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हावाथा त लामा छ. पण पुरुष शब्द उपलक्षणमा चार गतिमा फरनारो प्राणी लेवो. ते पाणी अथवा पुरुष दिशा अने विदिशाआचा०६मा संचरे ते कर्मना स्वरुपने जाणतो नथी. तेथी अपरिक्षात कर्मा छे. (सूत्रमा खलु शब्द निश्चयरुप छे. ) ते निचे दिशा विदि
सूत्रम् शामां भमे छे. पण कर्मने जाणनारो भमतो नबी आ उपलक्षण छे. पण एम जाणवू के अपरिज्ञात आत्मा अने अपरिज्ञात क्रियावाळो पण जाणवो अने जे अपरिज्ञात कर्मा छे. ते दरेक दिशा विदिशाओमा पोताना करेला को साथे बीजी गविमा संचरे छे. P॥ ६८ ॥
(मूळ मूत्रमा सर्व शब्द एटला.माटे छे के बधी प्रज्ञापक दिशाओ तथा भाव दिशाभोनो पण साये संग्रह करवो) ८ 5 ते आत्मा तथा कर्मने न जाणनारो | फळ पामे छे, ते वतावे छे.
अणेगरूवाओ जोणीओ संधेइ, विरूवरूवे फासे पडिसंवेदेइ (सू०९) अनेक संकट विकट निगेरे रुप योनियोमा छे ते योनीमां उत्पन्न थाय छे. योनीचें स्वरुप जेमा उदारिक शरीर वर्गणाना पुद्गलो Mसाचे जीव पोते जोडाय छे ते. एटले जीवोनु उत्पत्तिस्थान ते योनीयो छे.
योनीओन स्वरुप अनेक प्रकार के 'संत' एटले देकायली 'विवृत्त' एटले खुल्ली तथा बन्ने पकारनी, तथा शीत, अने उष्ण 5 एम भेदो छे. अथवा चोराशी लाख भेदो छे नीचे प्रमाणे.
पुढवीजलजलणमारुय, एकेके सत्त सत्त लक्खाओ। वण पत्तेय अणंते, दस चोदस जोणि लक्खाओ ॥१॥
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