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अहितने माटे यशे तेम बोधिलाभ सम्यक्त्वथी विमुक्त करशे. कारण के प्राणी गागना उपमर्दनमा प्रयोलामाने बोडो पन दियो ।
लाभ नहि थाय जे कोइ भगवान पासे अथवा तेना शिष्य खरा साधु पासे पृथिवी कायना आरंभने पापरुप जाणीने भावे छे ते सूत्रम्
1 आईं माने छे. जेणे पृथिवीनुं जीवपणुं जाण्यु छे, ते परमार्थनो जाणनारो साधु पृथिवीकायना शखना समारंभने अहितपणे सारी / ।१०८॥
P ॥१०॥ रीते जागनारो पोते सम्पदर्शन विगेरे स्वीकारीने बचावे छे. हवे ते केवा प्रत्ययथी याने हे ते पताये छे. का तो ते भगवान पासे का तो कोई साधु पासे समजीने बचावे छे. मनुष्य जन्मयां तत्तनो प्रतिबोध पामेला साधुओए आ जाण्युं छे. शुं जाण्यु छे ?
ते वतावे छे. आ पृथिवीकायन शास्त्र जेनो समारंभ अg प्रकारना कर्मनो बंध छे खलु शब्दथी निधे जाणवू तथा कारणमा कार्यनो । ६ उपचार करवो ते नालोदक गंदु पाणी जेम पगने रोगी बनाये छे तेथी पग रोग तरीके जाणोतुं छे ते न्याये पृथिवीकायनो समा४रंभ मोहनीय कर्मना बंधरुप छे. वक्री मोहनो हेतु होवाथी पृथिवीकायनो समारंभ कारण अने आठ कर्म ते कार्य छे एम मन्यु
ते मोहनीय कर्मना चे भेद छे. अने अठावीश कारनी कर्म प्रकृति छे. ते जाणवी. वळी मरणतुं हेतु होवार्थी माररुप छे, एटले पृथिवीकायने मारे ते पोताना आयुःकर्मनो क्षय करे छ, अर्थात् अकाळे मरे छे. तथा नरकनो हेतु होवाथी ते नर्क छे. आपणा रहेवासथी नीचे जे पृथिवी छे तेमां नरक, मां सोमंत विगेरे दुःखदाइ स्थानोमां नरकना जीवो तरीके रही दुःख भोगवे छे. आथी अशावा वेदनीय कर्म बांधवान सूनव्यु छे.
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