________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
आचा०
॥ १०७ ॥
www.kobatirth.org
अणेगरुवे पाणे विहिंसइ से बेमि अप्पेगे अंधमन्भे अप्पेगे अंधमच्छे अप्पेगे पायमन्भे अप्पेगे पायमच्छे अप्पेगे गुल्फमवभे अप्पेगे गुप्फमच्छे अप्पेगे जंघमब्भेर अप्पेगे जाणुमन्भे? अप्पेगे उरुमन्भे अप्पे कमि २ अप्पेगे णाभिममे २ अप्पेगे उदरमब्भे २ अप्पेगे पासमब्भे २ अप्पेगे पिट्ठिमन्भे २ अप्पेगे उरमब्भे २ अप्पेगे हियमन्भे २ अप्पेगे धणमन्भे २ अप्पेगे धमन्भे २ अप्पेगे बाहुमन्भे २ अप्पेगे हत्थमन्भे २ अप्पेगे अंगुलिमव्भे र अप्पेगे हमब्भे २ अप्पेगे गीवमव्भे २ अप्पेगे हणुमब्भे २ अप्पेगे होडमब्भे २ अप्पेगे दंतमन्भे २ अप्पेगे जिन्भमन्भे २ अप्पेगे तालुमन्भे २ अप्पेगे गलमब्भे १ | अप्पेगे गण्डमभे २ अप्पेगे कष्णमब्भे २ अप्पेगे णासम भे २ अप्पेगे अच्छिम भे २ अप्पेगे भमुहमध्ये २ अप्पेगे णिडालमभे अप्पेगे सीसमध्ये २ अप्पेगे संपसारए अप्पेगे उदवए इत्थं इत्थं समारभमाणस्स | इचेते आरंभा अपरिण्णाता भवंति ( सू० १६ )
२
उपर कहेला पापना कृस्पो जे पृथिवीकायने दुःख देवारूप छे ते करवा करावा तथा अनुमोदवाथी तेने भविष्यकाळमां
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सूत्रम
॥ १०७॥