________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
आचा
सूत्रम
॥६७॥
बावट
आचार्य महाराज बतावे छे.
एयावंति सवाति लोगंसि कम्मसमारंभा परिजाणियवा भवंति (सू०७) न आटलीज विशिष्ट क्रियायो जे पूर्वे कहेली छे, ते सर्व लोक एटले पाणी समूहमा कर्मनो समारंभ छे ते अतीत, अनागत, वर्तMमान, भेद वडे कर्यु, कराव्यु, अने अनुमोयु ए बडे तमाम क्रियाने अनुसरनार 'करेछे ए शब्दवटे वधी क्रियानो संग्रह थाय
छे. आटलीज क्रियाओ जाणवी. बीजी नहिं अने परिज्ञा ये प्रकारनी छे. ज्ञपरिज्ञा अने प्रत्याख्यान परिज्ञा तेमां झपरिज्ञा (पळेला बोध) बडे आत्मा अने बंधन अस्तित्व छे. पूर्वे कहेली कर्म समारंभनी बधी क्रियाओ बडे जाणपणु थाय छे. अने जाण्या पछी मत्याख्यान परिज्ञावहे था पापांने भाववाना हेतुरुप कर्मना समारंभोना पच्चखाण करवां जोइए ( बने त्यांसुधी छोडवां जोइए) आटला सामान्य वचनवडे जीवन अस्तित्व साध्य छे. अने ते आत्मानु दिशाओनु जे भ्रमण तेना हेतु ओना बतायवा साधे
अपायोने बताववा कहे छे. अथवा जे आत्मा तथा कर्म वादी छे, ते दिशाओना भ्रमणी छुटशे अने जेओ कर्मवादने नथी मानता | H तेओने केवा विषाक भोगवटा पडशे ते बतावे छे.. म अपरिण्णायकम्मा खलु अयं पुरिसे जोइमाओ दिसाओ अणुदिसाओ अणुसंचरइ, सबाओ | दिसाओ सवाओ अणुदिसाओ साहेति (सू०८) जे पुरुष ( पुरिमा शयन करनार ते पुरुष ) अथवा सुख दुःखोथी पूर्ण ते कोइपण जतु अथवा माणस अहिंआ पुरुषप्रधानपणु ।
For Private and Personal Use Only