________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatrth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie
सूत्रम्
॥७॥
15/ तेमने बधं शुभ होय छे. अने तेमां पण जाति स्मरण ज्ञानवाला विगेरे शुभ होय छे, अने चाकीना अशुभ जाणवा. अने देवयोनिमा आचा. पण किल्विपिया शिवाय बीजी देवयोनिओ शुभ जाणवी. ॥ २-३ ।।
. पंचेन्द्रिय तिर्यच योनीयोमा घोडा, हाथी, विगेरे जे चक्रवृचिनां रत्नो छे, ते शुभ योनि तथा शुभ वर्णवाळा एकेन्द्रिय विगेरे । ॥७०॥ | शुभ होय छे (४) देवेन्द्र तथा चक्रवृत्तिपणामां तथा तीर्थ कर भावने मूकीने तथा भावित अनगारो ( साधु ) मुकीने बाकीना
जीवो अनन्तवार योनियोने पाम्या.
आ अनेक रुपवाळी योनियोने दिशा विदिशामा पर्यटन करनारो कर्मने न जाणनारो आत्मा पोतानी साये जोडे छे (योनिमा भमे छे ) एटले योनी साथे संधि करे छे. कोइ जगाए 'संघावइ' पाठ छे. तेनो अर्थ आ छे के वारंवार ते योनियोमा जाय छे. अने तेना संधानने अनुभवे छे ते बतावे छे. विरुप एटले विभत्स अमनोज्ञरुपवाला स्पर्शो जे दुःख देनारा छे ते दुःख समुहने | स्पर्श करवाथी पीडाय छे. 'तात् स्थ्यात् ' शब्दथी तेनो व्यपदेश कर्यो छे माटे जाणवू के दुःखो भोगवे छे. आ तो उपलक्षण मात्र P वेदना छे. के एवा स्पर्शोने अनुभवीने दुःख भोगवे तेवी रीते शरीर संबंधी अने मन संबंधी पण दुःखो अनुभवे छे. ( नारकोनी ।
अंदर जीवोने ते स्थाननी वेदना शरीरने पीडे छे. तेम मनमां विकल्पोना पण घणां दुःखो छे. ते वताव्यां छे.) X/ अहिं स्पर्श ग्रहण करवाथी एम समजवू के स्पर्शज्ञान वधा संसारी जीवोने छे. तेथी संसारमा रहेनारा सर्व जीवोनो समुह दुःख भोगवे छे. एम वताचवा माटे स्पर्श लीधो छे. वळी अहिंआ पण कहे, के खराब एवा रुप, रस, गंध, अने शब्द तेने पण अनुभवे छे. स्पर्शो विरुप रुप थवान कारण पूर्व करेला जे पापो ते उदयमा आवतो कारणरुप थइने कार्यमा स्पर्शपणे अनुभवावे छे.
For Private and Personal Use Only