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आचा०
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राया । एवं गित्थवेसं वीयं पासलं नेत्रत्थं ॥७॥ पुत्रं चिय सिक्खविए, ते पुरिसे पुच्छए तार्ड राया को अवराहो एसि ? भणति आणं अइक्कमइ ॥ ८ ॥ पासंडिओ जहुत्ते ण वट्टइ अत्तणो य आयारे वह खार मज्झे खित्ता गोदोहतेत्तस्स || ९ || दट्टणट्टवसेसे, ते पुरिसे अलियरोसरत्तच्छो । सेहं आलायंतो राया तो भइ आयरियं ॥ १०॥ तुम्हवि कोऽवि पमादी ? सासेमि य तंपि णत्थि भणइ गुरु । जइ होहि तो साहे तुम्हे चिय तस्स जाणिहिह ॥ ११ ॥ सेहो गए निर्वमी भणई ते साहुणो उ ण पुत्ति । होहं पमाय सोलो तुम्हें सरणागओ घणियं ॥ १२ ॥ जइ पुण होज पमाओ, पुणो ममं सड्ढ भाव रहि यस । तुम्ह गुणेहिं सुविहिय तो सावगरक्ख सा मुच्चे ||१३|| आयं कभओ विग्गो, ताहे 'सो free उज्जुओ जाओ। कोविय मतिय समए रण्णा मरि साविओ पच्छा ||१४|| दव्वायंकादसी अत्ताणं सव्वहा णियतेइ । अहिया रंभाउ सया जह सीसो धम्मघोसस्स ॥ १५ ॥
गाथाभनी अर्थ - जंबूद्विपना भरतखंडमां बहु नगरना गुणथी समृद्धिवाद्धं अने सुप्रसिद्ध एवं राजगृह नामनुं नगर हतुं तेमां घणा गर्ववाळा शत्रु भने मर्दन करनार अने चारेतरफ जेनो यश फैलायो छे, एवो जीव अजीबने जाणनारो जीतशत्रु नामनो राजा
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सूत्रम
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