरंभधी अनेक जीवोने हणे छे, देवी रीते अनि समारंभ करनारा जुदा जुदा जीवांने हणे छे, ते बतावे छे. से बेमि-- संति पाणा पुढवीनिस्सिया तणणिस्सिया पत्तणिस्सिया कहनिस्सिया गोमयणिस्सिया कrवरणिस्सिया, संति संपातिमा पाणा आहच संपयंति, अगणिं च खल्ल पुट्ठा एगे संघायमात्रांति, जे तत्थ संघायमावर्जति, ते तत्थ परियावज्जंति, जे तत्थ परियावज्जंति ते तत्थ उद्दायंति (सू० ३७) से हुं हुं छं के, अग्निकायना समारंभथी जुदा जुदा जीवोनी हिंसा थाय छे. जे में प्रतिज्ञा करी से घता छ पृथिकाय एटले, माणिओ पृथिवीकायपणे परिणमेलाछे, अथवा तेने आश्रित कृमि, कीडी, पतंग, कुंथु, गंडपद (जुआ) साप देवा, विछ कर्कटक (करचला) विगेरे, तथा वृक्षगुल्मलतानो समुह विगेरे, अने घास पांदडां विगेरेना आश्रित रहेला पतंगीयां विगेरे तथा लाकडामा रहेलां घुण, कीडीओ, तथा तेनां इंडा विगेरे अने छाण विगेरेमां रहेला कुंथुआ पत्रक विगेरे, तथा कचरो ते, पांदडा, घास धूळनो समूह, तेनी अंदर रहेलां कृमी कीडा पतंग विगेरे छे आ शिवाय उडता आवीने पडवाना स्वभाववाळा, अथवा आमतेम जता आता ते संपातिक छे. जेवा के, भमश, माखी. पतंग, मच्छर पक्षी, वायु विगेरे संपातिक जीव छे, ते उडीने, पोते पढे, अथवा जोस्थी अग्नि वळतां उंचे तेनी शीखा जतां, ते उडतां जंतुओं अग्निमां पडे छे. आ प्रमाणे पृथिवी वीगेरेने आश्री | रहेला जीवोनुं शुं थाय छे? ते बतावे छे. रांधवु, पकाबवु ( निभाटा विगेरेने) तापन, विगेरे अग्निथी गुण (स्वार्थ) वांछको For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥१५४॥ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा०केटला ॥१५॥ ཙཱ་རི་ ༥ བར་ र अवश्य अग्निनो समारंभ करे छे, अने सेना समारभमां पृथिवी विगेरेमा आश्रय लइ रहेला जीवना आचा हात पाय छे, ते पतावेछेड केटलाकनुं अग्निवहे संघात (शरीरतुं संकोचवू ) मोरना पीछा माफक बने छे (मूळ भूत्रमा मुत्रो छंदरुप होवाथी मागधीनी है सूत्रम रीति प्रमाणे बीजीविभक्तिनो अर्थ त्रीजीमा लेबो, एटले अग्निने, तेने बदले अग्निए, अथवा अग्निवडे एम अर्थ करचो, तथा 'च' शब्दथी विशेष अर्थ छे. खलु शब्द निश्चय वाचक छे.) एटले बीमानो आ प्रताप नधी पण अग्निनोज छे, अधना वीजी रीते लेता अमिनी बोजी विभक्ति सातमीमां लइए तो स्पष्ट शब्दनो अर्थ पतित एटले पडेलां, एवो करवो, एटले अग्निर्मा पडेला केटलांक पतंगीआ विगेरे जीवो एकपणे अधिक शरीर संकोचनपणाने पामे छे, अने जेओ अग्निमां पड्या ते बघा जीवो तापथी मृछित थइ जाय छे. मूत्रकार महाराजे अन्य विभक्ति शा माटे लीधी के आरणे यीनीनो अर्थ त्रीजी विभक्तिमा लेबो पड्यो? उसर-मगध देशमा ते प्रमाणे चाले छे. अथवा एक भाषांमांथी बीजी भाषामा व्याख्या करना विकल्प थाय छे. ते वतावचा आ कयु, अने अध्याहार विगेरे पण व्याख्यान अंग छे, ए आ सूत्रबडे शिष्यने जणाव्युं छे प्रश्न-अहिं ते अध्याहार विगेरे कया छ ? उत्तर-अध्याहार, विपरिणाम व्यवहिन कल्पना, गुणा कल्पना लक्षणा (असंचित वाक्पने संभावित पणामां लावबुं ते) अने वाक्य भेद छे. तेवी रीते अहिं बीजीनो अर्थ सप्तमीमा परिणाम पाम्यो छे, जे अग्निमां पडे छे. तेओ कृमि, कीडी, भमरा, नोळीया For Private and Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥१५६॥ विगेरे प्राण छोडे छे. तेथी अग्नि समारंभमा एकला अग्नि जंतुनो विनाश नथी, पण पृथिवी घास पांदडा लाकडां छाणा तथा । आचा० कयरामा रहेला जंतु तथा उडिने के उछळीने पडनारा जन्तुओ पण अवश्य नाश पामे छे. तेथीज भगवतीसूत्रमा कयुं छे के- IR " दो पुरिसा सरिसवया अन्नमन्नेहिं सहिं अगणिकायं समारंभंति, तत्थ णं एगे पुरिसे अगणिकायं 8 समुज्जालेति, एगे विज्झचेति, तत्थणं के पुरिसे महाकम्मयराए? के पुरिसे अप्पकम्मयराए? गोयमा ! जे उज्जालेति, से महाकम्मयराए जे विज्झवेति, से अप्पकम्मयराए, प्रश्न-थे सरखी चयना पुरुपो साथै अग्निकायनो आरंभ करे, तेमां एक अनिकायने चाळे. अने बीजो तेने बुझावे, तेमां बधारे कर्म बन्धन कोने? अने ओछु कोने? उत्तर-हे गौतम जे वाळे, तेने महान् कर्मबंध लागे, अने जे वुझावे तेने छोडु लागे छे. एवीरीते अनिकायनो आरंभ घणा जीवाने उपद्रव करनारो छे, एम जाणीने मन वचन अने कायाथी, तथा करवू, कराव_ । तथा अनुमोदबु, ते अग्निकाय संबंधी कर्म त्यागq ते बतावे छे. एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभापरिपणाया भवन्ति, तं परिणाय मेहावी व सयं अगणिसत्थं समारंभे, नेवऽपणेहिं अगणिसत्थं समारंभावेजाअगणिसत्थं समारंभमाणे अण्णे न सम For Private and Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् - णुजाणेजा, जस्सेते अगणिकम्म समारंभा परिणाया भवन्ति, से हमुणी परिणाय कम्मे (सू०३८) आचा० त्तिबेमि ॥ इति चतुर्थ उद्देशकः ॥ ____ आ अग्निकायना स्वकाय तथा परकाय, एम वे भेदवाळा शस्त्रना आरंभ करनारने रांधवु-रंधावयु विगेरे बंध हेतु छे. एy | तेमने ज्ञान नथी; पण आज अग्निकायना शस्त्रनो आरंभ करवामां दोप लागे छे, एवं जेमने ज्ञान छे, एटले परिक्षा बड़े तेमणे जाण्यु छे. अने जाणीने प्रत्याख्यान परिक्षावडे तेनो त्याग करे छे. तेज मुनी परमार्थथी परिक्षात कर्मा (गीतार्थ) छे, ए, जिनेश्वर पासे में सांभब्यु , अने तेज तने कहुं छु. । चोथा उद्देशानी टीका समाप्त ।। चौथो उद्देशो करो. हवे पांचमी कहीए छीए; नेनो आ संयंध छे. गया उद्देशामां तेजस्काय कया; अने हवे अधिकळ (स पूर्ण) 8 साधुगुणना स्वीकार माटे क्रमे आवेला वायुकाय बतावताना वखते, वनस्पतिकायना जीवें स्वरुप यतावीए छीए. प्रश्न-शा माटे आ क्रम उल्लंघो छ? उत्तर-वायु आंखे देखातो न होनाधी, तनी श्रद्धा धवी मुश्कल छे, तेथी वधश पृथिवी वोगेरे एकेन्द्रिय प्राणी-गणने जापणनारो शिष्य सुखथीज वायुनीवना सारूपने मानशे, अने • अनुक्रम ' तेनेज कहेवो के, जेनावडे जीवादि तत्त्वो मानवामां शि प्यो उत्साहवाळा थाय, अने वनस्पतिकाय बधा लोकने प्रत्यक्ष छ, तथा प्रकट-जीवनां चिन्हना समूहथी युक्त छे, मेथी तेज वन ---- For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ १५८॥ www.kobatirth.org स्पतिकायने प्रथम कहीए छीए. ए प्रमाणे संबंधथी आवेला आ वनस्पतिकायनां चार अनुयोगद्वार कहेवां; ज्यांसुधी नाम निष्पन्न निक्षेपमां वनस्पति उद्देशा छे, ते वनस्पतिना पोताना भेदनो समूह बतावा पूर्व प्रसिद्ध अर्थनां दुकाणना द्वारवडे नियुक्तिकार कहे छे, पुढवीए जे दारावणसइकाएवि हुंति ते चेव । नाणत्ती उ विहाणे, परिमाणुत्र भोग सत्थे य ॥ १२६ ॥ पृथिवीकायनां जाणवा माटे जे द्वारो कलां, तेज अर्धी वनस्पतिमां जाणयां; पण जुदापणुं मरुपणा परिमाण उपभोग, शस्त्रो, अने च शब्दश्री लक्षणमां पण जुदापशुं जाणवुः तेमां प्रथम प्ररूपणा स्वरूप बताववा कहे छे. दुविह वणस्सइजीवा सुहुमा सह बायरां य लोगंमि । सुहुमाय सब लोए दो चेत्र य बायरंविहाणा ॥ १२७ ॥ वनस्पति सुक्ष्म अने बादर, एम वे भेदे छे, तेमां सूक्ष्म छे, ते सर्वलोकमां व्याप्त अने एकाकार होवाथी चक्षुथी ग्रहण यती नथी. बोंदरना वे भेद छे ते बतावे छे. या साहारण, बायरजीवा समासओ दुविहा । बारसविणेगविहा समासओ छबिहा हुति ॥ १२८॥ समासथी बादर ये प्रकारे छे. प्रत्येक अने साधारण, तेमां पांदडां फुल, फळ, मुळ, स्कंध विगेरे दरेकमा जुदोजुदो जीव जे वनस्पतिमां होय, ते प्रत्येक वनस्पति जीव जाणवा, अने साधारण वनस्पति जीवो एक बीजाने जोडायला अनन्त जीवोनो समूह एक शरीरमां साथ रहेला छे. प्रत्येक शरीरवाळाना वार भेदो छे, अने साधरणना अनेक भेदो छे, पण ते समासथी छ प्रकारे जाणवा, तेमां प्रथम प्रत्येक वनस्पतिना वार भेद बतावे छे. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥१५८॥ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥१५९॥ रुक्खा गुच्छा गुम्मा, लया य, वल्ली य पबगा चेव । तणवलयहरियओसहिजलरुहकुहणा य बोद्धवा ॥ आचा० छेदाय ते वृक्षो, ते चे प्रकारना , एक अस्थिक, (एक ठळीयावाळा) तथा बहु चीनवाळां छे, तेमां लीमदो, आंबो, कोशंच, ४) ॥१५९॥ साल (साग), अंकोल पीलु, शल्की विगेरे एक बीजवानां छे, अने उमरो कोठं अस्तिक ( अगथीओ) टीमरु वीलु, आमळां, फणस दाइम बोनो विगेरे अनेक बीजवाला छे, रींगणां (वेंगण), कपास, जपो (जामुद्दी)पादकी (तुवेर), तुलसी, कुसुंभरी, पीपळी, नीकी (गळी) विगेरे गुच्छावाला छे. नवमालिका, सेरियक, कोरंटक बंधुनीवक; बाण, करवीर (केरा), सिंदुवार, विकिल जाति (जाइ) युधिक विगेरे गुल्म छे, अने पमनाग अशोक, चंपो, आंचो, वासंति, अति मुक्तक कुंदलता विगेरे, लताओं छे. कोळानो वेलो, काळगडानो वेलो, तृपुषी (काकडीना वेला), तुंबी, वालोळ, एलालुकी. तथा पटोळी (पंडोळानो वेलो) विगेरे वेलडीओ छे. तथा ४ शेरडी, वाळो सुंठ, शर, बेत्र शतावरी वांस नळ वेणुक विगेरे पर्वग कहेवाय छे. अने पतिका (घोळीदरो) कुश, दर्भ, पका, अर्जुन | IM सुरभि, कुरुविंद विगेरे घास कहेराय छे. तथा ताड तमाल, तकली शाल सरला केतकी-केळ, कंदळी, विगेरे चलय कहेवाय, नांदळजो धुया रुह वस्तुल बदरक, मार्जार, पादिका चिल्लिपालकी विगेरेने हरित (भाजीओ) कहे छे, अने शाली (भात), बीही (डांगेर.) घर, जब कलम, मसूर, तल, मग, अडद, चोळा, कुलथी, अळसी, कुमुंभ, कोदरा, कांग, विगेरे, औषधि कहेवाय छे उदकावक पनक शेवाळ कलंमयुका, पावक, कशेरुक (कसेरु) उत्पल (लाल कमळ) पद, कुमुद (पोयणी), नलीन, पुंडरीक विगेरे । जलरुह कहेबाय छे. अने भूमिस्फोट नामना, आय ' काय, कुहुण उंडक,उदेहलीक, शलाका, सर्प छत्र विगेरे कुहुण कहेवाय छे. SEKSIXXX For Private and Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyarmandie सूत्रम ॥१६॥ Pा प्रत्येक जीवाळा झडोना मुळ, स्कंध कंद, छाल, शाख, प्रवाल विगेरेमा असंख्यता प्रत्येक जीवो जाणवा, अने पांदवां आचा० फुल एक जीववाळा मानवां. साधारण वनस्पतिना पण अनेक भेद छे, जेम के. लोही, निहु, स्तुभाविका, अश्च कर्णी सिंह की, व शंगवेर आदु), पालुका, मूळा, कृष्णाकंद, सुरण, काकोली, क्षीरकाकोली विगेरे छे. आ बधो वनस्पतिना संक्षेपथी छ भेद छे, ते । ॥१६०॥ भेदोने वतावे छे. अग्गवीया मूलबीया, खंबीया चेव पोर बीया य बोयरुहा समुनछिम,समासओ वसईजीवा ॥१३०॥ मां कोरंटक विगेरे अग्रवीजवानां छे. केळ विगेरेने मूळमां बीन छे. निहु शल्लकि अर्णीक (अरणी) विगेरेने कंधमां चीज माछे. अने शेरडी, बांस, नेतर विगेरेने पर्वमा चोक छे, अने योजयी उगे, ते भात विगेरे जागना; अने संमूर्छनधी पमिनी शृंगाटक । (शीगाडु) पाठ शेवल, विगेरे थाय छे. ए प्रमाणे समासथी छ प्रकारे बताच्या पण आ शिवाय मीजा नथी एम जाणवू. हवे प्रत्येक वनस्पति केचा लक्षणवाळी होयछे ते बतावेछे. जह सगलसरिसवाणं, सिलेसमिस्साण वत्तियावट्टी पत्तेयसरीराणं तह हंति सरीरसंघाया ।। १३१ ॥४ M जेम वधा सरसवाने रस पहोंचे छे. तेनाथी मिश्रीतोनी वळेली वीमां प्रत्येक प्रदेशीयां कमेकरीने सिद्धार्थ (सरसव) रया छे, पण एकनीनाने अटकी । रया नथी. (दरेकनी वचमां सहेन भार रहे छे, ) अने कदाच चूर्ण थाय, त्यारे अन्योअन्य भेळा थाय छे. माटे आखा ग्रहण कर्या छे: जेम आ रहे थे, ते प्रमाणे प्रत्येक वनस्वपतिना शरीरनो समूह छ; अने जेम सरसो ते For Private and Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा. सूत्रम् ॥१६१॥ ॥१६१॥ Sa- प्रमाणे ननस्पतिमा जीवो रह्या छे, जेम स्सथी मिश्रीत थयेला सरसव छे, तेम राग द्वेपचड़े एकठा करेला कर्म पुदगलना उदयथी मिथित जीवो जाणवा; पाडली अडधी गाथावडे बत्तावेल दृष्टांत साथे सरखापर्ण ग्रहण करवाथी बतायुं छे, हवे आज अर्थमां चीजें ४ दृष्टांत कई छे, जह वा तिलसकलिया, बहुएहिं तिलेहि मेलिया । संती पत्तेयसरीराणं तह हुंति सरीरसंघाया॥१३२॥ जेमके तिल शकुलिका एटले बधारे तल नांखीने बनावेली छे, ते पोकीमा तल रहेला छे, तेवी रीते मत्येक शरीरवाळां वृक्षोना शरीर समूह होय छे; एम जाणवू (आमा तलनी रेवडीनुं पण दृष्टांत चाले) हवे प्रत्येक जीवो एक अधिष्टितपणुं बतायवा कहे छे. नाणाविहसंठाणा दीसंती एगजीविया पत्ता । खंधावि एगजीवा तालसरलनालिएरीणं । १३३ ।। जुदा जुदा संस्थान (आकार) जेमा छे ते जुदा संस्थानकाळा पादडा देखाप छे ते एक एक जीवथी अधिष्ठित जाणवा तथा ताल सग्ल नाळीमेरी विगेरेना डाळां पण जीव अधिष्ठित जाणवां, अही अनेक जीवनु अघिष्टितपणुं संभवतुं नथी, बाकीना H भागोमां अनेक जीवनु अधिष्ठित पणुं सामथ्थी बतावेलुजा.', हवे प्रत्येक तरुना जीवराशीनुं परिमाण बतावना कहे छ, पत्तेया पजत्ता सेढीए असंखभागमित्ताते । लोगासंखप्पजत्तगाण साहारणाणंता ॥१३४॥ प्रत्येक तरु जीवो पर्याप्ता होय, ते संवर्तित चोखुणो करेली लोकनी श्रेणीना असंख्येय भागवर्ती आकाश प्रदेवनी राशी वरोवर म जाणवा, अने ते चादर तेजस्काय पर्याप्ताना राशीथी असंख्यात गुणा जाणवा, पण जे अपर्याप्ता प्रत्येक बनस्पति जीव छे, ते । MARKES । For Private and Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥९६२॥ www.kobatirth.org असंख्यात लोकना जेटला प्रदेश धाय, तेटला जाणवा, अने ते पण बादर अपर्याप्ता तेजस्कायना जीव राशीथी असंख्यात गुणा छे. पण सूक्ष्म वनस्पति प्रत्येक शरीर पर्याप्ता के अपर्याप्ताज नयी कारण के साधारण अनन्ता छे. एवं पूर्वे विशेषण कहेलुं छे, अने साधारण वनस्पतिना जीवो सूक्ष्म, चादर, पर्याप्ता अने अपर्याप्ता एम, चार भेदे जुदा जुदा अन्नते लोकोना जेटला आकाश प्रदेश छे, तेटला जाणवा, आटलं तेमां विशेष है, के साधारण बादर पर्याप्तायी बादर अपर्याप्ता असंख्यातगुणा छे, अने बादर अपर्याप्ताथी सूक्ष्म अपर्याप्ता असंख्येय गुणा तेनाथी पण सूक्ष्म पर्याप्ता असंख्यात गुणा छे. हवे आ वनस्पतिना जीवोनुं जीवत्व जेओ इच्छता नथी; तेमने जीवपणुं बताया नियुक्तिकार कहे छे. एहिं सरीरेहिं पञ्च ते परूविया जीवा । सेसा आणागिज्झा, चक्खुणा जे न दोसंति ॥ १३५ ॥ पूर्वे बतात्रेला तरु शरीरवडे प्रत्यक्ष माणवाळा विषय वडे साक्षात् वनस्पति जीवो साध्या छे, तेनुं आ प्रमाणे अनुमान करवू. (१) आ शरीरो जीवव्यापार विना आवां न थाय. (२) जीवशरीर वृक्षो छे, कारणके, अक्ष (इन्द्रियो) थी जणाय छे. हाथ विगेरेना समूहवाळा शरीरनी माफक दृष्टांत छे (३) कदाचित् सचितो पण वृक्षो छे, कारण के ते जीवनुं शरीर छे. हाथ विगेरेना समूहनुं हति छे. (४) मंदविज्ञान सुख विगेरेवाळां झाडो छे, कारणके तेमां अव्यक्त चेतन समायलं छे. मृतेला विगेरे पुरुष दृष्टांत छे. तेज प्रमाणे कछे के वृक्षादयोपलब्धिभावात्पाण्यादि संघातवदेह देहाः ॥ तद्वत्सजीवा अपि देहतायाः सुप्तादिवत् ज्ञानसुखादिमंतः ॥ १ ॥ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥ १६२ ॥ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा सूत्रम ३१६३॥ ॥१६३॥ प्रक्षो विगेरे इन्द्रियोनी उपलब्धिना भावथी हाथ विगेरेना समुहवाळाज शरीरनी माफक देडो छे तेनी माफक ते देहवाळा जीवो सूतेला विगेरेनी माफक ज्ञान मुख विगेरे वाला छे. (भावार्थ उपर आयी गयो हे,) बाकीना सूक्ष्म के ते आंखोथी देखाता नयी तेथी जिनेश्वरनी आज्ञाए प्रमाण करवा अने भगवाननु वचन सत्य तथा रागद्वेष विनायूँ कहेलं होबाथी आज्ञा प्रमाण छे. माटे ते मानयं जोइए हवे साधारण नां लक्षण कई छ. साहारणमाहारो साहारण आणपाणगणं च । साहारण जीवाणं साहारणलक्खणं एयं ॥ १३६ ॥ एक शरीरमा साधे रहीने आहार विगेरे जेभो एक साथे ले, ते साधारण वनस्पति जीवो छे. अने तेज अनन्तकाय जीवोनु । सामान्य रीते एक साथे आहार लेबो, तथा वासोश्वास लेवानुहोवाथी ते साधारण लक्षण छे, एनो भावार्थ आ छे के एक जीव | | आहार ले, के श्वासोश्वास ले, त्यारे वधा अनन्ता जीको आहार ले, तथा श्वासोश्वास ले, हवे तेने वधारे खुलासा साथे कहे छे. | एगस्स उजं गहणं बहूण साहारणाण ते चेव । जं बहुयाणं गहणं समासओ तपि एगस्स ॥ १३७ ॥ 81 एक जीव जे श्वासोश्वासने योग्य पुद्गलो ले, ते घणा साधारण जीवोने उपयोगमा आवे; अने जे घणा जीवो थे, ते एकने पण तेज काम लागे छः हवे जे बीजोथी उगे छेः ते वनस्पति केवी रीते मकट थाय छे, ते बतावे छे. जोणिब्भृए बीए जीवो, वक्कमइ सो व अन्नो वा | जोऽविय मूले जीवो, सो चिय पत्ते पढमयाए ॥ १३८ ॥ - %-% For Private and Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ९६४ ॥ अभूत शब्द छे, ते अवस्था बतावे छे. योनि अवस्थावाला बीजमां योनिनुं परिणाम न छोडे त्यांसुधी बीजरूपे छे. कारणके, बीजनी वे अवस्था छे, योनि अवस्था अने अपोनि अवस्था, ज्यारे बीजो योनि अवस्थाने न छोडे, एटले एक जीवे बी| जने छोड्युं नथी त्यांसुधी योनित्रा छे, अहीं योनिनो एवो अर्थ ले के तेमां जीवने उत्पत्तिनुं स्थान नाश पाम्युं नथी, तेवी योनिवाळा वीजम जीव आधीने उत्पन्न थाय छे. हवे ते वीजमा पूर्वना बीजनो जीव, अथवा अन्य नवो जीव आवीने उत्पन्न थाय छे, एनो भावार्थ ए छे, के जीवे ज्यारे आयुष्यना क्षयथी बीजनो त्याग कये, त्यारे अने ज्यारे ते बीजनो पृथिवी पाणी विगेरेनो संयोग थयो. त्यारे कोइवखत ते पूर्वनो जीव त्यां आवीने परिणमे छे, कोइवखत बीजो पण आवे छे, अने जे मूळपणे जीत्र परिणमे, तेज प्रथम पत्रपणे पण परिणमे छे, एक जीव मुळ पत्रने करनार छे, अने पहेलु पांदड जे छे ते आ बीजनो 'समूच्छन ' अवस्था छे, ते भ्रू, जळ, काळजी अपेक्षाए कहेवा छे. आ नियमयी वतावेल छे. पण याकीना किशलय विग्रेरे मूळ जब परीणामथो प्रगट थयेलां नथी, एम चतावेलं जाणवु, तेथीज कहे हे के: www.kobatirth.org जे सर्वे कुंपळो उत्पन्न थी बढ़ते अनन्तकाय छे, हवे बीजां साधारणनां लक्षण कहे छे. hi भजमाणस्स, गंठी चूपणघणो भवे । पुढविसरिसभेएणं, अनंतजीवं वियाणाहि ॥ १३९ ॥ कंद, छाल, पत्र पुष्प, फळ विगेरेने भागेला चक्राकार संमछेद (भंग) थाय छे. तथा जेने गांठ, पर्व अथवा भंग मूळ, "वोऽवि किसलओ खलु उग्गममाणो अणन्तओ भणिओ” For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥१६४॥ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabalirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie 13 स्थान रजधी व्याप्त छे, अथवा जे वनस्पति भेदातां पृथिवी सरखा भेदवडे केदारना उपर सूकी तरीनी माफक पुटभेदे भेदाय छे. द्र आचा० तेने अनंतकाय जाणो; हवे बीना लक्षणो कहे छे. सूत्रम गूढसिरागं पत्तं सच्छीरं जं च होइ निच्छोरं । ज पुण पणदृसंधिय अणंतजीवं वियाणाहि ॥ १४ ॥ ॥१६५॥ ॥१६५॥ जेने गूढ सीरवाळां तथा खोरवाळा पादडा होय अने खीर न पण होय, त्या जेना सांधा न देखावा होय ते अनंतकाप जाणवा, ए प्रमाणे साधारण जीवोने लक्षणथी बताती हवे अनतकाय वनस्पतिनां नामो बतावे छे. सेवालकत्थभाणियअवए पणए य किंनए य हढे। एए अणंतजीवा भणिया अण्णे अणेगविहा ।१४१। सेवाल, कस्य माणिक अबक, पन्नक, विण्व हठ, विगेरे अनंत जो अनेक प्रकारमा कहेला . एम बीना पण जाणवा, हवे प्रत्येक शरीस्वाळानां एक विगेरे जोवनुं ग्रहण करेलु शरीर बतावदा कहे छे. H एगस्स दुण्ह तिण्ह व संखिजाण व तहा असंखाणं पत्तेयसरीराणं, दीसंति सरीरसंघाया ॥ १४ ॥ एक जीवे ग्रहण करेलु, शरीरताड, सरल, नाहीयेर विगेरेना स्कंध के तथा ते चवथी ग्रहण कराय छे तथा रिस (तन्तु): मृणाल, फर्णिका, कुणक, कटाहनुं एक जीवनुं ग्रहणपणुं छे, अने ते चक्षुथी देखाप छे. अने घे त्रण, सरूपेय, असंख्येय, जीवोनुं ग्रहण करेल पण (शरीर) चश्चयी देखातं जाणव. भवन-यारे अनन्तकायनं ते प्रमाण ले के केम? उत्तर तेम नथी ते बतावे छे, II e - For Private and Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् १६६॥ इक्कस्स दुण्ह तिण्ह व संखिजाण व न पासिउं सका। दोसंति सरीराई, निओयजीवणाणताणं ॥१५॥ आचा० P एक विगेरेथी लइने छेवटे असंख्यात संख्याना अनंत तरु जीवोना जुदा शरीरो देखाता नथी. कारण के तेनो अभाव छे. पक विगेरे जीवे ग्रहण करेलुं अनंत जीवो सुधीनुं शरीर जुहुँ नथी कारण के अनंता जीवोनुं पिंडरुपे एकज शरीर छे.. ॥१६६॥ प्रश्न-स्यारे ते केवी रीते जीनोने शरीवाला जाणवा ? ते बताये छे. उत्तर-वादरनिगोद जे अनंत जीवो छे तेमनां शरीरो देखाय छे, पण सूक्ष्म निगोदना शरीरो देखाता नथी, कारण के अनन्त जीवोना समूहपणे शरीरी छतां ते अति सूक्ष्म छे, अने निगोद ले तेनियमथी अनन्त जीवोनो समूह होय छे. कयु छ के-. गोला य असंखेजा, हुंति णिोआ असंखया गोले। एकेको य निओए, अणंतजीवो मुणेयव्यो ॥१॥ असंख्याता निगोदना गोळा छे, एकेक गोळामा असंख्यात निगोद छे. अने एकेक निगोदमां अनंता जीयो छे ए प्रमाणे - नस्पतिना क्षादि प्रत्येक विगेरे भेदोथी तथा वर्ण, गंध, रस, स्पर्शना भेदथी हजारोनी संख्यामां भेद अने योनि विगेरे भेदो लाखो18नी संख्यामा छे अने बनस्पतिनी संवृता योनि छे. ते सचित्त अचित्त अने मिश्र एम त्रण भेदो छे तथा शीत, उष्ण, मिश्र एका ब. दण भेद छे एप्रमाणे गणता मत्येक तरुभोनी योनीना दश लाख भेद छे, अने साधारण वनस्पतिना चौद लाख भेद छे. अने बन्नेनी कुल कोटी २५ करोड लाख जाणवी; विधान द्वार का हवे परीमाण द्वार कहे छे; तेमां प्रथम सूक्ष्म अनंत जीवोनुं परिमाण बतावे छे. पत्थेण व कुडवेण व जह कोई मिणिज्ज सवधन्नाई। एवं मविजमाणा, हवंति लोया अणंता उ ॥१४॥ : %EX . For Private and Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥१६७॥ www.kobatirth.org ner ( माप) अथवा कुडव विगेरेना माथी फोड़ बधा धान्यने मापे, अने बीजी जगाए नाखे ए प्रमाणे कोई साधारण वनस्पतिना जीवोने लोक रुप कुडवे करीने मापे बीजे नाखे तो मापतां अनंता लोको मराइ जाय हवे बादर निगोदनु परिमाण बतावे छे. जे बायरपज्जता पयरस्स असंखभागमित्ता ते । सेसा असंखलोया, तिन्निवि साहारणाणता ॥ १४५ ॥ | जे पर्याप्ता वादर निगोद छे, ते संवर्तित चोखडा करेला बधा लोकना मतरना असंख्येय भागवर्ति प्रदेश राशी परिमाण जाणवा; बळी ते मत्येक शरीर बादर वनस्पति पर्याप्ता जीवोथी असंख्यात गुणा छे. बाकीनी त्रणे राशी प्रत्येक असंख्येय लोक आकाश | प्रदेश परिमाणवाळा छे, हवे ते ऋण राशी बतावे छे ? अपर्याप्ता बादर निगद २ अपर्याप्ता सूक्ष्म निगोदर पर्याप्ता सूक्ष्म निगोद एत्रणे क्रमथी संख्यामां बहुतर (एक एकथी अधिक) जाणवा, पण साधारण जीवो संख्यामां तेनाथी अनंत गुणा छे. आ, जीवनुं परिमाण छे; पण पूर्वे चार राशी कही ते जीवनुं नहीं पण निगोदनुं परिमाण जाणवुः हवे परिमाणद्वार कथा पछी उपभोगद्वार कहे छे. आहरे उवगरणे, सयणासण जाण जुग्गाकरणे य। आवरण पहरणेसु अ सत्यविहाणेसु अ बहुसुं ॥ १४६ ॥ फळ, पान, कुंपळ, मूळ, कंद, छाल, विगेरे खवाय छे अने, पंखो, कडां (चुडीओ) कवलक अर्गल विगेरे उपकरणो बने छे तथा खाटलो पाटीयुं सुवा माटे छे. तथा आसंदक (मांची) छे तथा पालखी विगेरे यान छे; तथा गाडीना धुसरा, पाटीभानां rine अने लाकडी सी (धोको,) विगेरे हथीयार छे; तथा तेनां घर्णा प्रकारनां शस्त्रो छे; तेना शर, दातरडा, तलवार, छरी, For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥१६७॥ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥१६८॥ www.kobatirth.org fat is (हाथो ?) उपयोगी पणे छे, तथा बीजो पण परिभोग विधि छे ते बतावे छे. आउज्ज कट्टकम्मे गंधंगे वत्थ मल्ल जोए य । झात्रणवियात्रणेसु अ तिलविहाणे अ उज्जोए ॥ ९४७ ॥ पट (ढोल) भेरी वंश बीणा शहरी त्रिगेरे वाजत्रो छे तथा प्रतिमा (पुतळीओ) यांभळा, वारणा, तेनी शाखा विगेरे काष्ट कर्म छे. तथा बालक (वाळाकुंची) प्रियंगु (रायण) पांदडां दमनक कंद नोशीर देवदारु विगेरे सुगंधीनां अंग छे. तथा झाडनी चालना कपडों तथा रुना वस्त्रो छे. तथा नव पालीका बकुल चंपक पुजाग अशोक, मालति, विवकिल विगेरेनी माळाओ बने छे; तथा लाकड वाळवा, ते वळतण छे. तथा ठंड दूर करना ताप करतो ते छे. तल, अळसी, सर्वत्र, इंगुदी, ज्योतीषमती करंज विगेरेनां तेल छे. तथा दीवट, घास, चूडा, (बोयां) लाकडानी मसाल विगेरेथी उद्योत (प्रकाश) कराय छे. आ व कार्योni वनस्पतिकायनो उपभोग थाय छे, आ चतावीने हवे उपसंहार करे छे. एहिं कारणेहिं हिंसंति वणसई बहू जीवें । सायं गवेसमाणा परस्त दुक्खं उदोति ॥ १४८ ॥ उपरनी ये गाथामां बतावेला कारणोथी शाता सुख ने बांछनारा मनुष्यो प्रत्येक तथा साधारण वनस्पतिकायना घणा जीवोनो समारंभ करीने वनस्पति विगेरे एकेन्द्रियादि जीवोने दुःख उत्पन्न करे छे; हवे शस्त्र बतावे छे द्रश्य अने मात्र एम वे भेदे स् अने द्रव्य शत्र छे ते पण विभाग तथा समास एम वे भेदे छे; तेमां समास शस्त्र बतावे छे. कपणिहाणिअसियगदत्तियकुद्दालवासि परसू अ । सत्थं वणस्सईए, हत्था पाया मुहं अग्गी ॥ १४९ ॥ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥१६८॥ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie आचा सूत्रम् ॥१७९॥ । जेनाथी छेदाय, ते कल्पनी (कतरणी), कोहाडी; असियग (दातरई) दात्रिका (नानुं दातरई) कोदाडी, वांसलो, परशु फरशी ९ वनस्पति छेदवानां शस्त्रोछे, अने हाथ पग विगैरे तथा अग्नि ए सामान्य छे. हवे विभाग शस्त्रो कहे छे, किंची सकायसत्थं किंची परकाय तदभयं किंचि। एयं तु दवसत्थं भावे य असंजमो सत्थं ॥१५०॥ लाकडी विगेरे कोइ स्त्रकाय द्रव्य शख छे. पाषाण अग्नि विगेरे कोइ परकाय शस्त्र छे तथा दातरडी कोहाडो विगेरे जे हायावाळा ते उभय शख छे. आ द्रव्य शख जाणवां अने मन वचन कायाथी खराब वर्तन असंयमरूप भावशस्त्र छे. हवे आ वधी नियुक्तिनो अर्थ समाप्त करवा कहे छे. सेसाई दाराई ताई जाई हवंति पुढवीए । एवं वणस्सईए निज्जुत्ती कित्तिया एसा ॥१५१॥ हवे जे द्वारो कहेबां बाकी रद्यां ते वयां पृथिवीकायमां कहेलां छे, ते जाणो लेवां, तेथी द्वारोना कहेवाथी वनस्पतिकायमा नियुक्तिओ वतावेली जाणवी. ____ हवे सूत्र अनुगममा अस्खलित विगेरे गुणोवाळुसूत्र भणq (उच्चारण कर) जोइए ते कहे छे. तं णो करिस्सामि समुहाए, मत्ता मइम, अभयं विदित्ता, तं जे णो करए, एसोवरए, एत्थोवरए, एस अणगारेत्ति पवुच्चई (सू. ३९) For Private and Personal use only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth arg Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ सुप्रनो ३८मां मूत्र साथे तथा पहेला विगेरे मूत्रो साथे प्रथम काया मुनव संबंध कहेवो, पूर्वे कईं के शाता (मुख)ना वांआचाoछको बनस्पति जंतुने निश्चपे दुःख उत्पन्न करे छे. तेथी तेनुं मूळज (कर्मबंध पणे थइने) दुःखथी गहन एवा संसारसागरमां जी-181 वोने भमाडे छे, एवं कडवू फळ जाणनारो कथा वनस्पति कायना जीवाने दुःख देवानी रीतीथी सर्वथा निवृत्त (दर) यवान ॥१७०॥ आत्मामा इच्छे छे. ते बताने छे. वनस्पतिकायने थती पीडाने जाणीने हु हवेथी दुःख नही दर, अथवा ते वनस्पति दुःख देवाना IM॥१७॥ 13 कारण रुप जे छेदन भेदन छे, तेने मन, वचन, कायाथी नहीं करूं, न करावं, करनारने भलो न जाणीव हवे केवी रीते करीश, 11 ते बतावे छे. सर्वज्ञे बनावेला मार्गने अनुसरीने सम्यग् दिक्षाना मार्गने स्वीकारीने बधा पापना आरंभोनो त्याग करतो गको, वनस्पदिने दुःख पाय, तेवा आरंभ नहीं करीश. आथी संयम क्रिया वताची, पथी एम मूचब्यु के एकली क्रियाथीन मोक्ष थाय, एम नही पण ज्ञाने जाणवू, तथा क्रिया ते प्रमाणे करवी, ए चे प्रकारे मोक्ष मळे छ; फायुछे केनाणं किरियारहियं, किरियामेत्तं च दोऽविएगता। न समत्था दाउं जे जम्ममरणदुक्खदाहाई॥१॥ क्रिया रहित एकलुं ज्ञान , अथवा ज्ञान रहित एकली क्रिया, ए बन्ने एकला होय तो जन्ममरणना दुःखोने छेदवा (मोक्ष आपवा) समर्थ नथी.(पण बन्ने साये मळे ताज मोक्ष मळे हे.) जेथी मोक्ष मेळवधामा विशिष्ट कारणभूत ज्ञानज बतावचा कहे छे. जीवोने यथायोग्य मानी (जाणीशुं करे) ते कहे छे. RELA For Private and Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥१७१॥ बुद्धिमान ते उपदेशने योग्य छे तेवा शिष्यने गुरु कहे छे के हे बुद्धिमान मुशिष्य, दिक्षा लइने जीवादि पदार्थोने जाणीने मोक्ष आचा० प्राप्त करे ले ते प्रमाणे तुं पण ज्ञान भणीने चारित्र पाळीने मोक्ष मेळच, कारण के सम्यक्ज्ञान पूर्वक करेली क्रिया सफळ (मोक्ष आपनारी) छे. फरी अहीं कहे छे जेमा जीवाने अभय (भय विनानु) पद छे. ते अभयरूप संयम सत्तर भेदवाळो छे. ते सर्व भूतनी | रक्षा करनार संसारसागरथी तारनार निर्वाहक जाणीने (दरेक पुरुषे) वनस्पतिना आरंभथी निवृत्ति लेबी (दूर रहे) जोइए तेज हवे विवरीने वतावे छे. जे परामर्थ तत्वने जाणनार हे नेणे वनस्पतिना आरंभने कडयां फळ आफ्नारो जाणीने न करवो, कारण के जे आरंभ न। करे, तेनेजप्रतिवशिष्ट इष्ट फळ'(मोक्ष)नी प्राप्ति छे. पण जे विना विचारे मृद थइ अंध बनीने वर्ते, तेने मोक्ष प्राप्ति नथी, कारणके 12 इटेला सर्वोत्तम स्थाने पहोचवामा प्रवर्तेला अंघो जे क्रिया करे, ते क्रिया तेना अंधपणाथी विघ्नरूप (उलटे रस्ते दोरे) ले, एम 5. मानवू तेवीरीते एकल ज्ञान पण क्रिया विना मोक्ष न आपे. जेमके एक घरमा आग लागी, त्यारे एक पंगु देखावा छतां पांगळा A पणाने लीधे नीकळवानी इच्छा छतां नीकळी न शक्यो, तेज प्रमाणे मुनिओए समजवू के आ प्रमाणे बोध पामीने तेमणे आरंभ नो त्याग करचो, ए प्रमाणे जे सम्यकज्ञानपूर्वक जे निवृत्ति चारित्र अनुष्ठान करे तेज समस्त आरंभथी निवृत्त ययेल छे, एम चनावे छे. " तेज वनस्पति संबंधी मुक्त शयेला छे जे भो पूर्वे वरावर जाणी आरंभ न करे," हवे ते आ प्रमाणे निवृत्ति ले नार साधुओ शाक्यादिमां पण छे के नही ? के अहिं जीन शासनमांज छे? वे शिष्यना प्रश्नमा उत्तर कहे छे. For Private and Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा सूत्रम् ॥१७२॥ ॥१७२॥ ___ आ जिनेश्वरना मतमांज परमार्थथी छे; पण बीजे ते, जीवदयार्नु स्वरूप बतायुं नथी, कारण के जेवी प्रतिज्ञा ले तेवू नि-IP ४. ध अनुष्टान करवाथी निति मागे साधन पदवाळा गणाय, पण बोले तेवू न पाळे, तो शाक्यादि साधु न गणाय तेथी जैन गतने | अनुसरनाराज अनगार (साधु) कहेवाय, ते वतावे छे, के पूर्व कहेला बार्थ प्रमाणे चालनारो तथा घर विनानो उत्कृष्टथी अण| गार कहेवाय छे. शा माटे उत्कृष्टथी ? ते बतावे छे. जे अणगार, नामने योग्य कारणभूत गुणोना समूहने आदरे छे, ते उक्तप्टथी छे. अने 'इति' शब्द मूळमां , ते साधु कहेवाय, आ वासने पूरी करे छे, एटले एम समजवू के. “जीव रक्षा" अणगारनु लक्षण छे. पण बीजु नयी, पण जेओ आ पामार्थ साधक अनमार गुयोने छोडीने शब्दादि (सारा गायन विगेरे) इच्छीने तेमां | प्रवर्ते के, अने वनस्पति जीवोनी अपेक्षा (रक्षा करवी) ने विसरे छे, तेने साधु नयी; आ मधुर शन्दवा बाजींत्रो वनस्पतिनां बने छे. तेथी तेनु दुःख विसारीने पोताने कृत्रिम आनंद लेनारा राग द्वेशरूप विषय विपना नशाथी घेरायला चपल लोचन वाळा (रसिक जीवी) नरकादि चार गतिमा भ्रमण करनारा जीको जाणवा, जेने ते नरक विगेरेयां भ्रमण करघु होय तेज शन्द (मधुर गायन) विगेरेना रसीआ बने छे. आ अर्थने प्रसिदि माटे पूर्व कहेला अने पछीना लक्षणवाळां बीजां अवधारण फळनो निश्चय थवा माटे सूत्र कहे छे. जे गुणे से आवटे, जे आवटे से गुणे ( सू०४०) जे शब्दादि गुण (स) ते आवर्त छे जेमां जीवो परिभ्रमण करे छे. ते संसार पोते आवर्त छे. अहीं मुख्य कारण नेज For Private and Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा० सूत्रम ॥१७३॥ ॥१७३॥ | कार्य प्रमाणे का हे, जेमके नल' (गंदु) पाणी पगनो रोम के तेम गायन विगेरेनो रस ते संसार कारण होवाथी ते संसार छे; सूत्रगां एक वचन होवाथी एम सूचव्यु के जे पुरुष गायन वाजींच विगेरेनो रसीओ याय, ते आवर्तमां पडे छे, अने जे आवर्त | है। (ससार) मां पडे छे, ते शब्दादिनो रसीयो थाय छे, अहीं उद्यत चंचु (वाचाल) पृछे छे के प्रयोग आम करवो, के जे गुणां वर्ते ते आ वर्तमां वर्ते पण जे आवर्तमां वत ते गुणमां वर्तेज एवों काइ नियम नथी, कारण के साधुओ आवर्तमां हे, पण गुणोमां नथी| तेनु केम? आचार्य कहे छे तमारूं कहे, सत्य छे. आवर्तमा यति (साधुओं) रहे छे पण तेओ गुणो(गायन) मा प्रवर्तता नथी, पण राग द्वेष पूर्वक गुणोमा जे वर्ते, ते अहीं लेवा; अने साधुओने तेनो अभाव होवाथी न होय अने तेमने संसाररूप आवर्त दुःख न होय, पण सामान्यथी संसारमा पडवं, अने सामान्य शब्दो विगेरे मुणो माप्त यवा संभवे छे. तेथी उपलब्धिनो निषेध | नथी पण अहीं रागद्वेषना परिणामबाळो जे गुण (रस) होय तेनो साधुने निषेध छे, तेमज कई छे. "कण्णसोक्खेहि सद्देहिं पेम्मं नाभिनिवेसए" (विगेरे सूत्र छे.) कानने सुख आफ्नार शब्दोमा (साधु) प्रेम न करे दिगेरे तथा. न शक्य रूपमद्रष्टु, चक्षुगोंचरमागतम । रागद्वेषा तु यो तत्र. तौ बुधाः परिवर्जयेत् ॥१॥ चक्षु आगळ आवेलुं रुप न जोवाय ए शक्य नथी पण पंडित पुरुषे त्यां जे राग द्वेष धाय ते त्यजवा जोइए गुणोनुं वधारे है पणुं वनस्पतिथी केवीरीते छे ते बतावे छे. वेणु, वीणा, पटह, मुकुंद, विगेरे जे जे बानींत्रो छे ते बधानी बनस्पतिथी उत्पत्ति For Private and Personal use only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥१७४॥ www.kobatirth.org छे तेनाथी मनोहरे शब्द नीकले छे तेथी वनस्पतितुं प्रचानपणुं तेमां बतान्युछे बीजी रीते विचारीए तो तंत्री चर्म पाणी विगेरेना संयोगधी पण शब्द उत्पन धाय छे अने रुपमा लाकडानी 'पूतळीओ, तथा घरनां तोरणो, वेदिका, स्तंभ' विगेरेमां पण रमणीयप आंखने छे. अने गंधमा कपुर पाटला लवली लविंग, केतकी सरस चंदन, अगुरु, कककोल काइला फळ जाति फळ, पत्रिका, केसरा, मांसी, छाल, पत्र विगेरेनी सुगंधी इन्द्रियोने आनंद आपनार थाय छे। अने जिस मृणाल, मूल, कंद, पुष्प, फळ, पत्र, कंटक, मंजरी, छाल, अंकुर, कुंपळ, अरविंद (कमळ), ना केसरा विगेरेनो रस जीभ इन्द्रियने बहु आनंद आवे छे ते रसो घणी जातना (asuri area विरे प्रत्यक्ष) के. तथा पद्मिनी पत्र, कमल दल, मृणाल, वल्कल दुकुल: शाटक, (साडी ओशीकां तळाइना ओछाड विगेरे कोमळ होय ते शरीरने स्पर्शमां सुख आये छे. ए प्रमाणे उपर कहेली वनस्पतिथी बनेली वस्तुना शब्दादि गुणोमां | जे वर्ते ते संसारमां भये अने जे आवर्तमां वर्ते ते रागद्वेषपणे वर्तवाथी गुणोमां वर्ते छे. एम जाण ते आवर्तनाम स्थापना विगेरेथी चारभेदवाको छे नामस्थापना सुगम छे. द्रव्यावर्त्त ते (१) स्वामित्व (२) करण (३) अधिकरण ए मां यथा संभव योजवो, नदी विगेरेना स्वामीपणाम कोइ जंग्या जळनुं परिभ्रमण ( गोळाकारे फरबु) थाय ते द्रव्यावर्त, जाणवु अथवा हंस कारंड चक्रवाक विगेरे पक्षी आकाशमां क्रीडा करतां चक्राकारे फरे ते बन्ने स्वामिमां द्रव्योनु आवर्स जागनुं, डव करण आश्रयी कहे छे. ते भमताज जलवडे जे तृण कलिंच विगेरे भये ते द्रव्यावर्त जाण तथा तनुं सीयुं, लोढुं चांदी, सोनुं, गाळतां गाळवानां वाणमां गोळाकारे भये, ते करण, द्रव्यावर्त्त जाणवु' अधिकरणनी विवक्षायां एक जल द्रव्यमां आवर्त छे भने चांदी सोनुं, रेतिका. तर सीमुं एकटा करतां घणां द्रव्योमां आवर्त छे. भावभावर्त नामने एक भावथी बीजा भावमां आवर्त For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥१७४॥ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥१७५॥ www.kobatirth.org अथवा औदकिभावना उदयवी नरकादि चार गतिमां जीव भमे छे ते जाणवुं उपर कहेला वधा आवर्तयां फक्त भाव आवर्तथी प्रयोजन छे. बीजाथी नथी, हवे ए शब्दादि गुणो संसारना आवर्तयां कारणभूत छे, अने वनस्पतिथी कारण मुख्यपणे बनेला छे, ते केम ? कोइ अमुक नियत दिशाना भागमां वर्ते छे के बधी दिशामां वर्ते छे ? ते कहे छे. उड्ढे अहं तिरियं पाईणं पासमाणे रुवाई पासति, सुणमाणे सदाई सुणेति उडूढं अहं पाईणं मुच्चमाणे रूवेसु मुच्छति सदेसु आवि (सू. ४१) harrat दिशाने अंगीकार फरवाथी उंची दिशामा रहेला रूप गुणो ने महेलोना मधाळामां तथा हवेलीओ (सारी जोड़ने ) उंचे (दरेक जन जुए छे; तथा पहाडना शिखरे घडेलो अथवा महेल उपर चडेलो नाचे रहेलां रूपो (वस्तुओ) जुए छे, अहीं अधः शब्दथी नीचेनी दिशा जाणवी अने घरनी भींतो वगेरेमा रहेलां रूपो तिर्यक् शब्दथी चार दिशा तथा चार खुणा लेवां ते आम|माणे पूर्व विगेरे दिशामा देखातो चक्षुना ज्ञानमा परिणत थइने चक्षुमां आवीने रहेलां पोते देखे छे; (प्रथम आंखमां प्रतिबिंब पडे, त्यार पछी वस्तुनो निश्रय धाय के) तथा उपर कहेली दिशाभोमा सांभळतो सांभळे छे, अर्थात् कान दइने लक्ष्य आपे तोज बरोवर संभळाइने समजाय छे; अहीं उपलब्धिथी ज्ञान मात्र लीधुं. पण सांभळवाथीन के देखवाथीज संसार भ्रमण नथी, पण कदाचित् रुप विगेरेमां मूर्छा करे तो एने कर्म बंध छे. एवं बतावे छे, उ (उंची) विगेरे दिशाओमां रूप देखी रागना परिणाम करे, तथा ते प्रमाणे शब्दोमा तथा गंध रस स्पर्शमां रागना परिणाम करे तो तेने बंध थाय छे, सूत्रमां फरी उर्ध्व लेवानुं ए कारण छे For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥१७५॥ Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir www.kobatirth.org के, पां सारु रुप देखीने रागी बने छे. अने रुप लेबाथी बीमा पण विषयोनो समावेश धायसे. कारण के एफना प्रणथी। आचा०४ तेनी जातीना बधाप लेवाय छे, अथवा पहेलो तथा छेल्लो, ले वाथी बचमांना आवी जाय एम जाणवं. ए ममाणे विषय लोकने 81 सूत्रम तयताबी विवक्षित कहे छे. ॥१७॥ एस लोए वियाहिए, एत्थ अगुत्ते अणाणाए (सु. ४२) ॥१७६॥ भा-रूप रस, गंध, स्पर्श शन्द, विषय नापनो लोक कसो जेनाथी अबलोकाय ते लोक. आ वस्तुतः शन्दादि गुण लोकमां जे पुरुष मन, वचन, कायाथी अगुप्त होय अथवा मनथोपो थाय, अथवा बाचाबडे शम्दादिनी प्रार्थना करे अथवा काय वडे शब्दादिना विषय भोगमा जाय. ए प्रमाणे जे अगुप्त होय ते भगवाननी आज्ञामां वर्ततो नथी. ए प्रमाणे गुण | करे ! ते कहे के. पुणो पुणो गुणासाए, चंकसमायारे (सु. ४३) जे अनेक बार अधादि गुणनो रागी बन्यो होय, ते पोताना आत्माने शब्दादि विषयनी वृदियी दर फरवाने समर्थ यतो । नथी, अने पाछो न फरवाथी फरी फरी गुणनो स्वादु बने के. निरंतर क्रिया करीने रसोनो स्वाद ले छ; अने ते जेदो थाय तेदो बतावे छे. आ "चक्र" ते असंयम छे, तेज नरकादि गतिमा लइ जाय हे. अने एका आचरणने करनारो जे छे, ते वक्र समाचारवालो (संयम रहित) अवश्यज भन्दादि विषयोनो रसिक बने छे. अने जीवोने दुःख देनार होवाथी ते चक्र समाचारवाळो जाणतो. For Private and Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा० सूत्रम् ॥१७७॥ उपर शब्दादि विषयना रसनो स्वाद करवाथी गृद्ध धयेलो तेनाथी न बचे ते संबंधमा 'अपथ्य केरी' नो रसिक राजा पोते अतिसारना रोगथी बुरे हाले मुओ, तेम ते पण पुरे हाले मरे छे, (पण स्वादने छोडतो नथी) ए प्रमाणे आ विषय रसमा एकान्त || हारेलो ते शब्दादि विषयनो स्वाद करवाथी 'स्खेत पुत्तोध' आ प्रमाणे आचरे छे. पमत्तेऽगारमावसे (सू. ४४) ॥१७७॥ विषय विषमां मूर्छा पामेलो, पमादि साधु गृहस्थ बने छे, जे साधुनुं लिंग राखे अने शब्दादि विषयनो प्रमादि थाय, ते पण वि-14 रतिरुप भाव लिंग रहित होवाथी. ते पण गृहस्थन छे. अन्य तीर्थीओमां हमेशा बोलबानु जुईं अने करवानुं जुदं एम छे ते बताचे छे. लजमाणा पुढो पास, अणगारा मोत्ति एगे पवदमाणा जमिणं विरूविरूवेहिं सत्थेहिं वणस्सइकम्मसमारंभेणं वणस्सइसत्थं सरारभमाणा अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसंति, तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेदिता, इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदणमाणणपूयणाए जातीमरण मोयणाए दुक्खपडिघायहेर्ड, से सयमेय वणस्सइसत्थं समारंभइ, अण्णेहि वा वणस्सइसत्थं समारंभावेइ अण्णे वा वणस्सइसत्थं समारभमाणे समणुजाणइ, तं से अहियाए तं से अबोहिए से तं संबुज्झमाणे अया For Private and Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥१७८॥ www.kobatirth.org iti समुहाए सोचा भगवओ अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं णायं भवति - एस खलु गंथे एस खलु मोहे, एस खलु मारे एस खलु णरए इच्चत्थं गड्ढिए लोए, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वणसइकम्मसमारंभेण, वणस्सइसत्थं सभारंभमाणे अपणे अणेगरूवे पाणे विहिंसंति (सु. ४५) अनिकाय अर्थ तान्यो छे. ते ममाणे अहीं पण जाणवो. विशेष अग्रिने बदले वनस्पतिकायनो आरंभ करनार पोते वनस्पतिना जीवो जवानी साये तेषां आश्रय करेला बीजा जीवोने पण हणे छे. अने ते छेटे नरकमां छे. माटे उत्तम साधु-तेनो समारंभ करता नथी तेम करावता नथी भने करताने भलो जाणता नथी, हवे वनस्पतिकायनुं जीवपणुं सिद्ध करना चिन्ह बतावे छे. से बेमि इमपि जाइधम्मयं एर्यपि जाइधम्मयं इमंपि बुड्ढधम्मयं, ऐयंपि वुद्धिधम्मयं इपि चित्तमंतयं एयंपि चित्तमंतयं, इमपि छिष्णं मिलाइ एयंपि छिवणं मिलाइ, इमंपि आहारगं एयंदि आहारगं इमंपि अणिचयं एयंपि अणिचयं इमंपि असासयं, एयंपि असासयं, इमंपि चओवचयं, एयंपि ओवचइयं इमंपि विपरिणामधम्मयं एयंपि विपरिणामधम्मयं (सू. ४६ ) ते हुं जिनेश्वर पासे तत्व जाणीने कहुं हुं, अथवा वनस्पतिनुं चैतन्य जे प्रत्यक्ष मपाणथी जणाय छे ते हु' कहुं हुं, जेवी For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥१७८॥ Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिज्ञा करी ते प्रमाणे बतावे छे, अहिंआं उपदेशने योग्य मूत्रनो आरंभ छे, अने तेने कहेवा योग्य पुरुष होय. तेना पासे आचा हे बापणाथी ते शरीर प्रत्यक्ष आसन्न वाची 'इदम्' (गुजरातिमा 'आ') शब्दवडे साधु विचार करे. आपणं आ मनुष्य शरीर रोर। सूत्रम् जनन (जन्म) ना धर्मवालु छे. अने वनस्पनिनुं शरीर पण ते स्वभाववाढं छे. अहिंआ 'इति' शब्द सहित 'अपि' शब्द छ, ॥१७९॥ ते दरेक जग्याए 'यथा' शब्दना अर्थमां छे, अने वीनो 'अपि' शब्द समुच्चयना अर्थमा छे तेनो अर्थ आ प्रमाणे छे. जेम ॥१७९॥ मनुष्य शरीर वाळ, कुमार, जुबान, तथा पुट्ठापणाना विशेष परिणामवाळ छे, तथा चेतनाबार्छ एटले जीवथी सदा अधिष्ठित छे, कारण के तेनी चेतना स्पष्ट देखाय छे. ते प्रमाणे आ वनस्पतिनुं शरीर पण छे कारण के जन्म पामेलु, केतकीनु भाइ पाळक युवा अने वृदयी संत ( युक्त) छे. आ सरखापणाथी जन्मना धर्मवाळ छे बन्नेमां का विशेष भेद नथी, के जेनाथी जाविधर्म पणुं छतां पण मनुष्य विगेरे शरीर सचेतन होय अने बनस्पति शरीर तेवू नहीं. ___ वादीनो प्रश्न-जाति धर्मपणु बाळ, नख, दांत विगेरेमां पण छे अने तेथी तमा लक्षण व्यभिचारवालं पयुं अने लक्षण भव्यभिचारी जोइए नेथी जाति धर्मपणुं जीव लिंग छे ए तपारी कल्पना अयुक्त छे. 18 उत्ता-जनन मात्र सत्य छे. पण मनुष्य शरीरमां प्रसिद्ध एवी बाळ कुमार विगेरे अबस्थापणुं छे तेनो केश विगेरेमा असंभव द . पाटे तमारूं कहे अयुक्त छे. वळी केश अने नख चेतनावालाथी अधिष्ठित शरीरमा उत्पन्न थाय छे, तेथु कहेवाय छे, अने तेज प्रमाणे वधे छे, पण चेतनाबाळाने आधारे रही झाडो विगेरे उगे छे, तेवू तुं पण इच्छतो नथी, कारण के तारा मत प्रमाणे For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -% पृथ्वी अचेतन होवार्थी तेम यचु अयुक्त छे अथवा जाति धर्म विगेरे पूर्व सूत्रोमां कहेला ते प्रधाथी एकन हेतु छे. वीजा हेतुनी जआचार नथी अने केश विगेरेमा समुदाय हेतु नथी तेथी अमारु लक्षण (हेतु) निर्दोष छे तथा जेम आ मनुष्य शरीर निरंतर वाळ कु-18 सूत्रम् मार विगेरे अवस्थाथी वधे छे, ते प्रमाणे आ वनस्पतिनां शरीर ते अंकुरा, किसलय, शाखा, प्रशाखा विगेरेथी बधे छे तथा जे ॥१८॥ मनुष्य शरीर चित्तवाळु छे तेभ वनस्पतिनुं शरीर पण चित्तवालु छे P१८०॥ प्रश्न-केवी रीते? ते बतावे के. जेनावडे चेते ते चित (ज्ञान) तेनाथी मनुष्यनुं शरीर ज्ञानयुक्त छे. तेज प्रमाणे बनस्पवितुं पण छे. कारण के धात्री, मपुन्नाट (लजामणी) विगेरेने उघवा तथा जागवानो स्वभाव छे तथा तेनी नीवे दाटेला धन समु| हने पोताना उगवावडे छुपावे छे, तथा वर्षाना मेघना अवाजथी शिशीरना वायुना स्पर्शथी अंकुगर्नु उत्पन्न थ, तथा मद मदन संगधी स्खलायमान गतिवाळी घेरायला चपळ लोचनवाळी स्त्री ज्ञाझरवाला कोमळ पगधी ताडन करे, तो अशोक वृक्षने पल्लव अने फुलनी उत्पति थाय छे तथा सुगंधवाला दारुनो कोगको छांटबाथी बकुल फुटे छे, तथा स्पृष्ट प्ररोहिक ( लजामणी) ने हाथ ६ विगेरे लगाडयाथी संकोचादि क्रिया प्रगट जणाय छे अने आ झाड संबंधी कहेली वर्तणुक ज्ञान शीवाय न बनी के तेथी वनस्प-18 लिन सचित्तपणुं सिद्ध थयु तथा जेम आ मनुष्य शरीर घा लागतां सूकाय छे तेम ते पण सुकाय छेएटले मनुष्य शरीर हाथ वि गरेमा दायल सुकाय छे तेम झाइनुं शरीर पण पल्लव फल, फुल, विगेरेथी दायलं मुकातुं देखाय छे. आ अचेतननो धर्म नथी ४ शाक भात विगेरेनो आहार करनार मनुष्य शरीर छे, तेम वनस्पतिनुं शरीर पण जमीन पाणी विगेरेनो आहार करनार छ; अने EOSlees उदा : For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyarmandie IM॥१८१॥ अचेतनौने आ आहारपणुं वाय देखेलु नथी, तेथी वनस्पतिमा सचेतनपणुं छे. तथा मनुष्य शरीर अनिस्य छे, हमेश रहेनारं आचा० नथी, ते प्रमाणे आ वनस्पति शरीर पण नियत आयुष्यवाछु अनित्य छे, ते वनस्पतिर्नु उत्कृष्ट आयु दशहजारवर्षनुं छे, तथा आ | मनुष्य शरीर क्षणे क्षणे 'आर्वीची' मरण बढे अशाश्वत छे, तेम वनस्पतिनुं शरीर पण छे, तथा मनुष्यनुं शरीर जेम इष्ट अनिष्ट | ॥१८॥ आहार विगेरेनी प्राप्तिथी जाडु पातळु थाय छे, तेम वनस्पति पण छे, तथा आमनुष्य शरीर देवा तेवा रोगोना संपर्कथी विविध परिणामवाळूछे जेम पांडत्व उदर वृद्धि, (जळंदर) सोजापj, पातळापणु, तथा आंगळी नाक सडे तेवा तथा बालादि रुपवाळु छे ते प्रमाणे रसायन स्नेह वितरेना उपयोगथी विशिष्ट कान्ति बळ उपचम विगेरे रुपवाळा एटले विशेष परिणामवाळा पाप छे ते ध-18 मेवाळु बनस्पति शरीर पण छे. तेवा रोगो उत्पन्न वाथी, पुष्प, फळ छाल विगेरे सुकाइ जाय छे तथा विशिष्ट दौहद (दोहला) पुरवाथी, फुल फळ, विगेरेना उपचयथी विशेष परिणाम धर्मवाळ हे. आ प्रमणे बनावेला धर्म समूहना सद्भावथी तरुभी सचेतन | 1४. एम जाणवू. एशिष्यने गुरु कहे छे. ए प्रमाणे वनस्पति चैतन्यने बतादीने तेना आरंभमां बंध छे तेनो स्पागरूप विरति से-18 ववाथी मुनीपणुं प्रतिपादन करीने तेनो उपसंहार फरवा कहे छे. एत्थ सत्थं समारभमाणस्स इच्छेते आरंभा अपरिपणाता भवंति, एरथ सत्थं असमारभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिणाया भवंति, तं परिणाय मेहावी व सयं वणस्सइसत्थं समारंभेजाणेवण्णेहिं वणस्सइसत्थं समारंभावेजा णेवणे वणस्सइसत्धं समारंभंते समणुजाणेजा, जस्सेते वणस्सतिसस्थस For Private and Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie सूत्रम् मारंभा. परिणाया भवति से हु मुणी परिण्णायकम्मे (सु०४७) तिबेमि ॥ पञ्चम उद्देशकः समाप्तः॥ आचा आ वनस्पतिकायमा द्रव्य तथा भाव घेउ भेदथी शस्त्रनो आरंप करनाराओने आ शस्त्रना आरंभमां पाप छे, एम खबर न १४ होवाथी प्रत्याख्यान परिक्षाकडे तेोनो त्याग करता नथी, अने जे आरंभ नथी करता तेओने आरंभ करवामां पाप छे, एम खबर होवाथी प्रत्याख्यान परिज्ञावडे तेनो त्याग करे छे. अने जेओ आ वनस्पति शखना आरंभनो त्याग करे छे, तेज मुनि परिज्ञात मकर्मा कडेवाय छे. ए बधुं पूर्व माफक जाग एबुं सुधर्मास्वामी कहे छे. ॥ शस्त्रपरिज्ञाअध्ययनमा मांचपा उद्देशानी टीका समाप्त थइ ।।। हचे पांचो उद्देशो बतायी छठा उद्देशानो अरंभ करे छे. आ छटा उद्देशानो पांचपा साये जे संबंध छे ते बतावे छे. पांचमामां बनस्पतिकायर्नु वर्णन कर्यु स्थारपछी छहापां उसकायना उद्देशानुं वर्णन आवेलं होवाथी तेनु स्वरूप परावर ओ| ळखवाने आ उसकायनो उद्देशो शरु करे छे. तेनां उपक्रमादि चार अनुयोग द्वारो छे. ते पूर्व माफक कहेवा. ज्यां मुधी नाम निहप्पन्न निक्षेपामां उसकायनो उद्देशो आवे त्यां सुधो ले, अने नामनिष्पन्न निक्षेपामा प्रसकायनो उद्देशो ए प्रमाणे नाम राखg तेने नामनिष्पन्न निक्षेपो जाणवो. त्रसकायनां पूर्वे कहेलो द्वारोनो क्रमथी भतिदेश करवा अने तेनाथी कंइक जुदा लक्षणवावं द्वारोन वर्णन करवा माटे नियुक्तिकार गाथा कहे छे. तसकाए दाराई ताईजाई हवंति पुढवीए । नाणत्ती उ विहाणे परिमाणुवभोगसत्थे य॥१५॥ शारोतुं वर्णनयन्त्रनिक्षेपो नायवो. अमवावे मयां सुन ले भने चार अनुयोग द्वारा गाथा कई कहेला बाल नामनिवास For Private and Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥१८३॥ www.kobatirth.org जे त्रास पाये ते त्रस कहेवाय तेओनुं शरीर ते सकाय, तेना द्वारो जे पृथिवीकायां कलां तेज प्रमाणे छे. पण विधान परिमाण उपभोग, शस्त्र, अने लक्षण ते द्वारोमां कंक फेर छे. अहिं निर्युतिमां 'च' शब्द ग्रहण करेलो होवाथी लक्षणद्वार लीधुं छे, माथी He faaiनद्वार कहे छे. दुविहा खलु तस जीवा लद्धितसा चैव गतसा चेत्र । लद्धीय तेउवाऊ, तेणऽहिगारो इहं नत्थि ॥ १५३ ॥ म जीवो के प्रकारना छे, हाले चाले ते बस कहेवाय अने जीववाथी एटले माणने पारी राखदाथी जोब छे, हवे ते त्रस जीव प्रकारे छे ( १ ) लब्धि स ( २ ) गति बस, लब्धत्रस तेजस्कायत्रस तथा वायुत्रस एम वे प्रकारे छे. लब्धि ते शक्ति मात्र छे, तेजस्कामत्रसनुं वर्णन तेजस्कायना उद्देशामां आवी गयुं छे अने वायुत्रसतुं वर्णन वायुना उद्देशामां आवशे, तेथी लब्धिसनी अहिं बधारे जरूर नथी, तेने छोडीने गतित्रसतुं वर्णन करे छे. ते केटला छे अने तेना भेद क्या छे ते बतावे छे. नेरइयतिरिय मणुया, सुराय गइओ चउव्विहा चेत्र । पज्जताऽपजत्ता नेरइयाईय अनायवा ॥१५४॥ नारक एटले रत्नप्रभाथी आरंभीने महातम पृथिवी पर्यंत जे नरकमां रहेनारा जीवो छे; तेना सात भेद छे. तथा द्विइन्द्रिय त्रण इन्द्रिय, चार इन्द्रिय, तथा पंचेन्द्रियवाळा पशु पक्षी तथा तीरखं चालनार पाणी विगेरे तिथेच कड़ेवाय अने मलमूत्रमां | उत्पन्न घनारा तथा गर्भमा उत्पन्न यनारा ते मनुष्य छे, भवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क अने वैमानिक ते सुर छे, आ गति त्रस कहेवाय छे। अने ते चार प्रकारे छे. नाम कर्मनो उदय थवाथी प्राप्त करेल गतिने मेळववाथी ते गति श्रस कहेवाय. आ नरकादि For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥१८३॥ Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ १८४॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवो पर्याप्ता, अने अपर्याप्ता एम वे प्रकारे जाणवा, तेमां पर्याप्ति छ प्रकारे छे ते पूर्वे कही गया छीए; वे बडे यथायोग्य तैयार थ येला ते पर्याप्ता, अने तेनाथी जे विपरीत ते अपर्याप्ता; अने ते अंतमूहर्तकाळधी अपर्याप्ता जाणत्रा. हवे बीजा उत्तर भेदो कहे छे. तिविहा तिविहा जोणी, अंडापोअअजराउआ चेव । बेइंदिय तेइंदिय, चउरो पंचिंदिया, चेत्र ॥१५५॥ दारं अहिं शीत, उष्ण भने शीतोष्ण तथा सचित अचित अने मिश्र तथा संवृत विद्वत तथा मित्र तथा स्त्री पुरुष अने नपुंसक एम त्रण त्रण भेदथी ऋण त्रण योनीनां जोडका घणा छे. ते बघानो संग्रह करवाने पाटे गायामां ये बखत तिविद्दा लीधुं तेमां नरक | जीवोनी पहेली ऋण भूमिमां शीत योनि छे, अने चोथीमां उपर शीत नीचे उष्ण छे, त्यारपछीनी त्रण भूमिमां उष्ण योनि छे पण मिश्र अथवा शीत नथी गर्भथी जन्म पामनारा तिर्येच तथा मनुष्योनी अने वथा देवोनी शीतोष्ण योनी छे. पण शीत तथा उष्ण नथी बेइन्द्रिय, ऋण, चार, पांच इन्द्रिय, मळमुत्र विगेरेमां उत्पन्न थनारा तिर्यच तथा मनुष्यनी शीत उष्ण अने मिश्र एम ऋण प्रका रनी योनी छे. नारक अने देवोनी एक अचित्त योनि छे. सचित्त तथा मिश्र होती नथी. वे इन्द्रियादि संमूर्च्छनन पंचेन्द्रि तिच मनु धनी सचित अचित्त, अने मिश्र एम ऋण प्रकारे योनी छे, गर्भधी जन्मेलां तिर्यच तथा मनुष्यनी मिश्रयोनि समजत्री तेमज | नारकी तथा देवनी संत योनि छे. पण असंवृत तथा मिश्र नहिं; वे त्रण चार इन्द्रियवाळा तथा संमूर्च्छन पंचेन्द्रिय तथा मनुध्यनी विद्रुत योनि छे, पण बीजी नथी, गर्भ व्युत्क्रान्तिक तिर्यच तथा मनुष्यनी संत विद्वत योनि छे, एटले मिश्र योनि समजवी पण संवृत तथा विन नारकी जीवो केवळ नपुंसक योनिबाळा छे तिर्यंचो स्त्री पुरुष तथा नपुंसक एम त्रणे योनित्राळा छे. For Private and Personal Use Only सूत्रम ॥ १८४॥ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥१८५॥ www.kobatirth.org मनुष्योपण एव त्रण योनिवाळा छे. देवोमां स्त्री तथा पुरुष एम वेज योनि छे, तथा मनुष्य योनी बीजीरीने त्रण प्रकारनी छे. ते आ प्रमणे (१) कूर्मोनता, तेमां अर्हद (तीर्थंकर) चक्रवर्ती, विगेरे सारा माणसोनीज उत्पत्ति थाय छे. (२) शंखावर्ता, से चक्रवतींना स्रो रत्ननेज होय छे, तेपां फक्त प्राणीनी उत्पत्ति संभवे छे, पण तेमां नत्र महिना रहीने गर्भ पाकवानी क्रिया थती नथी; (३) 'वंशी पत्रा' ते योनि माकृत (साधारण) मनुष्योने होय छे, तथा बीजा ऋण भेद निर्मुक्तिकार बतावे छे. ते आ प्रमाणे 'अंडज' 'पोतज' अने 'जरायुज' तेमां पक्षी विगेरे अंडज कडेवाय तथा वल्गुली ( बकरा. हरण ) हाथी बच्चुं विगेरे पोतन छे अने | गाय भैंस नळद मनुष्य इत्यादि जरा युज कहेवाय छे. आ प्रमाणे गति त्रसो वे व्रण, चार, पांच इन्द्रियोना भेदवाळा छे; आ प्रमाणे योनी विगेरे भेदrt tej fनरुपण धयुं, हवे ते दरेक योनिनो संग्रह नीचेनी गाथाओमा कर्यो छे, ते बतावे छे. | पुढ विदगअगणिमारुयपत्तेयनिओयजीव जोणीणं । सत्तग सत्तग सत्तग सत्तग दल चोद्दस य लक्खा ॥१॥ विगादिए दो दो चउरो चउरो य नारयलुरेसु । तिरियाण होंति चउरो चोदस मणुआण लक्खाई ॥२॥ सातलाख पृथिवीकाय यांनि, सातलाख जलकाय योनि, सातलाख अग्निकाय; सातलाख पवन, दशलाख प्रत्येक वनस्पति अने चौदलाख साधारण वनस्पतिकायनी योनि छे. ॥ १ ॥ विकलेन्द्रिय (बे, त्रण, चार इन्द्रियनाळा ) नी बब्बे लाख योनि छे चार लाख नारकीनी तथा चार लाख देवयोनि छे, चार साख तिर्यच पंचेद्रिनी भने चौद लाख मनुष्यनी योनि छे, एवीरीते वधी मळीने चोर्याशी लाख योनि जोवोनी थाय छे; हवे कुलनां परिमाण कहे छे. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥१८५॥ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie सूत्रम् १८६॥ है। कुलकोडिसयसहस्सा पत्तीसढनव य पणवीसा । ऐगिादयावेतिइंदियचउरिदियहरियकायाणं ॥१॥ आचा० अद्वत्तरस बारस दस दउ नव चेव कोडिलक्खाई । जलयरपक्खिचउप्पयउरभुयपस्सिप्पजीवाणं ॥२॥ ॥१८६॥ पणुचीसं छव्वीसं च सयसहस्साई नारयसुराण । वारस य सयसहस्सा कुलकोडोणं मणुस्साणं ॥ ३ ॥ एगा कोडाकोडी, सत्ताणउतिं च सयसहस्साई। पंचासं च सहस्सा कुल कोडीर्ण मुणेयव्वा ॥॥ प्रमाणे आंकडामा १९७५००००००००००० थाय के आ बधा कुलनो संग्रह छे. मरूपणा द्वार समाप्त यं. हवे लक्षण ? द्वार कहे छे. दसणनाणचरित्ते चरियाचरिए अ दाणलाभे अ । उवभोगभोग वीरिय, इंदियविसए य लद्विय ॥१५६ ।। उवओगजोगअज्झवसाणे वीसुं च लद्धि ओदइया (णं उदइया) । अझ विहोदय लेसा, सन्नुसासे कसा-2 एअ॥ १५७॥ दर्शन, ते सामान्य उपलब्धि (माप्ति ) रूप छे, तेमां चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अबधि दर्शन, अने केवळदर्शन, एम चार प्रकारे छे. ज्ञान ते मति, श्रुत, अवधि मनापर्यय अने केवळ एम पांच प्रकारर्नु छ, ते ज्ञान पोतानो तथा परनो परिच्छेद करनार । जीवन परिणाम हे, ते ज्ञानावरणीयादिक कर्म जवाथी स्पष्ट तत्वनो परिच्छेद करे छे चारित्र ते, सामायिक, छेदोपस्थापनीय, 1 For Private and Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आवा० ॥ १८७॥ www.kobatirth.org परिहार विशुद्धि, सूक्ष्म संपराय, अने यथाख्यात एम पांच प्रकारे छे, चारित्राचारित्र ते श्रावकोने देशविरति स्थूल माणातिपात विगेरेनुं निचिरुप जाणवं, तथा दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य, श्रोत्र, चक्षु, नाक, जीभ, स्पर्शन, ए दश प्रकारनी दोष रहित जीव द्रव्योनी लब्धि छे ते जीवनुं लक्षण छे तथा उपयोग ते साकार अने निराकार एम के प्रकारे ले साकार उपयोग आठ प्रकारनो, अने निराकार उपयोग चार प्रकारनो छे; योग ते मन, वचन, अने कायाए करीने ऋण प्रकारनो छे. मन परिणामथी उत्पन्न थयेला सूक्ष्म अध्यवसायो घणा प्रकारे छे । विश्वक् (जुदी जुदी) लब्धिभनो उदय ' प्रकट थाय छे. ते दुध मध, आसन विगेरे लब्धि के तथा ज्ञानावरणीयादि कर्मधी लड़ने अंतराय सुधी आठ कर्मनो पोतानी शक्तिनुं परिमाण से उदय छे, लेश्या ते कृष्णादि भेदवडे छ प्रकारनी छे, ते शुभ अने अशुभ कपाय, योग, अने परिणाम, विशेपक्षी उत्पन्न थाय छे ते, अने संज्ञा ते आहार, भय, परिग्रह, मैथुन, एवी रीते चार प्रकारे छे, अथवा दश भेद पूर्वे कल छे अथवा क्रोधादि चार भेदे छे ते तथा ' ओघसंज्ञा ' अने लोकसंज्ञा, छे अने श्वासोश्वास ते प्राण भने अपान छे काय तेने कहेवो के जे संसारनी प्राप्ति करावे ते क्रोधादिक अनन्तानुबंधी आदिक भेदवडे सोळ प्रकारनो छे ए वे गाथामा मूकेला वे इन्द्रिय विगेरे जीवोनां लक्षणो यथा संभव जाणवां ए ममाणे लक्षणनो समुदाय घडा विगेरेमां नथी, तेटला माये घट विगेरेमां पंडितजनो अचैतन्यपणुं स्वीकारे छे; कलां | लक्षणना समूहनो उपसंहार करवानी इच्छाथी अने परिमाणद्वार कहेवानी इच्छाथी नियुक्तिकार गाया कहे छे. लक्खणमेवं चेव उ, पयरस असंखभागमित्ता उ । निक्खमणे य पवेसे एगाईयावि एमेव ॥ १५८ ॥ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥ १८७॥ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा० सूत्रम् ॥१८ -- - (तु शब्द पर्याप्ति वाचक के) वे इन्द्रियादि जीवोनु लक्षण जे दर्शनादि काया, तेटलांन छ भने ते परिपूर्ण छ, तेनाथी वधारे नथीः हवे परिमाण क्षेत्रथी कहे छे. सकाय पर्याप्ता जीवोने संवर्तित लोक प्रतरना असंख्येय भागमा रहेनारा प्रदेश राशी परिमाण (राशि जेटला) छे आ बादर तेजस्काय पर्याप्ताथी असंख्येय गुणा छे त्रसकाय पर्याप्ताथी सकाय अपर्याप्ता असंख्येय गुणा छे. काळथी उत्पन्न यता प्रसकाय जीवो जघन्य स्थानमा बे लाख सागरोपमर्थी नव लाख सागरोपम सुधी समयराशि परिमाण छ | उत्कृष्ट स्थानमा पण चे लाख सागरोपमथी नवलाख सागरोपम परिणापवालान के तेज प्रमाणे शास्त्र कहे छे. "पडुप्पन्नतसकाइया केवतिकालस्स निल्ले वा सिया? गोयमा? जहन्नपए सागरोवमसयसहस्सपुहत्तस्स | उक्कोसपदेऽवि सागरोवमसयसहस्सपुहत्तम्स" अर्थ उपर प्रमाणेज छे. हवे अडधी गाथाथी निष्क्रमण अने प्रवेश कहे के. जघन्य परिमाणथी एक ये ऋण अथवा उत्कृष्ट परिमाणथी प्रतरना असंख्येयभाग परिमाणवालान छे. हवे अविरहित निर्गम अने प्रवेशवडे परिमाण विशेष कहे छे. निक्खमपवेसकालो समयाई इत्थ आवलीभागो। अंतोमुत्तऽविरहो उदहिसहस्साहिए दोन्नि ॥१५९॥ दारं ॥ ___जघन्य परिमाणथी अंतर रहित रहे छते, त्रसकायमा उत्पत्ति, अने निष्क्रमण, एक समये एवा वे या त्रणचार थाय. उत्कृष्टथी। अहिआं आवलीकानो असंख्येय भाग मात्र काळ सुधी निरंतर निष्क्रम तथा प्रवेश होय, एक जीवना अंगीकारथी ज्यारे विरह रहित - - For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा० सूत्रम ॥१८९॥ १८९॥ चितवना करीए, त्यारे छेल्ली अर्धी गाथाथी बताये छे. निरंतर प्रसभावथी जीवो रहे छे कारण के एक जीव त्रस भावे जघन्यथी अंतर्मुहुर्त रहीने फरीथी पृथ्विकाय विगेरे एकेन्द्रियमा उत्पन्न थाय छे ते प्रकर्षथी बेहजार सागरोपमथी अधिक त्रस भावे निरंतर रहे छे. आ प्रमाणे प्रमाणद्वार पुरुं ययुं, हवे उपभोगद्वार, शख, वेदना ए त्रण द्वार प्रतिपादन करवाने कहे छे. मसाईपरिभोगो सत्थं सत्थाइयं अणेगविहं । सारीरमाणसा वेयणा य दुविहा बहुविहाय ॥ १६०॥ दारं ॥ मांस, चामडी, बाळो; रुवां, नख, पीछां, नाडीओ, हाडका, शीगडा, विगेरेमा त्रसकायना अंगोनो उपभोग याय छे अने शस्त्र ते खा तोमर, छरी, पाणी, अग्नि. विगेरे सकायनां शस्त्र ते अनेक प्रकारनां छे अने ते सकाय, परकाय तथा मिश्र तथा द्रव्य अने भाव एम भेदथी अनेक प्रकारनां छे. तेनी वेदना अहि प्रसंग होगाथी कदेवाय छे, आ वेदना शरीरथी अने मनथी उत्पन्न थवानो संभव छे. शरीर वेदना शल्य, सळी, विगेरेना वागवाथी थाय छे; अने मननी वेदना वहालानो वियोग अने प्रतिकुळनो संयोग विगेरेथी थाय के, अनेक प्रकारना ताब, अतिसार, खांसी श्वास भगंदर, मथानो रोग, शूल, मसा विगेरेथी उत्पन्न थयेली तीव होय हे, फरीने उपभोगनो विस्तार करचानी इच्छाथी कहे छे. मंसस्स केइ अट्टा केइ चम्मस्स केइ रोमाणं । पिच्छाणं पुछाणं देतीणऽहा वहिजंति ॥ १६१ ॥ केइ बहंति अट्टा, केइ अणटा पसंगदोसेणं । कम्मपसंगपसत्ता, बंधति वहंति मारंति ॥ १६२ ॥ डरावन्द्र For Private and Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥९९०॥ www.kobatirth.org मांसने माटे हरण, सूअर, आदि मराय छे; चामडी माटे चित्र आदि मराय छे; बाळ माटे जंदर आदि हणाय छे; पीछा माटे मोर, गीध, कपिंचुक, अंदर विगेरे हाय छे. पुंच्छने माटे चमरी, गायो विगेरे, दांतने माटे हाथी, सूअर विगेरे हणाय छे ए प्रमाणे सर्व जगोपर संबंध ठेवो. अहि केटलाको पूर्व कहेला प्रयोजनने उद्देशीने हणे छे, केटलांको प्रयोजन विना पण रमत Tuania मारे छे अने केलांको प्रसंग दोपथी मृगने ताकीने मारेलां वाणनी वचमां आवी गयेलां अनेक कपोत, कपिंजल, पोपट, कोयल, मेना, विगेरे हणे छे तथा कर्म ते खेती विगेरे अनेक प्रकारनां छे ते करवामां मेरायला घणा सकायोने हणे छे, दोरडी विगेरेथी मारे छे चाबुक तथा लकडी विगेरेथी ताडन करे छे, अने हणे छे, तेनो जीवथी त्रियोग करावे छे; आ प्रकारे द्वार समूह कड़ीने हवे वधी नियुक्तिना अर्थना उपसंहार माटे कहे छे. सेसाई दाराई ताई जाई हवंति पुढवीए। एवं तस कार्यमी निज्जुती कित्तिया एसा ॥ १६३ ॥ जे द्वारो कयां ते शिवायना जेटलां द्वारो छे ते वधां पृथिवीकायनां जेवांज समजवां, अने पृथिवीकायनुं स्वरूप निर्माण करती वखते जे गाथाओं कही छे, ते वधी नियुक्तिओ सकायना उद्देशामां पण कही छे, एम जाणनुं, हवे मृत्रानुगममां अस्खलितादि गुणयुक्त सूत्र बोलं, ते आ प्रमाणे. सेबेमि तिमे तसा पाणा तंजहा- अंडयापोयया जराउआ रसया संसेयया संमुच्छिमा उब्भियया उववाइया, एस संसारोति पश्चई (सू. ४८ ) For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ १९० ॥ Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabalirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie आ सूत्रनो अनंतरादि संबंध पूर्वमाफक जाणवो, जे में भगवानना मुख कमळमाथी नीकळेली वाणी सांभळीने अवधारण आचा० - करी राखेली छे अने तेनाथी जेवीरीते तत्त्व प्राप्त करेल छे; ते कहुं हुं. द्वीन्द्रियादि प्रसजीबो पाणी छे, अने ते केटला प्रकारना सूत्रम् छे, तेना भेदो बतावे छे. ते आ प्रमाणे, 'तनहा' शब्द वाक्यना उपन्यासने पाटे छे. अथवा जे भगवानना मुखमाथी नीकळ्यु छे, ॥१९१॥ तेज हुँ कहुं छ, ते बताचवा माटे छे. इंडमांथी जे उत्पन्न थाय ते अंडज पक्षीओ तथा घरोळी अंडज छे, जे 'पोत' तेज जन्मे ते CI॥१९॥ पोतज. हाथी जळो विगेरे पोतज छे. अने जरायुधी पिटायला जे थाय, ते जरायुज, गाय भेस बकरां माणसो विगेरे जरायुज छे. ओसामण, कांजी दुध, छाश, दहि, विगेरेमो रसथी जे उत्पन्न थाय ते रसज, येलो विगेरे अत्यंत माना जीवो रसज , परसेवायो उत्पन्न थाय ते संस्वेदज छे, माकण जु शतपदिका विगेरे स्वेदन छे, संमूर्खनज ते पतंगीआ, कीडीओ, माखीभो विगेरे, संमूर्छनथी | । उत्पन्न धाय ते संमूर्छन छे. उद्भेदी उत्पन्न थाष ते उद्भेदन कहेवाय, पतंगीया खंजरी पारीप्लव विगेरे उभीज कहेवाय के उपपातथी उत्पन्न थाय ते औपपातिक नारक देव विगेरे औषपातिक छे. ए प्रमाणे जेनो जेबो संभव होय तेवो आठ प्रकारमा संसारी जीवनो जन्म चाय छे तेज वात वीजा शास्त्रमा त्रण प्रकारे कहे छे के 'संमूर्छन गोपपाता जन्म' (तत्वार्थ, अ, २ सू. ३२) । ___ रस स्वेद उद्भिजनो संमूर्छनमा समावेश थाय छे. अने अंडज पोतज अने जरायुजनो गर्भजमा समावेश थइ जाय छे अने, IN देव नारकीयनो औषपातिकमा समावेश थइ जाय छे. तेटलामाटे स्वार्थसूत्रकारे टुकामां वणज मकारनो जन्म एम कहेलुं छे For Private and Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir अने अहि आठ प्रकारे उत्तरभेद सहित बतावेल हे अने तेज आठ प्रकारना जन्ममा सर्वे संसारी सजीवो समाय छे आ आठ आचा०प्रकारना जन्म विनाना कोइ संसारी जीव नथी. आ त्रस जीवो आठ प्रकारनी योनिने पामे छे छतां पण बघा लोकमां देखाता सूत्रम् दिवाळक स्त्री पुरुष विगेरे माणसोने प्रत्यक्ष देखाय तेवाज छे “सन्तिच" प शब्दथी सोनुं त्रणे काळमा रहेवा पणुं मसिद्ध थाय छे। ॥१९॥ अर्थात कोइ काळसंसार (जगत) सकायथी रहित रहीज शकतो नथी, तेज बतावे छे 'एस संसारोति पचति' आ अहंज ॥१९२॥ विगेरे पाणी ओनो समूह छे, तेज संसार एम कहेवाय छे भाम कहेबाथी प्रसकायोनो उत्पत्ति प्रकार आधी बीजो कोइ नथी एम। ताब्यु आ आठ प्रकारना भूत समूहमां कोनी उत्पचि थाय छे, ते बतावे छे. मंडस्सावियाणओ (सु. ४९) द्रव्य अने भाव एम चे प्रकारे मंद ले, तेमां जे अत्यन्त स्थूल अथवा अत्यन्त कृश थयेला होय, ते द्रव्य मंद कडेवाय. अने/ जेनी पधारे बुद्धि नथी एवो बाल तथा जेनी बुद्धि कुशाखो बांचवाथी मलिन थइ होय ते भाव मंद कहेवाय (कारण के नठारां शास्त्रो वाचवाथी बुद्धि हणाइ जाय छे तेथी बुद्धि विनाना चाळकना जेवुज वर्तन करे छे केमके तेने सारी बुद्धि होती नयी) अहिं ।। भावमदनी साथे प्रयोजन के जेने वधारे चुदि नथी, एका बाळने चधारे कई खबर न पडवाथी हित काम करवा तण अहित काम छोडवाना पपनमा तेमनु मन शून्य होवाथी जे इमणां आपणे आठ प्रकानो संसार कही गया, ते तेमने, अर्थात् भार मंदने धाव छे, जो आम छे तो पछी भुं कर, ते कहे छे. For Private and Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie निज्झाइत्ता पडिलेहिता पत्तेयं परि निव्वाणं सब्वेसि पाणाण सव्वेसि भृयाण सव्वेसि जीयाणं सव्वेसिं| आचा० सत्ताणं अस्सायं अपरिनिव्वाणं महभयं दुक्ख तिबेमि, तसंति पाणा पदिसो दिसासु य (सू. ५०) || सूत्रम् ॥१९३॥ ___आ प्रमाणे गोपाळ खीथी आरंभीने प्रसिद्ध ययेलं प्रसकाय बरावर चितवीने कहुं छ. ( कत्वा प्रत्ययथी उत्तर क्रिया बधी || ई ॥१९३॥ " "जगोपर योनवी) पहेलां वरावर निश्चय कराय हे अने त्यारपठी तेना प्रत्ये उपेक्षा लक्ष्य भाग के. एम बतावे छे. 'पडिलेद्द त'I सि प्रत्युपेक्ष्य पटले बराबर सारी रीते जोइ [ विचारी ] ने शु जोर्बु ते बताचे छे. एकमेक त्रसकीय प्रत्येक पोतपाताना सुख भोग-H वनारां सर्वे पाणीभी के बीजानुं सुख बीजो भोगवतो नथी आ सर्वे माणो भोनो धर्म छे एम बतावे छे चे व्रण चार इन्द्रियवाळां | बघा पाणी ओ तथा बधा प्रत्येक साधारण सूक्ष्मवादर पर्याप्त अपर्याप्त तरुभो जे सर्व भूतो छ तथा गर्भव्युत्कातिक समूर्छनन औषपातिक पंचेन्द्रिय जीवो तथा पृथिवी आदि एकेन्द्रिय सर्व सत्यो विगैरे एकबीजाना दुःख एकबीजां भोगवी शकता नथी, पण पोताना दुःखो पोतेज भोग के अहिं माथ विगेरे शब्दोनो खरीरीते भेद नथी पण नीचेना न्याय वचनना व्यवहारथी भेद छे. कड्यु के के प्राणा द्वित्रि चतुः प्रोक्ताः भृतास्तु तरवः स्मृताः । जीवाः पंचेन्द्रियाः प्रोक्ताः शेषाः सत्वा उदीरिताः ।। ___इंद्रिय, ऋण इन्द्रिय, चार इन्द्रिय, जीवो पाण कहेबाय छे. तरु वृक्षो विगेरे भूत पंचेन्द्रिय जीवो कहे वाय, अने वाकीना सतत्व कहेवाय ॥१॥ अथवा शब्द व्युत्पत्चिद्वार समभिरुढनय मनबढे भेद जोबो से आ पमाणे छे.. हमेशा माण धारण करवाी (माणो) माणीभो छ, प्रणे काळमा रहेला होवाथी भूत छेत्रणे काळमा जीववाथी जीव भने । For Private and Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥१९॥ हमेशा होवापणाथी सस्व छ, तो आपणे मनमा धारण करीने जेम प्रत्येक जीवन सुखछे तेम प्रत्येकनी अशाता, महाभय, दुःख! आचा विगेरे हुं कई छु, सेमा जे दुःख पमाडे, ते दुःख भुं वधारे छे? 'असातम्' कष्टथी वेदाय एवा काशना परिणाम, तथा 'अपरि निर्वाण' घणुं मुख, ते परि निर्वाण ते, न थाय, ते अपरिनिर्वाण छे, एटले चारे बाजुथी शरीर मन विगेरेने पीडा करना तथा IHI'महाभय' महान [पोर्ट्स एवं जे भय ते 'महाभय' जेनाथी बीजो बधारे भय होय नहिं ते महाभय कडेवाय ते थाय ते बतावे छे वर्धा पाणीयो शरीरथी धनारा तथा मनथी थता दुःखोथी उद्वेग पामे छे, [इसि शब्द एकवार अर्थमां छे] १ प्रमाणे पहेला का, तेर्नु तत्व बराबर मात कर्यै छे, एवो हुँ कहुं छ. जे कहेचान छे ते कहे छे. 'वसंतीत्यादि' ए प्रकारे असातादि विशेषण युक्त दुःखथी पराभव पामेला माणो त्रास पामे छे [उद्वेग पामे छे] तेन प्राण धाकरनारा ते पाणीओ छे. क्याथी त्रास पामे छे ? ते बतावे के 'मगत'जे दिशा खुणा विगेरेथी उद्वेग पामे छे तथा उगमणी विगेरे |दिशामाथी रहेला त्रास पामे छे [ उद्वेग पामे छे.] आ दिशा अने अनुदिशा बधी प्रज्ञापन विधियो साघेली दिशाओ जाणवी; कामारण के जीवनुं ते व्यवस्थान छे [तथा काकु वचनधी आम अर्थ प्रतिपादन थाय छे] एत्री कोइ दिशा के खुगो नदी के जेमा त्रस& काय न होय, अथवा ज्या रहिने त्रास न पामता होय, जेम कोशेटानो कीडो वधी दिशाओ तथा सुणाभोथी डरीने पोतार्नु रक्षण | करवा माटे सारथी शरीरने बीटे छे तो पण मरे छे, भाव दिक पण तेवी कोइ नथी के जेमा रहेला त्रसकायो न डरे, शरीरथी अने मनथी उत्पन्न धनारा दुःखोथी वधी जगोपर नरक विगेरेमां पण पाणीओ हणाय छे तेटला माटे हमेशां तेओना मनमा त्रास रहे छ एम जाणवू. एम दिशाओ चया खुणा विगेरे बधी जगोपर त्रास पामे छे, तेथी एम मानी छीए के दिशा क्या खुणा विगेरेमा | SEEX- S For Private and Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie सूत्रम् ॥१९५॥ द प्रसकायो दुःख पामे थे पांथी दुःख पामे छे? उत्तर तेना आरंभ करनारा तेनो नाश करे छे. [बलवान निवळने मारे छे] आचा० प-भु करवा तेने मारे छे ?. उत्तर-तेओ तेनो आरंभ करे छे ते नीचे प्रमाणे कहे छे. तत्थ तत्थ पुढो पास आतुरा परितावंति, संति पाणा पुढो सिया (सू. ५१) निचे कडेवावा ते ते कारण उत्पन्न यये अर्चा, अजोन, शोणित, विगेरे जुदा जुदां प्रयोजन उत्पन्न थयेथी तेओ हणे छे. ६ एम शिष्यने कहे छे, के तुं जो (शुं जोवान ) ते कहे छे मांसभक्षण, विगेरेमा लोलुप थयेला मनना ठेकाणा विनना चारे बाजुधी जुदी जुदी वेदना करीने अथवा पाणीने भावावडे तेनो आरंभ करनारा जीवो, सनीवोने पीडे छे, गमे तेची रीते आरंभथी | मणीओने दुःख पाय छे ते यतावचा कहे छे सतीत्यादि' एवा जुदा जुदा प्रकारना एक बे, त्रण, चार, पांच इन्द्रियवाळा पृथिवीने | आश्रयी रहेला घणा पाणीभोछे. एम जाणीने पाप विनानुं अनुष्ठान करनारा थq, एवो अभिप्राय छे एवं नथी करता तेओ बोले | छे कइ, अने करे हे कइ, (बोले छे तेवू करता नथी ) ते बतावे छे-- लजमाणा पुढो पास अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा जमिणं विरूवरूवेहि सस्थेहिं तसकायसमारंभेण तसकायसत्थं समारभमाणा अपणे अणेगरूवे पाणे विहिंसंति, तत्थ खलु भगवया परिणा पवेइया, इमस्स चेव जीवियस्त परिवंदणमाणणपूयणाए जाईमरणमोयणाए दुक्खपडिघायहेडं i-khara For Private and Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasagarsuri Gyarmandie आचा DI सूत्रम् ॥१९६॥ से सयमेव तसकायसस्थं समारभति अण्णेहिं था तसकायसत्थं समारंभावेइ अण्णे वा तसकाय. सत्थं समारभमाणे समणुजाणइ, तं से अहि आए तं से अबोहोए से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुहाग्य सोच्चा भगवओ अणगारागं अंतिए इह मेगेसिं णायं भवति-एस खलु गंथे एस खलु मोहे एस खल्लु मारे एस खलु णरए, इच्चरथं गड्ढिए लोए जमिणं विरूवरूवेहिं सत्धेहिं तसकायसमारंभेण तसकायसरथं समारंभमाणे अण्णे अण्णेगरूवे पाणे विहिंसंति (सू. ५२) व्याख्यान पहेला पेठे जाणवू एट ले अन्य लोको अनेकरुपे हालता चालता पाणी श्रोनो वध करे छे, इत्यादि पूना जेझुंज व्याख्यान कर, कोइपण गमे ते कारण लइने त्रसकायगो वध करे छे, ते वतत्रयाने माटे कहे हे. से बेमि अप्पेगे अच्चाए हणंति, अप्पेगे अजिणाए वहति, अप्पेगे मंसाए वहंति, अप्पेगे सोणियाए वहंति, ऐवं हिययाए पित्ताए, वसाए पिच्छाए पुच्छाए वालाए सिंगाए विसाणाए दंताए दाढाए णहाए पहारुणीए अट्ठीए अहिमिजाए अट्ठाए अणट्ठाए, अप्पेगे हिसिसु मेत्ति वा वहति अप्पेगे हिंसंति मेत्ति वा वहति अप्पेगे हिसिस्संति मेत्ति वा वहति (स. ५३) For Private and Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie जेने माटे त्रसकायना संमारंभमा प्रवर्तेलामोधी प्रसकाय पाणीओ मराय छे, ते ९ कई छ, केटलाक अर्चाने माटे हणे छ । आचा०14 ('अपि' शब्द उत्तर पदनी अपेक्षाए समुच्चय अर्थमां छे,) 'एके' एटले केटलाक अर्चाने माटे आतुर बनीने जाणे के आ देहने सूत्रम् सारीरीते घरेणां विगेरे भाषीने पूजशे. एटला माटे मारे छे (हणे छे) ते आ प्रमाणे खोडखापण विनाना बत्रीश लक्षणा पुरुषने | ॥१९७॥HI मारीने तेनाज शरीवडे देवीओनी पासे कोई विद्या मंत्र साधनो करे छे, अने तेनी सिद्धिने माटे दुर्गादि देवीभो जे मागे ते आ- १९७n पे छे. अथवा जेणे मेर खाधु होय, ते माणसने हाथीने मारीने तेना शरीरमा नांखें छे; अने पछी विष झरी (पची) जाय छे. | तथा अजीनने माटे चित्ता वाघ, सिंह विगेरेने मारे के ए प्रमाणे मांस, लोही, है, पित्त, चरबी, पीछां, पुछई, वाळ, शींगडां. | विषाण दांत, दाढ, नख, स्नापु, हाडका, अने हाडकानी मिज्मा विगेरेमां पण कहे के मांसने मारे मुंह बराह (मभर) विगेरे हमारे छे, तथा त्रिशूल आलेखपाने माटे लोही गृहण करे छे. साधना करनाराभो हृदयने लइने वलोवे . पित्तने माटे मोर विगेरे । हणे छे, वसाने माटे बाघ मघर भुंड विगेरे तथा पीछांने माटे मोर गीध विगेरे, पुंछडांने माटे रोझ नामर्नु जनावर विगेरे, वाळने Hमाटे चमरी गाय विगेरे शृंगने पाटे हरण गेंडां विगेरे पारे छे. कारण ते शौंगडांभोने याज्ञिक ( यज्ञ करनाराभो )पवित्र गणे के अने तेओ उपयोगमा लेछे. विपाणने पाटे हाथी, वराह तथा शंगालो विगेरे मारे छे. (अहीं विषाणना शींगहुं हाथीदांत तथा सकरनो दांत एम बण अर्थ धाय छ) तेना दांत अंधकारनो नाश करता होगाथी ते उपयोगने पाटे मराय छे. दाढने माटे वराह विगेरे, नखने माटे बाघ विगेरे, स्नायुने माटे गाय भैस विगेरे, अस्थि ने मादे शंख छीप विगेरे, अस्थिमिझिने माटे पाढा वराह | For Private and Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आघा० ॥१९८॥ www.kobatirth.org विगेरे, एवरी घणा लोको पोताना प्रयोजन माटे हणे छे अने केटलाक तो कांइपण प्रयोजन शिवाय काचंडा, परोळी मारे छे. अने बीजा केटलाक विचारे छे के आ सिंहे, सापे, तथा शत्रु मारा सगाने मार्यो छे, एम धारीने तेनुं वेर लेवा माटे तेने मारे छे. अथवा मने दुःख आप्युं, एम धारीने पण मारे छे, अथवा हालमां आ सिंह विगेरे बीजाओने तथा आपणने दुःख दे छे. माटे एने मारो जोइए, एम धारीने मारे छे. अथवा कोइ बखत आ अमोने अथवा बीजाने मारशे, एम धारी सर्पादिने मारे छे, एवा घणा प्रकारे विषय हिंसा बतावीने उद्देशाना अर्थने पूरी करना कहे छे. एत्थ सत्थं समारभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति, एत्थ सत्थं असमारभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिणाया भवन्ति तं परिण्णाय मेहाची णेत्र सयं तसकायसत्थं समारभेजा, क्षेत्रऽपणे हिं तसकाय सत्थं समारंभावेजा, णेवऽण्णे तसकायसत्थं समारंभंते समणुजाणेजा, जस्सेते तसकायसमारंभा परिणाया भवन्ति सेहु मुणी परिएणायकम्मे (सू. ५४ ) त्तिबेमि ॥ इति षष्ठ उद्देशकः ॥ काना समारंभी विरत थयेलो होवाथी तेज मुनि अने पापकर्मनुं प्रत्याख्यान करेलुं होवाथी तेज परिज्ञातकर्मा कदेवो, एम सघ ज्यां सुधी आबात आवे, त्यां सुधी वधुं पुर्वनी पेठे कहे. श्रीसुधर्मास्वामी कहे छे के आ बधुं हुं भगवान त्रिलोकना बन्धु परम केवलज्ञानथी बघा भुवनना प्रपंचनो साक्षात्कार करनार वीर भगवानना उपदेशश्री कहूं छुए प्रमाणे छट्टो उदेशी समाप्त भयो, For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ १९८ ॥ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Sh Kailasagersuri Gyanmandie आचा सुत्रम छटो उदेशो को हवे सातमो आरंभे छे तेनो छहानी साये आवीरीते संबंध के नवा धर्म पामनारने दाखथी श्रद्धा रहे छ । तथा वायुन अल्पपरिभोगपणु के पाटे उत्तमे आवेला वायुन थोई जे कंइ कडेवान के, ते सरुष निरुपणकरणाने या परेशानो 81 उपक्रम करे के तेथी भाषा संबंधी आवेला आ उद्देशानो उपक्रम विगेरे चार अनुयोग द्वारा कहेवा; ज्यांसुधरी नामनिष्पना निक्षेपामा वायुउद्देशक ए ममाणे तेमां वायुनु स्वरूप निरुपण करवाने माटे केटलांक द्वारना अतिदेश जेमा रहेल छे एवी गाथार्नु । नियुक्तिकार कथन करे छे. वायुस्सऽवि दाराई, ताई हवंति पुढवीए; । नाणत्ती उ विहाणे, परिमाणुव भोग सस्थेय ॥ १६ ॥ जे वाय ते वायु सेना के द्वारा पृथिवीकायना उद्देशामा प्रतिपादन कर्या छे. तेज द्वार भहीं छे, पण विधान परिमाण उपभोग, शस्त्र अने च शब्दथी लक्षणमा जुदापणुं जाणवू तेमां विधान प्रतिपादन करवा कहे तो. दुविहा उ वाउजीवा सुहमा तह बायरा उ लोगंमि । सुहमा य सव्वलोए पंचेव य बायरविहाणा ॥१६५॥ ___वायु एज जे जीव, ते वायु जीव छे, ए चे प्रकारे छे, सूक्ष्म अने बादर, तेबां नामकर्मना उदपथी सूक्ष्म, अने वादर एम कहेवाय छे तेमां मूक्ष्म सर्व लोकमां पापीने रहे छे. अने व्याप्तिवडे ते एक घर जेनां पारणां जाळीश्रो विगेरेने बासी दइए कीए; छतां धुमाढो अंदर रहे छे तेवी रीते रहे थे पादरभेद पांच प्रकारे छे, ते भेद प्रतिपादन करवाने माटे गाया कहे . . । उक्कलिया मंडलिया गुंजा घणवाय सुद्धवाया य । बायरवाउविहाणा पंचविहा वणिया एए ॥ १६६ ॥ For Private and Personal use only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ २००॥ www.kobatirth.org arnलिक बात, मंडलिक बात, गुजा बात, अने शुद्ध बारा, एम वादस्वायु पांच मकारे वर्णवेल छे. तेमां रहि रहने मोजां इसानी ] पेठे जे बाय, ते उत्कलिकवा टोळीआनो जे वायु ते मंडलिक वायुः नगारानी माफक अवाज करता करतां जे वाय ते गुंजात्रा - अत्यंत घाटो पृथिवी विगेरेना आधारपणाथी बरफना जथ्यानी माफक जे रहेल हे ते घनवायु धीरे धीरे शीत काल विरेमा जे मन्द मन्द वायु आवे ते शुद्धवायु कहेवाय, अने जे बीना प्रज्ञापनादि सूत्रमां उगवणी विगेरे दिशाओना जे वा यु कहेला छे. तेओना आमांन समावेश थइ जाय ले एम जाणधुं ए प्रमाणे आ बादश्वायुना पांच प्रकारना मेदो वर्णव्या. हवेलक्षणद्वार कहे छे. जह देवरस सरीरं, अंतद्वाणं व अंजणाईतुं । एओत्रम आएसो वाऽसंतेऽवि रूमि ॥ १६७ ॥ जेम देवनुं शरीर आंखोथी देखतुं नथी छतो, पण छे, अने सचेतन छे, एम मनाय छे, देवो पोतानी शक्तिवडे ते रूप करे छे, के आंखोथी देखी शकातुं नथी तेथी आपणे एम नथी कही शकता के ते नथी अथवा अचेतन छे तेवीजरीते वायु पण चधुनो विषय थतो नथी तो पण वायु छे अने चेतन छे. अथवा बीना दृष्टांतयां जेम लोप धनुं विगेरे विद्या मंत्रथी तथा अंजनथी | मनुष्ध पण अद्रश्य थाय छे पण तेथी मनुष्यने नास्तिपणुं तथा अचेतनपणुं न कहेवाय. एवी उपमा बायुमां पण रूप नथी छतां पाय छे अहिं असत् शब्द अभाव कहेनार नथी पण वायुनुं असद्रूप छे, एटले तेनुं रूप चक्षुयी ग्रहण थह शकतुं नथी, करण के ते परमाणुनी माफक सूक्ष्म परिमाणवाळो छे, वायु, रुप, रस, स्पर्श, गुणवाळो छे, एम मानतुं छे, पण जेम 'बीजाओना मतमां वायु For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥२०० ॥ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie सूत्रम ॥२०१॥ है केवळ स्पर्शवानन छे, तेम अमे नी पानता, प्रयोगनो अर्थ गाथावडे बतायो छे. प्रयोग आ प्रमाणे छे"गाय अने अश्च विगेरेनी । आचा० माफक वायु बीजाए प्रेरेलो बांकी भने अनियमित गतिवाळो होबाथी, चेतनावान छे."तिर्यक् एज गमनना नियमना अभावथी भने । अनियमित एवं विशेषण आपवाथी, परमाणु साथे व्यभिचार यवानो संभव नथी, कारण के ते नियमित गतिवाळो हे जीव अने पुद्गलनी ४ ॥२०१॥ 'अनुश्रेणीगतिः (तत्वा० अ०२०२७)ए वचनथी जाणQ. तथा आ वायु घन, शुद्ध वातादि भेदोवानो, अने शखथी न इणायो | होय, त्यां सुधी चेतनावाळो छे; एम समजबुं हवे परिमाणद्वार कहे छे. जे वायरपजत्ता पयरस्स असंखभागमित्ता ते। सेसा तिन्निवि रासी वीसं लोगा असंखिज्जा॥१६८॥ दारं जे बाँदर पर्याप्त वायुओ छे; ते संवर्तितलक मतरना असंख्येय भागमा रहेनारा प्रदेशराशि परिमाणवाला छे, अने बाकीनी त्रणे राशीओ चारे तरफ जुदी जुदी असंख्येय लोकाकाश प्रदेश परिमाण थाय छ, अहिं आटलं विशेष जाणवू के 'बादरअपकाय है पर्याप्ताथी, बादर वायुकाय पर्याप्ता, असंख्येय गुणा छ, बादर अप्काय अपर्याप्तायी, यादर वायु काय अपर्याप्ता, असंख्येय गुणा छे. सूक्ष्म अप्काय अपर्याप्ताथी, सूक्ष्म वायु काया अपर्याप्ता, कंइक वधारे थे, मूक्ष्म अप्काय, पर्याप्ताधी मूक्ष्मवायुकाय पर्याप्ता ४ कइक बधारे छे. हवे उपभोग द्वार कहे छे वियणधमणाभिधारण उस्सिचणफुसणआणुपाणू अ । वायरवाउकाए उव भोगगुणा मणुस्साणं ॥ १६९ ॥ मनुष्योने पंखाथी पवन नांखयो, धमणधी फुकवू, वायु धारण करीने शरीरमा प्राण अपानरुपे राखवो, विगैरे बादर वायु-। For Private and Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥२०२॥ www.kobatirth.org कायनो उपभोग छे. हवे शखद्वार कहे छे. तेमां शस्त्र द्रव्य अने भाव एम मे भेदधी छे तेमां शख कहे छे विअणे अ ताल घंटे सुरपसियपत्त चेलकण्णे य । अभिधारणाय बाहिं गन्धग्गी वासस्थाई ॥ १७० ॥ पंखो, ताडनां पांदडा, सूप चामर पदों, बनो छेटो विगेरे बापुन द्रव्य शस्त्र के अने पवन भजवाने मार्गे रुवांना छीद्रोमांथी जे बहार आवे छे ते परसेवो ते शस्त्र छे. ते अभिधारणान के तथा गंधो ते चंदनवाको विगेरे तथा अमिनी जवाळा (भडका अने ताप ) (अंगारा ) तथा ठंडो तथा उनो बगेरे उलटो वायु से प्रतिपक्ष वायु ग्रहण करवाथी स्वकाय विगेरे शस्त्रो सूचन थयुं एटले पंखो विगेरे परकायशस्त्र, तथा उल्टो वायु स्वकाय शस्त्र के ए प्रमाणे भावशस्त्र पण अबळे मार्गे दोरेला मन, वाणी, शरीर विगेरेधी वायुने पीडारूप जाण, हवे वधी नियुक्तिमा अर्थने उपसंहार करवा कहे छे सेसाई दाराई ताई जाई हवंति पुढवीए। एवं वा उसे निज्जुसी कित्तिया एसा ॥ १७१ ॥ शेष एट का ते शिवायनां वाकीनां द्वार जेटलां पृथिवीकायना उद्देशामां कहां नेटलां नहीं जाणी लेवां. ए प्रमाणे जे पूर्वे निर्युक्ति कही, ते वायुकायना उद्देशामां पण कहेली जाणत्री. नाम निष्पन्न निक्षपो पूरो थयो हवे सूत्रानुगममां अस्खलितादि गुणयुक्त सूत्र बोलते आ छे, 'पहू एजस्स दुर्गुछणाए' चि' आनो उपरनी साथै एवो संबंध छे. अहिं पूर्वना उद्देशाना बेल्ला सूत्रांसकायनुं पूरेपुरुं ज्ञान, अने तेना आरंभनो त्याग ते मुनिपणामां कारण छे, एम कयं वायुकायना त्रिषयमा पण सुनियणामां | कारण छे, तेम कद्देवाय छे तेनो परस्पर सूत्र संबंध आ छे'इहमेगेसि णो णायं भवई' सि, अहिं केटलाकने आ वासनी खबर नथी. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥ २०२॥ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie सूत्रम आचा ॥२०३॥ ॥२०३॥ - - - - म. जाणेलं गं छे. 'पहु एजस्स दुगुंछणार चि तथा आदि सूत्र संबंध भा प्रमाणे 'सुर्यमे आउसंतेण मित्यादि' जे में पहेला उपदेश कयों, ते भने वे पछी कहेवाय छे, ने में भगवान पासे सांभळयू शे. पहू एजस्स दुगुंछणाए (सू०५५) 'दुगुंडणा'नि निंदा उत्पन्न पाय, तेथी ते प्रभु अर्थात् निंदा करवामां समर्थ अथवा योग्य, म० कइ वस्तुनी निंदा करवायां समर्थ ? उत्तर (एज कंपने') एनति एटले कंपावे, ते 'एन, एटले वायु' कारण के तेनो कंपावबानो स्वभाव के; ते एजनी 'जु| गुप्सा' एटले निंदा तेनु सेवन करवामां निवृत्ति तेमां समर्थ थाय छे. वायुकायना समारंभनी निवृत्तिमां शक्तिवाळो याय छे. अथवा पाठांतर 'पह य एमस्स दुगुंण्णाए' वधारापणामां एटले उद्रेकावस्थामा रहेनारा एवा स्पर्श नाममा, एकज गुणथी जणातो. | लेटला माटे एक एटले वायु एका एकज गुणथी जणाता. एका वायुनी निंदायां समर्थ, 'च' भन्दथी निंदाने समर्थ थाय, छे, अ र्थात् जीव के एम श्रद्धा करीने पछी तेना आरंभने निदे छे. जे वायुकाय समारंभ निवृत्तिमा समर्थ कहो ते बतावे हे. ___ आयंकदंसो अहियंति णचा, जे अज्झत्थं जाणइ से बहिया जाणइ, जे बहिया जाणइ, से अज्झत्थं जाणइ, एयं तुलमन्नेसि (सू०५६) (तकि इच्छजीवन')भने आतंकन दुःख ते आतंक एटले महाकृच्छ्रपणाए जीवचुं ते दुःख छे, अने ते दुःख वे प्रकारे छे. शरीर - - For Private and Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie मा नो हुँ वायुकायना सया, भने तेना जोवामाना लाभ न थाय, दरिद्रत दुःख, अने बीजुं मननु दुःख , तेमा पहेलं ते, कंटक खार, शख, जुआ, तथा खड माकडी विगेरेथी उत्पन्न थाय छे. अने मआचा०18 ननु दुःख से बहालानो वियोग, अने देषीनो संयोग (मेळाप) इस्लानो लाभ न याय, दरिद्रताथी उदासी थर्बु, विगेरेथी धाय 51 सूत्रम् छे ते बेद प्रकारना दुःस्व छे तेने (पश्यति) जुए, अने तेना जोवामा स्वभावनाळी ते 'आतंकदर्शी कवाय; अर्थात् अवश्य ए ॥२०४॥ उपकारना दुःखो जो हुं वायुकायना समारंभमांथी निवृत्त नहि थाउं, तो मारा उपर आधी पडशे. तेटलामाटे आ वायुकायनो M॥२०४॥ समारंभ दुःखमां कारणभूत छे. एम कयुं छे, एम जाणीनेज तेनाथी निकृत थापा समर्थ थाय छ; अथवा आतंक वे प्रकारनो छे. (१) द्रव्य (२) भाव भेदधी छे, तेमां द्रव्य आतंकमां आ उदाहरण छे. जंबुद्दोवे दीवे भरहे वासंमि अस्थि सुपसिकं । बहुणयरगुणसमिद्ध रायगिह णाम जयरंति ॥ १॥ तत्था | सि गरुयदरियारिमद्दणो भुयणनिग्गयफ्यावो । अभिगय जोवाजीवो राया णामेण जियसत् ॥२॥ अणवस्य गरुयसंवेगभाविओ धम्मघोसपामुले । सो अन्नया कयाई पमाइणं पासए सेहं ॥३॥ चोइजतमभिक्खं अवराहं तं पुगोऽवि कुगमागं । तस्त हियटुं राया सेसाण य रक्खगाए ॥४॥ आयरिणाणुषणाए आणा वह सो उणिययपुरिसेहिं । तिव्वुक्कडदव्वेहि संधियपुवं तहिं खारं ॥५॥ पक्खित्तो जत्थणरो णवरं 15/गोदोहमेत्तकालेणं । णिजिण्णमंससोणिय अद्वियसेसत्तणमवेड ॥६॥दोताहे पुवमए पुरिसे आणावए For Private and Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥२०५॥ www.kobatirth.org राया । एवं गित्थवेसं वीयं पासलं नेत्रत्थं ॥७॥ पुत्रं चिय सिक्खविए, ते पुरिसे पुच्छए तार्ड राया को अवराहो एसि ? भणति आणं अइक्कमइ ॥ ८ ॥ पासंडिओ जहुत्ते ण वट्टइ अत्तणो य आयारे वह खार मज्झे खित्ता गोदोहतेत्तस्स || ९ || दट्टणट्टवसेसे, ते पुरिसे अलियरोसरत्तच्छो । सेहं आलायंतो राया तो भइ आयरियं ॥ १०॥ तुम्हवि कोऽवि पमादी ? सासेमि य तंपि णत्थि भणइ गुरु । जइ होहि तो साहे तुम्हे चिय तस्स जाणिहिह ॥ ११ ॥ सेहो गए निर्वमी भणई ते साहुणो उ ण पुत्ति । होहं पमाय सोलो तुम्हें सरणागओ घणियं ॥ १२ ॥ जइ पुण होज पमाओ, पुणो ममं सड्ढ भाव रहि यस । तुम्ह गुणेहिं सुविहिय तो सावगरक्ख सा मुच्चे ||१३|| आयं कभओ विग्गो, ताहे 'सो free उज्जुओ जाओ। कोविय मतिय समए रण्णा मरि साविओ पच्छा ||१४|| दव्वायंकादसी अत्ताणं सव्वहा णियतेइ । अहिया रंभाउ सया जह सीसो धम्मघोसस्स ॥ १५ ॥ गाथाभनी अर्थ - जंबूद्विपना भरतखंडमां बहु नगरना गुणथी समृद्धिवाद्धं अने सुप्रसिद्ध एवं राजगृह नामनुं नगर हतुं तेमां घणा गर्ववाळा शत्रु भने मर्दन करनार अने चारेतरफ जेनो यश फैलायो छे, एवो जीव अजीबने जाणनारो जीतशत्रु नामनो राजा For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥२०५॥ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥२०६॥ www.kobatirth.org राज्य करतो हतो. पछी निरंतर महान संवेगने भावनार एवा तेणे धर्मघोष आचार्यनी पगमां कोइ बखते कोइ प्रमादी शिष्य ने जोयो. से शिष्यने वारंवार अपराधनो उपको आपत छतां वारे बारे ममाद करतो देखीने तेना हितने माटे अने बीजाओ सेवा पापी न बने, माटे राजाए आचार्यनी आज्ञाथी पोताना पुरुषो पासे तेने बोलाव्यो, तथा तीव्र उत्कट वस्तुथी मेळवीने खार तैयार रखाच्यो, गा-प ते खार एव सखत हतो के जेम नांखेलो माणस गोदोह ( गायने दोहवाना ) बखतमां मांस, लोही विमानो फक्त हाडका मात्र रहे. गा-६, अने प्रथम संकेत करीने वे मडदां राजाए मंगावी राख्यां जेमां एकनो गृहस्थ बेष, अने बीजानो बाबानो वेपतो. गा-७. पूर्वे शिखवेला माणसने राजाए पूछयूँ. के आपन्नेनो शुं अपराध छे. तेओए कहां एक वडीलनी आज्ञा उल्लंघे छे, बीजो पांखडी (साधु) पोताना शास्त्रोक्त कहेला आचारमां तो नथी, तेथी रामाए फहूं, गोदोह मात्र काळ खारमां नांखो. ॥ ९ ।। से ये पुरुषाने हाडकां मात्र रहेला देखीने खोटा कोथी आंखो लाल करीने राजा आचार्यने शिष्यना देखतां कहे छे. ॥ १० ॥ दे महाराज तमाराम पण कोइ प्रमादी होय तो कहो, हुं तेने योग्य शिक्षा करूं, गुरुपं तेने का कोई प्रमादी नथी, अने कोइ यशे तो हुं कहीश, अथवा तमे तेने जाणशो ॥ ११ ॥ ज्यारे राजा गया, त्यारे, पेलो चेलो साधुआंने कहे छे, के हवे हुं ममादी नहि थाउं. हुं तमारा शरणमां संपूर्ण आवेलो ।। १२ ।। जो फरीथी मने प्रमाद याय अने शतभावरहित करवा तमारा गुणो बडे तमे सुविहित छो, तेथी मने प्रमाद राक्षसथी कावजो ।। १३ 1 आतंक अने भयथी उद्विग्न थयेलो ते निरंतर पोताना धर्म अनुष्ठानमां जाग्रत थयो, त्यारे पछी, ते सुबुद्धि For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥२०६॥ Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा० सूत्रम ॥२०७॥ ॥२०७॥ SA- 14 ल चाळो गयो त्यारे राजाए समय आवे तेने खरी बात कही, अने क्षमा मागी, ॥ १४ ॥ दन्यातंकने देखनारो पोताना आत्याने हम्मेशा धर्मधोफ्ना शिष्पनी माफक अहित आरंभथी पोते दूर रहे छे. ॥ १५ ॥ तेम भाव आतंकने देखनारो नरक, तिर्यच मनुष्य अने देवताना भवमा व्हालानो वियोग विगेरे, तथा मनुष्य विगेरेने, शरीर | अने मनना आतंक (दुःखो )ना भयथी, दरीने वायुने दुःख देवाना समारंभां न भवते, पण आ वायूने दुःखन कारण छे. तथा ते अहित छे, एम समजीने तजे छ, तेथी जे विमळ विवेकभावथी आतंकदर्शी होय छे ते वायुना समारंभनी जुगुप्सामा समर्थ छे; हित, अहित, माप्ति, परिहार, एटले हित थाय, अहित दूर थाय, एवा अनुष्ठाननी प्रवृत्तिमा पोते समर्थ छे, तेनाथी बीजो एवाज पुरुषनी माफक एटले जे कोइ आतंकने जाणे, ते वायुनो असंभ त्यागे छः वायुकाय समारंभनी निवृत्तिमां कारण बतावे छे, आरमाने आगळ करीने जे वते ते अध्यात्म छे, अने ते मुख दुःख विगेरे छे. ते अध्यात्मने जे जाणे एटले तेनुं स्वरूप समजे, ते बहारनां पाणीगण जे वायुकाय, बिगेरे छ; वेने जाणे छेजेम मारो आत्मा सुख्नो अभिलाषी थइ, दुःखथी खेद पामे छे. तेम बायु विगेरेने पण छे, बळी मने पावेलु अति कटुक अशातावेदनीना फर्मना उदयथी, अशुभ फळ एटले दुःख आवेलुं छे ते पोताने अनुभव सिद्ध छे, तथा पोताना अत्मामां शातावेदनी, कर्मना उदपथी शुभ फळरुप सुख आवेलुं ते मुख, दुःख बन्नेने जे जाणे, तेज खरेखरो अध्यात्मने जाणे छे, प प्रमाणे जे अध्यात्म वेदी छे, ते पाताना आत्माथी बहार रहेला वायुकायादि माणीHI गणने, जढी जदी प्रकाग्ना उपक्रमशी जन्पन्न थयेला पोताथी भने पारकाथी अने मनमा थनारां मुख दाखोने जाणे छे, पटले For Private and Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥२०८॥ www.kobatirth.org * 7:111111 बारामा गएनन हार प विगेरेनी अपेक्षा क्याथी होय ? अने जे बहारना जीवोने जाणे ते यथायोग्य अध्यात्मने जाणे छे; कारण के ते बाह्य अने अध्याम एक बोजानी साये अव्यभिचारवाळां छे; ( एटले समान छे ) परना आत्माना ज्ञानथी हवे शृं करखुं, ते बतावे छे; आ प्रमाणे कला लक्षणवाळी तुलाए तो तुं जेम तारा आत्माने सर्वथा सुखना अभिलाषीपणाथी रक्षे छे तेम बोजाने पण तुं बचाव, जेम पारकाने तेमज आत्माने ए ये तुलोमां समान तोळीने पर अने पोतानुं सुख दुःख तेनो अनुभव जो, अने ते प्रमाणे कर (आबुं गुरु कहे छे) aण कंटण व पाए विद्धस्स वेयणहस्स । जह होइ अनिव्वाणी सव्वत्थ जिऐसु तं जाण ॥१॥ बळी लाकडाथी अथवा कांटाथी पगमां लागतां जेवी रीते तने वेदना थाय छे. तेवी रीते तुं बीजा जीवोमां पण जाण, तथा मरीश एटलं सांभळतां तने जे दुःख थाय छे ते प्रमाणे ते अनुमानवडे, बीजाने दुःख थाय छे ते जाणवु शक्य छे, अने पारकानुं रक्षण कर ते पण शक्य छे, तेथी जेम तुलाए तोळवानुं बतान्युं, ते प्रमाणे स्व अने पर समजनारा माणसो स्थावर जंगम जंतुना समूहना रक्षण माटे पवर्ते हे, केवीरीते वर्ते छे. ते बताये छे, इह संतिगया दविया णावकखंति जीविडं (सू० ५७ ) आ दयाना एक रसाळा जीनवचनमां, शान्ति ( उपशम ) ते प्रशम, संवेग, निर्वेद, अनुकंपा, आस्तिकयने चतावनार लक्ष For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥२०८॥ Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा० सुत्रम ॥२०॥ ॥२०९॥ गवाईं सम्यकदर्शनज्ञान, चरणनो समुदाय कहेवाय ते शान्ति छ कारण के ते निराबाध मोक्ष नामनी शांतिने आफ्नार के तेवी शांतिने प्राप्त बयेला अथवा शांतिमा रहेला ते शांतिगत जीवों तथा द्रविका, एटले रागद्वेषयी मुकाएलाछे, तेमां व ते सं. यम सत्तर भकारनो छे, कारण के जे कठिन कर्म छे, नेने गाळवाना हेतुरुपे ते द्रवरूप संयमने धरे ते द्रविक छ, तेश्रो जीनितने धारण करवाने इच्छता नथी, के अमे वायुकायने दुःख दइने जीवीए, (दुःख भोगवीए, पर कबुल करीए, पण वायुने पीडा न आपीए) तेज प्रमाणे पूर्वे कहेला प्रमाणे पृथिवीकाय विगेरेनी पण अमे रक्षा करीमु, समुदाय अर्थ आ प्रमाणे छे, आ जैन प्रवचनमा जे संयम छे तेनी अंदर जे रहेला छे, तेभोज रागद्वेष रुप जे ऊंचा प्राडो छ, तेने मूळथी उखेडनाग छ, अने तेभोज परभूत (अन्य जीवो) ने दुःख दा मुखथी जीवधानी इच्छा रहित साधुभी छे. पण अन्यत्र नधी कारण के आगे क्रियाना धोधनो बीजे अभाव छे; आ प्रमाणे यये छने-- लज्जमाणे पुढो पास अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा जमिणं विरूबरूवेहि सत्थेहिं बाउकम्मसमारंभेणं वाउसस्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसति । तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवे. इया । इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदणमाणणपूयणाए जाईमरणमोयणाए दुक्खपडियायहेडं से सयमेव वाउसत्यं समारभति अण्णेहि वा वाउसत्थं समारंभावेइ अण्णे वाउसस्थं समारंभंते समणु For Private and Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥२१०॥ www.kobatirth.org जाणति, तं से अहियाए तं से अबोहीए, से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुहाए सोचा भगवओ अणगाराणं अंतिए, इहमेगेसिं णायं भवति - एस खलु गंधे एस खलु मोहे एस खलु मारे एस खलु रिए, इत्थं गहिए लोए जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वाउकम्मसमारंभेणं वाउसत्थं समारं माणे अपणे अणेrरूवे पाणे विहिंसति ( सू० ५८ ) से बेमि संति संपाइमा पाणा आहच्च संपयंति य फरिसं च खलु पुट्ठा एगे संघायमात्रजंति, जे तत्थ संघायमावति ते तत्थ परियावज्जंति, जे तत्थ परियावज्जंति ते तत्थ उद्दायंति, एत्थ सत्यं समारभमाणस्स इच्चे आरंभा अपरिष्णाया भवंति, एत्थ सत्थं असमारभमाणस्त इच्चते आरंभा परिणाया भवंति तं परिण्णाय मेहावी णेत्र सयं वाउसत्थं समारंभेज्जा वऽण्णेहिं वाउसत्थं समारंभावेजा व वाउसत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा, जस्सेते वाउसत्थसमारंभा परिण्णाया भवंति से हु मुणी परिण्णायकम्मे ( सू० ५९ ) तिबेमि पूर्वमा सूत्रार्थ है, हवे छ जीवनिकायमा विषयमा वध करनाराओने अपाय दुःख) बतावीने जीवोने तेनुं दुःख न देनारा ओने For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥२१०॥ Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairthorg Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandie आचा० THE सूत्रम ॥२१॥ ॥२१॥ संपूर्ण मुनिपणुं बतावदा माटे मुत्रो कहे छे, एत्थंपि जाणे उवादीयमाणा, जे आयारे ण रमंति, आरभमाणा विणयं वयंति, छंदोवणीया अज्झोववण्णा, आरंभसत्ता पकरंति संगं (सू०६०) प्रस्तुत वायुकायां अने अपि शब्दधी पृथिवी विगेरेमां पण जेओ समाश्रित आरंभ करे छे, ते भो कर्मने बांधे हे. एक जीबनिकायना वधमां, मत्त गयेलो शेष निकायना वधना कर्मथी बंधाय के शा माटे ! एम शिष्ये पूछतां कहे के के हे मुब! एक जीवनिकायनो आरंभ बीजी जीवनिकायना उपमर्दन शिवाय न बनी सके एटला माटे तुं सपजी ले. आ सांभळनारने विचारवा कहा. (भहीं बीजीना अर्थमा पहेली विभक्ति . तेनो आ प्रमाणे अन्वय करवो,) पृथिवी निगेरेना आरंभ करनारने चीनी काया. ना आरंभ करवायी उपादाय मान ने जाण. (अर्थात् तेभोनी चीनकाय मारबानो अभिलाष न होय, उता एककाय इणता, बीजी काय स्वयं हणाइ, जवाथी मारनारने पाप लागे ;) हवे क्या जीवो पृथिवी विगेरेनो आरंभ करतां शेष कायना आरंभना कर्मवी बंधाय थे, ने कहे हे. जेओ आचारमा रमता नथी, एटले परमार्थ जाण्या विना ज्ञान, दर्शन, चरित्र, तप, वीर्ष, मामना पांच मकारना, आचारमा जेओ धीरज न राखे, तेओ अतिने लीधे पृथिवीकाय विगेरेना आरंभी बने छ तेश्रोने चीनी कायना पण पाप बांधनारा जाणवा. प्रश्न-क्या लोको अचारमा रमता नथी. ? For Private and Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा सूत्रम् ॥२१२॥ ॥२१२॥ उत्तर-शाक्य दिगम्बर तथा पासस्था (चारित्रथी पतित) विगेरे. प्रश्न-शा माटे ? उत्तर--आरंभ करवा छता, तेओ पोताने संयमवाळा माने छे, विनय तेज संयम छे. शाक्यादि साधु--अमे पण विनयमां रहेला छीए, एम मोले थे, पण तेओ पृथिवी विगेरे जीवोन स्वरूप जाणता नथी, अने कदाच माने तो पण तेज आश्रित आरंभ करवाथी ज्ञानादि आचारना विकल्पपणाथी आचार रहित छे. प्रश्न-एवं शुं कारण छे के पोताने आचार विनाना दुष्ट शीलवाळा होवा छता संयमवाळा माने छे. ? उत्तर-पोताना छन्द एटले अभिप्राय प्रमाणे पूर्वापर विचार कर्या बिना अथवा विपयनो अभिलाष तेन। छन्दबडे उपनीत आरंभना मार्गमा रहीने अवीनीत छता, पोताने विनय के एम बोले छे अधिक एटले वधारे, उत्पन्न. ते आरंभमां लीन थयेला, विपयना परिभोगमा एक चित्तवाला बनी गयेला जनो जीवोनो दुःख देवनां कर्मो करे छे. आ प्रमाणे विषयनी आशामा खेचायला चिलवाला करे छे ? ते बताये छे. 'आरंभमाण' एटले सावध अनुष्ठान अतिशयथी करे छे, ते ओ आ संसारमा अनुष्ठानवडे आठ प्रकारमा कर्मनो संग करे छ, अथवा जेभो आरभ करेछे, ते विषय संग करे छे, अने ते विषय संगथी संसार छे. घणा वेगथी जे उन्मताइ करे, तेथी भावे कर्म बंधाय, अने पछी अनेक प्रकारनां दुःखो पोते, एटले छ जीवनिकायनो घात करनारो वारंवार भोगवे छे हवे ते आरंभशी निवृत्त थयेलो केवो उत्तम होय ते बतावे छे. For Private and Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥२१३ ॥ www.kobatirth.org से वसुमं सव्वमण्णागयपण्णाणेणं अध्याग अकरणिज्जं पावं कम्मं णो अण्णेसिं, तं परिण्णाय heatre at निकायसत्थं समारंभेज्जा, क्षेत्रऽणणेहिं छज्जीनिकायसत्थं समारंभावेज्जा जीवनका सत्थं समारंभंते समणजाणेज्जा, जस्सेते छज्जीवनिकाय सत्यसमारंभा परि भवंति से हु मुणी परिण्णायकम्मे ( सू० ६१ ) तिबेमि इति सप्तमोद्देशकः ॥ ॥ इति प्रथममध्ययनम् ॥ पृथिवीना उद्देशामां विगेरे ते कहेला निवृत्ति गुणने भजनारा, एटले उ जीवनिकावना वघथी पाछो हठेलो छे. तथा व द्रव्य अने भाव एम वे भेदे से, द्रव्य वसू, ते, परक्त (पानुं ) इन्द्रनील ( एक जातनुं रत्न ) वज्र (हीरो) विगेरे तथा मात्र . ते, सम्यक दर्शन ज्ञान चारित्र जेने अथवा जेमा विद्यमान छे, ते बसु मान थाय, अहिं द्रव्य वसु झुकीने भाव व लेतां साधु भाव मान लेवो, एटले जे ज्ञानी होष से लेबो; अथवा जेनावडे यथावस्थित विषय ग्रहण करनाशं जे बधां ज्ञान छे, जेना बढे बधुं जणाय छे; ते ज्ञानो जेना आम्मामां होय ते सर्व सवागत ज्ञानवाळो एटले संपूर्ण बोधथी युक्त छे. तथा सर्व इन्द्रिय ज्ञानो बडे एटले पोतानी इन्द्रियो यथायोग्य अविपरीत विषयने प्रण करे, ते सर्व अबोध ज्ञानवाळो पोताना आत्मा बडे अथवा सर्व द्रव्यपयमा सारीरीने रहेलुं जे प्रज्ञान जेना आत्मामां होय, ते अत्मामां भगवद्वचन प्रमाण For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥२९३॥ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie सूत्रम् ॥२१४॥ ॥२१ ॥ मानीने दम्य पर्यायथी उत्पत्र भयेलं जे कइ छ, ते बीजीरीते नथी तेर्बु पाने. अही सामान्य तथा विशेषने जाणवाथी संपूर्ण जाणयो, तथा योग्य वस्तु स्वरूपनो जेणे निश्चय कयों के ते सर्व सम्यक् कारे प्रज्ञान पामेल) आत्मा कहेचो; अथवाः शुभ अशुभनो बधो समूह तेना संपूर्ण ज्ञानधी चारे गति तेना तथा मोशमुखना सपना ज्ञानथी अस्थिर संसार मुखमां असंतुष्ट पनी मोक्ष अनुष्ठानने करता सर्व अनुहन बोध ( पक्षान ) वाळो आन्या जाणतो; तेथी आ मकारना भात्मानन करवा योग्य तथा परलोकमा निंदनीयपणाथी हिंसाने अकार्य जाणीने ते न करना पत्न करे हवे ते जीव मध ?शा माटे अकार्य ? शा माटे | तेनो यत्न न करचोरी से कहे नीचे पाडे ते पाप, भने कराय ने कर्म, ने पापकर्म अदार प्रकारनुं . ते माणतिपातथी पिध्या स्वदर्शन शल्य चपी के ते बतावे . | जीवसिा, जुई, चोरी, कुशील, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, क्लेश, अभ्याख्यान, (खोदूं तोहमत ) चुगली परनिंदा खेद कपट करीने जुहूं बोलवू. तया मिध्यात्व शल्य, ए अहार प्रकारनां पाप पोते न करे, म करावे, अने न अनुमोदे, एटले ते अढार प्रकारनां पाप संपूर्ण जाणीने बुद्धिमान पुरुष मर्यादामा रहीमे छजीकनिकायनां शाखो जेस, परकाय भेदरूप हे तेने पोते न आरंभे, म आरंभ करावे, न आरंभताने अनुमोदे, भा प्रमाणे जेणे सारी रीते रछ जीवनिकायमा शसना समारंभोने परीक्षा करीने जाण्या छे तथा से विपणनां पाप क्यों पण नाण्यां ओ. ने सपरिवाए जाणीने पत्याख्यान परिपाए त्याग करे छे ते मुनी वधा पापोथी रडिग छ, तथा वा पूर्व ययेल वीतराग एटले राग द्वेपथी बीलकुल रहित एवा पुरुपनी माफक जाणवो, ( अहिं.' इति ' शब्द अध्ययननी समाप्ति माटे के ) पछी सुधर्मास्वामी कहे से, के पोतानी बुदिथी नही, पण HW For Private and Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie आचा सुत्रम ॥२१५॥ १२१५॥ भगवाने कहेलु, ते ९ कहुँ छु. अहीं भगवान एटले हानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय, अंतराय, ए चार कर्म आत्माना गुणनो पात करनार होबाथी, पनघाती कर्म कहेबाय के दूर करवायी संपूर्ण पदार्थ नुं दिव्यान जेणे प्राप्त कर्य छ, तथा जेने रचा इन्द्रो नमे छे, तथा चोत्रीश अतिशयथी युक्त छे; एवा श्री वर्धमानस्वामी पासेथी उपदेश सांभळी में आ बधु कयुं छे. आममाणे टीकाकार कहे छे के,सूत्रनो अनुगम, निक्षेप अने सूत्रने स्पर्श करनारी नियुक्ति ए बधुं को, इवे नैगम विगेरे नयो कहे छे. ते बीजे स्थळे विस्ताथी कला छे,अहि तो संक्षेपथी ये मकारना छे.ते का छे, माननय, अने चरणनय,तेमां बाननयवाला मोक्षना साधनमा ज्ञानने प्रधान माने छे, कारण के हित अहितनी प्राप्ति तथा त्याग तेना बडे , अने ज्ञानना भापारयोज वर्धा दुःख क्षय थाय के, पण ते भी शान माफक क्रिया प्रधान मानता नथी आ ज्ञाननयवाद थयो, हवे चरणनय कहे छे; तेओ चरणने मधान माने छे. सकल पदार्थमा भन्वय व्यतिरेकना समधिगम्यपणाथी ने प्रधान छ, जेमके ज्ञान होय तो पण सकल वस्तुने भाणा छतां चारित्र विना भावमा धारण करेलां कर्मोनो उच्छेद न थाय, अने तेनावीना मोक्षतो लाभ न थाय, तेथी ज्ञान प्रधान नथी, पण चरण प्राप्त था सर्व मूळ अने उत्तर गुणवाळ चारित्र होवाथी, ते पात तां पातीकर्मनों उच्छेद थाय छे. अने तेथी केवळज्ञान गाय, अने तेथीन यथाख्यात चारित्र प्राप्त यता अनि ज्वाळाना समृध्थी जेम काट बळी जाय, तेय ते चारित्रधी सकल कर्म समूह नास थाय छे, अने तेथील अन्यायाध मुखबाळु मोक्ष थाय, तेथी चारित्र तेज प्रधान हे. आ बन्नेन आचार्य समाधान करे . एकएकने प्रधान मानवाथी अने बीजाने उडाववाथी बन्ने मिध्यादर्शनीय ( भूलेला). कारण के क्रिया विना ज्ञान नका, छे, अने शान For Private and Personal use only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie सूत्रम् १२१६॥ बिना क्रिया नकामी छे, जेम देखना छतां पांगळो भागमा वळी मुभो, अने दोडवा छता अधिळो बळी मुभो, तेथी जेन मत पपाणे आचानयो जो एक चीजा साथे अपेक्षा न राखे, तो ते मिथ्यात्वरूपे रही सम्यकभावने अनुभवता नथी, पण परस्पर अपेक्षा राखी ए॥२१६॥ कठा क्येला परस्पर अर्थ बताचाथीः सम्यकपणे ( साचा) थाय छे, तेथी कबुं छे, के दुनियामा जेटला सत्य अभिप्रायो . ते नय छे. पण ते नयो भीजानी अपेक्षा न राखे, तो शत्रुरुप थइ मिथ्यात्वपणे छे पण एक वीजानो संबंधी रही एकत्र थाय तो ते सम्यक्त्व थाय. ते प्रमाणे अहिं ज्ञान चरण बन्ने मळीने मोक्ष प्राप्तिमां समर्थ थे. पण एकलुं ज्ञान के एकल चरण नहि, आ जिने चरनो निर्दोष पक्ष वताव्यो, हवे बन्नेनुं प्रधानपणुं वतावचा कहे छे. बधा नयोच घणा पकारनुं वक्तव्य सांभळीने बंधा नयोनु विशुद्ध जे तत्व तेने समजीने ते प्रमाणे आदरीने चरणगुणमा स्थित साधु होय, एटले चरण अने गुण ए बेउमा जे रहेलो ते चरण गुण स्थित छे. अहिं गुणथी ज्ञान लेचु, कारण के आत्मा गुणी छे तेनो गुण ज्ञान छे, ते बन्नेनो कोइ पण वखत वियोग यतो नथी, तेथी ते सहभाविक गुण छे. आ प्रमाणे घणा प्रकारे नय मार्गर्नु स्वरूप समजीने संक्षेपथी ज्ञान चारित्रमान रहे, आ विद्वानोनो निश्चय छे, पण एकला चारित्रथीन ज्ञान विना इच्छित माप्ति न थाय. आगळ अंधर्नु द्रष्टात आप्यु हे, ते प्रमाणे ज्ञान मात्रयीज क्रिया विना इच्छित प्राप्ति न थाय तथा पंगुर्नु द्रष्टांत आपेलं छे, ते आरीते, कोइ नगरमा आंधळो तथा पांगळो बन्ने रहेता हता, ते नगर चळवा लाम्युं त्यारे बधा लोको भागी गया, पण आंधळो तथा पांगळो रही गया, एक देखे के, चीजो दोडे छे, पण ज्यां सुधी बन्ने न मळ्या, त्यां सुधी दुःखी थया, पण ज्यारे बन्ने मळ्या. त्यारे बन्नेनो छुटको थयो, जेवी रीते अंध, SINESS For Private and Personal use only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥२१७॥ www.kobatirth.org पंगु, भेगा थया, तेवी रीते ज्ञान चरण बन्नेने प्रधान मानी ज्ञान भणी क्रिया करे से मोक्ष प्राप्त करे छे आ प्रमाणे आचारांगनुं संदोहभूत पहेलु अध्ययन छ जीवनिकायनुस्वरूप तथा तेना रक्षणनो उपाय बताबनार छे, जे प्रथम मध्य अने अंतम दयाना एक वा एकांत fra करनार छे, भने जे मुमुक्षु शिष्ये मूत्रथी तथा अर्थथी भण्णुं तथा श्रद्धा अने संवेगवडे यथायोग्य आत्म स्वरूपे कर्यु, तेथी महाव्रत आरोपण ते उपस्थापना' ( वडी दिक्षा ) ने योग्य जाणी निशीथ विगेरे सूत्रोमा बनावेला क्रमोवढे सचित्त पृथिवीना मध्यमां आचायें गमन विगेरे करवावडे परीक्षा करी शिष्यने श्रद्धावाळो जाणीने बडीदीक्षा आपवी तेनी विधि कहे छे, सारी तिथि, करण, नक्षत्रमुहूर्त तथा द्रव्य क्षेत्र, भाव, सारा देखीने जिनेश्वरनी मूर्तिने प्रवर्धमान स्तुतिओ बडे' नमस्कार करीने जिनेश्वरना पगपां पडीने उभो धयेल आचार्य शिष्य साथै महाव्रत आरोपण संबंधी कायोत्सर्ग करीने एक एक महाव्रतने Restart आरंभी or त्रण वखत पाठ बोले, ज्यां सुधी रात्रिभोजन संपूर्ण विरणत्रतनो पाठ आपे स्वारपछी आ पाठ त्रण बखत उधारो. इच्याई पंच महवयाई राइभोयणवेरमणछट्टाई असहिय याए उपसंपजित्ता णं विहरामि आ पांच महाव्रत छठु रात्रिभोजन विरमण व्रत ते पोताना आत्माना हित माटे प्राप्त करीने विचरुं हुं पछी बांदणां देव डावी थोडं नमीने शिष्य बोले, आज्ञा आपो हुं भुं बोलुं, त्यारे आचार्य कदे, बांदीने धारण कर ( बोल ) तमे मने महात्रत अर्पण कर्या छे, अने हवे तिशिक्षानी इच्छा राखुं छं, त्यारे आचार्य कहे, संसारथी तारो निस्तार थाओ, मोक्ष किनारे पहोंच, For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥२१७॥ Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा सूत्रम् १२१८॥ उत्तम गुणोधी वध, आ प्रमाणे यया पछी सुगंधी वासक्षेपवडे मुठी भरीने शिष्यना माथामा गुरु महाराज नांखे पछी शिष्य बांदण दइने प्रदक्षिणा करीने आचार्यने नमस्कार करतो फरी वांदे, ए प्रमाणे बधुं क्रिया अनुष्ठान करे आ प्रमाणे त्रण प्रदक्षि-15 गाओ करीने शिष्य उभो रहे स्यारे बीजा साधुओ तेना माथामां वासक्षेप नांखे, अथवा यति जनने सुलभ केशर नांखे, पछी कायोत्सर्ग करावीने आचार्य कहे हे शिष्य! सांभळ तारो कोटीक गण छे, अमुक कुळ छे, वैरी शाखा, अमुक आचार्य, अमुक उपाध्याय पचर्तिनी साध्वी अमुक छे, तथा बीजा वडी दिक्षा आपना योग्य होय ते अनुक्रमे रत्नाधिक याय छे, पछी आंबिल, अथवा नीवि, अथवा पोताना गच्छ परंपरामां आवेलो तप आचारे छे, आ प्रमाणे आ अध्ययन आदि मध्य अंतकल्याण समूहवा भव्यजनना समूडनुं मन समाधान करनार छे ते अध्ययन प्रियना वियोग विगेरे दुःखना आवर्तवाली तथा घणा पायरूप माछलां विगेरेना समूहथी आकूळ विषम संसाररूप नदीने तारवामां समर्थ छे तथा एक दयारूप रस छे. तेथी वारंवार मुमुक्षुए भणबुं आ शीलांकाचार्य करेली शस्त्रपरिज्ञा नामना पहेला अध्ययननी टीका समाप्त थइ ( आ अन्थना श्लोक २२२१ हे.) ॥ इति श्रीआधाराङ्गसूत्रे प्रथमो भागः समाप्तः ॥ श्रीरस्तु ॥ For Private and Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 0909009909190301000X900 0838Bee // इति श्रीआचाराङ्गसूत्रे प्रथमो भागः समासः // 39903 For Private and Personal Use Only