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सूत्रम्
॥७१।
| जाणवू ते परिक्षा.छे अने त्याग से ने प्रत्याख्यान परिशा छे. नियुक्तिकार तेज अर्थने कहे छे. आचा०18 तस्थ अकारि करिस्संति बंध चिंता कया पुणो होइ । सहसम्मइआ जाणइ कोई पुण हेतुजुत्तीए ॥१७॥
तेमां एटले क्रियाथी बंधाता कर्ममां थयुते कहे छे. कयु अने करीश आ भविष्य अने भूतकाळ लेबाथी वचमा रहेल वर्तमान काळ पण आवी जाय छे तथा करवा साथे करावधु अने फर्ताने अनुमोदए दरेकना त्रण प्रण भेदो गणतां नव थया ते आत्म परिणाम घणे योग ( व्यापार रुपे लीधेला जाणवा तेमां आ आत्म परिणाम रुप क्रिया विशेपचडे बंधनी चिंता करी छे एटले पंधन उपादान लीधुं छे. कारण जे जैन शास्त्रमा कयुछे के 'योग निमिने कर्म बंधाय छे' अने आ कोइक पुरुप जाणे छे।४ जेने सन्मति अथवा स्वमति आस्मानी सा छे. ते अवधि मनःपर्याय केवळज्ञान तथा जातिस्मरण रूप ज्ञान के तेना बढे जाणे छे. अने कोइतो पक्ष धर्म, अन्वयव्यतिरेक लक्षण वाळी हेतुनी युक्ति बडे जाणे छे. इवे अज्ञानी जीव शामाटे आवा कडवा विषाकवाला कर्मना आश्रच रुष हेतुभूत क्रिया विशेषमा प्रवर्षे छ ? आ शिष्यना मननो उत्तर आपे छे.
इमस्स चेव जीवियस्य परिवंदणमाणण प्रयणाए।जाईमरण मायणाए दुक्खपडिघायहेउं (सू.११) तेयां जेनावडे जीवे छे ते जीवित एनाथी आयुःकर्म बडे माणधारण कर छे. अने ते दरेक पाणीने जाणीतुं छे. तेथी | P प्रत्यक्ष आसन्न वाची 'इदम्' शब्दबडे प्रयोग कर्यो छे (गुजरातीमां आ जीवित माटे वपराय छे ) चकार हवे पछी कद्देवानी 13/ जाति विगेरेनो सामटो अर्थ बतावे छे. एवकार निश्चय वाचक छे. तेनावडे जाणवु के आ जीवित तदन सार विनानु (नकामु) न 181
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