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आचा०
॥२०६॥
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राज्य करतो हतो. पछी निरंतर महान संवेगने भावनार एवा तेणे धर्मघोष आचार्यनी पगमां कोइ बखते कोइ प्रमादी शिष्य ने जोयो. से शिष्यने वारंवार अपराधनो उपको आपत छतां वारे बारे ममाद करतो देखीने तेना हितने माटे अने बीजाओ सेवा पापी न बने, माटे राजाए आचार्यनी आज्ञाथी पोताना पुरुषो पासे तेने बोलाव्यो, तथा तीव्र उत्कट वस्तुथी मेळवीने खार तैयार रखाच्यो, गा-प ते खार एव सखत हतो के जेम नांखेलो माणस गोदोह ( गायने दोहवाना ) बखतमां मांस, लोही विमानो फक्त हाडका मात्र रहे. गा-६, अने प्रथम संकेत करीने वे मडदां राजाए मंगावी राख्यां जेमां एकनो गृहस्थ बेष, अने बीजानो बाबानो वेपतो. गा-७. पूर्वे शिखवेला माणसने राजाए पूछयूँ.
के आपन्नेनो शुं अपराध छे. तेओए कहां एक वडीलनी आज्ञा उल्लंघे छे, बीजो पांखडी (साधु) पोताना शास्त्रोक्त कहेला आचारमां तो नथी, तेथी रामाए फहूं, गोदोह मात्र काळ खारमां नांखो. ॥ ९ ।। से ये पुरुषाने हाडकां मात्र रहेला देखीने खोटा कोथी आंखो लाल करीने राजा आचार्यने शिष्यना देखतां कहे छे. ॥ १० ॥ दे महाराज तमाराम पण कोइ प्रमादी होय तो कहो, हुं तेने योग्य शिक्षा करूं, गुरुपं तेने का कोई प्रमादी नथी, अने कोइ यशे तो हुं कहीश, अथवा तमे तेने जाणशो ॥ ११ ॥ ज्यारे राजा गया, त्यारे, पेलो चेलो साधुआंने कहे छे, के हवे हुं ममादी नहि थाउं. हुं तमारा शरणमां संपूर्ण आवेलो
।। १२ ।। जो फरीथी मने प्रमाद याय अने शतभावरहित करवा तमारा गुणो बडे तमे सुविहित छो, तेथी मने प्रमाद राक्षसथी कावजो ।। १३ 1 आतंक अने भयथी उद्विग्न थयेलो ते निरंतर पोताना धर्म अनुष्ठानमां जाग्रत थयो, त्यारे पछी, ते सुबुद्धि
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सूत्रम ॥२०६॥