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आचा०
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केटलाक जीवो जेमने ज्ञानावरणीय कर्मनो ( वधारे) क्षय उपशम होय तेपने ज्ञानसंज्ञा छे, केटलाकने ते आवरण वधारे होवाथी ज्ञान संज्ञा नथी जेवी संज्ञा नथी ते बतावे छे के हु परणोकमां एटले पूर्व जन्ममां मनुष्यादि कइ गतियां हतो ? एनावडे मादिशालीची, ''अथवा कइ दिशाथी हु' आव्यो ? एनावडे तो मज्ञापक दिशा लोधी, जेमके कोइ दारुना निसामां लोचन वेरायलो जेनुं मन अव्यक्त विज्ञानवालुं छे. ते भूलीने शेरीमां पडी गयेलो तेनी वासने लीधे आवेला कुतराधी ते मोदु चटाय ते समये तेने घेर कोई लावे तोपण नसामा शुं बन्यु ते नसो उत्तर्या पछी जाणतो नथी के दु' क्यांथी आग्यो छु तेत्रीरीते बीजी गतिमांथी आवेलो विशिष्ट ज्ञानरहित मनुष्य विगेरे पण जाणतो नथी हवे उपलीज संज्ञा नथी पण तेने बीजी संज्ञाओ पण नथी ते सूत्रकार बतावे छे.
अस्थि मे आया उनवाइए, नत्थि मे आया उनवाइए, केहं आसी ? के वा इओ चुए इह पेच्चा भविस्सामि ? (सू० ३ )
अस्ति ' ते मारो आत्मा विद्यमान छे छठ्ठी विभक्ति मंते होवाथी 'मम' साथै शरीरनो सस्त्र बताव्यों के शरीरनो मालीक अंदर रहेलो आत्मा ते निरन्तर गतिमां प्रवृत थयेलो ते पोते जीत्र छे. दवे ते केत्रो छे? औपपातिक छे. फरी फरीने एक जन्म मांथी बोजा जन्ममां जनुं ते उपपति छे तेमां धनुं ते औपपातिक छे, आ मूलवडे संसारीनु स्वरूप बतावे छे. ते मारोआत्मा आ प्रकारे छे के नहि ते ज्ञान केटलाक अज्ञानी जीवोने नयी होतु अने हुं कोण छु पूर्व जन्ममां नारकीय, पशु, मनुष्यादि के देव
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सूत्रम्
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