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आचा०
सूत्रम्
विगलिंदि एसु दो दो चउरो चउरो य णारयसुरेसुं। तिरि ते चउरो चोदस लक्खाय मणुएसु ॥२॥ पृथिवी, पाणी, अग्नि, वायु, ए दरेकनी सात सात लाख योनि छे. प्रत्येक साधारण वनस्पतिकायनी चौद अने दस लाख योनि छे. विकलेन्द्रिय एटले बे इन्द्रिय, त्रण इन्द्रिय, चार इन्द्रिय, दरेकनी बब्बे लाख छे. अने नारकीय तथा देवलोकनी चार चार लाख छे. तियेच पंचेन्द्रियनी पण चार लाख अने मनुष्यनी चौद लाख छे. तथा शुभ अशुभ भेदवडे योनियोनुं अनेक रुप पणुं छे. | ते गाथाओथी बतावे छे.
सोयादी जोणीओ चउरासीती य सयसहस्साइं। असुभाओ य सुभाओ तत्थसुभाओ इमा जाण ॥१॥ शीतादि भेदथी चोराशी लाख योनियों छे. तेना शुभ अने अशुभ एवा ये भेद छे. तेमां शुभ योनियो नीचे प्रमाणे.
असंखाउमणुस्सा राईसर संखमादिआऊणं । तित्थगरनामगोत्तं सबसुहं होइ नायव्वं ॥२॥ तत्थवि य जाइसंपन्नतादि सेसाउ हुंति असुभाओ। देवेसु किविसादि सेसाओ हुँति उ सुभाओ॥३॥ पंचिंदियतिरिएसुं हयगयरयणे हवंति उसुभाओ। सेसाओ असुभाओ सुभवण्णेनिदियादीया ॥४॥
देविंदचकवहितणाई मोतं च तित्थगरभावं । अणगारभाविताविय सेसा उ अणंतसो पत्ता ॥५॥ असंख्य आयुवाळा (जुगलीभा मनुष्पो.) अने संरूपाता आयुवाळा राजेश्वर विगेरे तथा तीर्थकर नाम गोत्रवाला जे जीव होय छे.
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